रेटिंगः दो़ स्टार
निर्माताः अभिमन्यु सिंह और रुपाली कादयान
लेखक:साइमन फैंटुजो और विलियम बोर्थविक
निर्देशक:रॉन स्कैल्पेलो
कलाकारःनसीरुद्दीन शाह , अदिति राव हैदरी,आशिम गुलाटी ,ताहा शाह,शुभम मेहरा,संध्या मृदुल,राहुल बोस,जरीना वहाब, दीपराज राणा और धर्मेंद्र व अन्य
अवधिः लगभग 38 से पैंतालिस मिनट के दस एपीसोड,कुल सात घंटे
ओटीटी प्लेटफार्म: जी 5, तीन मार्च 2023 से

हमारे देश में मुगलिया सल्तनत का एक लंबा इतिहास रहा है. मुगलिया सलतनत में सबसे जयादा खून बहा. सल्तनत के ताज को हासिल करने के लिए भाई ने भाई का खून किया. ऐसे मुगलिया सल्तनत और खासकर बादषाह अकबर को लेकर अब तक कई फिल्में व सीरियल बन चुके हैं. यहां तक कि के. आसिफ, कमाल अमरोही, संजय लीला भंसाली और आशुतोश गोवारीकर जैसे दिग्गज भारतीय फिल्मकार इसी विशय पर फिल्में बन चुके हैं. खैर, इसी मुगलिया सल्तनत के इतिहास पर अब फिल्मकार अभिमन्यू सिंह एक वेब सीरीज ‘‘ताजः डिवाइडेड बाय ब्लड’’ लेकर आ रहे हैं, जिसके पहले सीजन के दस एपीसोड तीन मार्च से ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘जी 5’’ पर स्ट्रीम हो रहे हैं. पहले सीजन की कहानी सम्राट जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर और उनके तीनों बेटों के इर्द गिर्द घूमती है.

इसमें सल्तनत के वारिस, मोहब्बत से लेकर इंतकाम तक की सेक्स व खून खराबा से भरपूर अति षुष्क कहानी है. इसका कैनवास इतना बड़ा है, जिसे देखने का लुत्फ बड़े परदे पर ही आ सकता है. फिल्मकार को इतनी समझ तो होनी चाहिए कि किस विशय को किस प्लेटफार्म पर पेश किया जाना चाहिए. दूसरी बात इस वेब सीरीज में धर्मेंद्र, नसिरूद्दीन शाह व अदिति राव हादरी जैसे कई दिग्गज कलाकार हैं, मगर अफसोस यह सभी इस सीरीज की सबसे बडी कमजोर कड़ियां ही हैं. इतना ही नही हम इस बात की चर्चा नही कर रहे है कि इतिहास कितना सही या गलत दिखाया गया है. क्योंकि अकबर के संबंध में आम इंसान जितना जानता है, उससे इस वेब सीरीज की कहानी कोसों दूर है. मगर यह ऐसी वेब सीरीज है, जिसे न देखने का किसी को मलाल भी नही होना चाहिए.

कहानीः

वेब सीरीज ‘ताज डिवाइडेड बाय ब्लड’ की शुरुआत मुगल सलतनत के नए युवा बादषाह अकबर (नसिरूद्दीन षाह) से होती, जिन्हे बड़ा बेटा होने के चलते ताज मिला. जिससे उनके छोटे भाई मिर्जा हाकिम नाराज हैं. वैसे अकबर ने अपने भाई मिर्जा हाकिम को लाहौर की जागीर दे रखी है. पर मिर्जा हाकिम नाराज चल रहे हैं. बादषाह की कुर्सी पर बैठने के बाद अकबर ने कई जंग फतह कर इस बात को साबित कर चुके हैं कि वही इस सल्तनत के ताज के काबिल थे और हैं. अकबर ने चित्तौड़ पर हमला कर उसके सेनापति को मार डालने के साथ ही तीस हजार लोगो की लाषें बहायी. मगर उनकी अपनी कोई औलाद नही है. जबकि वह एक दो नहीं तीन निकाह कर चुके हैं. बादषाह अकबर, शेख सलीम चिश्ती

इसके बाद कहानी आगे बढ़ जाती हैं. अब अकबर के तीन बेटे हैं. लेकिन अब मुगलिया स (धर्मेंंद्र) से मिलकर उनसे दुआ करने की अपील करते हैं.ल्तनत के बादशाह अकबर के जीवन की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह अपने तीन बेटों सलीम (आषिम गुलाटी), मुराद (ताहा षाह बादुषा) व दनियाल (षुभम कुमार मेहरा) में से किसे अपना वारिस चुनें. क्यांेकि जब उन्हे राज सिंहासन मिला था, उस वक्त जो कुछ घटा था, उस इतिहास को वह दोहराना नही चाहते. इसलिए अकबर फैसला करते हैं कि मुगलिया तख्त का वारिस उसकी काबिलियत देख कर चुना जाएगा, सिर्फ उम्र में बड़े होने के चलते ताज नहीं मिलेगा.अकबर के इस फैसले के बाद तीनों बेटों के बीच इस बात की दावेदारी शुरु हो जाती है कि तख्त का असली वारिस कौन होगा ?

बड़ा बेटा सलीम हमेशा नशे में धुत हरम की कनीज के साथ अय्याशी में डूबा रहता है. मंझला बेटा मुराद बहादुर है, उसे लड़ाई के सारे तौर तरीके पता है, लेकिन उसके अंदर रहम नहीं है. जबकि सबसे छोटा बेटा दनियाल पांचों वक्त का नमाजी है और समलैंगिक है. दनियाल को यही बताया गया है कि उसकी मां उसे जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गयी थीं. यॅूं तो अकबर अपनी तरफ से प्रयासरत रहते हैं कि किसी तरह सलीम को अपनी जिम्मेदारी का एहसास हो, मुराद रहमदिल बने और दनियाल लड़ाई के तौर तरीके को समझ सके, लेकिन अकबर की अपेक्षाओं पर कोई भी खरा नहीं उतरता है. इन तीनों बेटों के साथ अकबर के दरबार के नौ रत्नों में से एक एक चिपके हुए हैं और तीनों अपनी अपनी चाले भी चल रहे हैं.

तो दूसरी तरफ हाकिम मिर्जा, अकबर को काफिर बताते हुए उनके खिलाफ जंग का ऐलान करता है, जिसे सबक सिखाने के लिए मुराद के नेतृत्व में सेना जाती है. जहां मिर्जा हाकिम को भागने में दनियाल मदद करता है. पर यहीं से तीनों भाईयों सलीम, मुराद व दनियाल के बीच दूरियां बढ़ जाती हैं.

दनियाल की मां अनारकली , बादषाह अकबर की सबसे कम उम्र की कनीज रही हैं. जिन्हे 14 साल की उम्र से अकबर ने अपने हरम में गुप्त जगह पर कैद कर रखा है और जब उनकी इच्छा होती है, तब वह अनारकली से मिलने जाते रहते हैं. एक दिन सलीम और अनारकली की मुलाकात होती है और दोनों में प्यार हो जाता है. लेकिन जब सलीम को पता चलता है कि अनारकली तो उनके छोटे भाई दनियाल की मां हैं. तब सलीम, अनारकली से संबंध खत्म करने की बात करता है. तभी इसकी जानकारी अकबर को मिल जाती है. अकबर सलीम सल्तनत से बेदखल, अनारकली को जिंदा दीवार में चुनने और अनारकली से सलीम के मिलने में मदद करने के जुर्म में अकबर सल्तनत के सेनापति मान सिंह (दिगंबर प्रसाद) के बेटे व सलीम के दोस्त दुर्जन सिंह को फांसी की सजा देते हैं.

बहरहाल, कहानी में कई मोड़ आते रहते हैं. अकबर के दरबारी नौ रत्न मे से एक बदायुनी (आयम मेहता) अपनी चाल चलकर व जंगल में रहने वाले बंगाल के कुछ साथियों की मदद से धोखे से महाराणा प्रताप को मरवाने के बाद मुराद को भी सांप का जहर पिलाकर मौत दे देता है. और अकबर को सच पता नही चलता. दनियाल खुद अपनी मां अनारकली की हत्या कर अपने भाई सलीम को जंगल में मरणासन्न छोड़कर अकबर के पास पहुॅचता है. मिर्जा हाकिम(राहुल बोस) को जेलसे भगाकर उनके हाथों बीरबल (सुबोध भावे) की हत्या करवा देता है. यानी कि मुगलिया सल्तनत में गंदी राजनीति, विश्वासघात और खूनी पारिवारिक झगड़े की कहानी है -‘‘ताज डिवाइडेड बाय ब्लड. ’’

लेखन व निर्देशनः

वेब सीरीज ‘‘ताजः डिवाइडेड बाय ब्लड’’ उस वक्त आयी है, जब देश में मुगल ‘आक्रमण कारियों‘ को न सिर्फ लगातार बदनाम किया जा रहा है, बल्कि उनकी ऐतिहासिक उपस्थिति को मिटाने की कोशिश की जा रही है. तब इस विशय पर यह सीरीज अकबर को तमाम विरोध के बावजूद हर धर्म को समान दृष्टि से देखने वाले बादषाह की तरह पेश करने का असफल प्रयास करती है. इस वेब सीरीज में अकबर खुद को ख्ुादा से भी बढ़कर पेश करते हुिए ‘दीन ए इलाही’ नामक नए धर्म की नींव भी रखते हैं.

लगभग सात घ्ंाटे की अवधि वाली यह पूरी वेब सीरीज सिरदर्द के अलावा कुछ नही है. इतिहास के पन्नों ही नही उस दौर की किवदंतियों में सलीम और अनारकली के प्रेम की मिसाल दी जाती है. लेकिन इस सीरीज में सलीम व अनारकली की प्रेम कहानी को ठीक से चित्रित ही नही किया गया है.

ट्रेलर लांच के दौरान सीरीज के निर्माता अभिमन्यू सिंह ने बताया था कि इस सीरीज के लिए उन्हें भारत में कोई अच्छा निर्देशक नही मिला, इसीलिए उन्होने निर्देशन की जिम्मेदारी हौलीवुड निर्देशक राॅन स्कैल्पेलो को सौंपी है. ऐतिहासिक प्रतिष्ठित स्मारकों, स्थान, भव्य सेट, कुछ रीयल लोकेशन, लोगों की भीड़, जानवर, बारूद, युद्धक्षेत्र, के साथ बड़ी भव्यता के साथ फिल्मायी गयी इस वेब सीरीज में बतौर निर्देशक राॅन स्कैल्पेलो ने काफी निराश किया है. क्यांेकि हौलीवुड निर्देशक राॅन स्कैल्पेलो को भारतीय इमोशन व अहसासों की कोई समझ ही नही है.

देश में जिन महाराणा प्रताप की वीरता की लोग आज भी शपथ लेते हैं, उनकी वीरता का कोई चित्रण नही है. अफसोस की बात यह है कि महाराणा प्रताप को बंदूक से लड़ते हुए दिखाया गया है. इतना ही नही महाराणा प्रताप की मृत्यू भी शिकार खेलने के दौरान दिखाई गई है. वैसे महाराणा प्रताप के किरदार में दीपराज राणा का चयन भी गलत है. यॅूं तो फिल्मकार ने सलीम चिष्ती, अकबर, जोधा सहित किसी भी किरदार के लिए सही कलाकार का चयन नही किया.

इस सीरीज में धर्म किस तरह आम लोगों के साथ ही षासक को अंधा कर देता है, इसका खूबसूरत चित्रण है. फिर चाहे वह मिर्जा हाकिम हों या दनियाल. दोनों इस्लाम धर्म गुरूआंे के हाथ की कटपुटली ही नजर आते हैं. मगर सीरीज इस पर कुछ प्रतिक्रिया देने की बजाय खामोश नजर आती है.

फिल्म के संवाद काफी सतही हैं. मसलन-‘जंग होगी तो खून बहेगा, चाहे अपना या दुष्मन का. ’ अथवा ‘लाषों पर खड़ी हुई फतह का क्या जष्न’, ‘राज परिवारों में षादियां सियासत के लिए होती हैं, मोहब्बत के लिए नहीं. ’अथवा ‘‘जरुरत से ज्यादा यकीन इंसान को अंधा भी बना सकता है. ’ इस तरह की वेब सीरीज में जिस तरह के जोषीले संवाद होने चाहिए थे, उनका घोर अभाव है. इतना ही नही यह वेब सीरीज रोमांचित भी नही करती.

अनारकली को लेकर जो कहानी बतायी गयी है, उससे इतिहासकार कितना सहमत होंगे, कहा नही जा सकता. इस सीरीज में काल्पनिक दृष्यों की भरमार नजर आती है. लेखक क्रिस्टोफर बुटेरा, विलियम ब्रोथविक, साइमन फैंटाजो बुरी तरह से मात खा गए हैं. पांचवें एपीसोड के बाद लेखन मंे दोहराव नजर आता है.

अभिनयः

aसलीम चिष्ती के किरदार में सर्वाधिक निराश करते हैं अभिनेता धर्मेंद्र. उनका शरीर अब उनके जुनून का साथ नहीं दे रहा. अकबर के किरदार में नसीरुद्दीन शाह का अभिनय भी निराषाजनक है. कम से कम नसिरूद्दीन षाह से इतने घटिया अभिनय की उम्मीद नही की जा सकती. अकबर में जो जोश था, वह उनमें एक भी दृष्य में नजर नही आता. वह कहीं से भी मुगलिया सल्तनत के बादषाह अकबर नही लगते. अकबर के रूप में उनका गेटअप शहंशाह कम और अल्बर्ट आइंस्टीन जैसा ज्यादा दिखता है. सलीम के किरदार में आषिम गुलाटी नही जमे. अनारकली के किरदार में अदिति राव हादरी भी निराश करती है. एक दो दृष्य में वह खूबसूरत नजर आयी हैं, मगर प्यार में डूबी अनारकली कहीं नजर नही आती. गुस्सैल व क्रूर राज कुमार मुराद के किरदार में ताहा शाह बादुशा का अभिनय ठीकठाक है. पर अभी भी उन्हे काफी मेहनत करने की जरुरत है. खुद से डरने वाले विनम्र स्वभाव के दानियाल के किरदार में षुभम कुमार मेहरा अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. अकबर के गद्दार भाई मिर्जा हकीम के रूप में राहुल बोस भी अच्छे लगे हैं. अफसोस की बात यह है कि एक भी किरदार 15 वीं या सोलहवीं सदी का नजर नही आता. हर किरदार की बौडी लैंगवेज व बातचीत का सलीका आधुनिक ही है.

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