मुंबई से सटे जिला थाणे की तहसील अंबरनाथ के गांव नेवाली आकृति चाल में रहने वाले कुछ लोग सुबह काम के लिए निकले तो गांव से कुछ दूरी पर घनी झाडिय़ों के बीच उन्हें प्लास्टिक का एक सुंदर और बड़ा सा कैरीबैग पड़ा दिखाई दिया. तेज बारिश होने के बावजूद उस पर खून के धब्बे दिखाईं दे रहे थे. इसलिए लोगों को यही लगा कि इस में किसी की लाश भरी है.

मामला गंभीर था, इसलिए थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई. किसी ने इस बात की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. वह इलाका थाना हिल लाईन के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना हिल लाईन पुलिस को दे दी.

सूचना मिलने के बाद ड्यूटी पर तैनात असिस्टैंट इंसपेक्टर पढ़ार ने काररवाई करते हुए सच्चाई का पता लगाने के लिए नेवाली गांव स्थित पुलिस चौकी पर तैनात सबइंसपेक्टर दंगड़ू शिवराम अहिरे और पुलिस कांस्टेबल शेषराव वाघ को घटनास्थल पर भेज दिया.

सबइंसपेक्टर दगड़ू शिवराम अहिरे और कांस्टेबल शेषराव वाघ गांव नेवाली पहुंचे तो गांव से कुछ दूरी पर उन्हें भीड़ लगी दिखाई दी. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि लाश वहीं पर पड़ी है.

उन्होंने वहां जा कर सब से पहले तो उस कैरीबैग को झाडिय़ों से बाहर निकलवाया. गांव वालों की मौजूदगी में जब उसे खोला गया तो उस में प्लास्टिक की मोटी थैली में एक युवक की लाश को तोड़मरोड़ कर भरा गया था.

लाश बाहर निकाली गई. मृतक 27-28 साल का युवक था. किसी तेज धार वाले चाकू से उस का गला काट कर हत्या की गई थी. सांवले रंग का वह युवक शरीर से ठीकठाक था. इस का मतलब हत्या में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे.

दगड़ू शिवराम अहिरे और शेषराव वाघ ने इस बात की जानकारी सीनियर इंसपेक्टर मोहन बाघमारे को दी तो वह तुरंत इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर, असिस्टैंट इंसपेक्टर मनोज ङ्क्षसह चौहान, महिला सबइंसपेक्टर वी.एस. शेलार, कांस्टेबल के.बी. जाधव, दिनेश कुभारे, जी.एस. मोरे और महिला कांस्टेबल पेड़वाजे को ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.  उन के पहुंचने तक प्रैस फोटोग्राफर, डाग स्क्वायड, ङ्क्षफगरङ्क्षप्रट ब्यूरो की टीम के अलावा एडीशनल पुलिस कमिश्नर बसंत जाधव और असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर डी. जगताप वहां पहुंच चुके थे.

डाग स्क्वायड, प्रैस फोटोग्राफर और ङ्क्षफगर ङ्क्षप्रट ब्यूरो का काम खत्म हो गया तो घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया गया. इस के बाद लाश की शिनाख्त की बात आई तो भीड़ में मौजूद कुछ लोगों ने मृतक की शिनाख्त कर दी.

मृतक का नाम संजय हजारे थे. वह अपनी पत्नी अनुभा, एक बच्ची और दोस्त दीपांकर पात्रा के साथ कुछ दिनों पहले ही वहां रहने आया था.

मृतक की शिनाख्त होते ही मोहन बाघमारे ने एक सिपाही भेज कर मृतक की पत्नी अनुभा को घटनास्थल पर बुलवा लिया. अनुभा पति की लाश देखते ही फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस ने उसे समझाबुझा कर शांत कराया और वहां की सारी औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला मध्यवर्ती अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद पुलिस थाने लौट आई थी. थाने लौट कर मोहन बाघमारे ने अपने स्टाफ के साथ सलाहमशविरा कर के हत्या के इस मामले की जांच इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर को सौंप दी.

जितेंद्र आगरकर ने सहयोगियों के साथ जांच शुरू की तो उन्हें मृतक संजय हजारे की पत्नी अनुभा और साथ रहने वाले उस के दोस्त दीपांकर पात्रा पर शक हुआ. क्योंकि घटनास्थल पर जब अनुभा रो रही थी तो उन्होंने महसूस किया था कि पति की मौत पर कोई पत्नी जिस तरह रोती है, वैसा दर्द अनुभा के रोने में नहीं था. वह दिखावे के लिए रो रही थी. इसलिए उन्होंने जांच की शुरुआत अनुभा और दीपांकर से शुरू की.

उन्होंने दोनों को थाने बुला कर पूछताछ शुरू कर दी. पुलिस ने जब अनुभा से पूछा कि यह सब कैसे हुआ तो नजरें चुराते हुए उस ने कहा कि कल रात उन का अंडे खाने का मन हुआ तो वह अंडे लेने निकले. लेकिन वह गए तो लौट कर नहीं आए. मुझे लगा कि बारिश तेज हो रही है, इसलिए वह कहीं रुक गए होंगे. रात 12 बजे तक मैं ने उन का इंतजार किया. उतनी रात तक भी वह नहीं आए तो मैं बेटी के साथ सो गई.

दीपांकर पात्रा के बारे में पूछा गया तो उस ने उसे अपना मुंहबोला भाई बताया. उस से भी पूछताछ की गई. उस ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए खुद को निर्दोष बताया.

अनुभा का बयान जितेंद्र आगरकर के गले नहीं उतर रहा था. जिस औरत का पति रात को घर न आए, भला वह निश्चिंत हो कर कैसे सो सकती है? इस के अलावा दीपांकर ने पूछताछ में जो बयान दिया था, वह अनुभा के बयान से एकदम अलग था.

अनुभा ने उसे मुंहबोला भाई बताया था, जबकि दीपांकर ने खुद को उस का दूर का रिश्तेदार बताया. इसी वजह से अनुभा शक के घेरे में आ गई थी. पुलिस को लग रहा था कि किसी न किसी रूप में अनुभा पति की हत्या में शामिल है.

लेकिन पुलिस के पास उस के खिलाफ कोई ठोस सबूत न होने की वजह से पुलिस उस पर सीधा आरोप नहीं लगा पा रही थी.

पुलिस सबूत जुटाने के लिए वहां पहुंची, जहां संजय अनुभा के साथ पहले रहता था. क्योंकि शिनाख्त के दौरान लोगों ने बताया था कि मृतक यहां कुछ दिनों पहले ही रहने आया था.

अनुभा और दीपांकर ने पूछताछ में बताया था कि यहां आने से पहले वे अंधेरी (पूर्व) के गौतमनगर में रहते थे.

जितेंद्र आगरकर ने अपने सहयोगियों को गौतमनगर भेज कर संजय और उस की पत्नी के बारे में पता किया तो वहां से पता चला कि संजय और उस की पत्नी अनुभा के बीच अकसर लड़ाईझगड़ा होता रहता था. झगड़े की वजह थी अनुभा के संजीव शिनारौय के साथ के अवैध संबंध.

संजीव पहले उन के साथ ही रहता था. बाद में उसे अलग कर दिया गया था. इस के बावजूद अनुभा उस से मिलती रहती थी.

जांच टीम के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. पुलिस ने तुरंत संजीव को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो हर अभियुक्त की तरह उस ने भी पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस को पूरा विश्वास था कि हत्या इसी ने की है, इसलिए पुलिस ने उस से सच उगलवा ही लिया.

इस के बाद अनुभा को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ में अनुभा और संजीव ने संजय की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस तरह थी.

संजय हजारे पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना के वीरभूम का रहने वाला था. चूंकि उस के यहां सोनेचांदी के गहने बनाने और उन पर नक्काशी करने का काम होता आया था, इसलिए थोड़ीबहुत पढ़ाई कर के वह भी यही काम करने लगा था.

गांव में उस की एक छोटी सी दुकान थी, जिस से इतनी आमदनी नहीं होती थी कि परिवार का गुजरबसर आराम से होता.

मुंबई मेहनती और महत्त्वाकांक्षी युवकों के सपनों की नगरी है. संजय भी घर वालों से इजाजत ले कर सन 2005 में मुंबई आ गया था.

मुंबई में उस के गांव के कई लडक़े पहले से ही रहते थे, इसलिए मुंबई में संजय को किसी तरह की परेशानी नहीं हुई. वह उन्हीं के साथ रह कर सोनेचांदी के गहने बनाने और उन पर नक्काशी का काम करने लगा.

कुछ दिनों तक इधरउधर काम करने के बाद बोरीवली की एक बड़ी फर्म में उसे काम मिल गया. यहां उसे ठीकठाक पैसे मिलने लगे. ठीकठाक कमाई होने लगी तो पैसे इकट्ठा कर के उस ने अंधेरी (पूर्व) के गौतमनगर में एक मकान खरीद लिया.

वह अकेला ही रहता था, इसलिए दीपांकर और संजीव को भी उस ने अपने साथ रख लिया. संजीव उसी के गांव का रहने वाला था, जबकि दीपांकर पात्रा दूसरे गांव का रहने वाला था, बाद में दीपांकर ने ही उस की शादी अपनी दूर की रिश्तेदार अनुभा से करा दी. वह उस का रिश्तेदार हो गया. यह सन 2001 की बात है.

चूंकि संजय के पास अपना मकान था, इसलिए शादी के बाद वह पत्नी अनुभा को मुंबई ले आया. उस के मकान में 2 कमरे थे. इसलिए अनुभा के आने के बाद भी उस के दोनों दोस्त भी उसी के साथ रहते रहे. साल भर बाद अनुभा ने एक बेटी को जन्म दिया. सभी उस बच्ची को खूब प्यार करते थे. उन के लिए वह खिलौने की तरह थी, इसलिए वे उसे खूब खेलाया करते थे.

कहा जाता है कि आदमी की नीयत कब बदल जाए, कहा नहीं जा सकता है. ऐसा ही संजीव के साथ हुआ. इस की नीयत अनुभा पर बिगडऩे लगी. उस की नीयत खराब हुई तो वह उस के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा.

देखने में भले ही सब कुछ पहले की तरह ठीकठाक लग रहा था, लेकिन ऐसा था नहीं. अब अनुभा को देखते ही संजीव का मन मचल उठता था. उसे संजय से ईष्र्या होने लगी थी.

जल्दी ही अनुभा को भी संजीव के दिल की बात का आभास हो गया. संजीव उस के ज्यादा से ज्यादा नजदीक आने की कोशिश में लगा था. सभी सुबह काम पर जाते तो शाम को ही आते. सब साथसाथ खाना खाते हंसीमजाक करते और फिर सो जाते.

2 कमरे के उस मकान में एक कमरे में संजय अपनी पत्नी के साथ सोता था तो दूसरे कमरे में दीपांकर और संजीव. संजीव संजय और अनुभा की बातें तथा हंसीठिठोली सुनता तो उस के सीने पर सांप लोटने लगता. उसे संजय से जलन होने लगती. वह सोचता कि काश संजय की जगह अनुभा उस की बांहों में होती.

आखिर संजीव का यह सपना पूरा हो ही गया. अनुभा गर्भवती हुई थी तो संजय से ज्यादा संजीव उस का खयाल रखता था. जब कभी संजय काम अधिक होने की वजह से देर में आता तो संजीव समय पर घर आ कर घर के कामों में अनुभा की मदद ही नहीं करता, बल्कि उस के खानेपीने का भी ध्यान रखता.

उस की इस सेवा का अनुभा पर खासा असर पड़ा और न चाहते हुए भी वह उस की ओर ङ्क्षखचती चली गई. बेटी पैदा होने के बाद कुछ ऐसा संयोग बना कि दोनों के बीच की मर्यादा की दीवार ही ढह गई.

पहली बार मर्यादा की दीवार टूटी थी तो दोनों को अपने किए पर पछतावा हुआ था. लेकिन जो नहीं होना चाहिए था, वह हो चुका था. भले ही उन्हें अपने किए पर पछतावा हुआ था, लेकिन उन के कदम यहीं रुके नहीं. आगे भी अनुभा और संजीव को जब भी मौका मिला, वे संजय के साथ विश्वासघात करने से नहीं चूके.

अनुभा और संजीव जो भी करते थे, पूरे चौकस हो कर करते थे, लेकिन उन के ये संबंध ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रह सके. संजय को पत्नी और संजीव के संबंधों के बारे में पता चल ही गया. काम पर तो तीनों साथसाथ जाते थे, लेकिन कोई न कोई बहाना कर के संजीव बीच में आ जाता था. अनुभा के साथ मौजमस्ती कर के वह फिर काम पर पहुंच जाता.

ऐसे में पड़ोसियों को शक हुआ तो उन्होंने यह बात संजय को बताई. संजय को उन की बात पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि उसे अपने दोस्तों और पत्नी पर पूरा भरोसा था.

अनुभा और संजीव संजय के इसी विश्वास का फायदा 3 सालों तक उठाते रहे. आखिर एक दिन जब उस ने अपनी आंखों से दोनों को एकदूसरे की बांहों में देख लिया तो उसे अनुभा और संजीव की इस बेवफाई से गहरा आघात लगा.

उस ने संजीव को खूब खरीखोटी सुनाई और उसी समय घर से निकाल दिया. पत्नी को भी उस ने खूब धिक्कारा. संजीव ने संजय का घर भले छोड़ दिया, लेकिन अनुभा को नहीं छोड़ा. अनुभा से अपने संबंध रखे रहा.

मौका मिलते ही वह अनुभा के पास आ जाता और इच्छा पूरी कर के चला जाता. इस में अनुभा भी उस की मदद करती थी. इस बात को ले कर संजय और अनुभा के बीच अकसर लड़ाईझगड़ा होता रहता था. बात बढ़ जाती तो संजय अनुभा की पिटाई भी कर देता था. लेकिन मारनेपीटने और समझाने का अनुभा पर कोई असर नहीं हुआ. तब संजय ने अनुभा को संजीव से अलग करने का दूसरा उपाय सोचा.

परिचितों की मदद से उस ने अपना गौतमनगर वाला मकान बेच दिया और अंबरनाथ तहसील के नेवाली गांव की आकृति चाल में एक अच्छा सा मकान खरीद लिया. 12 नवंबर, 2015 को पूजापाठ करा कर वह पत्नी अनुभा, बेटी और दीपांकर के साथ उस में रहने आ गया.

नेवाली आने के बाद संजय को लगा कि अब संजीव अनुभा की ङ्क्षजदगी से निकल जाएगा. अनुभा भी धीरेधीरे उसे भूल जाएगी. यह सोच कर संजय अपने काम में व्यस्त हो गया. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. न तो संजीव अनुभा को भूल पाया और न अनुभा ही उसे दिल से निकाल पाई.

अनुभा से अलग हुए संजीव को 10 दिन भी नहीं हुए थे कि वह उस के लिए तड़प उठा. यही हाल अनुभा का भी था. दीपावली का त्योहार नजदीक था, इसलिए काम ज्यादा था. संजय को रात में भी काम करना पड़ता था. इस बात की जानकारी संजीव को थी ही, इसलिए जब संजय रात को काम के लिए कंपनी में रुक जाता तो संजीव उस के घर पहुंच जाता.

एक रात तबीयत खराब होने पर संजय अचानक घर पहुंचा तो वहां संजीव को देख कर दंग रह गया. संजय को देख कर संजीव और अनुभा के जहां होश उड़ गए, वहीं संजय का चेहरा क्रोध से लाल हो उठा. उस के गुस्से को देख कर संजीव तो भाग गया, लेकिन अनुभा कहां जाती. संजय ने सारा गुस्सा उसी पर उतार दिया. उस ने उस दिन उस की जम कर पिटाई की. पत्नी को मारपीट कर वह घर से बाहर निकल गया.

संजय के घर से बाहर जाने के बाद कुछ देर तक तो अनुभा रोती रही, उस के बाद उसे अपने और संजीव के बीच रोड़ा बनने वाले संजय से इस तरह नफरत हुई कि उस ने तुरंत एक खतरनाक फैसला ले लिया.

उस ने उसी समय संजीव को फोन कर के कहा, “संजीव, अब बहुत हो चुका. संजय को अपने रास्ते से हटाना ही होगा. हमारे संबंधों को ले कर जब देखो तब वह मुझे मारता रहता है. शहर से ले कर गांव तक मुझे बदनाम भी कर दिया है. मेरा जीना हराम हो गया है. उस ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा है. लोग मुझ पर थूक रहे हैं. इसलिए मैं चाहती हूं इस किस्से को ही खत्म कर दिए जाए.”

अनुभा की बात सुन कर संजीव का दिमाग घूम गया. उस ने अनुभा को धीरज बंधाते हुए कहा, “ठीक है, मैं उस की व्यवस्था कर दूंगा.”

“तुम कल साढ़े 8 बजे आ जाना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.” अनुभा ने कहा और फोन काट दिया.

23 नवंबर, 2015 को संजीव ने बाजार जा कर एक तेज धार वाला चाकू खरीदा और ठीक समय पर संजय के घर पहुंच गया. संजय उस समय तक घर नहीं आया था. अनुभा ने उसे पीछे वाले कमरे में छिपा दिया और संजय के आने का इंतजार करने लगी. उस समय दीपांकर घर पर नहीं था. वह अपने एक दोस्त के यहां गया था.

रात 10 बजे के करीब संजय घर आया तो अनुभा मुंह फुलाए बैठी थी. संजय ने उस से खाना मांगा तो खाना देने के बजाय वह उस से उलझ पड़ी और उसे कस कर पकड़ लिया. इस के बाद अंदर छिपा बैठा संजीव एकदम से बाहर आया और साथ लाए चाकू से उस के गले पर हमला कर दिया.

चाकू लगने से संजय चीखा और जमीन पर गिर पड़ा. दोनों ने उसे तब तक दबोचे रखा, जब तक वह मर नहीं गया. संजय मर गया तो वे उस की लाश को ठिकाने लगाने की तैयारी करने लगे.

संयोग से उसी समय मौसम खराब हो गया और तेज बारिश होने लगी. बरसात की वजह से बस्ती के लोग अपनेअपने घरों में बंद हो गए तो उन्हें लाश को ठिकाने लगाने का अच्छा मौका मिल गया.

दोनों ने लाश को एक प्लास्टिक की मोटी थैली में लपेट कर कैरीबैग में भरा और रात करीब 2 बजे उसी बारिश में ले जा कर बस्ती से लगभग 2 सौ मीटर की दूरी पर स्थित घनी झाडिय़ों में फेंक दिया.

पूछताछ के बाद जितेंद्र आगरकर ने हत्या के इस मामले को अपराध संख्या 346/2015 पर दर्ज करा कर अनुभा और संजीव को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में बंद थे

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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