यह सारा भारत भूभाग व जमीन किस की है. नक्शे के अनुसार तो लगता है कि यह एक देश की है. और देश को केंद्र सरकार चलाती है. तो, यह सारा भूभाग देश की सरकार का हुआ. सो, किसी की भी निजी कमाई संपत्ति असल में उस की अपनी नहीं है,  वह तो सरकार के रहमोकरम पर उसे इस्तेमाल करने के लिए दी गई है या उसे मिली है.

यह सोच बहुत खतरनाक है पर वर्तमान सरकार तो यही सोचती है. उस ने न केवल जमीन पर अपना हक बता कर बुलडोजर राज को सही साबित कर रखा है, बल्कि वह तो हवा और रेडियो वेव्स को भी अपना मानती है. सरकार टैलीविजन चैनलों को एयरवेव्स पर अपलोड लिंकिंग व डाउनलोड लिंकिंग को अपनी मिल्कीयत मान कर पैसा तो ले ही रही है, अब कहती है कि जो भी दिखाया गया है वह तुरंत सरकार के परीक्षण के लिए उसे दो ताकि अगर कुछ ऊंचनीच किया तो ‘खबर’ ली जा सके. यह ऊंचनीच आज के युग में प्रधानमंत्री, प्रधान धर्म और प्रधान पुजारियों की पोल खोलने से संबंधित होती है.

सरकार इस तरह व्यवहार करती है मानो प्रधानमंत्री पौराणिक राजा हों जिन्होंने पूरे भूभाग पर बैलट मशीनों के माध्यम से कब्जा कर लिया और अब हरेक प्रधानमंत्री का निजी गुलाम है. इस तरह की अवधारणा पर सदियों बहस हुई है और धर्म ने बीच में कूद कर कहना शुरू कर दिया कि सब जमीन, नदियां, पहाड़, पेड, फसलें और पशु व आदमी भगवान की संपत्ति हैं जिन का वह पुजारियों के माध्यम से प्रबंध करता है.

यह भ्रामक सोच बहुत खतरनाक है क्योंकि यह हर नागरिक से उस के जीने का अधिकार छीन लेती है. कोई देश जमीन के कारण देश नहीं होता, लोगों के कारण देश होता है. प्रकृति ने खुद जो दिया था वह तब तक बेकार है जब तक आदमी उसे अपनी मेहनत से कोई रूप न दे. राजा हो या प्रधानमंत्री, पुजारी हो या सैनिक तब तक बेकार हैं जब तक आप लोग कुछ कर के कुछ न बनाएं, कुछ पैदा न करें, जो है, वह आम आदमी की देन है, न राजा (प्रधानमंत्री) की न धर्म (पुजारी) की.

सूचना प्रसारण मंत्रालय की गाइडलाइंस तभी तक काम की हैं जब तक कि एक आम दर्शक को कोई फायदा न होता हो. ऐयरवेव्स सरकार की संपत्ति नहीं है. यह पूरी जनता की है और जनता की प्रतिनिधि होने के नाते सरकार इस पर कब्जा नहीं कर सकती. एयरवेव्स धूप और हवा की तरह हैं, इन पर कंट्रोल करना, टैक्स लगाना या इन्हें अपनी मिल्कीयत मानना ‘राजा’ के अहंकार को दर्शाना है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...