भारत में बढ़ते रसोई गैस के दामों के चलते कई गरीब परिवार फिर से खाना पकाने के
पारंपरिक ईंधनों का रुख कर रहे हैं. ये ईंधन स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक भी हैं. जब
आप किचन में होती हैं तो आप का ध्यान केवल खाना बनाने पर होता है. आप गैस सिलैंडर
और चूल्हे पर जरा भी ध्यान नहीं देतीं और अपने काम में लग जाती हैं.
आजकल गैस सिलैंडर फटने से होने वाले हादसों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है.
आलम यह है कि एक सप्ताह के भीतर राजधानी में 2 हादसे हुए. इन में एक घटना में तो
एक व्यक्ति की जान ही चली गई. हरियाणा के पानीपत में एक घर में सिलैंडर लीक होने
की वजह से फट गया. इस से पूरा घर आग की चपेट में आ गया. उस वक्त घर के अंदर
पतिपत्नी और 4 बच्चे मौजूद थे.
आग इतनी तेजी से फैली कि सभी बैड पर पड़ेपड़े ही कंकाल हो गए. उन्हें अंदर से बाहर
निकलने या शोर मचाने तक का मौका नहीं मिला. इसी तरह राजस्थान के बीकानेर में एक
प्रोग्राम के दौरान सिलैंडर फट गया और आग लग गई. इस की चपेट में आईं 5 महिलाएं बुरी
तरह झुलस गईं. उन में से एक महिला की मौके पर ही मौत हो गई.
आखिर सिलैंडर फट क्यों जाता है और इस से कैसे बचा जा सकता है. महिलाओं के लिए यह
बहुत बड़ा खतरा है क्योंकि वे ही ज्यादातर किचन में रहती हैं. इस के लिए सिलैंडर इस्तेमाल
करते हुए हम क्या लापरवाही बरतते हैं, इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
अकसर किचन में सिलैंडर इस्तेमाल करते हुए आप ज्यादातर ये लापरवाही करती हैं:
● सिलैंडर जब खत्म होने लगता है तो उस को टेढ़ा करके इस्तेमाल करती हैं. ऐसा कभी न
करें.
● गैस सिलैंडर के पास ही कैरोसिन, कुकिंग औयल जैसी चीजें रखती हैं. इन सब चीजों को
सिलैंडर से दूर रखें.
● गैस चूल्हा कभीकभी जमीन पर रख कर इस्तेमाल करती हैं. चूल्हे को सिलैंडर से कम से
कम 6 इंच ऊपर जरूर रखना चाहिए.
● कई महिलाएं लाइटर की जगह माचिस का इस्तेमाल करती हैं और गैस औन करने के बाद
माचिस जलाती हैं जिस से आग लगने का खतरा बढ़ जाता है.
● खाना बनाते समय सिल्क या सिंथैटिक जैसे कपड़े पहने रहती हैं जिन में आसानी से आग
लग सकती है.
● नियमित रूप से सिलैंडर, चूल्हा, स्टोव और पाइप की जांच नहीं करातीं, वही पुराना
इस्तेमाल किए जाती हैं जिस से खतरे और बढ़ जाते हैं.
● ऐसी जगह पर गैस रख कर इस्तेमाल करती हैं जहां वैंटिलेशन की सुविधा ठीक नहीं होती.
इस से गैस बाहर नहीं निकल पाती जिस से आग लगने के खतरे और बढ़ जाते हैं.
अब दूसरा सवाल यह उठता है कि आखिर गैस सिलैंडर फटता क्यों है. इस के 2 मुख्य
कारण हैं:
● हर रसोई गैस सिलैंडर पर एक एक्सपायरी डेट भी लिखी होती है जिस को अकसर लोग
नहीं देखते हैं. एक्सपायरी के बाद भी बिना जांच कराए सिलैंडर इस्तेमाल किया जाते हैं. ऐसे
में उस के फटने का खतरा बना रहता है. इसलिए गैस सिलैंडर की एक्सपायरी डेट जरूर चैक
कर के ही इस्तेमाल करें.
● एक सिलैंडर की लाइफ आमतौर पर 10 साल होती है. सिलैंडर के हैंडल के नीचे की पट्टी
पर एक कोड जैसे ए-23, बी-23 लिखा होता है. यही सिलैंडर की एक्सपायरी डेट होती है. इस
में एल्फाबेट ए-जनवरी से मार्च, बी-अप्रैल से जून, सी-जुलाई से सितंबर और डी-अक्टूबर से
दिसंबर का सिंबल है. एल्फाबेट के आगे लिखा नंबर उस साल को दर्शाता है जिस में कि आप
का सिलैंडर एक्सपायर हो जाएगा.
● अगर आप घर पर एक एक्सट्रा सिलैंडर भरा कर रखना चाहती हैं तो चैक कर लें कि कहीं
वह एक्सपायर तो नहीं हो गया है.
● जब सिलैंडर की गैस कम हो जाए या वह लीक करने लगे तो चूल्हे की आग पाइप के
रास्ते सिलैंडर तक पहुंच सकती है. इस से सिलैंडर ब्लास्ट होने का खतरा और बढ़ जाता है.
अगर गैस लीकेज की बात कन्फर्म हो जाए तो इन बातों का रखें ध्यान:
● रैगुलेटर और बर्नर के सभी नौब तुरंत बंद कर दें. पैनिक न करें और वैंटिलेशन के लिए
सभी खिड़कीदरवाजे खोल दें.
● सभी फ्लेम्स, कैंडल्स, लैंप, अगरबत्ती आदि बुझा दें और सिलैंडर पर सेफ्टी कैप लगा दें.
● जहां गैस लीक हो रही है वहां कोई इलैक्ट्रिकल अप्लायंस और स्विच का इस्तेमाल न करें
और तुरंत इमरजैंसी सर्विस को मदद के लिए बुलाएं.
● अगर गैस लीक होने की वजह से सिलैंडर में आग लग गई है तो घबराएं नहीं. इस से
स्थिति और खतरनाक हो जाएगी. याद रखें, सिलैंडर में आग लगने के बाद भी हमारे पास
करीब 10 से 15 मिनट का समय बचाव के लिए होता है. आप तुरंत एक कंबल को गीला
कर के सिलैंडर पर लपेट दें. इस से आग बुझ जाएगी और आप सुरक्षित रहेंगी.
गैस पर खाना बनाना सेहत से खिलवाड़
पहले खाना कोयले के चूल्हे या लकड़ी पर बनाया जाता था. उस खाने की मिठास ही कुछ
और होती थी. अब कुकिंग गैस पर बने खाने की मिठास वह नहीं रही. दूसरे, वैज्ञानिकों का
कहना है कि कुकिंग गैस पर खाना बनाना सेहत के लिए अच्छा नहीं है.
आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों का कहना है कि अब कुकिंग गैस का विकल्प खोजने का वक्त आ
गया है क्योंकि लगातार ऐसे सुबूत सामने आ रहे हैं कि खाना बनाने का यह तरीका सेहत
और पर्यावरण दोनों के लिए ठीक नहीं है.
वैसे तो कुकिंग गैस को ले कर चिंताएं काफी पहले से जताई जा रही थीं लेकिन हाल ही में
हुए एक शोध के बाद इस बात पर बहस तेज हो गई है कि कुकिंग गैस कितनी खतरनाक हो
सकती है.
ताजा अध्ययन में पाया गया कि अमेरिका में बच्चों को दमे का रोग होने में कुकिंग गैस से
होने वाले उत्सर्जन की बड़ी भूमिका रही है. इस अध्ययन में पाया गया कि अमेरिका में
बच्चों में दमा होने के जितने मामले हैं उन में से हर 8 में से एक मामले में वजह गैस स्टोव
से हुआ उत्सर्जन है.
कुकिंग गैस सेहत के लिए खतरनाक है क्योंकि इस से कई तरह के प्रदूषक तत्त्वों का उत्सर्जन
होता है. दरअसल, जब आप गैस जलाती हैं तो असल में आप मीथेन गैस को जला रही होती
हैं जिस से जहरीले यौगिक बनते हैं.
कुकिंग गैस में मीथेन मुख्य अवयव होता है जो जलने पर गरमी पैदा करता है. इस से
नाइट्रोजन और औक्सीजन मिल कर नाइट्रो औक्साइड बनते हैं जो आप को दमा और अन्य
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं.
पर्यावरण के लिए खतरा
कुकिंग गैस जलाना पर्यावरण के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है. 2022 में एक अध्ययन
में कहा गया था कि अमेरिका में गैस स्टोव से जितना कार्बन उत्सर्जन होता है वह 5 लाख
कारों से होने वाले उत्सर्जन के बराबर है. इसीलिए अब वैज्ञानिक कुकिंग गैस का विकल्प
खोज रहे हैं.
इंडक्शन चूल्हे और बिजली के चूल्हों को इस के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि
इंडक्शन चूल्हों में इलैक्ट्रोमैग्नेटिक प्रभाव से गरमी पैदा की जाती है और इसे कुकिंग गैस के
सब से सक्षम विकल्प के रूप में देखा जाता है. हालांकि वैज्ञानिक बिजली के चूल्हों को ले कर
कुछ सशंकित हैं क्योंकि ज्यादातर बिजली उत्पादन कोयले जैसे जीवाश्म ईंधनों को जला कर
ही किया जाता है. इसलिए अक्षय ऊर्जा से पैदा की जा रही बिजली को ही एक बेहतर
विकल्प माना जा रहा है.
ग्लोबल बर्डेन औफ डिजीज स्टडी 2019 के मुताबिक, हर साल वायु प्रदूषण के चलते भारत में 6 लाख से ज्यादा मौतें होती हैं. उज्ज्वला जैसी योजनाओं के चलते इस में सुधार की आशा थी
लेकिन रसोई गैस के ऊंचे दामों से यह आशा धूमिल हुई है. अब भी 30 फीसदी भारतीय घर
बायोमास जैसे लकड़ी, कोयला और गोबर के उपलों पर ही निर्भर हैं. अन्य 24 फीसदी
एलपीजी के साथ इन ईंधनों का उपयोग भी करते हैं. आशा है भविष्य में वैज्ञानिक और भी
सुरक्षित रसोई घर बनाने में नए शोध करेंगे.