गांव की कच्ची सड़क पर अकेली चलतीचलती सपना के पैर अचानक रुक गए. उस ने पीछे गांव की ओर जाती टेढ़ीमेढ़ी, ऊबड़खाबड़ सड़क की ओर पलट कर एक नजर भर देखा और मन में एक दृढ़ निश्चय के साथ आगे शहर को जोड़ने वाली उस पक्की सड़क की ओर अपने कदम बढ़ा दिए.

गांव की वह पगडंडीनुमा ऊबड़खाबड़ सड़क आगे जा कर शहर की ओर जाने वाली उस पक्की चौड़ी सड़क में विलीन हो जाती थी. गांव की उस कच्ची सड़क की सीमा पर शहर की ओर जाने वाली पक्की सड़क के ठीक किनारे ईंटसीमेंट से बनी एक छोटी सी पुलिया थी, जो कि  जर्जर अवस्था में थी और जिस का एकमात्र उपयोग बस के लिए प्रतीक्षारत यात्रियों के बैठने के रूप में होता था और जहां शहर की ओर जाने वाली तमाम बसें कुछ मिनट के लिए आ कर रुका करती थीं.

सपना जब उस पुल तक पहुंची, तो सूर्योदय हो चुका था. तकरीबन 1 घंटे से वह उस पुल पर बैठी बस की प्रतीक्षा कर रही थी. सुबह का हलकामीठा लालिमायुक्त प्रकाश अब आहिस्ताआहिस्ता तेज प्रखर रूप धारण कर चुका था. सामने सड़क के दूसरी ओर घने पेड़ों के झुरमुट के बीच से हो कर सूरज की झिलमिलाती तेज किरणें उस के चेहरे के साथ अठखेलियां कर रही थीं, किंतु वह किसी गहरे सोचविचार में डूबी हुई थी.  उस के कानों में रहरह कर उस के बाबू का वह स्वर गूंज उठता था, ’’मुझे तो अब इस लड़की का भी भरोसा नहीं.’’

“सपना… अरे ओ सपना, कहां मर गई छोरी… घंटेभर से आवाज लगा रही हूं तुझे. देख, तेरे बाबू के आने का टैम (टाइम) हो गया है. बित्तर (भीतर) बैठीबैठी ना जाने क्या कर रही है छोरी?‘’

सपना अपने कमरे में गुमसुम बैठी हुई है. मां के शब्द मानो उस के कानों से टकरा कर वापस चले जाते हों. मां की बातों का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था. वह अपने कमरे में बैठी खिड़की के बाहर देखे जा रही है, बिलकुल खामोश वह किसी गहरी चिंता में मग्न गुमसुम सी बैठी हुई है.    पिता भी डांटडपट कर सुबह दुकान के लिए जा चुके थे. मां भी कहसुन कर, रोपीट कर रसोई के काम में जुट गई थी. सारे दिन अकेली घर का सारा काम संभालतेसंभालते अब उस का गुस्सा भी सातवें आसमान पर जा पहुंचा था.

सपना की मां ने कमरे के पास आ कर फिर आवाज लगाई, ‘’अरे ओ छोरी, घणा बेर (बहुत देर) से आवाज लगा रही हूं, सुनती क्यों नहीं? घर के लुगाइयों वाली चाल नहीं सीखेगी, ससुराल जा कर नाक कटाएगी के. इस के कारण आदमी की गालियां सुनो, लेकिन छोरी है कि जिद पकड़े बैठी है.‘’

‘’अरे, जाण दे उसन (जाने दो उसे),’’ तभी सपना के बाबू का क्रोधपूर्ण शब्द सपना के कानों में गूंजा, ‘’दो दिन में इस की अक्ल ठिकाने आ जाएगी, भूख लगेगी तो खुद ही कमरे के बाहर आ जाएगी, तुम क्यों बेकार में अपना खून जला रही है?”

“अरे, देखना तुम यह भी वही सब करेगी, जो इस की  बड़ी बहन ने किया था. मुझे तो इस का भी भरोसा नहीं,’’ पिता की आवाज सुन सपना अपने पलंग से उतर आई और दरवाजे से कान सटा कर मांबापू की बातें सुनने की कोशिश करती है.

उस का बापू उस की मां से कहता है, ‘’सुनीता का पता चल गया है, वह शहर में है. उसी लड़के के साथ… दोनों ने शादी कर ली है. आज ही कन्हैया बाबू का लड़का शहर से आया है. उसी ने उन दोनों को वहां पर देखा. अब यह भी कोई गलत कदम उठाए, उस से पहले इस की शादी करा देना ही उचित होगा.

“सच कहता हूं कि मुझे अब इस का भी भरोसा नहीं. आगे पढ़ने  की जिद किए बैठी है. कहां से लाऊंगा मैं इतना पैसा? शहर जा कर पढ़ना चाहती है, शहर की पढ़ाई में जानती भी है… कितना खर्चा आता है.”

“जितना जल्दी हो सके, इस के हाथ पीले करा दें तो ही जा कर अपने मन को शांति मिलेगी, नहीं तो हर वक्त यही डर बना रहेगा कि जो कांड इस की बड़ी बहन ने किया वही सबकुछ यह भी न कर ले…’’

‘’तुम ठीक ही कहते हो सपना के बापू… जवान छोरी के मांबापू के कलेजे में तो डर हमेशा बना रहता है….‘’ सपना की मां ने भी उस के पिता का ही समर्थन किया.

अपने पिता के द्वारा कही गई ये बातें सपना के सीने में तीर की भांति लगती हैं, उस की नजर में उस वक्त अपने  ही मांबापू किसी दुश्मन से कम नहीं लग रहे थे. बहुत देर तक उदास बैठी वह जाने क्याक्या मन ही मन सोचती रही, और फिर अचानक उस ने अपने मन में एक दृढ़ निश्चय किया. उस ने तय किया कि अब वह अकेली ही शहर के लिए निकल जाएगी और  लौट कर वापस कभी नहीं आएगी. जिस घर में उस के मांबापू को ही उस पर भरोसा नहीं है, वह उस घर में कभी वापस नहीं आएगी. कम से कम वह तब तक वापस नहीं आएगी, जब तक वह योग्य नहीं बन जाती. और फिर अगले दिन ही सुबहसुबह वह अपने घर को छोड़ कर निकल पड़ती है. अपने गांव से तकरीबन 3 किलोमीटर की दूरी पैदल चलती हुई वह शहर की ओर जाने वाली इस पक्की सड़क तक आ पहुंचती है.

सड़क के किनारे बने उस छोटे से पुल पर बैठी हुई सपना अपनी ही धुन में खोई हुई थी. उस के चेहरे पर हलकी सी उदासी उभर आई थी, चिंता की कई परतें उस के मानसपटल पर उभर आती और फिर मिट जाती.

दिल्ली, दिल्ली की आवाज ने उसे जैसे  नींद से जगा दिया. वह एकदम से उठी और सामने खड़ी बस में जा बैठी. बस की ज्यादातर सीटें खाली थीं. वह खिड़की के किनारे वाली एक सीट पर जा बैठती है, बस चल पड़ती है.

‘’हैलो, हां, मैं पहुंच रही हूं, तुम मुझे लेने आ जाओगे ना,‘’ सपना ने अपने मोबाइल से किसी को फोन किया.

“हां, मैं आ जाऊंगा, तुम दिल्ली पहुंचने के एक घंटे पहले मुझे फोन कर देना. मैं वक्त पर पहुंच जाऊंगा,‘’ फोन की दूसरी तरफ से किसी ने जवाब दिया.

‘’और मेरे रहने का इंतजाम…’’

‘’वह भी हो जाएगा… तुम चिंता मत करो.‘’

सपना जब दिल्ली पहुंची, तो जितेंद्र उस के इंतजार में उसे खड़ा मिला. उस ने उसे देखते ही दूर से हाथ हिलाया और पास आ कर उस का सामान उठा कर  बाइक पर रख लिया और उस के साथ गर्ल्स होस्टल की ओर चल दिया.

‘’तो, आखिर तुम ने हिम्मत दिखा ही दी…’’ बाइक चलातेचलाते जितेंद्र ने सपना की ओर पीछे पलट कर देखा.

सपना चुप रही. उस ने खामोशी से बस पलकें उठा कर उस की ओर देख भर लिया.

‘’घर छोड़ने का निर्णय लेते वक्त तुम्हें डर नहीं लगा?

‘निर्णय लेना पड़ा… वरना बापू मेरी शादी करा देता,’’ तेज हवा के कारण दुपट्टे का एक सिरा सपना के चेहरे से आ चिपका था, जिसे चेहरे से हटाते हुए सपना ने जवाब दिया.

‘’मानना पड़ेगा तुम्हे… तुम्हें अपने बापू का भी डर नहीं लगा?”

“डर…? डर किस बात का…? मैं कोई गलत काम थोड़े ही करने जा रही हूं… कुछ बनने का उद्देश्य ले कर निकली हूं,” और बेफिक्री में सपना ने अपने कंधे को झटका दिया.

‘’तुम अपनी बताओ. तुम्हारा इस बार का रिजल्ट क्या आया?‘’ सपना ने अचानक ही विषय को बदलते हुए पूछ लिया.

‘’मैं इस बार भी असफल रहा…’’ जितेंद्र लापरवाही के साथ हंस पड़ा.

‘’इस बार भी, ऐसा कैसे?‘’ सपना ने आश्चर्यपूर्वक पूछा.

‘’तुम तो पिछले कई वर्षों से आईएएस की तैयारी कर रहे हो न….” और सपना की विस्मय से आंखें फैल गईं.

‘’अरे, मैं तो आईएएस की तैयारी बड़े जीजान से, कड़ी मेहनत के साथ हर साल करता हूं, परंतु हर बार ये यूपीएससी वाले क्वेश्चन ही कठिन सेट कर देते हैं…  दरअसल, मैं असफल नहीं होता, बल्कि यूपीएससी के क्वेश्चन ही कठिन पूछे जाते हैं,‘’ और दोनों हंस पड़ते हैं.

‘’ऐसे ही हंसती रहा करो… उदास अच्छी नहीं लगती,” जितेंद्र ने गर्ल्स होस्टल के गेट के बाहर बाइक खड़ी करते हुए कहा.

‘’सपना, ये रहा तुम्हारा कमरा. फिलहाल तो मैं ने किसी तरह जुगाड़ कर के 15 दिन के पैसे एडवांस में दे दिए हैं. आगे तुम्हें खुद ही इंतजाम करना होगा…’’ और फिर थोड़ा रुक कर जितेंद्र कहता है, ’’मैं तुम्हारे लिए पार्ट टाइम जौब खोजने में तुम्हारी मदद करूंगा.‘’

‘’थैंक यू जितेंद्र, तुम ने मेरी बहुत मदद की है सच में. मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी,’’ सपना ने कृतज्ञता भरे स्वर में कहा.

‘’कैसी बात कर रही हो? मैं तो खुद शर्मिंदा हूं कि मैं तुम्हारे लिए बस इतना ही कर पाया और दोस्ती के  बीच में यह अहसान जैसे शब्द कहां से आ गए?’’ जितेंद्र ने अधिकारपूर्वक डांट लगाई, तो सपना ने गंभीर होते हुए नजरें जमीन पर गड़ा दी.

‘’और फिर हम दोनों एक ही गांव से हैं. तो इस अनजान शहर में हम ही एकदूसरे के काम आएंगे ना…’’ जितेंद्र ने उसे समझाते हुए कहा.

सपना ने कोई जवाब नहीं दिया, बस चुपचाप खामोशी से जितेंद्र की ओर देखती रही.

जितेंद्र जब सपना को होस्टल के कमरे में छोड़ कर चलने को हुआ, तो सपना से बोला, ’’मैं चलता हूं अभी. कोचिंग की क्लास का समय हो रहा है. वैसे भी  तुम्हारे लिए यह शहर नया तो है नहीं. तुम पहले भी यहां आ चुकी हो. तुम्हारे लिए तो सबकुछ देखासमझा हुआ है. मेरे खयाल से तुम्हें कुछ खास परेशानी नहीं होनी चाहिए. और कुछ जरूरत पड़े तो मुझे फोन करना. वैसे, मेरा नंबर तो तुम्हारे पास है ही.’’

सपना ने सहमति में बस सिर हिला दिया.

जितेंद्र जब चला गया, तो वह सोच में पड़ गई. जितेंद्र ने अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर उस की मदद की है… अब वह और उस से मदद नहीं लेगी… क्या वह बिना उस की सहायता के कभी कुछ नहीं कर सकती? कम से कम वह अपने लिए इतनी कोशिश तो अवश्य करेगी कि पैसे के लिए अब और उस की मदद न लेनी पड़े, दिल्ली तो वह आ गई है, और अब उसे बस आगे का रास्ता तलाशना है. क्यों न वह अपने लिए कोई पार्ट टाइम जौब ही ढूंढ़ ले? लौट कर घर वापस जाने का तो अब वह सोच भी नहीं सकती. अकेली बैठेबैठे उसे और भी चिंता होने लगी.

होस्टल के उस कमरे में उस के अतिरिक्त और 2 लड़कियां रह रही थीं- प्रीति और नीलू. वैसे तो दोनों अकसर गायब ही रहती थीं. रात के ढाईढाई, तीनतीन बजे तक जाने कहांकहां  भटकती रहती और कभीकभी जब वे लौटती तो उन के साथ कोई न कोई लड़का जरूर होता. दोनों ही ड्रिंक लेती, सिगरेट पीती.

सपना को यहां रहते हुए 10 दिन का समय बीत चुका था. अभी तक अपने लिए वह कोई काम नहीं खोज पाई थी. उसे अब अपने भविष्य को ले कर चिंता सताने लगी थी. गांव से जिस उद्देश्य को ले कर वह निकली थी, उस के लिए हौसले के साथसाथ पैसों की भी जरूरत थी. हौसला तो उस के पास था, पर जरूरत थी तो उस के अपने  खर्चों के लिए पैसों का जुगाड़ करना, जो कि बहुत मुश्किल होता जा रहा था. इस बीच उस के मन में कई दफा नीलू और प्रीति से मदद लेने के विचार भी उत्पन्न हुए, लेकिन कोई ठोस आलंबन न पा कर सूखी पंखुड़ियों के समान झड़ गए. उसे हर बार लगता  कि जिंदगी में जिन ऊंचाइयों को छूने का ख्वाब ले कर वह घर से निकली है, उस का रास्ता इतना समतल और सपाट तो नहीं हो सकता…

सामने चेयर पर बैठी नीलू एक के बाद एक सिगरेट सुलगाती जा रही थी. वह कुछ परेशान सी दिख रही थी. सपना बिस्तर पर बैठी हुई किसी किताब में नजरें जमाए हुई थी. किंतु बीचबीच में वह एकाध बार नजरें उठा कर नीलू को देख भर लेती, परंतु कुछ पूछने का साहस नहीं जुटा पाती. प्रीति अभी तक लौट कर नहीं आई थी.

सपना ने घड़ी देखी, रात के 12 बज रहे थे. सपना कुछ पूछना चाहती है, किंतु फिर भी चुप रह जाती है, क्योंकि वह जानती है कि इस वक्त उस से कुछ भी पूछना निरर्थक है. उस से कुछ भी  पूछने का मतलब है किसी न किसी विवाद की शुरुआत. तो बेहतर है कि चुप ही रह जाए.

कुछ देर तक पन्ने पलटने के बाद वह किताब को अपने पास की टेबल पर रख देती है और बिस्तर पर आंखें मूंद कर चुपचाप लेट जाती है.

‘’हेल विद हिम…‘’ सपना के कानों में जब नीलू की झुंझलाहट भरी यह तेज आवाज पड़ी, तो वह अचानक बिस्तर से उठ बैठी. सामने देखा तो नीलू और प्रीति में किसी बात पर जोरदार बहस चल रही थी.

प्रीति कब कमरे में आई, उसे पता ही नहीं लगा. शायद उस वक्त वह काफी गहरी नींद में थी.

‘’नाराज मत हो यार. मैं तो बस इतना पूछ रही थी कि रोहित के साथ तेरा अफेयर कैसा चल रहा है? देख, वह  लड़का अपने बहुत काम का है. ले चल छोड़, नहीं पूछती अब,‘’ और फिर दोनों लड़कियां खुद ही खामोश हो जाती हैं. दोनों के बीच बहुत देर तक चुप्पी छाई रहती है.

सपना ने  देखा कि टेबल पर दोनों के ड्रिंक का गिलास पड़ा हुआ है और बोतल आधी खाली पड़ी हुई है.

‘अभी इन दोनों के बीच बोलने का कोई फायदा नहीं है… ये दोनों ऐसे ही लड़तीझगड़ती हैं, चीखतीचिल्लाती हैं, खुद ब खुद शांत हो जाएंगी…’ सपना ने सोचा और अपने कानों को दोनों हथेलियों से ढक कर पुनः सोने की चेष्टा करने लगी.

‘’जस्ट शटअप प्रीति, डोंट बी सिली यार.‘’

‘’बस इतनी सी तो बात है.‘’

‘’बस, इतनी सी बात लगती है तुझे.‘’

‘’हां. और नहीं तो क्या?‘’

सपना बिस्तर पर लेटेलेटे ही आंखें खोल कर उन दोनों लड़कियों की ओर देखती है, ‘’जाने कौन सी बात पर ये दोनों रात के तीसरी पहर पंचायत किए बैठी हैं…’’ सपना ने यह बात बेहद धीमी आवाज में अपनेआप से कही थी, क्योंकि उस के द्वारा कहे गए ये शब्द उस के दोनों होंठों के बीच ही कहीं दब कर रह गए थे.

अगले दिन दोपहर को जब सपना लंच कर के कमरे में लौटी तो देखा कि दोनों ही लड़कियां प्रीति और नीलू बेसुध सोई पड़ी थीं, और कुछ समय बाद एकदम से उठी और तैयार हो कर कहीं बाहर जाने के लिए निकल पड़ी.

सपना के मन में आया कि क्यों ना आज जितेंद्र से अपने लिए कहीं काम खोजने की वह बात करे. आज तो उस की छुट्टी भी होगी. उस के पास जो भी पैसे थे, अब एकएक कर खर्च हो गए थे. उस के लिए अभी कोई भी छोटामोटा काम चलेगा.

उस ने जितेंद्र के नंबर पर फोन किया. नंबर बिजी आ रहा था. सपना चेयर पर बैठी कुछ सोचती रही और फिर पास के टेबल से 2 दिन पुराने अखबार को उठा कर उस के पेज पलटने लगती है. उस की नजर अखबार में छपे एक कौलम पर ठहर गई, ‘’वृद्धाश्रम के लिए एक महिला अटेंडेंट की जरूरत है… इच्छुक इस पते पर संपर्क करें.‘’ नीचे फोन नंबर और पता दिया हुआ था.

सपना ने मोबाइल में सर्च किया दिया हुआ पता उस गर्ल्स होस्टल से 40 मिनट की दूरी पर था. उस ने नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.

अचानक कमरे के दरवाजे के खटखटाने की आवाज सुन वह दरवाजे की ओर बढ़ी. सपना ने जैसे ही दरवाजा खोला, एक छरहरे  बदन का सांवला सा लड़का कमरे के अंदर दाखिल हो गया. लड़के ने अंदर आने से पहले सपना की इजाजत लेनी जरूरी नहीं समझी. बड़े ही बेबाकी के साथ सामने की कुरसी खींच कर वह  बैठ जाता है.

सपना उस युवक से कुछ पूछती, उस से पहले ही वह युवक स्वयं ही अपना परिचय देने लगा, ‘’मैं, तेजप्रताप, प्रीति का दोस्त. और आप…?” सपना अचकचा कर उस युवक का चेहरा देखने लग जाती है.

युवक ने सपना के जवाब का कोई इंतजार नहीं किया. वह खुद ही बोल पड़ता है, ‘’आप नई आई हैं.” और सिगरेट सुलगाते हुए पुनः वह युवक सवाल करता है, ‘’कब तक आएगी? कुछ बता कर गई है प्रीति?”

“नहीं, मुझे कुछ नहीं पता.”

“खैर, कोई नहीं. मैं यहीं उस का इंतजार कर लूंगा, जब तक कि वह आ नहीं जाती.”

वह युवक खुद ही सवाल करता और खुद ही उस का उत्तर भी देता जाता…  उस के लिए सपना की उपस्थिति, अनुपस्थिति, सहमति, असहमति मानो जैसे इन सब का कोई मतलब ही ना हो.

अचानक कमरे में दाखिल हुए इस घुसपैठिए की उपस्थिति अब सपना के लिए बेहद असहज हो रही थी, ’’आप प्रीति को फोन कर के पूछ क्यों नहीं लेते कि वह कब तक आएगी?” सपना ने नाराजगी प्रकट की.

उस युवक ने सपना के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और वहीं बैठेबैठे सिगरेट का धुआं हवा में उड़ेलता रहा… उस ने अब अपनी दृष्टि सपना के चेहरे पर टिका दी थी.

सपना के लिए यह सब बहुत ही असहज हो रहा था. वह उठ कर उस कमरे से बाहर जाने के लिए उठ खड़ी होती है कि तभी प्रीति कमरे में दाखिल होती है.

प्रीति ने सपना को कमरे से बाहर जाते देखा तो उस के कंधे पर अपना हाथ रख उसे रोकते हुए कहा, ‘’तुम बाहर कहां जा रही हो? ‘’

‘’तेज, मीट दिस प्रिटी गर्ल सपना.”

‘’सपना, मीट माय फ्रेंड तेजप्रताप.‘’

‘’वैरी प्लीज्ड टु मीट यू,‘’ सपना ने तेजप्रताप के बढ़े हुए हाथ से हाथ मिलाया और अनिच्छापूर्वक मुसकराने की कोशिश में होंठ फैला दिए…

‘’सपना, यह यहां के एक बहुत बड़े बिजनैसमैन के इकलौते बेटे हैं. इन की करोड़ों की प्रोपर्टी है. ये तुम्हारे बहुत काम आ सकते हैं.‘’

‘’माफ कीजिएगा, मुझे एक जरूरी फोन करना है,” सपना दरवाजे की ओर बढ़ जाती है.

‘’अरे, आप क्यों जा रही हैं, बैठिए ना प्लीज,‘’ तेजप्रताप ने सपना के कंधे को अपने हाथों से दबाते हुए कहा, तो सपना ने बड़ी ही बेरुखी के साथ अपने कंधे पर रखे गए हाथ को झटक दिया.

सपना कमरे से बाहर निकल आती है. सपना के कमरे से बाहर जाते ही वह युवक प्रीति को अपनी  बांहों में भर लेता है, और बड़ी बेसब्री के साथ उस के माथे, गालों और होंठों पर चुंबन की बौछार लगा देता है.

लेकिन प्रीति ने उसे मना करने के बजाय उस के गले में अपनी बांहें डाल दीं और उसे उतने ही प्यार से प्यार के लिए उकसाने लगती है.

सपना के बाहर जाते ही उस युवक ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और प्रेमोन्मत्त हो कर दोनों एकदूसरे को आगोश में भर लेते हैं…

सपना होस्टल के बाहर लगे गार्डन की बेंच पर आ कर बैठ जाती है, तभी उसे जितेंद्र का फोन आता है.

‘’हैलो, तुम ने फोन किया था मुझे…‘’

‘’हां, किया था.‘’

‘’सौरी, तुम्हारा फोन उठा नहीं सका.”

‘’हां, कहो, क्या बात है? कहीं कोई किसी तरह की परेशानी तो नहीं है?‘’

‘’नहीं, लेकिन क्या कल तुम मेरे साथ एक जगह चल सकोगे?‘’

‘’कहां चलना है…’’

‘’मैं ने अपने लिए एक नौकरी तलाश की है. वहीं चलना है. मैं तुम्हें वहां का एड्रेस व्हाट्सप्प पर भेज रही हूं.‘’

‘’अरे, यह तो कोई वृद्धाश्रम है.‘’

‘’मालूम है.’’

‘’क्या तुम कर पाओगी यह सब?‘’

‘’क्यों नहीं, किसी बुजुर्ग की सेवा ही तो करनी है. तुम चिंता मत करो. मुझे कोई परेशानी नहीं होगी. मुझे तुम्हारी बस इतनी मदद चाहिए कि तुम मुझे वहां तक पहुंचा दो और वहां से होस्टल छोड़ जाने का काम कर दो. इतना कर सको, तो बहुत मेहरबानी.”

‘’कैसी बातें करती हो? इस में मेहरबानी जैसी कोई बात नहीं. मैं तुम्हारे लिए इतना तो कर ही सकता हूं. ओके. तो कल मिलते हैं ना?’’

‘’ठीक है तब, कल मैं समय पर आ जाऊंगा.‘’

‘’ओके.‘’

जितेंद्र से फोन पर बातें करने के बाद जब सपना कमरे की ओर जाती है, तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद पाती है. उस ने दरवाजा बाहर से खटखटाया, तो करीब 5-10 मिनट बाद तेजप्रताप अपनी कमीज के बटन ठीक करते हुए दरवाजा खोलता है. उसे ऐसी अवस्था में देख कर सपना अपने पैर दरवाजे से पीछे की ओर खींच लेती है.

तेजप्रताप के वहां से चले जाने के बाद वह कमरे में दाखिल होती है. बिस्तर पर चादर ओढ़ प्रीति अर्धनग्न अवस्था में नशे की हालत में पड़ी हुई थी. उसे ऐसी अवस्था में देख सपना का मन उस के प्रति घृणा से भर जाता है.

वह मन ही मन  सोचती है कि इस समाज में कितनी ही ऐसी लड़कियां हैं, जो अपनी इज्जत, अपनी प्रतिष्ठा, अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ती हैं. उन्हें इतनी स्वतंत्रता नहीं मिलती कि वह अपने जीवन में किसी लक्ष्य को हासिल कर सकें, तो वहीं दूसरी ओर ऐसी भी लड़कियां हैं, जो अपने परिवार द्वारा दिए गए स्वतंत्रता का दुरुपयोग करती हैं. अपनी इज्जत का सरेआम व्यापार करती हैं. पता नहीं, इन के मांबाप पर इन के ऐसे कृत्यों का क्या प्रभाव पड़ता होगा?

सपना एक बेहद घृणापूर्ण दृष्टि उस की ओर डालती है, और अपना चेहरा दूसरी ओर दीवार की तरफ कर बिस्तर पर लेट जाती है, आंखें मूंद कर वह सोने का प्रयत्न करती है.

वह वृद्धाश्रम शहर की भीड़भाड़ वाले इलाके में तन्हा, बेबस, लाचार और अपने ही बच्चों के द्वारा ठुकराए गए मांबाप के लिए बना था, जो कि अमीर, गरीब, शिक्षित, अशिक्षित सभी तरह की औलादों के मांबाप का एकमात्र आश्रय स्थल था. ये बुजुर्ग अपने जीवन के तमाम अनुभवों से गुजर कर जीवन के अंतिम पड़ाव में अब जीवन की कठोरतम और क्रूरतम सचाई से रूबरू हो रहे थे. यहां पर वे, ‘’जीवन का एकमात्र सत्य दुख है,’’ इस कथन से साक्षात्कार हो रहे थे…

सपना को वहां काम करते हुए अब एक महीने से भी अधिक समय बीत चुका था. सपना उस आश्रम की साफसफाई से ले कर वृद्ध महिलाओं को नहलानेधुलाने का सारा काम बड़े ही लगन से करती. धीरेधीरे वह यहां रहने वाले प्रायः सभी बुज़ुर्गों की चहेती बन गई थी. सभी उस से बेहद प्यार करते. उन बुजुर्गों में तो कुछ ऐसे भी थे, जो कि सिर्फ सपना के हाथों से ही खाना पसंद करते.

सपना को इस काम से मिलने वाले पैसे इतने अधिक तो नहीं थे, परंतु इतना कम भी नहीं था कि उस का गुजारा ना हो सके. वह जितनी मेहनत से वहां के काम करती, उतनी ही लगन से अपनी पढ़ाई भी कर रही थी. आश्रम में भी वह थोड़ाबहुत समय अपने पढ़ने के लिए निकाल लेती. उसी आश्रम में एक और वृद्ध महिला थी, जो कि अकसर खामोश रहती. सपना ने कई बार उन से बातें करने की कोशिश की, लेकिन वह ज्यादा किसी से बात नहीं करती थी.

काम के बीच जब भी थोड़ा समय मिलता, सपना उन के पास वाले कोने में बैठ कर पढ़ने  लगती, क्योंकि वही एक ऐसा कोना था, जो उसे पढ़ने के लिए उपयुक्त लगता.

एक दिन सपना वहां बैठी कुछ पढ़ रही थी, कुछ याद करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन बीच में कहीं अटक जाती, तभी उस के कानों में कुछ शब्द किसी के सुनाई पड़े, ‘’ए डिस्ट्रिब्युशन   इज सेड़ टु बी स्क्यूड… ‘’ सपना ने पलट कर देखा, तो वह वृद्ध महिला उसी की ओर देख रही थी.

“आप यह सब जानती हैं?” सपना ने आश्चर्यपूर्वक पूछा.

‘’हां, मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी मे हेड औफ द डिपार्टमेंट रही हूं, कितनों को मैं ने पीएचडी कराया है?” उस वृद्ध महिला की आंखें यह कहते हुए छलछला आई थीं. उन की आंखों में आंसू भर आए थे.

उन्होंने आगे अपनी कहानी सपना को बताई, ‘’मेरा बेटा और बहू लंदन में जा कर बस गए. बेटी की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हो गई. पति की मृत्यु के बाद बच्चों ने भी मेरा हाल नहीं पूछा.  अब किसी तरह जीवन का अंतिम समय इस वृद्धाश्रम में काट रही हूं. जीवन की कितनी सांसें बची हुई हैं, किसे पता?”

सपना को पता चला कि वह वृद्ध महिला, जिन का नाम शकुंतला है, नहीं, अब वह उस के लिए डाक्टर शकुंतला मैम थीं. वे कैंसर से पीड़ित हैं, लास्ट स्टेज में हैं.

सपना मन ही मन सोचती है, ये जिंदगी भी अजीब खेल खेलती है. सपना का मन उस वृद्ध महिला के प्रति अपार श्रद्धा और करुणा से भर आया था. बहुत दिल लगा कर वह उन की सेवा करती. वह उस के लिए शकुंतला मैम बन चुकी थीं, जो उस की पढ़ाई में भी मदद करती. पढ़ते वक्त उसे जहां कहीं भी कठिनाई होती, उस की शकुंतला मैम  उस की मदद कर देती. अकसर उसे होस्टल लौटने में देरी हो जाती, क्योंकि काम के बाद वह शकुंतला मैम से पढ़ाई में भी थोड़ी मदद ले लेती. होस्टल से बिलकुल सुबह वह निकल आती.

इधर नीलू होस्टल छोड़ कर जा चुकी थी और प्रीति किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो चुकी थी. उसे अकसर ही बुखार रहता. सपना ने नोटिस किया कि प्रीति अकसर थकीथकी सी रहती है और कभीकभी उसे खांसी भी आती.

एक दिन सुबहसुबह जब वह आश्रम के लिए निकल रही थी, तो उस ने देखा कि वह बारबार खांसे जा रही थी. उस के पूछने पर उस ने कहा कि वह किसी डाक्टर से अपना इलाज करा रही है. दवा भी ले रही है. उसी दिन दोपहर में उसे मालूम हुआ कि प्रीति को अस्पताल में एडमिट किया गया है.

सपना ने सोचा, वृद्धाश्रम से शाम को लौटते वक्त वह प्रीति से मिलने अस्पताल जाएगी, लेकिन उस दिन उस की शकुंतला मैम की तबीयत भी काफी खराब थी और वह उन्हें ऐसी हालत में बिलकुल भी अकेली नहीं छोड़ सकती थी.

वह पूरे समय शकुंतला मैम की सेवा करती रही. जरा देर के लिए भी यदि उस की आंखें लगती, वह  फौरन उठ कर बैठ जाती. कभी उन के पैर दबाती, तो कभी उन के माथे को बड़े प्यार से सहलाती. डाक्टर ने भी कह रखा था कि अब उन का अंतिम समय चल रहा है.

सपना का मन उस दिन बहुत दुखी था. उस की आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे. अचानक उस ने अपनी हथेलियों पर प्यार भरे स्पर्श को महसूस किया. उस ने भीगी पलकों से उस ओर देखा, तो शकुंतला मैम उसे बड़े प्यार से देख रही थीं. उन्होंने उसे अपने तकिए के नीचे से चाबी निकाल कर थमाई और कहा कि सामने वह उन की अलमीरा है. उस में एक छोटा सा बौक्स है. कपड़े में लपेट कर रखा हुआ है. वह उसे ला कर दे.

सपना ने सवाल भरी नजरों से उन की ओर देखा. तब वे धीमे से मुसकराते हुए बेहद प्यार से उस के चेहरे को छू कर बोलीं, “तुम लाओ तो सही, एक बेहद जरूरी काम रह गया है.”

सपना उठी और वह बौक्स ला कर उन के पास रख दिया. उन्होंने कहा, “इसे खोलो.”

सपना ने बौक्स खोल कर उन के आगे बढ़ाया, तो वो तकिए के सहारे बैठ गईं और कांपते हुए हाथों से 10 लाख रुपए का एक चेक साइन कर सपना की हथेली पर रखते हुए बोलीं, “तुम ने मेरी सगी औलाद से भी बढ़ कर सेवा की है, यह मेरे पूरे जीवन की जमापूंजी है, इसे तुम मेरा प्यार और आशीर्वाद समझ कर रख लेना. खूब मन लगा कर पढ़ना. मेरा आशीर्वाद, मेरा प्यार हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा…” और उन्होनें अपनी आंखें मूंद लीं.

सपना ने महसूस किया कि उस की शकुंतला मैम की हथेली अचानक काफी ठंडी हो गई है. उस ने गीली पलकों से उन के चेहरे की ओर देखा. उन का चेहरा बिलकुल शांत तकिए पर पड़ा हुआ था.

सपना की आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा और उस का सिर उन के प्रति अपार श्रद्धा में झुक गया.

राइटर- गायत्री ठाकुर 

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