देश में बहुत इस गलतफहमी में थे कि ‘किंग कैन डू नो रौंग’ यानी राजा गलती नहीं कर सकता. यह भ्रामक, झूठा अत्याचारी, अनचाही, अलोकतांत्रिक कथन 1950 में संविधान के हथौड़े से जमीन में कहीं गहरे कीलों से ठोंक कर ढक दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने एनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट के मामले अपने बुलडोजर से उसे निकाल ही दिया, सरकार के हर कार्यालय पर मोटे अक्षरों से फिर लिख दिया.

सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों ने फैसला दिया है कि सरकार गलत हो ही नहीं सकती चाहे वह किसी की भी संपत्ति छीने, किसी को जेल में बंद करे, साथ ही, उसे अपने ‘शिकार’ को यह बताने की आवश्यकता भी नहीं है कि उस का कुसूर क्या है. सुप्रीम कोर्ट ने नागरिक स्वतंत्रताओं को उस जगह गाड़ दिया है जहां 1950 में ‘किंग कैन डू नो रौंग’ का कथन गाड़ा गया था.

अब एक नागरिक की आजादी सरकारी हाथों में है. सरकार उस से खुश है तो वह घर में परिवार के साथ रह सकता है, अपना काम कर सकता है, जहां चाहे आ-जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि अगर सरकार के पास न खुश रहने के कारण हैं तो उस की आजादी, उस की संपत्ति छीनी जा सकती है. यह फैसला अमेरिका के रो वर्सेस वेड मामले के फैसले से भी ज्यादा भयंकर है जिस में एक औरत से उस का अपने बच्चे, जिस ने जन्म ही नहीं लिया, को मारने का हक था. 3 भारतीय जजों ने वही किया जो अमेरिका के जार्ज बुश और डोनाल्ड ट्रंप के नियुक्त जजों ने किया.

यह सरकार की मेहरबानी पर अब निर्भर है कि कोई नागरिक या भारत में मिला विदेशी जेल में रहेगा या बाहर. कोई सरकार सारे देश को जेल में बंद नहीं कर सकती पर जिस के पास भी सरकार की खामी निकालने के तथ्य व हिम्मत हो, उसे बंद करने का अर्थ है सब के मन में दहशत पैदा कर देना.

यह मामला क्या था, जजों ने क्या, क्यों कहा, इस पर न जाइए. मुख्य बात यह है कि आम नागरिक के संवैधानिक अधिकार अब सरकार के पास गिरवी रखे जा चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट, जिस का काम नागरिकों को किसी भी सरकार को आतंकवादी बनने से रोकता था, ने सरकार के हाथों में मशीनगन पकड़ा दी हैं जो देश के दुश्मनों के साथ सरकार के अपने दुश्मनों पर आसानी से चलाई जा सकती है.

सरकार सब जानती है. सरकार सिर-माथा है. सरकार मेहरबान तो जी जहान जैसी सोच फिर वापस आ गई है. सुप्रीम कोर्ट ने व्याख्या दी है कि सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्यों की, नागरिकों के साथ जैसी मरजी वैसा व्यवहार कर सकती है.

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