उत्तर प्रदेश की जनता इस बात से खुश थी कि योगी राज में अपराधियों के खिलाफ कड़ाई से काम हो रहा है. आज के दौर में जनता को सरकार से केवल इतनी उम्मीद रह गई है कि वह खुद को सुरक्षित महसूस करे. उसका घर, परिवार और बिजनैस भी सुरक्षित रहे. कोई दंबग, बाहुबली उसको परेशान न करे. उसे यह पता है कि एनकाउंटर और बुलडोजर न्यायसंगत नहीं है, इसके बाद भी वह इनका समर्थन कर रही थी क्योंकि इससे अपराध को रोकने और अपराधियों को डराने में मदद मिल रही थी. उसका यह भ्रम 24 फरवरी,2023 को टूट गया जब प्रयागराज में उमेश पाल और उसके साथ 2 सिपाहियों की हत्या शाम को 5 बजे भीड़भाड़ वाले इलाके में हो जाती है. वैसे तो प्रदेशभर में अपराध की ऐसी घटनाएं अनेक हैं पर यह मसला हाई प्रोफाइल था, तो ज्यादा तूल पकड़ गया.

योगी सरकार की कानून व्यवस्था का प्रचारप्रसार बहुत था. प्रयागराज की घटना ने इसकी पोल खोल कर रख दी. सड़क से लेकर उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सदन तक योगी राज पर सवाल उठाने शुरू हो गए. तर्क को दबाने के लिए क्रोध का सहारा लेना पौराणिक कहानियों में बहुत दिखाया गया है. विधानसभा सदन में जब विपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने प्रयागराज की घटना पर योगी सरकार को आईना दिखाया तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऋषि दुर्वासा की तरह क्रोधित होकर बोले, ‘उस माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा’.

बहस तार्किक न हो कर एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप पर चली गई. असल में योगी सरकार में जिस बात को कानून व्यवस्था के रूप में देखा जा रहा था वह संविधान को दरकिनार करके काम कर रही थी. विधानसभा में ऋषि दुर्वासा जैसे क्रोधित होकर योगी आदित्यनाथ ने जो ऐलान किया, उसे पूरा करने में पुलिस जुट गई. इसमें लक्ष्मण की तरह से अतीक अहमद और उसका परिवार तबाह हो गया.

ऋषि दुर्वासा लक्ष्मण पर जिस तरह से क्रोधित हुए, उसने लक्ष्मण को मरने पर मजबूर किया था. बात रामायणकाल की है. राम लंका विजय करके अयोध्या लौटे थे. वे अयोध्या के राजा बन गए थे. एक दिन यम कोई महत्त्वपूर्ण चर्चा करने राम के पास आते हैं. अपनी बात कहने से पहले वे चाहते हैं कि उनकी बातचीत के बीच कोई न आए और बात गोपनीय रहे, उसे कोई सुने नहीं.

यम ने अपनी बातचीत शुरू करने से पहले से राजा रामसे कहा, ‘आप जो भी प्रतिज्ञा करते हो उसे पूर्ण करते हो. मैं भी आपसे एक वचन मांगता हूं कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्त्तालाप चले तो हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उसको आपको मृत्युदंड देना पड़ेगा.’ राजा राम यम को वचन दे देते हैं.

राम ने यह बात लक्ष्मण को समझाई और लक्ष्मण को द्वारपाल नियुक्त करते कहा कि जब तक उनकी और यम की बात हो रही है वे किसी को भी अंदर न आने दें, अन्यथा उसे उन्हें मृत्युदंड देना पड़ेगा. लक्ष्मण राजा राम की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो गए. लक्ष्मण को द्वारपाल बने कुछ ही समय ही बीता था कि वहां पर ऋषि दुर्वासा का आगमन होता है. दुर्वासा ने लक्ष्मण से राम के मिलने की बात करते कहा कि उनके आगमन की सूचना राम को दे दो.

तब लक्ष्मण ने विनम्रता के साथ मना करते कहा कि आप प्रतीक्षा कीजिए, राजा राम किसी से महत्त्वपूर्ण बात कर रहे हैं. अगर हमारे लायक कोई सेवा हो तो बताएं, हम आपकी सेवा में हाजिर हैं. लक्षमण की बात सही थी,वे अपने धर्म और कर्तव्य का पालन कर रहे थे. यह बात दुर्वासा को समझ नहीं आई.वे क्रोधित हो गए और कहा, ‘लक्ष्मण, अगर तुमने अभी मेरी बात नहीं मानी तो मैं अभी पूरी अयोध्या को श्राप देकर भस्म कर दूंगा.’

लक्ष्मण ऋषि दुर्वासा के क्रोध और उनकी ताकत को जानते थे. वे समझ गए कि उनके सामने दो ही रास्ते हैं. एक वह जिसमें राजा राम की आज्ञा को न मान कर उनको ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना दें. दूसरा रास्ता यह कि अयोध्या को ऋषि दुर्वासा के कोप का शिकार बनने दें.

लक्ष्मण ने यह फैसला लिया कि वह स्वयं का बलिदान देकर राजा राम को ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना देने जाएंगे. इससे अयोध्या के लोग ऋषि के श्राप से बच सकेंगे. वे राम के पास गए और ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दी. राम ने शीघ्रता से यम के साथ अपनी वार्त्तालाप समाप्त कर ऋषि दुर्वासा की आवभगत की. अब राजा राम दुविधा में पड़ गए क्योंकि उन्हें अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्युदंड देना था.

वे समझ नहीं पा रहे थे किवे अपने भाई को मृत्युदंड कैसे दें, लेकिन उन्होंने यम को वचन दिया था जिसे निभाना ही था. राजसभा में जब यह बात आई तो गुरुदेव और मंत्रियों ने कहा कि ‘किसी प्रिय का त्याग, उसकी मृत्यु के समान ही है.’ तब अपने वचन का पालन करने के लिए राम ने लक्ष्मण का त्याग कर दिया. लक्ष्मण ने यह सुना तो उन्होंने राम से कहा,‘आप भूल कर भी मेरा त्याग नहीं करना, आप से दूर रहने से तो यह अच्छा है कि मैं आपके वचन का पालन करते हुए मृत्यु को गले लगा लूं.’

जैसे ही लक्ष्मण ने यह सुना कि राम ने उनका त्याग कर दिया है,उन्होंने मृत्यु को गले लगाने के लिए जलसमाधि ले ली. लक्ष्मण ऋषि दुर्वासा के क्रोध का शिकार हो गए. पौराणिक व्यवस्थाओं में न्याय इसी तरह से ही किया जाता रहा है, जिसमें ऋषि जराजरा सी बात पर श्राप देते थे. रामायण ही नहीं, महाभारत में भी ऐसे तमाम प्रसंग हैं. अश्वथामा ने महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के परिवारों को रात में मार डाला. गौतम ऋषि ने पत्नी अहल्या को पत्थर का बना दिया. लक्ष्मण ने सूर्पणखां की नाक काट ली. क्रोध में लिए गए फैसलों में तर्क और विवेक के लिए जगह नहीं रह जाती है.

ऋषि दुर्वासा की तरह क्रोध में फैसले लेने का काम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी किया. योगी आदित्यनाथ की ताकत उनकी पुलिस है. जो आदेश पाते ही बुलडोजर और बंदूक लेकर अपराधी को मिटटी में मिलाने के लिए चल पड़ती है.

मार्च 2017 से अप्रैल 2023 तक 183 अपराधियों का एनकाउंटर उत्तर प्रदेश की पुलिस कर चुकी है. योगी राज में एनकांउटर और बुलडोजर त्वरित न्याय का साधन बनकर उभरे. यह उस कहावत की तरह हो गए कि ‘खाता न बही जो पुलिस कहे वही सही’. केवल अपराधी ही नहीं, धरनाप्रदर्शन और सरकार की आलोचना करने वालों को जेल में डालने, उनके घर गिराने जैसे काम करके मिटटी में मिलाने का काम बिना किसी रोकटोक के चलता रहा. बुलडोजर राज ने प्रदेश में कानून और न्याय व्यवस्था को गोमती में बहा दिया.

योगी राज के एनकांउटर की थ्योरी काफीकुछ पौराणिक काल में भी मिलती है. मरने वाले गलत थे, यह कह कर उनके एनकाउंटर को सही नहीं माना जा सकता. पौराणिक काल में ऐसे तमाम उदाहरण हैं जिनमें गलत लोगों को गलत तरह से मारा गया. उसको धर्मसम्मत भी कह दिया गया. इनमें अर्जुन द्वारा कर्ण को मारना युद्ध के नियमों के खिलाफथा क्योंकि कर्ण के रथका पहिया जमीन में धंस गया था. श्रीकृष्ण ने कहा कि,‘यहां धर्म महत्त्वपूर्ण है, नियम नहीं.’

इसी तरह से रामायण में राजा बालि को मारने के लिए उसके भाई सुग्रीव को आगे करके धोखा देकर राम द्वारापीछे से मारा गया. इसी तरह से महाभारत में भीष्म, द्रोण, दुर्योधन को भी मारने का तरीका गलत था. मरने वालों को गलत साबित करके गलत तरह से मारने को सही कहा गया.

कानून यह कहता है कि सिद्ध हुए बिना अपराध करने वाला अपराधी नहीं माना जाएगा तो एनकाउटंर जैसा जंगलराज न चलाया जाए. अपराधी को सजा देने के लिए कठघरे तक पहुंचने का काम कानून और संविधान के हिसाब से किया जाए. अगर आरोपियों का एनकांउटर न किया जाए बल्कि उनको पकड़ कर उनसे राज पूछे जाते तो अपराध कम किए जा सकते हैं. एनकांउटर से दहशत फैला कर डराने का काम हो सकता है, अपराध को खत्म नहीं किया जा सकता.

कानून और संविधान का शासन नहीं

प्रयागराज की घटना इसका जीताजागता प्रमाण है. 24 फरवरी,2023 को प्रयागराज में उमेश पाल और 2 सिपाहियों संदीप और राघवेंद्र की हत्या बम और गोली मार कर कर दी गई. उमेश पाल 2005में हुए विधायक राजूपाल हत्याकांड में सरकारी गवाह था. इस हत्याकांड में बाहुबली अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद के खिलाफ आरोप लगा था. वे जेल में थे. अतीक अहमद यह चाहता था कि उमेश पाल इस मुकदमे की गवाही से हट जाए. इसके लिए एक बार उसने उमेश का अपरहण करके धमकी भी दी थी. उमेश को सरकार ने 2 सिपाहियों की सुरक्षा भी दी थी.

सुरक्षा के बाद भी शाम करीब 5 बजे विजय चौधरी, अरबाज, असद, गुलाम और गुडडू मुसलिम ने उमेश पाल पर हमला कर दिया. उमेश पाल और उसके 2 साथी सिपाही संदीप और राघवेंद्र को मार दिया गया. इस घटना पर जब मुख्यमंत्री योगी से सवाल हुआ तो वे क्रोधित हो गए. उनके क्रोध को देख उनकी पुलिस बुलडोजर और बंदूक लेकर चल पड़ी. जनता में एक बड़ा वर्ग इस तरह के तुरंत न्याय की बात से खुश हो जाता है. ऐेसे वर्ग को खुश करने के लिए पुलिस उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी अरबाज का एनकाउंटर कर देती है. पहले एनकाउंटर से ही पुलिस की वाहवाही होने लगती है. दो दिनों बाद पुलिस इस मामले के एक और आरोपी विजय चैधरी को मार देती है.

तुरंत न्याय मांगने वालों की रगरग में बुलडोजरी और एनकांउटरी न्याय घुस गया है. दो एनकाउंटर होने के बाद लोग यह मानने लगे कि जिस तरह से कानपुर के विकास दुबे को लेकर आ रही कार पलट गई और वह मारा गया उसी तरह से अतीक अहमद के साथ भी वही होगा. अतीक अहमद गुजरात की साबरमती जेल से 1,400 किलोमीटर दूर प्रयागराज मुकदमे की सुनवाई के लिए पुलिस द्वारा लाया जाने लगा. जनता मान रही थी कि अब नहीं तो तब पुलिस एनकाउंटर जरूर करेगी.

अतीक जब भी कचहरी जाता तो कानून के रक्षक वकील उसको फांसी देने के नारे लगाते और उस पर बोतल, जूता चप्पल फेंकते. कानून के जानने वाले ही जब गैरकानूनी काम करने लगे तो आम आदमी की सोच को कैसे बदला जा सकता है. इस तरह की घटनाओं से न्याय के प्रति आदर लोगों में खत्म होने लगता है. न्याय के प्रति आदर अपनेआप में पानी पर बहती कागज की नाव जैसा होता है जिसकी रक्षा शासन को करनी होती है. यहां शासन खुद बता रहा है कि उसे न्याय व्यवस्था पर विश्वास नहीं है.वह तो न्याय जैसी मजबूत नाव को डुबो चुका है. जब कचहरी में अतीक पर हमला हुआ तो भी गंभीरता से नहीं लिया गया.

इसका परिणाम यह हुआ कि 17 पुलिसकर्मियों की हिरासत के बीच 3 बदमाशों ने केवल 12सैकंड के अंदर अतीक और अशरफ की हत्या कर दी. इस समय पुलिस दोनों की डाक्टरी कराने प्रयागराज के सरकारी अस्पताल लाई थी. अस्पताल के अंदर पुलिस की मौजूदगी में जिस तरह से यह कांड हुआ उसे देखकर लगने लगा कि देश अब अफ्रीका, सूडान या अफगानिस्तान बनता जा रहा है. जहां गन होल्डिंग रफियन राज करते हैं, उनकी यूनिफौर्म चाहे खाकी हो, गहरी हरी या भगवा कुछ भी हो. हमारे देश में भी संविधान के अनुसार न्याय की व्यवस्था अब खत्म हो गई है. राजा-पंडित-कोतवाल राज चालू है जिसमें जेल, गोली और बुलडोजर की चलती है, संवैधानिक व्यवस्था की नहीं.

सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि हत्या करने वाले 3 बदमाशों में से एक लवलेश तिवारी ने गोली मारने के बाद धार्मिक नारा लगाकर आत्मसर्मपण किया. इसके संबंध कट्टरवादी धार्मिक संगठन से बताए जाते हैं (देखिएबौक्स नबर-2).सभी धर्म इस एकतरफा हिंसा का समर्थन करते हैं. ईराक में अमेरिकी सैनिकों ने क्रूर तरीके से बंदी सैनिकों को मारा था. फर्क यह है कि उन सभी सैनिकों को सजा हुई. उनका समर्थन किसी वर्ग ने नहीं किया. भारत में ऐसे मामलों में राजनीति शुरू हो जाती है. उनका महिमामंडन होने लगता है. एक बड़ा वर्ग उनके पक्ष में खुलकर खड़ा हो जाता है.

आरोपों में घिरी योगी सरकार

समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने कहा, ‘“अतीक 89, 91, 93 में निर्दलीय विधायक बने, फूलपुर से सपा से सांसद रहे. तो क्या कोई गुंडाबदमाश इतने चुनाव जीत सकता है? मैं अतीक का बचाव नहीं कर रहा लेकिन भारत का संविधान किसी को पकड़ कर मारने की इजाजत नहीं देता.’

“अतीक और उस के भाई की हत्या पूरी तरह से सुनियोजित तरीके से की गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह से कहा था कि मिट्टी में मिला देंगे, यह एक तरह से मुख्यमंत्री का आदेश-फरमान था. जो कुछ हुआ है,वह उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ है.”

कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा,“ ‘यूपी में कानून व्यवस्था कैसी है? पहले प्रयागराज में जो कुछ हुआ, सभी ने देखा. अतीक ने बारबार कहा कि वह यूपी जाएगा तो उसका कत्ल हो जाएगा. लेकिन उसकी नहीं सुनी गई.’”

ओवैसी ने आरोप लगाते हुए कहा, “मैंने शुरू से कहा था, उत्तर प्रदेश में रूल औफ लौ के तहत नहीं, रूल औफ गन के तहत सरकार चल रही है. भारत के संविधान पर लोगों का यकीन इससे कम होगा. इसकी निंदा करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. अतीक और अशरफ के मर्डर से भारत का हर नागरिक, जो संविधान पर कानून पर विश्वास करता है, डरा हुआ है. गोली मारकर धार्मिक नारे लगाने वाले को आतंकवादी नहीं कहेंगे? यह एक ‘कोल्ड ब्लडेड’ हत्या है. यह घटना कानूनव्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करती है. आप गोली मारकर धार्मिक नारा क्यों लगा रहे हैं?”

अतीक के बेटे असद अहमद के एनकाउंटर का जिक्र करते हुए एआईएमआईएम चीफ ने कहा, ‘“जो लोग एनकाउंटर का जश्न मना रहे थे, वे शर्म से डूब मरें. किसी को मारकर रूल औफ लौ को कमजोर किया जा रहा है. ये लोग संविधान को कमजोर कर रहे हैं. यह सारी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर आती है, क्योंकिउन्होंने सदन में खड़े होकर बोला था कि मिट्टी में मिला देंगे. मुख्यमंत्री अपने पद से इस्तीफा दें.’”

कांग्रेस नेता प्रियंका गाधी ने कहा, ‘“हमारे देश का कानून संविधान में लिखा गया है, कि कानून सर्वोपरि है. अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए. मगर देश के कानून के तहत होनी चाहिए. किसी भी सियासी मकसद से कानून के राज और न्यायिक प्रक्रिया से खिलवाड़ करना या उसका उल्लंघन करना हमारे लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. जो भी ऐसा करता हैया ऐसे करने वालों को सरंक्षण देता है,उसे भी जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और उस पर भी सख्ती से कानून लागू होना चाहिए. देश में न्याय व्यवस्था और कानून के राज का इकबाल बुलंद हो, यही हम सबकी कोशिश होनी चाहिए.’

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर गंभीर आरोप लगाते कहा,“ ‘बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए योगी सरकार जिम्मेदार है.उत्तर प्रदेश जंगल राज की गिरफ्त में फंस चुका है. यहां कानून और संविधान का शासन नहीं है.’

‘“अपराध की पराकाष्ठा हो गई है, सड़कों पर खुलेआम हत्याएं हो रही हैं. अपराधी बेखौफ हैं. अपराधियों को सत्ताधारी पार्टी का संरक्षण मिला हुआ है. मीडिया के सामने सुनियोजित तरीके से पुलिस के सुरक्षा घेरे के बीच हत्या सरकार की नाकामी है.’

अखिलेश ने सवाल उठाया कि “जब पुलिस सुरक्षा घेरे के बीच सरेआम गोलीबारी करके किसी की हत्या की जा सकती है तो आम जनता कितनी सुरक्षित है, समझा जा सकता है. उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार ने अराजकता का जो माहौल बनाया है, इससे जनता के बीच भय व्याप्त हो गया है. ऐसा लगता है कि कुछ लोग जानबूझकर ऐसा वातावरण बना रहे हैं. उत्तर प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं बची है. लगता है सरकार की साख ही मिट्टी में मिल गई है.”

अखिलेश यादव कहते हैं, ‘“उत्तर प्रदेश में अब अपराध, अपराधियों, गन और पिस्टल की चर्चा होती है. भाजपा ने नफरत फैलाकर समाज को डरा दिया है. आने वाले समय में भाजपा सरकार को यह भारी पड़ेगा. इन सबके लिए मुख्यमंत्रीजी, ठोको मानसिकता की जिम्मेदारी से नहीं बच पाएंगे. उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद योजनाबद्ध तरीके से सत्ता संरक्षण में हत्याएं हो रही हैं. पुलिस हिरासत में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मौतें हो रही हैं. किसी भी लोकतांत्रिक देश में पुलिस अभिरक्षा में इस तरह हत्या नहीं हुई.’”

अतीक अहमद के नाम पर सियासत में घमासन मचा है. इसकी वजह यह भी है कि अतीक ने कम समय में ही अपराध से सियासत का सफर बड़ी तेजी से पूरा किया. वह 5 बार विधायक और एक बार सांसद रहा है. इस कांड की गूंज विदेशों में भी है. वहां की मीडिया ने लिखा कि भारत में कानून बनाने वाले को बीच सड़क मार दिया गया.

गोली से शुरू, गोली से खत्म

अतीक अहमद का जन्म 12 अगस्त,1962 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में हुआ था.अतीक का विवाह शाइस्ता परवीन से हुआ था. इनके 5 बेटे अली, उमर अहमद, असद, अहजान और अबान है. इनमें से असद की मौत पुलिस मुठभेड़ में हो चुकी है. अतीक अहमद इलाहाबाद पश्चिम सीट से लगातार 5 बार विधानसभा का सदस्य चुना गया. 1999-2003 के बीच अतीक अहमद सोनेलाल पटेल की पार्टी ‘अपना दल’ का अध्यक्ष था. 2004-2009 उत्तर प्रदेश की फूलपुर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद बना. अतीक अहमद ने अलगअलग मुकदमों के चलते कई चुनाव जेल में रहकर लड़ा.

अतीक पर संगीन धाराओं में 100 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं. वह जेल के अंदर से ही अपनी आपराधिक गतिविधियों को संभाला करता था. उस पर आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैय्यबा, आईएसआई. और अंडरवर्ल्ड से संबंध होने के भी आरोप लगते रहे हैं. 15 अप्रैल, 2023 कोप्रयागराज में अतीक अहमद को अदालत द्वारा मैडिकल के लिए ले जाते समय अस्पताल के बाहर अतीक और उसके भाई अशरफ अहमद को मीडिया का रूप लेकर आए अपराधी ने सिर में गोली मार की हत्या कर दी. अतीक और उसकेभाई को मारने वाले शूटरों के नाम लवलेश तिवारी, अरुण मौर्य और सनी है.

अतीक अहमद करीब 60 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गया. अतीक अहमद का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था. साल 1979 में इलाहाबाद के चकिया महल्ले में फिरोज अहमद नाम के एक शख्स हुआ करते थे. वे तांगा चलाकर अपने परिवार का खर्चा चलाते थे. उसी फिरोज का बेटा अतीक अहमद था. अतीक अहमद 10वीं की परीक्षा में फेल हो गया. उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था. वह बदमाशी की तरफ बढ़ने लगा. उस से झगड़े होने लगे. धीरेधीरे उसका नाम अतीक अहमद नाम से कुख्यात होने लगा. 17 साल की उम्र में उसने पहली बार अपराध किया था. उस समय इलाहाबाद में चांद बाबा नाम के बदमाश का आतंक फैला हुआ था.

साल 1987 के आसपास की बात है. इलाहाबाद शहर में चांद बाबा का दौर था. उसके नाम से लोगों के मन में खौफ पैदा हो जाता था. क्या नेता और क्या कारोबारी, सभी चांद बाबा के नाम से खौफ खाते थे. आलम यह था कि पुलिस और नेता इस चांद बाबा को मारना तो चाहते थे लेकिन हिम्मत किसी में नहीं थी. अब 2 साल का वक्त गुजरा और अतीक अहमद का दबदबा बढ़ने लगा. लेकिन कोई बड़ी पहचान नहीं थी.

राजनीति ने दिया सहारा

अब पहचान बड़ी करनी थी तो धमाका भी बड़ा होना चाहिए था. सो, अतीक ने वही किया. इलाहाबाद के सबसे बड़े डौन यानी बाहुबली का पता लगाया. तब पता चला 1989 में चांद बाबा का बड़ा नाम है. फिर उसी चांद बाबा की अतीक अहमद ने सनसनीखेज तरीके से हत्या कर डाली. अब जिस चांद बाबा से पुलिस और बड़ेबड़े नेता खौफ खाते थे उसी का बेखौफ अंदाज में मर्डर कर दिया गया. कत्ल करने वाला अतीक अहमद अब खुद सबसे बड़ा बाहुबली बन गया.

इसके बाद अतीक ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल बदलते गए और बड़ेबड़े नाम उसकी क्राइम लिस्ट में जुड़ते गए. साल 2004 में देश के जानेमाने बीजेपी नेता और मंत्री रह चुके मुरली मनोहर जोशी के सबसे करीबी नेता अशरफ की हत्या. फिर 2005 में नएनए विधायक बने राजूपाल की हत्या कराकर अतीक अहमद यूपी की सियासत से लेकर जुर्म की दुनिया में छा गया.

अतीक अहमद का खौफ लोगों के जेहन में उतर आया. पुलिस भी अतीक के पीछे पड़ गई. लेकिन अतीक तो अतीक था. वह कहां पीछे रहने वाला था. अब एक कदम और आगे बढ़कर वह सियासत की दहलीज पर पहुंचने में जुट गया.

साल 1989 में ही वह राजनीति में उतर कर इलाहाबाद की पश्चिमी सीट से विधायकी का निर्दलीय चुनाव जीत कर पहली बार विधायक बन गया. अतीक अहमद ने यह चुनाव भारी अंतर से जीता था. कल तक का गैंगस्टर चुनाव जीत कर विधायक बन गया था. इस जीत के बाद अपराध का राजनीतिकरण तेजी से हुआ. बाद में अतीक अहमद ने समाजवादी पार्टी का दामन पकड़ लिया. इसके बाद अपना दल और बसपा से भी संबंध बनाए. अतीक ने लगातार 5 बार विधायकी का चुनाव जीता. 2004 में फूलपुर संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव लड़कर सांसद बना.

राजूपाल की हत्या से ने बिगाडा खेल

अतीक अहमद के जीवन में सबसे खतरनाक मोड़ साल 2004 में आया. सांसद बनने के बाद अतीक अहमद ने अपनी विधायकी वाली सीट खाली कर दी. अब इस सीट पर उपचुनाव होने वाला था. अतीक अहमद अपने भाई अशरफ अहमद को यह चुनाव लड़ा कर विधायक बनवाना चाहता था. उसका मन था कि परिवार की सीट परिवार में ही रहे. अतीक को यह यकीन था कि उसकी छोड़ी हुई सीट पर उसका भाई ही चुनाव जीतेगा. अशरफ के मुकाबले बहुजन समाज पार्टी से राजू पाल चुनाव लड़ रहा था. अशरफ चुनाव हार गया. राजू पाल विधायक बन गया. राजू पाल जैसे नए नेता की जीत ने अतीक अहमद को अंदर से हिला दिया. उसने उस राजू पाल को जड़ से ही खत्म करने की ठान ली.

25 जनवरी,2005 को राजू पाल की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस हत्याकांड में देवी पाल और संदीप यादव की भी मौत हो गई. इस हत्याकांड में सीधेतौर पर उस समय के सांसद अतीक अहमद और उस के भाई अशरफ का नाम सामने आया. अब अतीक अहमद का जुर्म की दुनिया में नाम और बढ़ गया. उसका मुकाबला करने की हिम्मत अब कोई नहीं कर सकता था. राजू पाल की हत्या के बाद हुए उपचुनाव में उसकी पत्नी पूजा पाल ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस हत्याकांड के बाद अतीक अहमद की कानूनी परेशानियां बढ़नेलगीं.

साल 2012 में अतीक अहमद जेल में बंद था. चुनाव लड़ने के लिए उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दी लेकिन उसका खौफ ऐसा था कि हाईकोर्ट के एक या दो नहीं, बल्कि कुल 10 जज फैसला लेने से ही डर गए. इन 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया. अब आगे भी कुछ कम खौफ नहीं था. 11वें जज ने सुनवाई तो की लेकिन फैसला अतीक अहमद के पक्ष में ही दिया. यानी, अतीक अहमद को जमानत मिल गई. अब जेल से बाहर आकर अतीक अहमद ने चुनाव तो लड़ा लेकिन उसका दबदबा अब पहले जैसा नहीं रहा था. वह चुनाव हार गया.

अतीक अहमद को हराने वाला कोई और नहीं, वही राजू पाल की पत्नी पूजा पाल थी जिसकी 2005 में हत्या कराने के जुर्म में अतीक अहमद जेल में बंद था. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद समाजवादी पार्टी के टिकट पर श्रावस्ती से चुनाव लड़ा लेकिन हार का ही सामना करना पड़ा. उसके मुकाबले भाजपा के नेता ददन मिश्रा चुनाव जीत गए.बाहुबली अतीक अहमद का कद लगातार गिरता गया. इसके बाद भी अपराध की दुनिया से उसका नाता बना रहा. जमीनों पर कब्जे, रंगदारी, अपहरण, फिरौती के कई मामले सामने आए. अतीक अहमद का सबसे खराब दौर तबशुरू हुआ जब उत्तर प्रदेशमें2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार हुई. भाजपा ने सरकार बनाई. योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने.

ताबूत में अंतिम कील बना उमेश पाल हत्याकांड

बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में मुकदमा चल रहा था. यह पहला मामला था जिसमें अतीक अहमद का बाहुबल काम नहीं आ रहा था. राजू पाल हत्याकांड का मुख्य गवाह उमेश पाल था. अतीक अहमद उमेश से कह रहा था कि वह अतीक के खिलाफ गवाही न दे. उमेश पाल इसके लिए तैयार नहीं हो रहा था. तब अतीक के लोगों ने उमेश का अपहरण कर लिया. जब उमेश अतीक के चुगंल से बाहर आया तो उसने गवाही देने की ठान ली. मामला सुप्रीम कोर्ट की जानकारी में आया तो उमेश पाल को सरकारी सुरक्षा दी गई. अब उमेश पाल को लग गया था कि अतीक अहमद उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा.

जिस समय अतीक अहमद जेल में था, उसके बेटों ने अपराध करने शुरू कर दिए. 2 बेटे अली, उमर अहमद जेल में थे. तीसरा बेटा असद बाहर था. 24 फरवरी,2023 को जब उमेश पाल कोर्ट से अपने घर वापस आ रहा था तो अतीक के बेटे असद अहमद ने अपने साथियों के साथ उमेश पर हमला कर दिया. हमला इतना जोरदार था कि उमेश पाल सहित उसकी सुरक्षा में तैनात दोनों सिपाही भी मारे गए.

इस मसले में विधानसभा के सदन में नेता विपक्ष अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार पर खराब कानून व्यवस्था का हवाला देकर आरोप लगाया. जिसके जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘इस माफिया को मिट्टी में मिला देगें.’ यहां से माफिया अतीक अहमद को मिट्टी में मिलाने का काम शुरू हो गया.

उत्तर प्रदेश की पुलिस ने उमेश पाल हत्याकांड के आरोपियों विजय चौधरी, अरबाज, असद, गुलाम को पुलिस एनकाउटर में मार गिराया. जबकि अतीक और अशरफ की हत्या पुलिस हिरासत में3 बदमाशों लवलेश तिवारी,मोहित और अरुण मौर्य ने कर दी.

अतीक और अशरफ इस बात की शिकायत कर रहे थे कि उनको जान से मारने की धमकी दी जा रही है. इसको लेकर एक पत्र भी बंद लिफाफे में अपने वकील को दिया है. यह पत्र उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई को देने के लिए कहा था. अब जब यह पत्र खुलेगा तो घटना से परदा उठेगा. हिरासत में हत्या ने प्रदेश की नहीं, पूरे देश की छवि को खराब करने का काम किया है. विदेशों में भी इसकी आलोचना हो रही है.

मेयर बनतेबनते लेडी डौन बन गई शाइस्ता

बेटे असद के एनकांउटर के बाद अतीक अहमद पूरी तरह से टूट चुका था. लोग यह मान रहे थे कि असद के एनकांउटर के बाद अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन पुलिस के सामने आकर आत्मसमर्पण कर देगी. इसके बाद भी शाइस्ता परवीन सामने नहीं आई. असद के बाद जब अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या 3 बदमाशोंने पुलिस हिरासत में कर दी तब यह पक्का यकीन हो गया था कि शाइस्ता परवीन लोगों के सामने आ जाएगी. शाइस्ता परवीन के हिम्मत की दाद देनी होगी, पति और बेटे की मौत भी उसके इरादों को डिगा नहीं पाई. इतना मजबूत कलेजा किसी औरत का भी हो सकता है,शाइस्ता परवीन ने यह साबित कर दिया.

अतीक अहमद की बीवी शाइस्ता परवीन उमेश पाल हत्याकांड में पुलिस द्वारा नामजद किए जाने के बाद से फरार चल रही है. पुलिस ने शाइस्ता पर 50 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया है. वह पुलिस को चकमा दे रही है. पूरी यूपी पुलिस और एसटीएफ लगातार शाइस्ता के पीछे लगी है. इन लाइनों के लिखे जाने तक वह गिरफ्तार नहीं हुई है. शाइस्ता परवीन की शादी 1996 में अतीक के साथ हुई थी. शाइस्ता के पिता पुलिस विभाग में थे. उसके कुछ करीबी रिश्तेदार अब भी पुलिस में है.

अतीक के जेल जाने के बाद से उसकी जगह बीवी शाइस्ता परवीन अपने पति के कारोबार को संभालने लगी. जिस वजह से शाइस्ता परवीन भी लेडी डौन कही जाने लगी. किस शख्स से क्या रंगदारी मांगनी है, उसे कैसे धमकी दिलानी है…ये सबकुछ वही शाइस्ता तय करती है. शाइस्ता पुलिस को चकमा देने में इतनी माहिर इसलिए है क्योंकि वह खुद पुलिस परिवार से ताल्लुक रखती है. उसका बचपन पुलिस थाने और चैकियों में ही रहा है. शाइस्ता परवीन के पिता का नाम फारूख है. वे पुलिस विभाग में सिपाही थे. थाना परिसर में ही उसका परिवार रहा. बचपन में ही उसने देखा था कि कैसे पुलिस किसी का पीछा करती है. कैसे कोई पुलिस को चकमा देता है. उसे ये सबकुछ बचपन में ही देखने को मिल चुका था.

शादी के बाद उसकी जिंदगी में अपराध की नींव पति अतीक अहमद ने रखी. 2 भाई और 4 बहनों में शाइस्ता सबसे बड़ी है. शाइस्ता परवीन का परिवार इलाहाबाद यानी प्रयागराज के दामुपुर गांव में रहा करता था. बचपन में पिता के साथ वह कई थानों में बने सरकारी पुलिस क्वार्टर में रही थी. शाइस्ता का बचपन और उसके बाद के कई साल प्रतापगढ़ में बीतेथे.

शाइस्ता परवीन की पढ़ाईलिखाई प्रयागराज में हुई है. उसने ग्रेजुएशन किया है.12वीं तक की पढ़ाई किदवई गर्ल्स इंटरकालेज से की है. यह कालेज प्रयागराज के हिम्मतगंज में है. पढ़ाई के बाद वह घर का कामकाज ही देखती थी. अतीक के परिवार से उसके परिवार की पहले से जानपहचान थी. शाइस्ता अतीक अहमद से ज्यादा पढ़ीलिखी है. अतीक और शाइस्ता के कुल 5 बच्चे हैं. इनमें से अब असद की मौत हो चुकी है. उसके बेटों के नाम अली, उमर अहमद, असद, अहजान और अबान हैं.

शाइस्ता का नाम पहली बार उमेश पाल हत्याकांड में सामने आया. पुलिस के मुताबिक उमेशपाल की हत्या शाइस्ता ने ही कराई थी. वह साबरमती जेल में अतीक से मिलने गई थी. वहीं पर अतीक और शाइस्ता के बीच उमेशपाल को मारने की चर्चा हुई थी. इसके लिए अतीक ने शाइस्ता से जेल में ही फोन पहुंचाने की बात कही थी. जेल में फोन पहुंचाने के लिए उसने एक पुलिसकर्मी का नाम भी बताया था. जिसके जरिए कुछ दिनों बाद ही शाइस्ता ने अतीक को फोन पहुंचाया था. अब उसी फोन के जरिए अतीक ने सभी शूटर्स से बात की. फिर शूटर्स ने अशरफ से मुलाकात की. इसके बाद फाइनल साजिश तैयार हुई.

शाइस्ता नहीं चाहती थी कि बेटा असद इस घटना में हिस्सा ले. पर अतीक नहीं माना, वह बोला कि ‘असद शेर का बेटा है’. इस पर शाइस्ता तैयार हो गई. उसने असद से कहा था कि वह गाड़ी से बाहर न निकले जिससे उसकी कोई पहचान न कर सके. असद ने यह बात नहीं मानी जिसके कारण असद की फोटो सामने आ गई. वरना असद की पहचान न हो पाती.

शाइस्ता ने जनवरी 2023 में राजनीति में उतरने का फैसला किया. बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर उसको प्रयागराज से मेयर का चुनाव लड़ना था. इसी बीच ओबीसी मसले पर निकाय चुनाव टल गए. समय पर मेयर का चुनाव हो जाता तो शाइस्ता मेयर का चुनाव लड़ती. निकाय चुनाव टल गए और इसी बीच उमेशपाल की हत्या हो गई. वहां से समय का चक्र घूम गया और शाइस्ता मेयर बनतेबनते रह गई. अब बसपा ने शाइस्ता का नाम मेयर प्रत्याशी से हटा दिया है.

अतीक के हत्यारों का बजरंग दल कनैक्शन

अतीक और अशरफ की हत्या करने वाले तीनों युवक 20 से 23 साल उम्र के हैं. युवाउम्र में जब इनको पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देना चाहिए तो ये हत्या करके शोहरत हासिल करना चाहते हैं. धर्म का नशा जिस तरह से युवा को तबाह कर रहा, यह इस बात का भी उदाहरण है.

अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या करने वाले तीनों बदमाश युवा हैं. मोहित उर्फ सनी नामक युवक की उम्र 23 साल है. इसने ही अतीक पर पहली गोली चलाई थी. हमीरपुर जिले का रहने वाला मोहित शातिर अपराधी है. इसके खिलाफ इसी उम्र में 14 मुकदमे कायम हैं. इनमें हत्या के प्रयास और लूट जैसे मुकदमें भी हैं.

लवलेश तिवारी नामक युवक बांदा जिले का रहने वाला है. इसकी उम्र 22 साल है. इसके संबंध बजरंग दल से बताए जाते हैं. हालांकि बजरंग दल ने इस बात से इनकार किया है. सोशल मीडिया पर इसकी एक फोटो भारतीय जनता पार्टी युवा मोरचा के पूर्व अध्यक्ष पुष्कर द्विवेदी के साथ देखी गई. पुष्कर द्विवेदी की फोटो प्रधनामंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी देखी गई.

लवलेश तिवारी ने अपने फेसबुक पेज पर अपने परिचय में खुद को जिला सह सुरक्षा प्रमुख बजरंगदल के रूप में लिख रखा है.उसने लिखा है कि ‘हम शास्त्र वाले ब्राहमण नहीं,शस्त्र वाले ब्राह्मणहैं.’ लवलेश एक लड़की को थप्पड़ मारने के आरोप में एक साल जेल में रहा है. अतीक की हत्या के बाद लवलेश के पिता ने उसको नशेड़ी बताते कहा था कि वह परिवार से संबंध नहीं रखता. जबकि लवलेश के फेसबुक पर परिवार के साथ कई फोटो मौजूद हैं. लवलेश का परिवार किराए के जिस मकान में रहता था, पुलिस की पूछताछ के बाद वे उसे छोड़ कर कहीं और चले गए.

अतीक की हत्या में शामिल तीसरा अपराधी अरुण कुमार मौर्य की उम्र 18 साल है. इसके मातापिता की मौत हो चुकी है. इस पर कासगंज में जीआरपी के एक सिपाही की हत्या का आरोप है. पुलिस के सामने तीनों अपराधियों ने घटना का कारण बड़ा अपराधी बनकर शोहरत हासिल करना बताया. जिसने भी यह थ्योरी सुनी, उसके गले के नीचे नहीं उतर रही. पुलिस तमाम तरह से मामले की जांच कर रही है. हत्या में विदेशी पिस्टल गिरसान का प्रयोग हुआ. जो बेहद खतरनाक और आटोमेटिक थी. जिस के वार से 12 सैकंड के कम समय में 2बाहुबली अतीक और अशरफ ढेर हो गए. इतना कम समय था कि पुलिस जब तक सतर्क हुई, तब तक देर हो चुकी थी. अतीक और अशरफ की कहानी मिटटी में मिल चुकी थी.

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