एक दिन मेरी सहेली अनु अपनी सास के साथ गोपाष्टमी की पूजा करने गई थी. कहते हैं कि गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा करनी चाहिए. उन के घर के नीचे ही गाय चरते हुए मिल जाती थी. सामने गाय को देख कर सास पूजा के लिए आगे बढ़ीं.अनु को गाय की हरकत कुछ ठीक नहीं लगी. वह बारबार अपनी पूंछ हिला रही थी और गरदन भी झटका रही थी. अनु को डर लगा. उस ने गाय को खाना दिया और सास से वापस चलने के लिए बोलने लगी पर सास नहीं मानी.
सास ने कहा, ‘‘जब तक गाय को रोली से टीका न लगा दें, पूजा अधूरी रहेगी. सास ने आगे बढ़ कर ज्योंही गाय को टीका लगाना चाहा, गाय ने तेजी से गरदन झटक दी. फलस्वरूप, सास नीचे गिर पड़ी? और उन के पांव की हड्डी टूट गई. बड़ी मुश्किल से उन्हें अस्पताल ले जाया गया. हमारे घर के सामने किराए पर रहने वाले एक सज्जन के छोटे बेटे ने कुएं में कूद कर आत्महत्या कर ली. वह अपने पीछे अपनी पत्नी व 2 साल का एक बच्चा छोड़ गया. ऐसा सुनने में आया कि वह काफी दिनों से मानसिक तनाव में था. वह परिवार 5-6 महीने पहले ही यहां रहने आया था. इसी वजह से हमारी उन से अधिक पहचान नहीं थी. उस को अंतिमक्रिया पर ले जाने से पहले रीतिरिवाजों के नाम पर किए गए ढकोसलों ने मन को बहुत आहत किया.
लोगों की भारी भीड़ के सामने बाहर ही उस की पत्नी को लंबे घूंघट में बुला कर पति के पैरों के पास बिठा कर जाने क्याक्या रीतियां करवाई गईं. पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. परंतु समाज के ठेकेदार, उन के रिश्तेदार बड़ी ही निर्दयता से उस से सभी रीतियां निबटाने को कह रहे थे. मानो, उस का विधवा हो जाना कोई अपराध हो या उस की वजह से ही उस के पति ने जान दी हो. उस के दुख व संवेदनाओं से किसी को कोई मतलब ही न था. पूरे समाज के सामने निर्ममता से उस के हाथों की चूडि़यां तुड़वाना बेवजह दी गई किसी सजा से कम नहीं लग रहा था. उस के प्रति संवेदना व्यक्त करने के बजाय, उसे ढांढ़स बंधाने के बजाय वे लोग अपनी कुरीतियों को पूरा करवाने में लगे थे. मानो, वह इंसान न हो कर कोई मशीन हो.
अपने भाई के सीने से लगी वह दुखियारी जारजार रो रही थी. मगर किसी को उस के दुख की परवा न थी. परवा थी तो बस रीतिरिवाजों की. रीतिरिवाजों के नाम पर इंसान का इस तरह मानसिक व शारीरिक शोषण होते देख मानवता वाकई शर्मसार हो गई.
पूनम पाठक