दुनिया में तीर्थयात्राओं का पागलपन अगर कहीं है तो वह हमारे देश भारतवर्ष में है. तीर्थयात्रा की सनक में हजारों लोग हर वर्ष मारे जा रहे हैं. अमरनाथ तीर्थयात्रा में इस बार भी 7 लोग शिवलोकवास सिधार गए तो कोई आश्चर्य नहीं है. तीर्थयात्रियों पर हमले की आशंका पहले से ही थी. खुफिया तंत्र ने पहले से चेतावनी दे चुका था फिर भी भक्तों का सैलाब मौत के इस पथ पर उमड़ पड़ा था. कश्मीर के अतंतनाग में यात्रियों की बस पर आतंकियों के हमले में 7 लोग मारे गए और 31 घायल हो गए.
पूरे देश भर में आए दिन तीर्थयात्री मारे जा रहे हैं. पिछले 3-4 महीने की खबरें बता रही हैं कि भारत का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है जहां तीर्थयात्री न मरे हों.
– मथुरा-भरतपुर रोड पर एक इनोवा अनियंत्रित हो कर नहर में गिरने से 10 तीर्थयात्रियों की मौत.
– उत्तरकाशी में तीर्थयात्रियों की बस खाई में गिरने से 22 लोगों की मौत.
– बिहार के बक्सर में नाव डूबने से 3 तीर्थयात्री मरे.
– हरियाणा के करनाल-कुरुक्षेत्र में जीपट्रक टक्कर में 11 तीर्थयात्रियों की मौत.
– बदरीनाथ से देहरादून के लिए तीर्थयात्रियों को ले कर आ रहा हेलिकोप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने से एक की मृत्यु.
– महाराष्ट्र के जालना में एक टैंकर ने 13 तीर्थयात्रियों को कुचल दिया.
हज यात्रा का इतिहास देखें तो हजारों यात्री भगदड़ जैसी दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. कुंभ मेलों में हजारों भक्त मोक्ष पा जाते हैं. ये कैसी सनक है? ताज्जुब है हमारी सरकारें लोगों को मौत के मुंह में धकेलने के लिए साधन, सुविधाएं, सुरक्षा मुहैया कराती हैं. सब्सिडी दी जाती है.
125 करोड़ लोग मंदिरों, मठों, तीर्थों, मस्जिदों, चर्चों, गुरुद्वारों, कुंभों, हज यात्राओं के चक्कर लगा कर धन और वक्त व्यय कर रहे हैं. जनता के लिए धर्म के ऐसे कामों के लिए सरकारों का हर साल साधन, सुविधाएं, सब्सिडी के नाम पर अरबों रुपया खर्च हो रहा है.
अमरनाथ यात्रा के लिए सरकार हर साल तीर्थयात्रियों की सुरक्षा का पूरा इंतजाम करती है. जगह जगह आर्मी के दस्ते चौकसी से तैनात रहते हैं. इस बार 40 हजार सुरक्षा जवान तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए लगाए गए थे. हमले के डर से सेना की गाडिय़ों के साथ तीर्थयात्रियों के जत्थों को रवाना किया जाता है. 40 दिन तक चलने वाली इस तीर्थयात्रा पर सरकार का पूरा ध्यान रहता है.
अमरनाथ तीर्थयात्रा पर आतंकवादियों का भय तो रहता है ही, चीन की अडंगेबाजी भी सामने आती रही है पर सरकार हर हाल में भक्तों को दर्शन करा के ही दम लेती है.
धर्म की देन इन मौतों के अलावा आए दिन मंदिरों, मठों में भगदड़ और हर रोज धर्म, जातियों के आपसी झगड़ों में हजारों जानें जा रही हैं. ये कैसा पागलपन है? कैसी बेवकूफी है? क्या हम शिक्षित, स य, तर्कशील समाज है?
शिक्षा का प्रकाश कहीं दिखार्ई दे रहा है? उल्टा अंधविश्वास का अंधेरा चारों ओर गहराता जा रहा है. हम किस विकास की बात कर रहे हैं? ऊंची मीनारें, चौड़ी सडक़ें, चमचमाती गाडिय़ां, हवाई जहाजें, अत्याधुनिक मिसाइलें, क्या यही हमारी प्रगति का पैमाना है? हम दुनिया में गर्व से इतराते घूम रहे हैं.
इन मौतों को ले कर कहीं कोई सवाल नहीं. किसी तरह का कोई आंदोलन नहीं, कोई क्रांति नहीं. समाज मौन है. इस से देश को कितना नुकसान हो रहा है, कोई आकलन नहीं है. धर्म का यह पागलपन आखिर कौन रोकेगा?