मल्लिकार्जुन खडग़े को बैलट से कांग्रेस का अध्यक्ष बनवाने का सोनिया, प्रियंका और राहुल का कदम चाहे नौटंकी लगे पर यह उस नौटंकी से बहुत बेहतर है जिस से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सर्वसंचालक, भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष या भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री चुने जाते हैं. लोकतंत्र एक नाटक से कम नहीं हैं जिस में जीतता वह है जिस के पीछे कोर्ई राजनीतिक परिवार, सामाजिक धर्म या जाति, मोटा बिजनैसमैन हो. हां, कभीकभी बराक ओबामा सा जीत पाता है जो बिना किसी खास पृष्ठभूमि व रंग के बावजूद अमेरिका जैसे देश का राष्ट्रपति बना जो अब हर रोज बढ़ती श्वेत कट्टरता की ओर जा रहा है.
लोकतंत्र में राष्ट्र का नेता चुनना आसान नहीं है. जिसे जनता की राय कहा जाता है वह अपनेआप में आधाअधूरी होती है. अधिकांश देशों में बहुमत पद पाने वाले के खिलाफ वोट देता है पर चूंकि जीतने वाले के वोट सब से अधिक होते हैं, सत्ता उसे सौंप दी जाती है. जहां सत्ता के लिए सीधा चुनाव न हो और संसद चुनती हो वहां तो चुने हुए सांसदों में भी वह सत्ता पा जाता है जिस के पास सब से अधिक सांसद हों चाहे वे बहुमत में हों या न.
मल्लिकार्जुन खडग़े के चुनाव का माखौल उड़ाने वाले क्या बता सकते हैं कि 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री चुना था तो कितनों ने वोट दिया था. भाजपा संसदीय समिति में भी काफी आवाजें उन के विरुद्ध थीं और इसीलिए लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी जैसों को नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आते ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था.
मल्लिकार्जुन खडग़े 80 वर्ष की आयु में कांग्रेस में कोई नई जान फूंक पाएंगे, इस का कोई विश्वास नहीं है क्योंकि जैसा अब ‘भारत जोड़ो’ यात्रा में दिख रहा है, देश का बेरोजगार, महंगाई से त्रस्त, जातीय व धार्मिक भेदभाव से डरा हुआ युवा ही अब उस भीड़ में दिख रहा है जो राहुल गांधी के साथ मीलों चल रहा है.
फिर भी गांधी परिवार को अध्यक्ष पद की रोज की चिकचिक से फुरसत तो मिल गई और वे अपने इतिहास और पृष्ठभूमि का उपयोग करने का समय निकाल सकेंगे. राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अध्यक्ष पद के चुनाव या गुजरात व हिमाचल प्रदेश के चुनावों में भाग न लेने का फैसला कर के ठीक किया है कि अवसर है कि कांग्रेस में नया खून सामने आए.
मल्लिकार्जुन की आयु, उन का दलित होना कांग्रेस हो सकता है भुना ले. दलित आज भी सताए जा रहे हैं और बहुजन समाज पार्टी उन के हितों का ध्यान रखने में बुरी तरह असफल रही है. वैसे, कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी को जिंदा रहना अपनेआप में आश्चर्य है पर जब पर्याय कट्टरवादी और विभाजक हो तो कम से कम दूर की सोचने वालों को तो राहत मिलती है. कोर्ई देश या समाज नारों, व्यक्तिपूजा, पूजापाठ से पनपता या बढ़ता नहीं, समाज तो सुरक्षा के एहसास से पनपता है, बराबरी के अवसरों से पनपता है, आसान कानूनों से पनपता है. मल्लिकार्जुन इस तरह के लोगों को एक छत ने नीचे रख सकें, तो भी काफी रहेगा.