पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था ‘महान सपने देखो और उन्हें पूरा करने में जुट जाओ, क्योंकि महान सपने जरूर पूरे होते हैं.’ सो, जरूरी है कि हर बच्चा बड़े सपने देखे. तभी वह उसे पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा सकता है. अभिभावकों को अपने बच्चों को बड़े सपने देखने और उस के लिए जरूरी मेहनत करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. लेकिन इन्हीं सपनों को पूरा करवाने के लिए अगर पेरैंट्स अपने कामकाज छोड़ कर उन की परवरिश में लग जाएं तो ये पेरैंट्स के लिए नहीं, बल्कि बच्चों के लिए बो?ा बन जाता है क्योंकि हर समय उन पर नजर रखना, उन की किसी समस्या का तुरंत समाधान खोज लेना पेरैंट्स की आदत बन जाती है. ऐसा अधिकतर महिलाएं ही करती हैं क्योंकि इसे वे सही मान कर अपने कीमती समय को बच्चों पर गंवाती रहती हैं.
अपनी काबिलियत को जाने न दें
मुंबई की एक मल्टीस्टोरी बिल्ंिडग में रहने वाली वर्किंग महिला सुनीता प्रैग्नैंट होने पर औफिस जाती रही. डिलीवरी के करीब आने पर उन्होंने मैटरनिटी लीव ले कर औफिस जाना बंद कर दिया. करीब 25 दिनों बाद उस की बेटी हुई. पतिपत्नी की खुशी का ठिकाना न रहा. दोनों ने उस की परवरिश का जिम्मा लिया. सुनीता की मां भी नातिन की परवरिश में बेटी का हाथ बंटाने आ गई. बेटी 3 महीने की हो गई तो सुनीता ने औफिस जौइन कर लिया. लेकिन उस का मन बेटी को याद करता रहा. दिन में कई बार फोन कर वह बेटी का हालचाल पूछती पर फिर भी सुनीता का काम में मन न लगता था. अंत में वह काम छोड़ बच्चे की देखभाल करने लगी.
काम से लगता है डर
अनीता ने भी अपने दोनों बेटों की परवरिश अच्छे तरीके से की. बच्चे बड़े हो कर जौब भी करने लगे. अब अनीता अकेली सोच नहीं पाती है कि उसे करना क्या है. वह कई बार कह चुकी है कि वह एक अच्छी क्लासिकल सिंगर थी. कई बार वह रेडियो स्टेशन पर गा भी चुकी है. शादी के बाद से उस ने अपने जीवन में कुछ नहीं किया. शादी के 2 साल बाद बच्चा हुआ और वह उस की परवरिश में जुट गई. उम्र के इस पड़ाव में कुछ भी आगे बढ़ कर करने से वह हिचकिचाती है और उसे डर लगता है, क्योंकि वह आज के परिवेश से अनभिज्ञ है.
एक बार साहस कर कुछ करने गई. किसी ने पूछ लिया कि आप इतने दिनों तक क्या कर रही थीं? इस बात से उसे दुख हुआ क्योंकि उस ने आज तक संगीत का रियाज भी सही तरीके से नहीं किया है. वह कहती है, ‘‘मैं ने जीवन में बहुत गलतियां कीं, चाहती तो गाने को बच्चों के साथ भी जिंदा रख सकती थी क्योंकि एक घंटा सुबह रियाज काफी होता है और मु?ो पूरे 24 घंटे में 2 घंटे रियाज के लिए निकालना मुश्किल नहीं था. हालांकि मेरे दोनों बेटों में अंतर अधिक नहीं है लेकिन मेरी मां मेरे पास रहती थी, जिस से बच्चों को पालने में अधिक कठिनाई नहीं हुई. मैं ने अपने हाथों से खुद की जिंदगी को बरबाद कर दिया है. अब कुछ करने की इच्छा नहीं होती.’’
न लें सारी जिम्मेदारी
यह सही है कि महिलाएं शादी के बाद न चाहते हुए भी सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेती हैं. उन को यह सम?ाने में काफी समय लगता है कि उन के रोज 3 से 4 घंटे खुद पर लगाने में कोई हर्ज नहीं. बच्चे की देखभाल फिर भी हो जाएगी. छोटे बच्चे की सम?ादारी कम होती है, उस पर घंटों खाना खिलाने से ले कर सोने तक अपना पूरा समय बरबाद न करें.
कई बार वह जौब कर भी रही है तो अपराधबोध से ग्रस्त हो कर खुद को ही कोसती रहती है. घर आने पर बच्चे की किसी भी जिद को पूरा करने के लिए वह तैयार रहती है. इस से बच्चा जिद्दी और आत्मनिर्भर नहीं बन पाता.
एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा टाइम मैनेजमैंट अच्छी तरह से कर लेती हैं और एक समय में कई काम कर लेती हैं, यह अच्छी बात है. इस बारे में काउंसलर राशिदा कपाडि़या कहती हैं, ‘‘महिलाएं बहुत अधिक भावनात्मक और सैंसिटिव होती हैं और हमेशा सबकुछ बैस्ट करना चाहती हैं. इस से परिवार वालों की उम्मीदें भी उन से काफी बढ़ जाती हैं. सासससुर से ले कर पति और रिश्तेदार भी एक महिला से सबकुछ की उम्मीद लगा बैठते हैं. ऐसे में महिला भी काफी प्रैशर में आ जाती है.’’
बच्चे को दें नौर्मल लाइफ
आज बच्चों में भी काफी प्रतियोगिता है. स्कूल जाने के अलावा बच्चे कराटे, गेम्स, डांस, स्विमिंग आदि में भी भाग लेते हैं, ऐसे में दूसरी मांओं को बुरा लगता है कि उन का बच्चा तो केवल स्विमिंग में ही जा रहा है, उसे भी कुछ और सीखना है और यही प्रैशर उन में स्ट्रैस लाता है. सोशल मीडिया भी इस के लिए कम जिम्मेदार नहीं. आज कुछ भी होने पर लोग सोशल मीडिया पर शेयर करते रहते हैं. इस से महिला खुद को कमतर सम?ाती है और खुद पर ध्यान दिए बिना बच्चों की सही परवरिश करने में लग जाती है. वह खुद की केयर करना भूल जाती है. इस से उस में कई तरह की बीमारियां आ जाती हैं, मसलन लंग्स कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, डिप्रैशन, पेट की बीमारी आदि.
राशिदा कहती हैं, ‘‘वर्कप्लेस में भी सुधार की जरूरत है क्योंकि वहां पुरुष को अधिक सैलरी, जल्दी प्रमोशन मिलता है, जबकि महिला को नहीं. यही बातें घरपरिवार में भी होती हैं. महिला को सभी कामों में निपुण होना पड़ता है. पुरुष कुछ थोड़ा कर ले, शाबाशी मिलती है.
‘‘देखा जाए तो एक महिला ही दूसरी महिला को लैवल देती है. मैं उन महिलाओं को सु?ाव देना चाहती हूं कि परफैक्ट काम करने की कोशिश न कर खुद के लिए कुछ समय निकालें और अपनी पसंद के काम, जैसे किताबें पढ़ना, हौबी पूरी करना, संगीत सुनना या कुछ क्रिएटिव काम आदि करें. इस से उन में नियमित एक ही जैसे काम करने की बोरियत नहीं आएगी और आगे चल कर वे इसे प्रोफैशन का रूप दे सकती हैं. बहुत अधिक बच्चे की परवरिश पर ध्यान देने से बच्चे मां की बात को इग्नोर करने लगते हैं, जिद्दी बन जाते हैं, जो उन के भविष्य के लिए ठीक नहीं होता.’’
कुछ टिप्स नई मांओं के लिए
- आजकल औनलाइन का जमाना है. हमेशा कुछ ऐसा काम करती रहें ताकि बच्चे की उम्र 8 साल होने पर आप अपने मन का काम बाहर जा कर कर सकें. मसलन, 24 घंटे में से कुछ समय निकाल कर साइंस पढ़ाएं, स्पोर्ट्स में दिलचस्पी हो तो उसे देखें, उस पर अपनी कुछ प्रतिक्रिया दें.
- आर्किटैक्ट का या क्रिएटिव वर्क भी घर बैठे किया जा सकता है. इसे करने के लिए कुछ शोध वर्क पर ध्यान दें और कुछ डिजाइन बना कर औनलाइन पोस्ट करें.
- अगर अपने ज्ञान को बढ़ाना है तो उस विषय पर औनलाइन जा कर कुछ कोर्स करें.
- कानून की पढ़ाई की है तो उस के नोट्स बना कर कानूनी सलाह दें.
- इस के अलावा बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, क्राफ्ट वर्क आदि के छोटेछोटे ड्राइंग बना कर भी औनलाइन डाल सकती हैं, इस से आप की क्रिएटिविटी बढ़ेगी और आप को काम मिलना आसान होगा.
पोस्ट कोविड के असर से न रहें बेखबर
कोरोना भले ही अब घातक रूप में सामने न हो पर उस का असर अभी भी लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है. ऐसे में छोटी से छोटी बीमारी को बहुत ही गंभीरता से लें. कोरोना ने अपना असर बौडी के अंदर छोड़ दिया है जिस से फेफड़े, सांस लेने की प्रक्रिया और लिवर कमजोर हो चुके हैं. ऐसे में जैसे ही कोई छोटी सी बीमारी होती है, उस के इलाज में लापरवाही होते ही जान का जोखिम होने लगा है.
हाल के दिनों में ऐसी तमाम घटनाएं घट चुकी हैं जिन में अच्छाखासा स्वस्थ शरीर चलतेचलते गिर जा रहा है. राजू श्रीवास्तव ही नहीं, कई ऐसे कलाकारों के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं जिन में वे डांस करतेकरते स्टेज पर ही गिर कर दम तोड़ देते हैं. सरकारी आंकडे़ बताते हैं कि कोरोना के बाद से टीबी यानी क्षयरोग के मामले बढ़ गए हैं. कोरोना के मरीज ठीक होने के बाद दिल और फेफड़े की बीमारी से जू?ा रहे हैं.
कोरोना का असर है कि करीब 50 हजार मरीजों को हार्ट की जरूरत है. कोरोना से पहले यह संख्या 35 हजार से 40 हजार तक होती थी. यही हालत फेफड़ों की है. हार्ट के मरीजों के लिए केवल ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प है. मरीजों को जिंदा रखने के लिए लंग्स ट्रांसप्लांट ही एकमात्र रास्ता बचता है. हार्ट की पंपिंग कम हो गई है. जिन मरीजों की हार्ट की पंपिंग 25 फीसदी से कम होती है उन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है.
कोरोना के दौरान जिन मरीजों के लंग्स में 100 फीसदी इन्वौल्वमैंट हुआ था वे भी अब लंग्स ट्रांसप्लांट के भरोसे पर हैं. कोरोना के इलाज में दी जाने वाली दवाइयां भी फेफड़े, हार्ट, किडनी और लिवर पर बहुत बुरा प्रभाव डालती हैं. रेमडेसिवीर, स्टेरौयड आदि से शुगर की बीमारी तेजी से बड़ी है और यह हार्ट के लिए नुकसानदायक है.
कोरोना वायरस से फेफड़ों में फाइब्रोसिस हो जाता है. फाइब्रोसिस से फेफड़े की लेयर पतली और कमजोर हो जाती है. इलाज के दौरान यह फट जाती है. फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं. पोस्ट कोविड की समस्याएं मरीजों का पीछा नहीं छोड़ रही हैं. कोरोना से रिकवर हुए मरीजों में मानसिक बीमारियों, जैसे एंग्जाइटी, डिप्रैशन, पैनिक डिसऔर्डर के कारण हार्टबीट बढ़ जाती है जिस से दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है.
कोरोना हार्ट समेत सभी जरूरी अंगों की मसल्स को गंभीर रूप से डैमेज करता है. यह दिल और फेफड़े दोनों के लिए खतरनाक है. कोरोना से ब्लड गाढ़ा हो जाता है, जिस से थक्के बनने लगते हैं. हार्ट की नसें ब्लौक होने लगती हैं. धीरेधीरे यह समस्या गंभीर होती जाती है.