अपने अंधविश्वास उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नोएडा में यह कह कर उन आलोचकों के मुंह बंद करने की नाकाम कोशिश की जो उन्हें विकट का अंधविश्वासी कहते रहते हैं. 31 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश के पहले डेटा सैंटर का उद्घाटन करने नोएडा गए योगी के चेहरे पर यह कहते भी हवाइयां ही उड़ रही थीं कि गौतमबुद्ध नगर कोई अभिशप्त जगह नहीं है.

योगीजी तनिक हाई लैवल के अंधविश्वासी हैं जो उन्होंने 5, कालिदास मार्ग, लखनऊ, स्थित मुख्यमंत्री दफ्तर, जिस में अखिलेश बैठा करते थे, का पूरे विधिविधान से शुद्धिकरण करवाया था. उन्हें डर था कि अखिलेश कहीं यहां कोई जादूटोना न कर गए हों. इस हलके अंधविश्वास के बाद उन का तगड़ा अंधविश्वास नवरात्र के दिनों में देखने में आया था जब वे पूरे 9 दिन अपने मठ में सिद्धियां हासिल करने को कैद या बंद रहते किसी उच्च कोटि की साधना में रत थे.

नमक के चमचे बुद्धिजीवी कांग्रेसी नेता उदित राज बेकारी और बेचारगी के दिनों में भी सुर्खियों में रहने का हुनर जानते हैं. उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की गुजरात यात्रा पर तंज कस ही दिया जिस से भगवा गैंग दिल ही दिल में खुश हुआ और उसे उदित पर चढ़ाई का मौका भी मिल गया था. इधर बात राजनीति की कम नमक के क्षेत्रवार खाने को ले कर ज्यादा थी. असल में द्रौपदी मुर्मू ने कहा था कि गुजरात देश 76 फीसदी नमक की पैदावार करता है जिसे सभी भारतीय खाते हैं. उदित राज को यह अतिशयोक्ति लगी तो उन्होंने ट्वीट कर डाला कि द्रौपदी मुर्मू जैसा राष्ट्रपति किसी देश को न मिले, चमचागीरी की भी हद है, कहती हैं 70 फीसदी लोग गुजरात का नमक खाते हैं.

अच्छा तो यह होता कि उदित यह बताते कि गुजरात का नमक किनकिन मीडिया संस्थानों को तोहफे में दिया जाता है जो वे नमक हलाली करते रहते हैं. मी लौर्ड लोकतंत्र बचाइए पिछले 8 सालों से जिन लोगों को लोकतंत्र की चिंता खाए जा रही है, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उन में से एक हैं. बीते दिनों कोलकाता स्थित राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में देश के चीफ जस्टिस यूयू ललित से ममता का सामना हुआ तो उन्होंने बड़े मार्मिक ढंग से गुहार लगाई कि आप लोकतंत्र बचाइए क्योंकि समाज का एक वर्ग सभी लोकतांत्रिक शक्तियों को कैद कर रहा है. चीफ जस्टिस इस अपील पर खामोश ही रहे क्योंकि 8 नवंबर को उन्हें रिटायर होना था और इतने कम दिनों में वे 75-8=63 साल के लोकतंत्र को नहीं बचा सकते थे.

ममता की बात इस लिहाज से तो सटीक है कि देश में जो 15-20 फीसदी लोकतंत्र बचा है, उस का श्रेय ज्युडीशियरी को ही जाता है, बाकी का राम जाने. लक्ष्मीगणेश ही क्यों आम आदमी पार्टी यानी आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल इन दिनों नए किस्म की राजनीति कर रहे हैं. उन्होंने नोटों पर लक्ष्मीगणेश की तसवीर छापने की मांग कर डाली और दलील यह दी कि इस से अर्थव्यवस्था सुधरेगी.

मुद्रा का धार्मिकीकरण भाजपा के लिए कोई चुनौती नहीं है लेकिन डर इस बात का है कि कहीं अब जातियों के हिसाब से यह मांग न उठने लगे. जैनियों के नोटों पर महावीर स्वामी, मुसलमानों के नोटों पर हजरत साहब और सिखों के नोटों पर गुरुनानक देव हों तो क्या हर्ज. इधर हिंदुओं के नोट वर्णव्यवस्था के हिसाब से छापे जाएं तो देश हिंदू राष्ट्र बन ही जाएगा. मजा तो तब आएगा जब ब्राह्मणों के नोटों पर परशुराम, क्षत्रियों के नोटों पर राम, वैश्यों के नोटों पर उन की जाति के देवता, मसलन यादवों के नोटों पर कृष्ण और कायस्थ के नोटों पर चित्रगुप्त छपे हों और शूद्रों के नोटों पर बुद्ध और अंबेडकर छापे जा सकते हैं. ऐसा हो पाया तो कोई हमारी अर्थव्यवस्था को हिला नहीं पाएगा.

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