इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश कि सभी रेलवे स्टेशनों, सडक़ों, पार्को व अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बने नितांत गैरकानूनी मंदिर हटा कर उत्तर प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार न्यायालय को सूचित करें, अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा है. पर इसे मान लिया जाएगा, इस में संदेह है. मंदिर, मजार, क्रौस चौराहों व सार्वजनिक स्थानों पर बना कर चांदी काटना एक अच्छा धंधा है और धर्म के दुकानदार इस धंधे को चौपट नहीं होने देंगे. अगर किसी एक न्यायाधीश ने संविधान व कानून को लागू करते हुए ऐसा आदेश दिया भी, तो भी उस की नहीं सुनी जाएगी.
राममंदिर के फैसले में मुख्य न्यायाधीश ने बाबरी मसजिद को गिराया जाना अवैध माना लेकिन फिर भी वह जमीन राममंदिर बनाने के लिए दे दी. जब सुप्रीम कोर्ट मंदिरों के आगे इस तरह झुक सकती है तो उच्च न्यायालयों की यह क्या हिम्मत कि वे अवैध मंदिर हटवा सकें. दिल्ली में चांदनी चौक में सडक़ के बीच बने मंदिर का उदाहरण भी सामने है कि लाख कोशिशों के बाद भी वह जमीन लोगों के लिए चलने लायक नहीं बनी है.
मंदिर, मसजिद, चर्च तो जब जहां बन जाएं, वे हमेशा के लिए हो जाते हैं. ऐसा माहौल धर्म के दुकानदारों ने बनाया है ताकि वे भक्तों को बहका सकें कि भगवान का कोई बाल बांका नहीं कर सकता और मंदिर जहां भी बने वह समझो हमेशा के लिए बन गया.
इजिप्ट के शहर लक्सर में कर्णक टैंपल नाम का एक भव्य भवनों का कौंपलैक्स है जिस का निर्माण ईसा पूर्व 1550 से 1069 में अलगअलग तब के राजाओं ने किया और उंगली दांतों तले दबाने लायक पत्थर के विशाल स्तंभ, राजाओं की मूर्तियां, दीवारों पर चित्र बनवाए. मानव इतिहास में इन की तुलना कम जगहों से की जा सकती है. रैमसैस द्वितीय और आमेनोटेप तृतीय के नाम से अब जाने जानेवाले राजाओं ने नील नदी के किनारे यह कैसा भव्य निर्माण किया था जो कई वर्ग मील में फैला हुआ एक अजूबा है.
यहां एक मसजिद भी 11वीं सदी की है, यानी यह रैमसैस के मंदिरों के 200 साल बाद की है और यह ऊंचाई पर है क्योंकि तब तक रेगिस्तान के फैलाव व फैरो राजाओं के राज्यों के पतन के बाद इन मंदिरों में रेत भर गई थी.
किसी ने सपाट जमीन पर पत्थरों की कतार देख कर वहां मसजिद बना ली. अब 2 सदी पहले कर्णक इलाके की पुरातत्त्वी विशेषज्ञों ने खुदाई की तो मसजिद से 20 फुट नीचे तक जमीन पर बनी रैमसैस युग का निर्माण देखा गया. पुरातत्व की दृष्टि से मसजिद के नीचे भी कुछ होगा पर पुरातत्व विशेषज्ञों की लाख कोशिशों के बाद मसजिद न हटी. यह आज भी भव्य भवनों के पेबंद की तरह है.
देश में हर मील पर इस तरह के मंदिरमसजिद दिख जाएंगे जो जनता की इस्तेमाल की जमीन पर बने हैं और जनता के काम में रुकावट हैं पर उन्हें लक्सर की मसजिद की तरह कोई हटा नहीं पा रहा.
देश में तो अब हर मंदिर चमकने लगा है, गुरुद्वारों पर सोने की परतें लगने लगी है, कहींकहीं मसजिदों की भी मरम्मत हो रही है, चर्च सीधेसादे ही हैं क्योंकि हिंदू बिग्रेड मसजिदों और चर्चों को ठीक करने पर भी उन के फैलाव का हल्ला करने लगती है.
जब ऐसा माहौल हो तो सिर्फ इलाहाबाद कोर्ट के आदेश पर देशभर के हजारों मंदिर, जो रेल की संपत्ति पर बैठे हैं, हट जाएंगे, असंभव है. खासतौर पर तब जब आज की सरकार का विकास का मंत्र मंदिरों का विकास हो और जनता उसे ही अपना विकास मानती हो.