सुस्त जीवनशैली, मानसिक तनाव, नींद के कम होते घंटे और मसालेदार जंक फूड के प्रति लगाव इस सदी में ज्यादातर स्वास्थ्य समस्याओं के पीछे के कुछ मूल कारण हैं. बवासीर उन समस्याओं में से सब से आम है. बवासीर या पाइल्स को मैडिकल भाषा में हेमराइड्स के नाम से जाना जाता है.
यह एक ऐसी स्थिति है जिस में गुदा (ऐनस) के अंदरूनी और बाहरी क्षेत्र व मलाशय (रेक्टम) के निचले हिस्से की शिराओं में सूजन आ जाती है. इस की वजह से ऐनस के अंदर और बाहर या किसी एक जगह मस्से जैसी स्थिति बन जाती है, जो कभी अंदर रहते हैं और कभी बाहर भी आ जाते हैं.
करीब 70 फीसदी लोगों को जीवन में किसी न किसी वक्त पाइल्स की समस्या रहती है. उम्र बढ़ने के साथसाथ पाइल्स की समस्या बढ़ सकती है. अनेक स्टडीज सुझाती हैं कि 45 से 65 साल के बीच की उम्र में, दुनियाभर के देशों में, हर दूसरे व्यक्ति को यह क्रोनिक बीमारी उन के जीवन में कभीकभी होती है. बड़ी संख्या में महिलाएं गर्भावस्था के दौरान बवासीर का अनुभव करती हैं.जो लोग चाय, जंक फूड के आदी होते हैं, जिन्हें कब्ज और तनाव रहता है, उन्हें यह बीमारी होने की ज्यादा आशंका रहती है.
लक्षण पहचान
निम्न संकेतों से पता लगाया जा सकता है कि बवासीर हो गई है-
– ऐनस के इर्दगिर्द एक कठोर गांठ जैसी महसूस हो सकती है. इस में ब्लड हो सकता है, जिस की वजह से इस में काफी दर्द होता है.
– टौयलेट के बाद भी ऐसा महसूस होना कि पेट साफ नहीं हुआ है.
– मलत्याग के वक्त लाल चमकदार रक्त का आना.
– मलत्याग के वक्त म्यूकस यानी चिपचिपे तरल पदार्थ का आना और दर्द का एहसास होना.
– ऐनस के आसपास खुजली होना व उस क्षेत्र का लाल होना और सूजन आ जाना.
बवासीर के प्रकार
अंदरूनी पाइल्स : ऐनस के अंदर हलकी सूजन होती है जो कि दिखाई भी नहीं देती. मरीज मलत्याग के वक्त या जोर लगाने पर खून आने की शिकायत करता है. सूजन बढ़ने लगती है और मलत्याग के वक्त जोर लगाने पर खून के साथ मस्से बाहर आ जाते हैं, लेकिन हाथ से अंदर करने पर वे वापस चले जाते हैं.
तीसरी तरह की स्थिति गंभीर होती है. इस में सूजन वाला हिस्सा या मस्सा बाहर की ओर लटका रहता है और उसे उंगली की मदद से भी अंदर नहीं किया जा सकता. ये बड़े होते हैं और हमेशा बाहर की ओर निकले रहते हैं. अंदरूनी पाइल्स को ही खूनी बवासीर कहा जाता है.
बाहरी पाइल्स : इसे मैडिकल भाषा में पेरिएनल हेमाटोमा कहा जाता है. इस में छोटीछोटी गांठें या सूजन ऐनस की बाहरी परत पर होती हैं. इन में बहुत ज्यादा खुजली होती है. अगर इन में रक्त भी जमा हो जाए तो दर्द होता है. इस में तुरंत इलाज की जरूरत होती है.
मलाशय और गुदा में नसें जब मुड़ जाती हैं, उन में सूजन आ जाती है और वे फूल जाती हैं तो वे बवासीर को जन्म देती हैं. पाइल्स के मरीजों को खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि रेशे युक्त भोजन खाना चाहिए.
करेले का रस, खूब सारा सलाद व मौसमी खाना भी बवासीर के मरीजों के लिए लाभदायक होता है. इस के अलावा फलों में केला, नारियल आंवला, अंजीर, पपीता इत्यादि खाना भी इस में फायदेमंद होता है.
पाइल्स के मरीजों को खूब सारा पानी पीना चाहिए. लस्सी पीना भी फायदेमंद होता है. भोजन करने के बाद अमरूद खाने से भी फायदा होता है. पालक, गाजर, मूली, तुरई, टमाटर, लौकी इत्यादि सब्जियां भी खा सकते हैं. नियमित व्यायाम करना चाहिए और मलत्याग के दौरान बहुत ज्यादा जोर नहीं लगाना चाहिए.
पाइल्स के मरीजों को कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, जैसे तेज मिर्च, मसालेदार खाने से परहेज करना चाहिए. इस के अलावा मांस, मछली, अंडे, उरद की दाल, खटाई, अचार, आलू, बैगन इत्यादि से भी बचना चाहिए. डब्बाबंद भोजन भी बवासीर के मरीजों के लिए हानिकारक होता है. पाइल्स के मरीजों को चाय व कौफी भी कम कर देनी चाहिए.
बवासीर लाइलाज नहीं है. बस, जरूरत है कि बीमारी होने पर शरमाएं नहीं, तुरंत डाक्टर की सलाह लें. और हां, ध्यान रखें कि औपरेशन इस बीमारी का इलाज नहीं है. उस के बिना भी इस बीमारी से नजात पाई जा सकती है.