दिल में राहुल जैसे ही संसद की हाउसिंग कमेटी ने राहुल गांधी को घर खाली करने का तुगलकी हुक्म दिया, कांग्रेसियों के ‘मेरा घर आप का घर’ अभियान के तहत कई कांग्रेसियों ने उन्हें घर देने की पेशकश कर डाली. इन में से एक दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में रहने वाली रानी गुप्ता भी हैं जिन्होंने अपना 4-मंजिला मकान ही अपने नेता के नाम कर दिया. बकौल रानी, राहुल गांधी हमारे दिल में रहते हैं. वहीं, अयोध्या के हनुमान गढ़ी के एक साधु संजय दास ने भी उन्हें अयोध्या में रहने का निमंत्रण दे डाला है.

यह लोकप्रियता भगवा गैंग के लिए न केवल चिंता का बल्कि खतरे का भी विषय होना चाहिए क्योंकि सांसदी जाने के बाद राहुल के चाहने वालों की तादाद बढ़ी है और लोग पूरे एपिसोड को मोदी-शाह की ज्यादती और व्यक्तिगत खुन्नस मानते हैं. लोकतंत्र में अकसर उलटे बांस बरेली को लद जाते हैं, इसलिए यह मामला भगवा गैंग पर भारी भी पड़ सकता है. सिद्धू से सबक चार दिन जेल में क्या गुजारे, कांग्रेसी नेता और कौमेडियन व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू को बाहर आते ही सब से पहले लोकतंत्र खतरे में दिखा.

फिर से पंजाब में अपनी जमीन और संभावनाएं तलाश रहे सिद्धू को जेल में रहते यह एहसास तो हो ही गया होगा कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता क्योंकि उन की सुध लेने कोई नहीं पहुंचा था, हालांकि खुद सिद्धू भी कभी किसी के सगे नहीं हुए. बहैसियत नेता, खिलाड़ी और कौमेडियन, सिद्धू से सीखने को बहुतकुछ है. लेकिन न सीखना भी एक सबक है कि गुस्सा और आवेश नियंत्रण के बाहर हो जाए तो नुकसान खुद का ही करते हैं.

27 दिसंबर, 1988 को उन्होंने पटियाला में पार्किंग विवाद को ले कर एक बुजुर्ग को मुक्का मार दिया था जिस से उस की मौत हो गई थी. अच्छा तो यह होगा कि वे लोकतंत्र को उस के हाल पर छोड़ते, गुस्से के खतरों से लोगों को आगाह करें. माया के हो गए श्रीराम कल की धाकड़ और सख्त तेवरों वाली दलित नेत्री मायावती इतनी बेचारी हो गई हैं कि उन के धुरविरोधी भी उन पर तरस सा खाते दिखते हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव उन में से एक हैं.

रामायणविरोधी हो चले सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने जैसे ही 90 के दशक के एक चर्चित नारे ‘जब मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम…’ को गुंजाया तो मायावती भड़क उठीं. उन्होंने सपा पर ही आरोप मढ़ दिया कि उस दौर में अपरकास्ट अयोध्या और राममंदिर विरोधी नारे सपा ने बनाए थे और बदनाम बसपा को किया. ऊंची जाति वालों की पिछलग्गू बनती जा रहीं बसपा प्रमुख अपनी ही पार्टी के उसूल भूलने की सजा भुगत भी रही हैं जो दलितों के दम पर सत्ता में आईं और अब दलितों की बदहाली को शंबूक वध की तरह देखती रहती हैं. देखना दिलचस्प होगा कि वे पूजापाठ के लिए अयोध्या प्रभु श्रीराम से क्षमा मांगने कब जाती हैं. राजनाथ का रामराज्य अनुपयोगी तो नहीं होते लेकिन फालतू हो चले बुजुर्गों को घरों में स्वच्छंदतापूर्वक भजनपूजन आदि में लीन कर दिया जाता है जिस से वे और खुराफात न करें.

मसलन, कौन सी सब्जी पक रही है, बहू दोपहर में कहां गई थी, बेटा देररात शराब पी कर तो नहीं आया, पोतापोती मोबाइल पर पोर्न फिल्में तो नहीं देख रहे और पड़ोस वाले शर्माजी की बेटी का अफेयर अब किस से चल रहा है वगैरहवगैरह. भाजपा में 70 पार कर चुके रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को ऐसा ही एक नेक काम ‘राम राज्य बस आ ही रहा है’ का ढोल पीटने का सौंप दिया गया है जो हर जगह मोदी को राम साबित करने की कोशिश करते रहते हैं. इस से फायदा यह है कि वे अब प्रधानमंत्री बनने की नहीं सोचते, पार्टी के भीतर और बाहर की गतिविधियों में दखल नहीं देते. उन की कोशिश यह है कि 24 के लोकसभा चुनाव में उम्र की कुल्हाड़ी से बस उन का टिकट न कटे.

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