गंभीर बीमारी से मानसिक तनाव या स्ट्रैस का पैदा होना स्वाभाविक है. यह तनाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर हमेशा नकारात्मक प्रभाव डालता है और गंभीर बीमारियां तनाव के कारण और ज्यादा गंभीर हो जाती हैं. यही नहीं, तनाव के कारण मौजूदा बीमारी के साथ दूसरी बीमारियां भी पैदा हो जाती हैं.

लंबी और गंभीर बीमारियां निश्चित तौर पर मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं. कैंसर, कोरोनरी हार्ट डिजीज, डायबिटीज, मिर्गी, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, स्ट्रोक, अल्जाइमर रोग, एड्स, पार्किंसन डिजीज, सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस, रूमेटाइड आर्थ्राइटिस आदि ऐसी बीमारियां हैं जो एक बार हो जाएं तो आजीवन साथ बनी रहती हैं.

पूरे जीवन इन का इलाज चलता है और पीडि़त व्यक्ति को दवाओं, टैस्ट के अतिरिक्त अन्य कई मैडिकल ट्रीटमैंट्स से गुजरना पड़ता है. जो बेहद कष्टकारी होता है. इन बीमारियों के चलते मानसिक तनाव के साथसाथ बड़ी आर्थिक दिक्कतें भी पैदा हो जाती हैं. लंबी और गंभीर बीमारी अकेले नहीं आती, बल्कि अपने साथ और बीमारियों को ले कर आती है जिन में सब से पहला है अवसाद यानी डिप्रैशन.

सुशील 30 साल का तंदुरुस्त हंसताखेलता नौजवान बीते 2 सालों में जैसे 50 साल का बुजुर्ग नजर आने लगा है. वजह है कैंसर. सुशील को मुंह और गले का कैंसर है. 2 साल में उस की

3 बार सर्जरी हो चुकी है. मुंह और गले का अधिकांश कैंसरग्रस्त हिस्सा काट कर हटाया जा चुका है. 3 सिटिंग्स कीमोथेरैपी हो चुकी है. कैंसर का पता चलने के बाद से ही सुशील मानसिक रूप से परेशान रहने लगा. हर वक्त चिंता और तनाव में घिर गया. उस का इलाज कैसे होगा, कितना पैसा लग जाएगा, हर औपरेशन से पहले सोचता कि पता नहीं बचूंगा या नहीं, मेरे बाद मेरे बीवीबच्चों को कौन संभालेगा, बूढ़े मांबाप को कौन देखेगा.

3 सर्जरियों और कीमोथेरैपी के बाद सुशील का शरीर जर्जर हो गया है. सिर के बाल कीमो की वजह से उड़ गए जो अब वापस तो आए हैं मगर बहुत कम संख्या में. चेहरे और गरदन के हिस्से से मांस निकाल दिए जाने के कारण शरीर एक ओर को ?ाक गया है. मुंह में एक तरफ का जबड़ा हटा दिया गया है, इस वजह से अब वह कोई सख्त चीज नहीं खा पाता है. जबान की स्वाद ग्रंथियां कीमोथेरैपी की वजह से खत्म हो गई हैं, इसलिए उसे अब खाने के स्वाद का भी पता नहीं चलता है. इन सभी कारणों से उस का खानापीना कम हो गया है. सिर्फ लिक्विड या सैमी लिक्विड खाने से शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है. जिस के चलते एक हृष्टपुष्ट व्यक्ति से जर्जर काया में परिवर्तित हो चुके सुशील को हर वक्त तनाव घेरे रहता है. वह सोचता रहता है कि पता नहीं कितनी जिंदगी बची है.

इस चिंता ने सुशील को अवसादग्रस्त कर दिया है. तनाव का असर उस के लिवर और किडनी पर भी पड़ा है. वह कैंसर ट्रीटमैंट के साथ लिवर और किडनी से संबंधित दवाएं भी खा रहा है. उस के चेहरे से हंसी गायब हो चुकी है. शायद ही किसी ने उसे मुसकराते हुए देखा हो. उसे हर समय पैसों की चिंता लगी रहती है. बीमारी की हालत में उस के फैक्ट्री वालों ने उस की कुछ मदद की. मालिक ने उसे काम से नहीं निकाला पर अब वह मुश्किल से तीनचार घंटे ही काम कर पाता है.

कमजोरी की वजह से वह मशीन पर ज्यादा देर बैठ नहीं पाता. उस की पत्नी उस से ज्यादा परेशान रहती है. ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है तो किसी दफ्तर में काम नहीं कर सकती. उस ने कुछ घरों का खाना बनाने का काम ले लिया है जिस से बहुत कम आमदनी होती है. सुशील की दवा पर काफी पैसा खर्च हो जाता है. ऐसे में 2 बच्चों और बूढ़े मातापिता का पेट भरना दोनों के लिए मुश्किल होता जा रहा है. रिश्तेदारों से जो कर्ज लिया है, परिवार उस का सूद भी नहीं चुका पाता है. तनाव और असमंजस की जिंदगी ने सुशील को ही नहीं, बल्कि उस की पत्नी को भी मानसिक रोगी बना दिया है.

देविका चौधरी 65 वर्षीया हैं. उन को बीते 20 सालों से मधुमेह है. जवानी के दिनों में देविका बहुत ऊर्जावान महिला थीं. मगर मधुमेह ने उन के शरीर को जकड़ा तो उन की सारी ऊर्जा खत्म हो गई. मधुमेह अकेला नहीं आया, बल्कि अपने साथ हाई ब्लडप्रैशर भी लाया. पहले वे बीपी और शुगर की दवाएं लेती रहीं मगर अब मधुमेह को कंट्रोल करने के लिए डाक्टर ने रैगुलर इंसुलिन के इंजैक्शन लेने की सलाह दी है.

मधुमेह के प्रभाव से उन का लिवर भी क्षतिग्रस्त हो गया है. देविका चौधरी का सिर्फ 25 फीसदी लिवर ही काम करता है. लिहाजा, खाना ठीक से नहीं पचता और एसिडिटी व जलन की शिकायत पूरे समय बनी रहती है. साथ ही, आर्थ्राइटिस की शिकायत हो गई है. घुटनों में दर्द रहता है.

शरीर की नसों में तनाव के कारण चलनेफिरने में तकलीफ होती है. आज देविका चौधरी खाने से ज्यादा दवाएं खाती हैं. इतनी दवाइयां देख कर उन्हें घबराहट होती है. अपनी हालत पर कभीकभी वे फूटफूट कर रोने लगती हैं. यह उन के डिप्रैशन को जाहिर करता है. किसी लंबी बीमारी के साथ रहना शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से चुनौतीपूर्ण होता है, इसलिए पुरानी बीमारियों और डिप्रैशन का एकसाथ होना आश्चर्यजनक नहीं है.

बीमारी से तंग आ कर खुदकुशी की सोच

11 जुलाई, 2022 को सोनभद्र की दलित बस्ती में 45 वर्षीय मुकेश भारती ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. मुकेश टीबी का मरीज था और लंबे समय से दवाएं खा रहा था. टीबी की बीमारी के चलते वह अपने परिवार के सदस्यों से दूरी रखता था. अलग कमरे में रहता था और उस के बरतनखाना सब अलग था. परिवार वालों को यह आभास तक नहीं हुआ कि इस अकेलेपन, बीमारी और दवाओं के मकड़जाल में मुकेश कब इतना डिप्रैशन में चला गया कि उस ने खुदकुशी करने का फैसला कर लिया.

10 फरवरी, 2022 की घटना है जब आजमगढ़ में पवई थाना क्षेत्र के सुमहाडीह गांव का रहने वाला 35 वर्षीय रमेश कुमार शर्मा ने अपनी लंबी बीमारी के चलते जहर खा कर आत्महत्या कर ली. रमेश के पौकेट से पुलिस ने सुसाइड नोट बरामद किया. उस में युवक ने लिखा है, ‘‘मैं कई बीमारियों से ग्रसित रहने के कारण तंग आ कर जहर खा कर आत्महत्या कर रहा हूं. इस में परिजनों का कोई दोष नहीं है. मैं अपनी पत्नी रानी और बेटे अंशुमन से बहुत प्यार करता हूं. आत्महत्या करते हुए मुझे बहुत दुख हो रहा है.’’

4 साल पहले मधेपुरा के शाह मोहम्मद तनवीर अहमद ने भी सिर में गोली मार कर खुद को खत्म कर लिया. अपने सुसाइड नोट में उस ने एसपी को लिखा, ‘‘मैं शाह मोहम्मद तनवीर अहमद, मधेपुरा की अजहर कालोनी, वार्ड नंबर 12 का निवासी हूं. मेरा कैंसर का औपरेशन 2005 में हुआ था. उस के बाद मैं हमेशा बीमार रहता हूं. औपरेशन के कारण मु?ो बहुत सारी और भी बीमारियां हो गई हैं. थायराइड, शुगर, कोलैस्ट्रौल इत्यादि. दिनभर दवा खाता रहता हूं. दवा खातेखाते थक चुका हूं. अब मु?ो और जीने की इच्छा नहीं है. दिनभर बेचैनी और दिल घबराता रहता है. मेरे पास आत्महत्या के सिवा कोई रास्ता नहीं है. मेरी मौत का दूसरा कोई जिम्मेदार नहीं होगा.’’

ये घटनाएं बताती हैं कि जीवनपर्यंत चलने वाली बीमारियां व्यक्ति को कितनी मानसिक वेदना और तनाव से भर देती हैं. खानेपीने की स्वतंत्रता छिन जाने से, दवाओं के मकड़जाल में फंस कर आदमी इतना अवसादग्रस्त हो जाता है कि उस की जीने तक की इच्छा खत्म हो जाती है.

बीमारी के चलते उत्पन्न मानसिक तनाव या स्ट्रैस हर किसी के लिए अलग होता है. एक व्यक्ति को जिस वजह से तनाव होता है, जरूरी नहीं कि दूसरे को भी वैसा ही तनाव हो. लेकिन तनाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर हमेशा नकारात्मक प्रभाव डालता है और गंभीर बीमारियां तनाव के कारण और ज्यादा गंभीर हो जाती हैं. यही नहीं, तनाव के कारण एक बीमारी के साथ अन्य दूसरी बीमारियां भी पैदा हो जाती हैं.

दीर्घकालिक बीमारी से पीडि़त ज्यादातर लोग डिप्रैशन से पीडि़त होते हैं. मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं बीमारी को बढ़ा कर जान को खतरे में डाल सकती हैं. एक अध्ययन में पाया गया है कि जो लोग एक क्रौनिक शारीरिक बीमारी और मानसिक बीमारी दोनों से पीडि़त होते हैं उन में पिछली या अन्य बीमारी से पीडि़त लोगों की तुलना में दोनों बीमारियों के अधिक गंभीर लक्षण होते हैं. पुरानी बीमारी के साथ रहना शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से चुनौतीपूर्ण होता है, इसलिए पुरानी बीमारियों और डिप्रैशन के बीच अन्य गंभीर बीमारियों का होना यानी कोमोरबिडिटी की शुरुआत हो जाना आश्चर्यजनक नहीं है.

कोमोरबिडिटी

एक या अधिक बीमारियों का एकसाथ होना कोमोरबिडिटी कहलाता है. भारत सरकार ने 20 बीमारियों को कोमोरबिडिटी की लिस्ट में रखा है. कोमोरबिडिटी से मतलब है कि एक ऐसा व्यक्ति जो एक ही समय पर एक से अधिक गंभीर बीमारी का शिकार हो. अगर किसी व्यक्ति को डायबिटीज और हाइपरटैंशन जैसी 2 गंभीर बीमारियां एक ही समय पर हैं तो उसे कोमोरबिडिटी माना जाएगा.

कोमोरबिडिटी में सिर्फ गंभीर बीमारियों को ही गिना जाता है. इस में ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, कैंसर, अस्थमा, फेफड़ों की बीमारी, हार्ट संबंधी रोग और पेट के गंभीर रोग हो सकते हैं. जो लोग कोमोरबिडिटी के शिकार होते हैं उन की इम्युनिटी कमजोर होती है जिस के चलते वे जल्दी वायरस या मौसमी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. इसलिए ऐसे लोगों को अपनी सेहत का खास खयाल रखना पड़ता है और नियमित समय पर टैस्ट और चैकअप के लिए डाक्टर्स के पास जाना पड़ता है. जाहिर है इस में पैसा भी खूब खर्च होता है.

क्रौनिक या लाइफलिमिटिंग यानी लाइलाज बीमारी के लक्षण होने के बाद परेशान होना सामान्य है. ऐसे में जिंदगी की नई सीमाएं तय होने लगती हैं. खानेपीने पर प्रतिबंध शुरू हो जाता है. इच्छित चीजों से दूर होना पड़ता है. शारीरिक रूप से क्या काम करें, क्या न करें इस का निर्धारण करना पड़ता है जो निश्चित रूप से मानसिक तकलीफ देता है और आप अपने इलाज या भविष्य के बारे में सोच कर घबराहट महसूस कर सकते हैं.

वर्तमान में, अमेरिका में 10 में से 6 लोग किसी दीर्घकालिक या क्रौनिक बीमारी से पीडि़त हैं और नैशनल इंस्टिट्यूट औफ मैंटल हैल्थ के अनुसार जो लोग इन बीमारियों से पीडि़त हैं उन के लिए मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है.

क्या करें

यदि आप की मानसिक सेहत आप की बीमारी की वजह से प्रभावित हो रही है तो मदद लेना महत्त्वपूर्ण हो जाता है. अपने मानसिक स्वास्थ्य का इलाज करने से आप के दैनिक जीवन में सुधार हो सकता है और आप को शारीरिक बीमारी का सामना करने में मदद मिल सकती है.

डरें नहीं

जब आप को पता चले कि आप किसी ऐसी बीमारी के शिकार हो गए हैं जो अब जीवनपर्यंत साथ चलेगी तो इस से डरें नहीं, बल्कि इसे एक चुनौती की तरह लें. यह एक कटु सत्य है कि जीवन एक न एक दिन समाप्त होना ही है तो जितने दिन भी जीवन है उसे पूरी गर्मजोशी से जिएं. आप की बीमारी के लिए डाक्टर आप को दवा देंगे, हो सकता है आप की बीमारी ठीक हो जाए, न ठीक हो सके तो दवाओं से वह नियंत्रण में रहेगी. लेकिन अगर आप डर गए और आप ने तनाव को बढ़ने दिया तो एक बीमारी के साथ कई अन्य बीमारियां आप को जकड़ लेंगी. इस से आप को दी जाने वाली दवाओं और इंजैक्शन की संख्या में बढ़ोतरी हो जाएगी. साथ ही खानेपीने की कई चीजों पर प्रतिबंध लग जाएगा.

जीवन में परिवर्तन लाएं

बीमारी का पता लगने से पहले जिस तरह की दिनचर्या चल रही थी, उसे थोड़ा बदल दें. सुबह की शुरुआत फ्रैश हवा में टहलने से करें. लंबी सांसें फेफड़ों में

भरें और छोड़ें, इस से पूरे शरीर की कोशिकाओं में औक्सीजन पहुंचेगी. अच्छे विचारों को ग्रहण करें. कौमेडी फिल्में देखें. हिंसा, तनाव और रोनेधोने वाली पारिवारिक फिल्मों से किनारा कर लें. उन दोस्तों से मिलें जो खुशदिल हों और आप को भी खुश रखते हों.

उन लोगों से दूर हो जाएं जो सिर्फ नकारात्मक बातें करते हैं या आप की बीमारी पर अफसोस जाहिर करते रहते हैं या अपनी बीमारियों या अभावों का रोना रोते रहते हों. घर वालों के साथ हर वक्त अपनी बीमारी की चर्चा न करें. अपनी बीमारी का न खुद तनाव लें और न घर वालों को दें. स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही छोड़ कर डाक्टर की सलाह के अनुसार समय से दवा और खाना खाएं. अगर नशीली चीजों का सेवन करते हों तो वह तुरंत त्याग दें. कौफी या चाय भी कम से कम पिएं.

हैल्दी खाएं

फास्ट फूड, जैसे बर्गर, पिज्जा आदि से खुद को दूर करें. बाजार के बने पकवान, जैसे मिठाइयां, नमकीन, छोलेभठूरे का भी त्याग करें. कोल्ड ड्रिंक और शराब के सेवन से भी दूर रहें. बीमारी के बावजूद अगर आप स्वस्थ और ऊर्जावान रहना चाहते हैं तो घर पर बना सादा खाना ही सर्वोत्तम है. हरी सब्जियां, सलाद, दाल, दूध आदि का सेवन करें. हलका सुपाच्य भोजन ही शरीर को तंदुरुस्त रखता है. चटोरी जबान के बहकावे में आ कर अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ न करें.

ऐक्सरसाइज करें

गंभीर बीमारी के इलाज के साथसाथ हलकी ऐक्सरसाइज और सुबहशाम का टहलना आप को महसूस ही नहीं होने देगा कि आप बीमार हैं. आप का शरीर जितना ऐक्टिव रहेगा, बीमारी का महसूस होना उतना ही कम होगा. इस से दवाओं की मात्रा भी कम की जा सकती है. लेकिन अगर बीमारी से डर कर आप ने बिस्तर पकड़ लिया तो आप का शरीर कई गंभीर बीमारियों का घर बन जाएगा और दवाओं की मात्रा बढ़ती चली जाएगी.

डाक्टर से परामर्श लें

शुगर, हार्ट डिजीज, बीपी आदि के मरीज समयसमय पर डाक्टर से अपना चैकअप जरूर करवाते रहें. समय पर सभी टैस्ट करवाएं. सही खानपान, ऐक्सरसाइज, आशावादिता, नियमित दवा के सेवन से कई बार डाक्टर दवाओं की मात्रा काफी कम कर देते हैं. सूर्यभान सिंह को जब हार्ट अटैक पड़ा था तब डाक्टर ने बंद धमनी को खोलने के लिए एक स्टंट डाला था. एक अन्य धमनिका को उन्होंने दवाओं द्वारा खोला.

शुरू के एक साल तक सूर्यभान सिंह ने काफी दवाइयां खाईं मगर स्वस्थ खानपान और सकारात्मक जीवनचर्या के चलते उन की दवाओं की मात्रा अब आधी से भी कम हो गई है. इसी तरह शुगर के जो मरीज अपनी दिनचर्या को ठीक रखते हैं, देखा गया है कि उन के इंसुलिन लेने की मात्रा में डाक्टर कमी कर देते हैं या जो लोग दवा ले रहे हैं उस की मात्रा भी कम कर दी जाती है.

घूमने जाएं

गंभीर बीमारी हो जाने का यह मतलब नहीं है कि आप घर में बंद हो जाएं और बीमारी का मातम मनाते रहें. खुश रहें और परिवार के साथ हर पल को एंजौय करें. छुट्टियों में बीवीबच्चों के साथ घूमने जाएं, दोस्तों के साथ पिकनिक मनाएं, हिल स्टेशन की सैर करें, शौपिंग करें, लौंग ड्राइव पर जाएं, फिल्म देखें, पार्टी करें. ये सब चीजें जीवन में उत्साह का संचार करती हैं.

अपने पसंदीदा काम करें

घरपरिवार, बच्चों की देखभाल और भागदौड़भरी जिंदगी में कई बार हमारे पसंदीदा काम या हौबीज बहुत पीछे छूट जाते हैं. उन्हें फिर से शुरू करें. आप उन में जो खुशी पाएंगे वह आप की बीमारी को कंट्रोल करने में बहुत मददगार होगी.

लखनऊ के रहने वाले 55 वर्षीय संजय गुप्ता को जब फेफड़ों की बीमारी हुई तो वे बड़े हताश हो गए. जरा सा चलने पर या काम करने पर उन की सांस धौंकनी की तरह चलने लगती थी. लिहाजा उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और घर में बंद हो गए. घर के लोग भी उन की उदासी देख कर उदास रहने लगे.

एक दिन उन की बचपन की एक सहेली उन का हालचाल लेने आई तो उस ने गोदाम में रखा उन का हारमोनियम निकलवाया. ?ाड़पोंछ कर उन के सामने रख दिया और बोली, ‘‘लगाओ सुर.’’

संजय उदास स्वर में बोले, ‘‘फेफड़े की बीमारी है, अब क्या सुर लगेगा.’’

मगर सहेली के इसरार करने पर उन्होंने अपने पसंदीदा गाने की कुछ पंक्तियां सुनाईं. सहेली ने भी गाने में साथ दिया. एक वक्त था जब संजय अपने कालेज में एक अच्छे सिंगर के रूप में जाने जाते थे. फिर समय के साथ गाना छूट गया. उस दिन सहेली द्वारा पुरानी यादें ताजा हुईं. संजय को भी बहुत अच्छा लगा. उन की पत्नी के चेहरे पर भी काफी समय बाद मुसकान आई.

रिश्तेदारों से मिलेंजुलें

गंभीर बीमारी होने का यह मतलब नहीं है कि आप दुनिया से कट जाएं. ऐसा करने पर आप बिलकुल अकेले हो जाएंगे और हर वक्त अपनी बीमारी व परेशानी के बारे में ही सोचते रहेंगे. इस से सिर्फ तनाव बढ़ेगा जो अन्य बीमारियों को न्योता देगा. सही खानपान, वर्जिश और दवा के साथसाथ अपनी मानसिक सेहत के लिए दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलतेजुलते रहें. हंसीठट्ठा करें. उन के दुखसुख में भागीदार बनें.

अकेले न रहें

गंभीर बीमारी से पीडि़त कभी भी अकेले न रहें. इस के लिए बीमार व्यक्ति के परिवार वालों को भी ध्यान रखना होगा. बीमार को अकेला छोड़ने का मतलब है उस को बीमारी की तरफ और तेजी से धक्का देना. इसलिए सब साथ में रहें और अपने मन की बात शेयर करें.

सकारात्मक रहें

मृत्यु पर किसी का वश नहीं है. वह आज भी आ सकती है और सालों बाद भी. इसलिए बीमार होने पर भी यह कतई न सोचें कि बस, अब तो मौत का इंतजार ही बाकी रह गया है. जितना भी जीवन आप के पास है उसे पूरी सकारात्मकता से जिएं. पौजिटिव रहने से आप बीमारी को मात भी दे सकते हैं या उस के बढ़ने की दर को कम कर सकते हैं. ऐसे कितने ही कैंसर पेशेंट हैं जिन्होंने सही खानपान, वर्जिश और सकारात्मक जीवनशैली से कैंसर जैसी बीमारी को भी मात दे दी और आज वे बिलकुल स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

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