उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के चारबाग इलाके में शिवा एम्पायर बिल्डिंग है. बिल्डिंग 10 साल से ज्यादा पुरानी है. 4 मंजिली इस बिल्डिंग के बारे में बताया जाता है कि इस के 2 फ्लोर बनाने का नक्शा पास था लेकिन यहां पर 4 फ्लोर बना डाले गए. लोगों ने फ्लैट खरीद लिए. एलडीए यानी लखनऊ विकास प्राधिकरण ने कभी इस बारे में कोई संज्ञान नहीं लिया. लोग आराम से रह रहे थे. अचानक प्रयागराज में उमेश पाल और 2 सिपाहियों की हत्या होती है. मसला अतीक अहमद से जुड़ता है. तब यह पता लगाया जाता है कि अतीक के तार कहांकहां तक फैले हैं.

इस क्रम में पुलिस को यह पता चलता है कि शिवा एम्पायर बिल्डिंग को बनाने का काम बिल्डर मोहम्मद मुसलिम ने किया था, जो अतीक का करीबी बताया जाता है. पुलिस और एलडीए सक्रिय हो गईं. जैसे ही पाया कि इस बिल्डिंग में 2 फ्लोर अवैध बने हैं, उन को गिराने का नोटिस दे दिया गया.

यहां रहने वाले परेशान दरदर भटक कर अपनी मजबूरी बयान कर रहे. खरीदने वालों को न तो अतीक से बिल्डर के संबंधों का कुछ पता था न यह पता था कि 2 फ्लोर गलत तरह से बने थे. एलडीए ने अगर बिल्डिंग बनाते समय ही इस को रोका होता तो लोग यहां खरीदते ही नहीं.

कानपुर देहात में मंडौली गांव में कृष्ण गोपाल दीक्षित अपने परिवार सहित झोपड़ीनुमा घर में रहते थे. यह घर सरकारी जमीन पर बना था. इस को तोड़ने के आदेश दिए गए. पुलिस जेसीबी ले कर घर तोड़ने जाती है. झोपड़ी के अंदर कृष्ण गोपाल दीक्षित का बेटा शिवम दीक्षित खड़ा होता है. झोपड़ी में एक तरफ जनरेटर रखा था. शिवम को पुलिस घर से बाहर निकलने को कहती है. कृष्ण गोपाल दीक्षित भी पीछे से हाथ में घासफूस ले कर बाहर निकलते हैं. जैसे ही दोनों लोग झोपड़ी के बाहर निकलते हैं, जेसीबी झोपड़ी को गिराने के लिए बढ़ती है.

ठीक उसी समय कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला दीक्षित ‘आवैं दे…आवै दे…’ कहते झोपड़ी के अंदर आ जाती हैं. पीछे से कृष्ण गोपाल भी वापस झोपड़ी में आ जाते हैं और प्रमिला ‘हम जान दई देबै’ कहते हुए दरवाजा बंद कर लेते हैं. जेसीबी बिना प्रमिला और उस के परिवार को निकाले उन के ऊपर छप्पर गिरा देती है. अंदर आग लग जाती है. कृष्ण गोपाल और बेटा शिवम तो जैसेतैसे बाहर आ जाते हैं पर प्रमिला और उस की 18 साल की बेटी नेहा मकान के अंदर ही जल कर मर जाती हैं. इस तरह की घटनाओं की कमी नहीं है.

सर्वोच्च न्यायलय ने निजी संपत्ति के अधिकार को मानवाधिकार माना है. जिस के तहत यह आदेश है कि अगर किसी के अवैध कब्जे को हटाना है तो पहले उस के रहने के लिए अलग व्यवस्था करनी जरूरी है. कानून कहता है कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल से किसी जगह पर काबिज है तो उसे हटाया नहीं जा सकता. संपत्ति के अधिकार को वर्ष 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक अधिकार से विधिक अधिकार में बदल दिया गया था. 44वें संविधान संशोधन से पहले यह अनुच्छेद-31 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार था, परंतु इस संशोधन के बाद इस अधिकार को अनुच्छेद- 300(ए) के अंतर्गत एक विधिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया.

सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रहा, लेकिन राज्य द्वारा किसी व्यक्ति को उस की निजी संपत्ति से उचित प्रक्रिया और विधि के अधिकार का पालन कर के ही वंचित किया जा सकता है.

 

संविधान में संपत्ति का अधिकार

संविधान के अनुच्छेद 19 और 31 के अंतर्गत संपत्ति अर्जन, स्वामित्व और संरक्षण का मौलिक अधिकार दिया गया था. इस में साफतौर पर कहा गया था कि सरकार लोक कल्याण के लिए संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है. 1950 से ही सरकार ने अनेक ऐसे कानून बनाए जिन से संपत्ति के अधिकार पर प्रतिबंध लगा. 1973 में उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में संपत्ति के अधिकार को संविधान के मूल ढांचे का तत्त्व नहीं माना और कहा कि संसद को संविधान में संशोधन कर के इसे प्रतिबंधित करने का अधिकार है.

जनता पार्टी की सरकार ने 44वें संविधान संशोधन 1978 के तहत संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल कर संविधान के भाग 12 में एक नए अध्याय 6 के अंतर्गत अनुच्छेद 300 में एक सामान्य कानूनी अधिकार के रूप में रखा. उस में कहा गया कि “किसी व्यक्ति को उस की संपत्ति से कानून का पालन करते हुए ही हटाया जाएगा.”

2007 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि संपत्ति अर्जित करने का अधिकार यद्यपि मूल अधिकार नहीं है, लेकिन यह संवैधानिक और मानव अधिकार है. किसी व्यक्ति को उस की संपत्ति से संसद, विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि से ही वंचित किया जा सकता है. आज जिस तरह से संपत्तियों पर बुजडोजर चला कर ध्वस्त किया जा रहा उस में इन आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है.

 

खाता न बही, जो पुलिस कहे वही सही!             

सरकार किस तरह से संपत्ति पर नजर रखती है, इस के तमाम उदाहरण हैं. उत्तर प्रदेश में बुलडोजर का प्रयोग कर के लोगों की संपत्ति ध्वस्त की जा रही है. इस के बारे में कहा जाता है- ‘खाता न बही, जो पुलिस कहे वही सही’.

अवैध संपत्ति एक दिन में तैयार नहीं होती. जिस समय वह तैयार होती है उस समय किसी का ध्यान नहीं जाता. जैसे ही इस पर सरकार की नजर टेढ़ी होती है, संपत्ति पर बुलडोजर चल जाता है. पुलिस ने 2 साल में 64 गैंगस्टर्स की 2 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की है. इस लिस्ट में मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद की संपत्ति को भी जोड़ दिया जाए तो संपत्ति करीब 3 हजार करोड़ रुपए तक की पहुंच जाती है.

गैंग्स्टर्स की तरफ से अवैध तरीके से हासिल की गई इन संपत्तियों की लिस्ट पूर्वांचल से ले कर पश्चिमी यूपी तक की है. इन में विजय मिश्र, सुशील मूच, सुंदर भाटी, अनुपम दुबे, ध्रुव सिंह, सुनील राठी, बदन सिंह बद्दो आदि मुख्य तौर पर शामिल हैं. मुख्तार अंसारी की 523 करोड़ रुपए की संपत्ति और अतीक अहमद की 413 करोड़ रुपए की संपत्ति को जब्त किया गया. पिछले एक साल के दौरान 1842 करोड़ रुपए कीमत की अवैध संपत्ति को या तो खाली कराया गया है या फिर ध्वस्त किया गया है.

अपराधियों की संपत्ति के अलावा अवैध संपत्ति के नाम से तमाम लोगों के मकान ध्वस्त किए गए हैं. इन में नियमकानून का कोई पालन नहीं हुआ. इस तरह से कई लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है. सरकार द्वारा संपत्तियों पर नजर रखने के कारण ही इस तरह की घटनाएं हो रहीं हैं. जिस गलीमहल्ले और कालोनी में बुलडोजर चलता है वहीं पर देखें तो दूसरे तमाम अवैध निर्माण ऐसे भी होते हैं जिन को कोई छूता भी नहीं है. यह मानमानी बताती है कि जिन संपत्तियों पर सरकार की नजर होती है वही गिराई जाती हैं. यह काम करीबकरीब पूरे देश में हो रहा है पर जिन प्रदेशों में भाजपा की सरकारें हैं वहां ज्यादा हो रहा है.

 

कैसे संपत्ति पर नजर रखती है सरकार

संपत्ति पर सरकार की नजर का मसला नया नहीं है. इस की शुरुआत देश के आजाद होने के साथ ही हो गई थी. जनता के हित को बताते हुए कहा गया कि भूमिहीन लोगों को जमीन देने के लिए जिन के पास ज्यादा जमीन है उन से ली जाएगी. सरकार ने इस के तहत जमीनों का अधिग्रहण शुरू किया. उसी समय सीलिंग एक्ट भी लाया गया था. अलगअलग राज्यों ने अपने राजस्व कानून बनाने शुरू किए.

छोटे किसानों के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना सरल नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ने का मतलब लाखों रुपयों का खर्च होना होता है. ऐसे में बहुत सारे किसान चुप रह गए. जमीन उन के मौलिक अधिकार से बाहर हो चुकी थी. संसद को कानून बना कर जमीनों पर प्रयोग बदलने के अधिकार मिल गए थे. इन्हीं का प्रयोग कर के मोदी सरकार ने 3 कृषि कानून भी बनाए थे.

केरल के कासरगोड जिले के एडनीर गांव में स्वामी केशवानंद भारती का एक मठ था. उन के पास भी जमीन थी. संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत मठों को छूट दी थी कि वे अपने प्रबंधन के खर्च को चलाने के लिए जमीन अपने पास रख सकते हैं. केरल सरकार ने इस बात का ध्यान नहीं रखा. उस ने मठ की जमीन को भी अपने कब्जे में ले लिया. केशवानंद भारती इस मसले को ले कर सुप्रीम कोर्ट चले आए और 1970 में हुए 2 भूमि सुधार अधिनियमों के तहत अपनी संपत्ति के प्रबंधन पर प्रतिबंध लगाने के प्रयासों को चुनौती दी.

संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत सरकार के खिलाफ यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के आगे रखी गई. मामले की सुनवाई 68 दिनों तक चली. दलीलें 31 अक्टूबर, 1972 को शुरू हुईं और 23 मार्च, 1973 को समाप्त हुईं. इस के फैसले में 700 पृष्ठ लिखे गए. 13 जजों की संविधान पीठ ने फैसला दिया. केशवानंद के फैसले ने यह परिभाषित किया कि किस हद तक संसद संपत्ति के अधिकारों को सीमित कर सकती है. इस फैसले के बाद सरकार को जमीनों के प्रयोग के तमाम अधिकार प्राप्त हो गए. वैसे, केशवानंद भारती केस इस से अधिक सुप्रीम कोर्ट के ‘संविधान मूलभूत ढांचे’ को परिभाषित करने के लिए अधिक जाना जाता है.

 

जमीन ही नहीं है अकेली संपत्ति   

जब संपत्ति की बात होती है तो आमतौर पर केवल हम अपनी जमीन, जायदाद और रूपयोंपैसों, गहनेजेवरों के बारे में सोचते हैं. असल में संपत्ति हमारे मौलिक अधिकार जैसी है. सरकार को यह हक नहीं है कि वह हमारी संपत्ति पर डाका डाले, बुलडोजर लगा कर घर गिरा दे, मनमाने तरीके से संपत्ति को कुर्क कर दे, बिना मंहगाई और बेरोजगारी का ध्यान रखे टैक्स बढ़ा दे.

यह एक तरह की सरकारी डकैती है. इसी तरह से अचानक नोटबंदी की घोषणा, मनमानी जीएसटी और आयकर के नियमों में बदलाव भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले सरकारी फैसले थे. जनता के पास जो भी जमीन, जायदाद और जेवर हैं वे सब उस की मेहनत की कमाई हैं. उस पर नजर रखना जनता के मौलिक अधिकारों का हनन करने जैसा है.

ऐसे में अपनी संपत्ति को बचाने के लिए जरूरी है कि संपत्ति का बीमा कराएं जिस से अगर कोई ऐसी घटना हो तो पुलिस और प्रशासन मनमानी न कर सकें. संपत्ति बीमा के साथ ही साथ ज्वैलरी का बीमा भी कराएं जिस से चोरी होने की दशा में मुआवजा मिल सके.

संपत्ति के विवादों में विल यानी वसीयत भी एक प्रमुख दस्तावेज होता है. अपनी जायदाद की वसीयत करा कर रखें. वसीयत रजिस्टर्ड होनी चाहिए. अगर किसी कारणवश वसीयत रजिस्टर्ड नहीं भी है तो उसे बाद में रजिस्टर्ड करा लें. इस से यह कानूनी रूप से मजबूत हो जाती है. जमीन ही नहीं, नोट भी हमारी संपत्ति में आते हैं. सरकार नोटबंदी कर के इन पर नजर रखने का काम करती है.

 

नोटबंदी ने खत्म किए नोटों पर अधिकार

‘नोटबंदी पार्ट-2’ में जब 2 हजार रुपए का नोट बंद होने की खबर सुनी तो लखनऊ के गोमतीनगर में रहने वाली शालिनी श्रीवास्तव की मां को सब से ज्यादा डर लगा. वे अपनी बेटी से बोलीं, ‘मेरे पास 2 हजार रुपए के कुछ नोट हैं उन का क्या करून?’ उन के मन में 2016 में हुई नोटबंदी के बाद लंबीलंबी लाइनों का खौफ दिखने लगा. वे इस प्रयास में थीं कि कितनी जल्दी ये नोट बदल जाएं. पहली नोटबंदी के समय भी लोगों के पास रखी जमापूंजी निकल कर बाहर आ गई थी. नोटबंदी पार्ट-2 में अब एक बार फिर से लोग अपने पास रखे 2 हजार रुपए के नोट बाहर निकालने को मजबूर हो गए हैं.

हमारे घरों में बड़ेबूढ़े बच्चों की नजर से छिपा कर कुछ न कुछ पैसे अपने पास रखते हैं. जिस का प्रयोग वे किसी अचानक से आई जरूरत को पूरा करने के लिए करते हैं. ‘नोटबंदी पार्ट-1’ में जिन महिलाओं का ऐसा इमरजैंसी फंड बैंक में जमा हो गया वह दोबारा बाहर नहीं निकला. इस के बाद पिछले 6-7 सालों में फिर एक घरेलू फंड इकठ्ठा होने लगा था. यह 2 हजार रुपए के रूप में ही एकत्र किया जाता रहा. छोटीछोटी बचत किस तरह से घरेलू महिलाएं एकत्र कर के उस को बड़े नोट में बदल कर इमरजैंसी फंड में रख लेती हैं. इस हुनर के सामने बड़े से बड़े प्रबंधक भी फेल हैं.

सरकार नोटबंदी के जरिए इस घरेलू इमरजैंसी फंड को खत्म कर रही है. आज भी बहुत सारे काम ऐसे होते हैं जहां नकद पैसों की जरूरत होती है. घरेलू इमरजैंसी फंड ऐसा फंड होता है जो बिना किसी ब्याज या आत्मसम्मान का समझौता कर के मिल जाता है. कालेज जाने वाली वाराणसी की सुष्मिता भारती कहती हैं, ““एक दिन एटीएम नहीं चल रहा था. इंटरनैट खराब था. मुझे कालेज के लिए 10 हजार रुपए की जरूरत थी. नकद मेरे पास नहीं थे. मैं और मेरी मां दोनों परेशान थे कि कैसे क्या करें? यह बात दादी को पता चली तो उन्होंने अपने इमरजैंसी फंड से निकाल कर 10 हजार रुपए दिए. सच में उस दिन हमें इस के महत्त्व का आभास हुआ. पहले हम भी दूसरे युवाओं की तरह इस के महत्त्व को नहीं समझते थे, ‘नोटबंदी-1’ के समय कई तरह के मजाक उड़ाए थे.”

 

अब बंद हुआ 2 हजार रुपए का नोट

आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2 हजार रुपए के नोट वापस लिए जाने की घोषणा के बाद ट्विटर पर लिखा, ‘“चौथी पास प्रधानमंत्री होने से यही दिक्कत होती है कि उस को कोई भी कुछ भी समझा कर चला जाता है. 2016 में 2 हजार रुपए का नोट जारी करते दावा किया कि इस से भ्रष्टाचार कम होगा. 2023 में यह कह कर इस को वापस लिया जा रहा है कि यह नोट कालाधन बढ़ा रहा है.’”

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 2,000 रुपए के नोट को चलन से बाहर करने की घोषणा पर समाजवादी पार्टी ने पूछा है कि क्या आतंकवाद और भ्रष्टाचार पर लगाम लग गई? सपा के प्रवक्ता अमीक जामेई ने ट्वीट किया, ‘“नोटबंदी की क्रूरता में हजारों जानें गईं.’” बीजेपी ने कहा आतंकवाद, भ्रष्टाचार और कालाधन की कमर टूट जाएगी. चिप वाले 2,000 रुपए के नोट बंद किए जाने का एलान बताता है कि आर्थिक मोरचे पर फेल, कौर्पोरेटपरस्त नरेंद्र मोदी ने सत्ता के नशे में भारतीयों को जोकर समझा है. अब 2024 में जनता इन्हें सत्ता से बेदखल करेगी.”

नोटबंदी के 6 साल के बाद 2023 में रिजर्व बैंक ने नया आदेश जारी करते कहा कि अब 2 हजार रुपए का नोट चलन से बाहर किया जा रहा है. 2016 की नोटबंदी में जनता परेशान हुई थी. लंबीलंबी लाइनें लगीं थीं. हमारा ही पैसा हमारा नहीं रह गया था. हम अपनी जरूरत पर उसे खर्च करने के लिए नहीं पा रहे थे. धीरेधीरे लोगों का जीवन वापस पटरी पर आ रहा था तब तक फिर से 2 हजार रुपए का नोट चलन से बाहर करने का फैसला हो जाता है.

रिजर्व बैंक बारबार क्लीन नोट पौलसी का नाम ले कर नोट बदलने का बहाना बनाता है. दरअसल, यह पूरा सच नहीं है. अगर बैंकों को कटेफटे नोट बदलने हैं तो इस के लिए नोटबंद करने की जरूरत नहीं होती. नोट तब खराब होते हैं जब वे बारबार हाथों में जाते हैं. बड़े नोट छोटे नोटों के मुकाबले कम चलते हैं. ऐसे में छोटे नोट जल्दी खराब होते हैं न कि बड़े नोट. नोटों को इस तरह से बारबार बदलने का एक ही कारण ही कि सरकार आप के नोटों पर नजर रखना चाहती है.

नोटबंदी के बाद बैंकों की हुई खराब हालत के कारण ही उन को एकदूसरे के साथ मर्ज किया गया. कई बैंक बंद हो गए. उन में जनता की मेहनत की कमाई का पैसा डूब गया. बैंक डूबने की हालत में बैंक में जमा पैसे का कुछ हिस्सा ही मिलता है. जिस की ऊपरी लिमिट पहले एक लाख रुपए थी, बाद में इसे बढ़ा कर 5 लाख रुपए किया गया. इस के बाद भी पूरा पैसा मिलने की गारंटी नहीं है. लोग बैंक में अपना पैसा सुरक्षा के लिए रखते हैं. बंद होते बैंक अब जनता को डरा रहे हैं.

असल में इस तरह के फैसलों से ही सरकार आम लोगों की संपत्ति पर नजर रखती है. हमारे समाज में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो बड़े नोटों में बचत रखते हैं. खासकर घरों की महिलाएं इस तरह के नोट बचा कर रखती हैं. नोटबंदी के समय भी यह परेशानी उठानी पड़ी थी. अब 2 हजार रुपए के नोट चलन से बाहर होने पर यही दर्द सामने आ रहा है. 6 साल में जो नोट छिपाछिपा कर बचत के रूप रखे गए थे वे सामने लाने पड़ेंगे. इस तरह से सरकार संपत्ति पर नजर रखने का काम कर रही है.

 

नोटबंदी से न कालाधन रुका, न नकली नोट

नोटबंदी की वजह कालाधन और नकली नोट बताया गया था. ‘नोटबंदी-2’ में जब रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने 23 मई से 30 सितंबर, 2023 तक 2 हजार रुपए के नोट बैंकों को वापस करने का आदेश दिया तो कहा कि करीब एक लाख करोड़ से ज्यादा के 2 हजार रुपए वाले नोट चलन से बाहर हो गए हैं. इस का मतलब कि वे कालेधन में बदल गए हैं. जिस से साफ हुआ कि ‘नोटबंदी-1’ से कालेधन को रोका नहीं जा सका. इस के बाद तमाम जगहों से छापे में जो नोट बरामद हुए उन में तमाम नकली नोट भी शामिल थे यानी नोटबंदी से जाली नोट भी नहीं रुके.

‘नोटबंदी-2’ में नोटवापसी के लिए रिजर्व बैंक ने कहा कि हर दिन 2 हजार रुपए के 10 नोट वापस किए जा सकते हैं. रुपए बदलने वाले से किसी तरह की कोई पूछताछ नहीं की जाएगी. इस आदेश से यह साफ होता है कि सरकार की रुचि नोट वापस लेने में है, कालाधन का पता लगाने में नहीं. ऐसे में इस नोटबंदी के पीछे सरकार का असल उद्देश्य क्या है?

असल में 2016 की नोटबंदी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हुई थी. उस के बाद उत्तर प्रदेश में पहली बार भाजपा ने बहुमत से जीत हासिल की. अब ‘नोटबंदी-2’ के समय राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि 2024 में लोकसभा चुनाव होंगे. भारत के चुनाव में कालेधन का प्रयोग बड़े पैमाने पर होता है. नोटबंदी के जरिए इस को रोका जा सकता है. यह एक अलग तरीका हो गया है विरोधी दलों को मुसीबत में डालने का.

2016 में अचानक नोटबंदी की गई थी. उस में 5 सौ और 1 हजार रुपए के नोट बंद कर दिए गए थे. उस के बाद 5 सौ और 2 हजार रुपए के नए नोट जारी किए गए थे. नोटबंदी करने की वजह यह बताई गई थी कि उस से भ्रष्टाचार, कालाधन और आतंकवाद पर रोक लगेगी. 7 सालों में न तो भ्रष्टाचार कम हुआ है और न ही कालाधन और आंतकवाद खत्म हुआ है. फिर उस नोटबंदी का लाभ क्या हुआ? उलटे, नोटबंदी के चलते तमाम छोटेछोटे उद्योगधंधे बंद हो गए, जिस से लोग बेरोजगार हो गए. सरकार ने कहा था कि नोटबंदी से कालाधन वापस आएगा जिस से बेरोजगारी घटेगी जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ.

कोरोनाकाल में घरों में खाने के लिए भोजन का प्रबंध करने का अनाज नहीं था. सरकार तब से 80 करोड़ लोगों को मुफ्त का राशन दे रही है. जिस से यह पता चलता है कि देश में अभी भी कितनी गरीबी है? नोटबंदी से कैशलैस अर्थव्यवस्था का प्रभाव जनता की जेब पर पड़ रहा है. अब उसे हर बैंकसेवा की कीमत चुकानी पड़ रही है. औनलाइन फ्रौड अलग से बढ़ गए हैं जो जनता की जेब को चूना लगा रहे हैं. इस की मुख्य वजह पैन और आधार कार्ड हैं. मोबाइल नंबर से जुड़ने के बाद इन के खतरे बढ़ गए हैं.

 

पैन कार्ड लाभ से अधिक मुसीबत का कारण

सरकार पैन कार्ड के कई तरह के फायदे गिनाती है. परंतु अगर आप पूरी तरह सावधानी नहीं बरतेंगे तो आप को नुकसान भी हो सकता है. सरकार ने पैन कार्ड जनता के लाभ के लिए नहीं, उस के पैसों की निगरानी के लिए बनाया है. अगर आप बैंक या कहीं भी 50,000 रुपए से ऊपर के लेनदेन करते हैं तो आप को पैन कार्ड की डिटेल देनी जरूरी हो गई है.

इस का मतलब यह है कि जैसे ही 50 हजार रुपए से ऊपर के लेनदेन करेंगे, सरकार की नजर में आ जाएगा. हर तरह के लेनदेन में पैन कार्ड को जरूरी कर दिया गया है. बैंक में खाता खुलवाने के लिए पैन कार्ड सब से जरूरी हो गया है. किसी कंपनी में नौकरी करने के लिए जब फौर्म भरा जाता है तब भी पैन कार्ड की जरूरत होती है.

पैन कार्ड को पहचानपत्र के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. अगर आप बैंक से लोन लेना चाहते हैं तो आप के पास पैन कार्ड होना जरूरी है. अगर आप के पास पैन कार्ड नहीं होगा तो आप बहुत से ऐसे सरकारी लाभ हैं जो आप नहीं ले पाएंगे.

पैन नंबर का इस्तेमाल इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए आवश्यक होता है. अगर आप 50 हजार रुपए से अधिक की गाड़ी खरीद रहे हैं या बेच रहे हैं तो आप को पैन कार्ड की आवश्यकता अवश्य पड़ेगी. 5 लाख रुपए से अधिक की ज्वैलरी खरीदते हैं तो दुकान को खरीदारी के समय आप को पैन कार्ड की डिटेल देनी अनिवार्य है.

इसी तरह से आप किसी तरह की बीमा योजना का लाभ लेते हैं या बीमा में निवेश करते हैं तो आप के पास पैन कार्ड अवश्य होना चाहिए. म्यूचुअल फंड या शेयर मार्केट में निवेश करने हेतु भी आप के पास पैन कार्ड होना अनिवार्य है. क्रैडिट व डैबिट कार्ड के आवेदन करना चाहते हैं तो आप को पैन कार्ड देना आवश्यक होता है. इस तरह से कोई भी आर्थिक लेनदेन बिना पैन कार्ड के नहीं कर सकते हैं.

पैन कार्ड का प्रयोग आर्थिक लेनदेन तक सीमित रहता, तब भी कोई बात नहीं थी. अब पैन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक कर दिया गया है. आधार कार्ड का प्रयोग हर जगह होने लगा है क्योंकि यह पते के प्रमाणपत्र के रूप में देखा जाता है. पैन कार्ड इस से लिंक होने से आर्थिक अपराध या साइबर फ्रौड करना सरल हो गया है. आधार नंबर, पैन नंबर और फोन नंबर एकसाथ लिंक होते ही फ्रौड करना बेहद सरल हो जाता है. एक ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) मिलने की देर होती है, फ्रौड करने वाले आप के बैंक से आप का पैसा निकाल सकते हैं.

पैन आधार या फोन किसी भी नंबर को हैक कर के फाइनैंशियल डिटेल या आर्थिक जानकारी आसानी से ली जा सकती है. अगर आप ने पैन कार्ड को आधार से लिंक नहीं कराया है तो पैन कार्ड को बंद किया जा सकता है जिस से आप को आर्थिक व अन्य कई तरह के नुकसान का सामना करना पड़ता है. कभी भी एक से ज्यादा पैन कार्ड नहीं रखना चाहिए अन्यथा आप को जुर्माने के साथसाथ जेल भी हो सकती है. पैन कार्ड बनवाते समय अपनी पूरी जानकारी सहीसही देनी चाहिए वरना आप के ऊपर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.

पैन कार्ड खो जाने की स्थिति में उस का गलत प्रयोग किया जा सकता है. अगर आप का पैन नंबर दूसरे के हाथ में लग जाए तो उस से वह अधिक पैसे का लेनदेन कर सकता है और डिपार्टमैंट आप से उस अधिक पैसे के स्रोत के बारे में जानकारी मांग सकता है. जानकारी न दे पाने पर ऐसी स्थिति में आप को जेल हो सकती है. पैन कार्ड का गलत प्रयोग कर के आप का पूरा डाटा लीक हो सकता है. आप बैंक से जितने भी लेनदेन करते हैं या पैन कार्ड का प्रयोग कर के लेनदेन करते हैं, उन की पूरी जानकारी पैन कार्ड में सबमिट होती रहती है, जिस का पूरा डाटा सरकार के पास होता है. इस प्रकार कहें तो आप का लेनदेन सरकार की नजर में होता है.

 

फ्रौड का आधार बन गया आधार कार्ड

आधार कार्ड के बिना आज एक भारतीय खुद की कल्पना नहीं कर सकता. यही आधार कार्ड फ्रौड का सब से बड़ा कारण बन गया है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि आधार का नंबर फोन नंबर, पैन कार्ड नंबर और बैंक के खाता नंबर से जोड़ दिया गया है. अब अगर आधार नंबर मिल जाए तो उस के जरिए बैंक के खाते तक पहुंचना सरल हो गया है.

सरकार ने हर जगह पर आधार कार्ड को दिखाने का नियम बना दिया है. घर पर लगी रसोई गैस से ले कर ड्राइविंग लाइसेंस तक, ट्रेन के सफर से ले कर घरेलू उड़ान तक जैसी जीवन की सभी जरूरतों में इस का प्रयोग होने लगा है. इस के जरिए संपत्ति पर नजर रखी जाने लगी है.

आधार कार्ड का इस्तेमाल पहचानपत्र के रूप में भी किया जाने लगा है. भारत अथवा राज्य सरकार की योजनाओं में तो आधार कार्ड का इस्तेमाल व्यक्तिगत पहचानपत्र के रूप में किया जाने लगा है. एक बार आधार कार्ड बन जाने के बाद इस की उपलब्धता काफी आसान है. इस कार्ड को देश के किसी भी कोने में रहते हुए केवल एक क्लिक में डाउनलोड किया जा सकता है.

इस के अलावा इस की फिजिकल कौपी को भी कहीं भी और कभी भी मांगा जा सकता है. इस से फ्रौड की संभावना बढ़ती है. एक आधार कार्ड नंबर पर आप की सारी संपत्ति का विवरण दर्ज हो जाता है. इस से सरकार को संपत्ति पर नजर रखना सरल हो गया है.

आधार कार्ड और प्राइवेसी से जुड़ी चिंताओं का आपस में गहरा नाता है. भारत सरकार ने जनवरी 2009 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यानी आधार कार्ड का गठन किया. सितंबर 2010 से आधार कार्ड बनना शुरू हुआ. विवाद होने पर सरकार द्वारा कहा गया कि किसी भी आधार कार्ड की फोटोकौपी साझा न करें, इस से प्राइवेसी लीक हो सकती है. बाद में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आननफानन इस को वापस ले लिया. आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम ऐसी सुविधा है जो नकद निकासी और फंड ट्रांसफर जैसे बैंकिंग लेनदेन की सहूलियत देती है.

इस तरह का लेनदेन कोई बैंकिंग कौरेस्पौंडैंट मिनी-एटीएम के जरिए करता है. इस ट्रांजैक्शन के लिए आप को आधार नंबर, बैंक का नाम व उंगलियों के निशान चाहिए. ऐसे में कोई भी जालसाज किसी का आधार नंबर और बायोमीट्रिक्स चुरा कर उस का बैंक अकाउंट आसानी से खाली कर सकता है. पिछले दिनों तेलंगाना और हरियाणा में कई ऐसे मामले सामने आए भी. हरियाणा में अपराधियों ने कथित तौर पर एक सरकारी वैबसाइट से लोगों के बायोमीट्रिक्स चुराए थे.

साल 2018 में टैलीकौम रैगुलेटरी अथौरिटी औफ इंडिया (ट्राई) के तत्कालीन चेयरमैन आर एस शर्मा ने ट्विटर पर अपना आधार नंबर शेयर किया. उन्होंने ओपन चैलेंज दिया कि उन के आधार नंबर से डेटा लीक कर के दिखाया जाए. इस के बाद एलियट एल्डरसन नाम के एक हैकर ने शर्मा के फोन नंबर, अकाउंट नंबर, ऐड्रेस, पैन नंबर समेत कई पर्सनल फोटो भी ट्विटर पर शेयर कर दीं.

इस के साथ एलियट एल्डरसन ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अपना आधार नंबर शेयर करने का चैलेंज दिया. शर्मा ने दलील दी कि ये सारी जानकारियां पब्लिक प्लैटफौर्म पर पहले ही मौजूद हैं. उन्होंने इस बात की पुष्टि नहीं की थी कि एथिकल हैकर ने जो पैन कार्ड की डिटेल शेयर की, वह उन की थी या नहीं.

सरकार आधार से जुड़ी असल समस्याओं को हल करने में नाकाम रही है. अगर जनता को आधार डेटा के दुरुपयोग से बचाना है, तो मजबूत डेटा प्रोटैक्शन कानून की जरूरत पड़ेगी. इस के बिना हर होटल, मूवी थिएटर और स्कूल फ्रौड संस्थाओं के रहमोकरम पर हैं जो एक पल में पता लगा सकती हैं कि हम कौन हैं. सरकार तो आधार कार्ड के जरिए जनता की संपत्ति पर नजर रखती ही है. अब फ्रौड करने वालों को भी इस का मौका मिल गया है.

 

क्यों करते हैं बारबार केवाईसी

पहले के दौर में जब बैंक में खाता खुलता था उस समय खाता खोलने वाले की डिटेल मांगी जाती थी. उन में पहचानपत्र होता था. जो इस बात का प्रमाण होता था कि बैंक में खाता खोलने वाला कहां रहता था.

खाता खोलने के बाद जब निवास बदलता था, तब बैंक को बताना पड़ता था कि पता बदल गया है. इस के बाद खाता खोलते समय पैन कार्ड लगने लगा. अब पैन कार्ड के साथ आधार कार्ड भी लिया जाता है. आधार और पैन के साथ मोबाइल नंबर भी जरूरी हो गया है बैंक खाता खोलने के लिए. इस तरह से लोगों के सारे खाते एक ही जगह पर दिखने लगते हैं जिस से सरकार संपत्ति पर नजर रखने में सफल हो जा रही है.

पैन, फोन नंबर, आधार और मोबाइल नंबर एकसाथ जुड़ने से सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं व योजनाओं के लाभ को भी नजर में रखा जा सकता है. हर सालदोसाल के अंतराल में बैंक केवाईसी कराने के लिए बुलाते हैं. जब नहीं जाते हैं तो वह खाते को बंद कर देता है. केवाईसी कराने के बाद ही दोबारा खाता चालू होता है. केवाईसी में पूरी तरह से वही सब डाक्यूमैंट्स जमा करने होते हैं जो बैंक में खाता खोलते समय हुए थे. केवाईसी के जरिए भी एक तरह से सरकार संपत्ति पर नजर रखती है. ऐसे में बारबार केवाईसी कराना गलत है. इस से डाक्यूमैंट्स के गलत हाथों में जाने का खतरा रहता है.

 

 

संपत्ति पर डाका डालने के लिए डिजिटल पेमेंट

औनलाइन ट्रांजैक्शन को डिजिटल पेमेंट के नाम से भी जाना जाता है. यह संपत्ति पर नजर रखने का एक जरियाभर है. सरकार कैशलैस इकोनौमी को बढ़ावा देने के नाम पर कुछ सुविधाओं का झांसा दे कर लोगों को लुभा रही है. जैसे, कार्ड ट्रांजैक्शन पर सरकार ने 2,000 रुपए तक के पेमेंट को सर्विस टैक्स से फ्री कर दिया है. कार्ड से पैट्रोल खरीदने पर 0.75 फीसदी छूट, रेल टिकट, हाइवे पर टोल, बीमा खरीदने जैसी कई छूट की घोषणा की गई है. सरकार द्वारा जारी छूट स्कीम और ई-वौलेट कंपनियों के कैशबैक औफर, रिवार्ड पौइंट्स व लौयल्टी बेनिफिट के चलते बचत दिखती है लेकिन असल में इस का प्रयोग सरकार की नजर में रहता है, जिस का इस्तेमाल वह अपने तरह से करती है.

डिजिटल ट्रांजैक्शन में सब से बड़ा जोखिम आइडैंटिटी चोरी का है. लोग डिजिटल ट्रांजैक्शन के अभ्यस्त नहीं हैं, जबकि बहुत पढ़ेलिखे और समझदार लोग भी फिशिंग ट्रैप में फंस जाते हैं. औनलाइन फ्रौड के बढ़ते खतरे के दौर में अधिकतर लोगों के डिजिटल ट्रांजैक्शन प्लेटफौर्म पर आने से हैकिंग के खतरे बढ़ रहे हैं. इस तरह का फ्रौड अगर हो गया तो शिकायत कहां करनी होगी? देश में शिकायत पर सुनवाई की दशा बहुत खराब है, जिस से फ्रौड किया पैसा वापस मिलना मुश्किल होता है. साइबर क्राइम से बचने के लिए आज भी लोग चैकबुक के प्रयोग को सब से सही रास्ता मानते हैं. कमजोर शिकायत सुनवाई व्यवस्था की वजह से लोगों के पास औनलाइन फ्रौड से निबटने का कोई उपाय नहीं है. इस के अलावा इस तरह के फ्रौड से निबटने के लिए कोई कड़ा कानून भी नहीं है.

सारे फाइनैंशियल ट्रांजैक्शन डिजिटल होने की वजह से मोबाइल का महत्त्व बहुत बढ़ गया है. इस के खोने का मतलब दोहरा नुकसान है. पेमेंट का कोई दूसरा विकल्प नहीं होने और कैश नहीं होने की वजह से समस्या ज्यादा गहरा सकती है. देश की जनता गांव में भी रहती है. वहां फोन हमेशा चार्ज नहीं रहता. अगर फोन बंद हो गया तो ट्रांजैक्शन बीच में फंस जाएगा. इसी तरह से बुजुर्ग लोगों के लिए इस में दिक्कतें ज्यादा हैं. दूसरे की मदद लेने पर डिजिटल पेमेंट में फ्रौड होने की संभावना ज्यादा होगी. कार्ड के प्रयोग से लोगों में अधिक खर्च करने की लत लग जाती है. कैश खर्च करने में लोग हिचकते हैं. लोगों का खर्च बढ़ जाएगा, जिस से उन का बजट बेकार साबित हो जाएगा.

 

जेवर और जमीन पर भी सरकार की नजर

सोना और जेवर यानी पहने जाने वाले गहनों पर भी सरकार की नजर है. नोटबंदी के बाद यह बात तेजी से उठी थी कि सरकार जमीन और गहनों को ले कर भी कानून लाने वाली है जिस में यह बताया जाएगा कि कितने ग्राम सोना बिना टैक्स के रख सकते हैं, कितना अधिक होने पर टैक्स देना पड़ेगा.

इस के पीछे की वजह यह है कि सरकार का मानना है कि कालेधन को रखने का सब से बड़ा उपाय जेवर और जमीन ही हैं. इसलिए आने वाले दिनो में इस का हिसाब भी वह ले सकती है. सरकार की नजर इस पर भी है.

जेवर या गहने जब भी खरीदें उस की रसीद अपने पास रखें. अगर गहने उपहार में ही मिले हों तो भी कोशिश करें कि उस की रसीद आप के पास हो. एक सीमा से अधिक गहने होने पर उस को उपहार समझ कर सरकार छोड़ती नहीं है. 2 लाख से अधिक का जेवर लेने के लिए आधार कार्ड और पैन कार्ड का विवरण देने को कहा गया है. बड़ी ज्वैलरी शौप इस के बिना जेवर नहीं देतीं. इस के अलावा आज हर ज्वैलरी शौप औनलाइन पेमेंट का रास्ता अपनाती है. इस में आप का फोन नंबर लिखा जाता है. फोन नंबर आधार और पैन से जुड़ा होता है.

ऐसे में फोन नंबर से ही यह पता लगाना सरल हो गया है कि कितनी खरीदारी की गई है. इसी तरह से जब जमीन खरीद रहे होते हैं वहां भी स्टांप फीस औनलाइन जमा की जाती है. अगर 50 लाख रुपए से अधिक की प्रौपर्टी खरीद रहे हैं तो उस पर सरकार की नजर होती है. इस तरह से बिना सरकार की जानकारी के कोई भी संपत्ति आप के पास नहीं हो सकती. सरकार हर तरह से न केवल जनता की संपत्ति पर नजर रख रही, बल्कि उस के जरिए ही उस को परेशान करने का काम भी करती है. ऐसे में जरूरी है कि इन मुद्दों को आप समझें और अपनी संपत्ति को सरकारी लूट से बचाने का उपाय करें.

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