वक्त वक्त की बात है. मूलतः बंगाली मगर भूटान में जन्में व कलकत्ता में पले बढ़े फिल्मकार ओनीर मुंबई फिल्म निर्देशक बनने आए थें, मगर उन्हें बतौर एडीटर करियर की शुरूआत करनी पड़ी थी.

बतौर एडीटर फिल्म ‘दमन’ के सेट पर ओनीर की मुलाकात रवीना टंडन व संजय सूरी से हुई थी. दोनों ने उनके निर्देशन में काम करने की इच्छा जाहिर की. तब संजय सूरी व रवीना टंडन को लेकर अपनी 2001 में लिखी कहानी ‘शब’ पर फिल्म बनाने का असफल प्रयास किया.

उसके बाद ओनीर ने बतौर निर्माता, निर्देशक, लेखक व एडीटर ‘माई ब्रदर निखिल’, ‘आई एम’ सहित चार दूसरी फिल्में बना कर कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार बटोरे. अब 17 साल पहले लिखी कथा पर ओनीर फिल्म ‘शब’ बना पाए हैं. जिसमें संजय सूरी, रवीना टंडन, आशीष बिस्ट व अर्पिता चटर्जी के साथ फ्रेंच कलाकार सिमॉन फेनॉय ने भी अभिनय किया है.

ओनीर के पिता अपरेश धार कलकत्ता के एक स्कूल में प्रिंसिपल थें, मगर जब स्कूल मैनेजमेंट ने स्कूल में पढ़ रहे उनके नेपाली विद्यार्थियों को स्कूल से निकाल दिया. बाद में कलकत्ता पुलिस ने उन नेपाली विद्यार्थियों को गिरफ्तार कर लिया, जो कि बाद में मृत पाए गए. इसके विरोध स्वरुप ओनीर के पिता ने प्रिंसिपल के पद से त्यागपत्र दे दिया था. वह हमेशा रंगभेद का विरोध करते रहे. इन दिनों ओनीर इस बात पर गुस्सा हैं कि ममता सरकार जबरन दार्जलिंग के लोगों को बंगला भाषा सीखने पर मजबूर क्यों कर रही है.

ओनीर से उनके करियर, फिल्म, रंगभेद व जीएसटी को लेकर ‘सरिता’ पत्रिका से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत इस प्रकार रही.

फिल्म ‘‘दमन’’ के समय संजय सूरी और रवीना टंडन दोनों ने आपके साथ काम करने की बात कही थी. संजय सूरी तो लगातार आपके साथ जुड़े हुए हैं. पर रवीना टंडन?

जब 12 वर्ष पहले मैं फिल्म ‘शब’ बना रहा था, तब दोनों इस फिल्म में अभिनय कर रहे थें. पर उस वक्त फिल्म बन नहीं पायी. उस वक्त सभी निर्माता ने ‘शब’ को बोल्ड कह कर पीछा छुड़ा लिया था. उसके बाद रवीना टंडन की शादी हो गयी. वह अपनी पारिवारीक जिम्मेदारीयों को निभाने लगी. खुद कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया. दूसरी तरफ मैं और संजय सूरी अलग तरह की फिल्में बनाते रहे. पर रवीना टंडन के साथ हमारा संबंध बना रहा. हम अक्सर पार्टियां करते थें. हमारे बीच दोस्ती बरकरार रही. रवीना से हमारी मुलाकातें लगातार होती रहीं. जब हमने दुबारा फिल्म ‘शब’ की शुरूआत की, तो संजय सूरी के साथ ही रवीना ने भी इसमें अभिनय किया. संजय सूरी के साथ मेरी दोस्ती काफी मजबूत है. हम दोनों कि सोच में कोई अंतर नजर नहीं आता.

इस बार आपने शब की कहानी बदली है?

नहीं. वही कहानी है. आज भी फिल्म ‘शब’ बोल्ड है. मगर इस बार मैंने खुद ही संजय सूरी के साथ मिलकर इसका निर्माण किया है. इसे अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में काफी सराहा जा चुका है. अब हम इसे 30 जून को भारत में प्रदर्शित कर रहे हैं.

अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में आपकी फिल्म शब को किस तरह की प्रतिक्रिया मिली?

सभी ने कहा कि अब तक इस तरह की कहानी किसी भारतीय फिल्म में नहीं देखा. मैंने अपनी फिल्म के कई अहम हिस्से ट्रेलर में नहीं दिखाए हैं.

कहा जा रहा है कि आप इस फिल्म से यह बताना चाहते हैं कि औरतें हर चीज या हर मुकाम पाने के लिए सेक्स को जरिया बनाती हैं?

हमारी फिल्म में कुछ उल्टा सा है. आप निजी जिंदगी में भी देखेंगे, तो पावर के खेल में अलग अलग हालातों में पुरूष या स्त्री अपने पावर का इस्तेमाल करते हैं. तो कुछ लोग अपने पावर का उपयोग नहीं भी करते हैं. कुछ लोग आदर्श व जीवनमूल्यों को महत्व देते हैं. कुछ लोग सारी नैतिकता को ठोकर मारकर अपना सपना पूरा करना चाहते हैं. निजी जिंदगी में भी हम सभी गलतियां करते हैं. दूसरों को दुःख पहुंचाते हैं. हमारी फिल्म का किरदार गलतियां करता है, पर वह अपनी गलती को समझकर उसे सुधारता है. फिल्म देखते समय दर्शक महसूस करेंगे कि हां इसने गलती की है और वह इस बात को महसूस कर रही है.

सपनों को पूरा करने के लिए इंसान को सेक्स को हथियार क्यों बनाना पड़ता है?

देखिए, सेक्स तो हर इंसान के अंदर का हिस्सा है. कुछ लोग सेक्स को पावर के रूप में उपयोग कर अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करते हैं. कई बार लोग अपनी तकदीर के नाम पर या मुकाम पाने के नाम पर सेक्स को एक पावर की तरह उपयोग करते हैं. हमारी फिल्म में इस पावर के अलग अलग लेयर हैं. हमारी फिल्म में सेक्स पावर भी है, तो दोस्ती भी है. सेक्स के जितने डायमेशन हो सकते हैं, वह सारे हमारी फिल्म ‘शब’में हैं.

अब आपने अपना ऐसा मुकाम बना लिया है कि बड़े कलाकार आपके साथ काम करने को तैयार रहते हैं, फिर शब में कलाकार को क्यों चुना?

क्योंकि कहानी ऐसी है. छोटे शहर का लड़का स्टार कलाकार बनने के लिए दिल्ली आता है. तो ऐसे किरदार के लिए हमें नए कलाकार की जरुरत थी. बड़े कलाकार को यदि हम फिल्म का हिस्सा बनाते, तो वह बात न आती. किरदार यकीन करने लायक न होता. आशीष बिस्ट के चेहरे पर जो मासूमियत है, वह हमारी फिल्म के किरदार को उभार देता है. परिवार से जुड़ाव भी चेहरे पर नजर आना चाहिए.

क्या वजह है कि उत्तर पूर्वी राज्यों से आने वाले कलाकार मेनस्ट्रीम सिनेमा से नहीं जुड़ पा रहे हैं?

कमी हमारे अंदर है. हम लोगों को अपनाना नहीं चाहते. अब देखिए, दिल्ली में उत्तर पूर्वी राज्यों से आने वाले लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है. भारत के ज्यादातर हिस्सों में गोरे चेहरे वाले इंसान को ‘गैर भारतीय’ मान लेते हैं. उत्तरपूर्वी राज्यों में जाएं, तो वह काले रंग वालों को अपना नहीं मानते. तो हमारे देश में रंग भेद बहुत ज्यादा है. हम विदेषों में जाते हैं और रंग भेद की शिकायत करते हैं, जबकि हमारे अपने देश में रंग भेद बहुत ज्यादा है. हम लोग उत्तर पूर्वी राज्यों के लोगों की इज्जत नहीं करते. मेरी समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों है?

इन दिनों पश्चिम बंगाल व दार्जलिंग में जो कुछ हो रहा है, उसे सही कैसे ठहराया जा सकता है, आप किसी भी इंसान पर जबरन बंगाली भाषा सीखना कैसे थोप सकते हैं? इंसान खुशी से कोई भी भाषा सीख सकता है. मुझे तो नेपाली भी आती है. इसी तरह खानपान का मसला भी है. हम स्वतंत्र देश में रहते हैं. यहां हम सभी को यह ध्यान रखना चाहिए कि हमें किसी की भी भावनाओं को आहत नहीं करना है. दूसरों की इज्जत करना हमें खुद से आना चाहिए.

जीएसटी को लेकर क्या कहेंगे?

इससे सिनेमा को बहुत नुकसान होगा. देखिए, हमारा भारतीय सिनेमा वैसे ही बहुत मार झेल रहा है. फिल्म के निर्माता को तो अंत तक झेलना पड़ता है. जो इंसान फिल्म बनाता है, उसके हाथ में कुछ नहीं आता है. सरकार का टैक्स, वितरक का शेयर, सिनेमा घर मालिक का शेयर सब बंट जाता है. जी एस टी के आने से सारे इंडीपेंडेंट फिल्म मेकर परेशान हो जाएंगे. इनके लिए फिल्म बनाना मुश्किल हो जाएगा.

ऐसे मसलों पर फिल्म उद्योग में एकजुट होकर सरकार से बात क्यों नही करता?

दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग एकजुट व मजबूत है. स्ट्रॉन्ग है. पर हमारे बॉलीवुड में एकता नहीं है. जब ‘यशराज फिल्मस’ ने मीडिया नेट को मना किया था, तब हर फिल्मकार को मना करना चाहिए था. पर ऐसा नही हुआ. वास्तव में जिनका कंटेंट कमजोर होता है, वह पैसे खर्च कर अपनी फिल्मों का प्रचार करते हैं यह चीज फिल्म इंडस्ट्री के लिए खराब है. क्योंकि जिनके पास पैसा नहीं है, पर अच्छा कंटेंट है, वह मीडिया नेट का हिस्सा नहीं बन पाते और उनकी फिल्में दर्शकों तक नही पहुंचती. हमने देखा कि हमारे स्टार कलाकार सोशल मीडिया पर भी अपनी कमर्शियल फिल्मों की ही तारीफ करते हैं, अच्छे कंटेंट वाले सिनेमा की कोई तारीफ नहीं करता.

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