यह आज का कठोर सच है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र दामोदरदास मोदी और उनकी सरकार का एक ही लक्ष्य है सभी “संवैधानिक संस्थाओं” को अपने पाकेट में रख लेना और अपने मनोनुकूल देश को चलाना. किसी भी तरह के विरोध को नेस्तनाबूत कर देना.
देश के संविधान की शपथ लेकर सत्ता में आए भारतीय जनता पार्टी के यह चेहरे ऐसा प्रतीत होता है वस्तुतः संविधान पर आस्था नहीं रखते, जिस तरह इन्होंने अपने भाजपा के संगठन में उदार चेहरों को हाशिए पर डाल दिया है वही स्थिति यहां भी कायम करना चाहते हैं. यह देश को उस दिशा में ले जाना चाहते हैं जो बहुत कुछ पाकिस्तान और तालिबान की है. यही कारण है कि अब कार्यपालिका, विधायिका के साथ चुनाव आयोग, सूचना आयोग को लगभग प्रभाव में लेने के बाद यह उच्चतम न्यायालय अर्थात न्यायपालिका को भी अपने मनोनुकूल बनाने के लिए बड़े ही उद्दंड रूप में सामने आ चुकी है.
दरअसल, भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा राष्ट्रीय स्वयं संघ से अनुप्राणित होती है जो देश की आजादी और देश को संजोने के लिए अपने प्राण देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,भगत सिंह, डॉक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर जैसे नायकों के विचारधारा से बिल्कुल उलट है. और जब कोई विपरीत विचारधारा सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होती है तो वह लोकतंत्र पर विश्वास नहीं करती बल्कि तानाशाही को अपना आदर्श मानकर आम लोगों की भावनाओं को कुचल देना चाहती है और अपने विरोधियों को नेस्तनाबूद.
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कोलोजियम से कष्ट है
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आज सबसे ज्यादा कष्ट केंद्र में बैठी नरेंद्र मोदी सरकार को उच्चतम न्यायालय के कोलोजियम सिस्टम से है. भाजपा के नेता या भूल जाते हैं कि जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी अथवा अन्य दल तब भी यही सिस्टम काम कर रहा था क्योंकि यही आज की स्थिति में सर्वोत्तम है इसे बदलकर अपने अनुरूप करने की कोशिश देश हित में लोकतंत्र के हित पर नहीं है. कांग्रेस ने सोमवार को केंद्र सरकार पर न्यायपालिका पर कब्जा करने के लिए उसे डराने और धमकाने का आरोप लगाया है कांग्रेस पार्टी ने यह आरोप केंद्रीय कानून किरण रिजीजू की ओर से प्रधान न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड़ को लिखे उस पत्र के मद्देनजर लगाया, जिसमें रिजीजू ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कालेजियम में केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव दिया है.
रिजीजू ने प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग करते हुए कहा है कि इससे न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही लाने में मदद मिलेगी. इस पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘ उपराष्ट्रपति ने हमला बोला. कानून मंत्री ने हमला किया. यह न्यायपालिका के साथ सुनियोजित टकराव है, ताकि उसे धमकाया जा सके और उसके बाद उस पर पूरी तरह से कब्जा किया जा सके.’ उन्होंने कहा कि कालेजियम में
सुधार की जरूरत है, लेकिन यह सरकार उसे पूरी तरह से अधीन करना चाहती है. यह उपचार न्यायपालिका के लिए विष की गोली है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस मांग को बेहद खतरनाक करार दिया। उन्होंने ट्वीट किया -” यह खतरनाक है. न्यायिक नियुक्तियों में सरकार का निश्चित तौर पर कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए.” भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा इतनी अलोकतांत्रिक है कि वह न तो विपक्ष चाहती है और ना ही कहीं कोई विरोध अवरोध यही कारण है कि सत्ता में आने के बाद वह सारे राष्ट्रीय चिन्ह और धरोहर जो स्वाधीनता लड़ाई से जुड़ी हुई है अथवा कांग्रेस पार्टी से उन्हें धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है इसके साथ ही सबसे खतरनाक स्थिति है कि आज सत्ता बैठे हुए देश के जनप्रतिनिधि देश की संवैधानिक संस्थाओं को सुनियोजित तरीके से कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं और चाहते हैं कि यह संस्था हमारी जेब में रहे हम जो चाहे वही होना चाहिए यह हमने देखा है कि किस तरह चाहे वह राष्ट्रपति हो अथवा उपराष्ट्रपति अथवा राज्यपालों की नियुक्तियां भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार ऐसे चेहरों को इन कुर्सियों पर बैठा रही है जो पूरी तरह अनुकूल है. एक बेहतर लोकतंत्र के लिए विपक्ष कहो ना उतना ही जरूरी है जितना कि देश को गति देने के लिए सत्ता मगर अब यह प्रयास किया जा रहा है कि विपक्ष खत्म कर दिया जाए और संवैधानिक संस्थाओं को अपने पॉकेट में रख कर देश को एक अंधेरे युग और ढकेल दिया जाए जहां हम जो चाहे वही अंतिम सत्य हो.