हमारे देश के नौजवान सिर्फ मल्टीनैशनल कंपनियों में नौकरी या फिर कोई बड़ा बिजनैस कर के ही लाखों की कमाई नहीं कर सकते, बल्कि डेरी फार्मिंग के जरीए भी हर महीने लाखों रुपए कमा सकते हैं.

मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के शुजालपुर तहसील के ग्राम पटलावदा के प्रगतिशील डेरी किसान देवेंद्र परमार ने इसे साबित कर के दिखलाया है. 8वीं जमात के बाद पढ़ाई छोड़ कर डेरी व्यवसाय में उन्होंने अपना पूरा ध्यान लगाया. पहले उन्होंने छोटे लैवल से इस व्यवसाय की शुरुआत की, आज बड़े पैमाने पर उन का डेरी का कारोबार है, जिस से तकरीबन 2 लाख से 2.50 लाख रुपए महीने तक की आमदनी किसान को होती है.

किसान यदि ठान ले तो मिट्टी से सोना उगा सकता है. मध्य प्रदेश के एक किसान ने अपनी मेहनत और खेती में होने वाले नवाचार की बदौलत इस बात को साबित कर के दिखाया है. गांव के किसान ने अपने खेत में प्राकृतिक गैस का निर्माण कर दूसरे किसानों के लिए कुछ कर दिखाने की प्रेरणा दी है.

किसान देवेंद्र परमार वैसे तो 8वीं जमात तक ही पढ़े हैं, मगर खेती करने का उन का तरीका सब से अलग है. खेतीबारी के साथ देवेंद्र पशुपालन भी बड़े पैमाने पर करते हैं.

तकरीबन 100 दुधारू पशुओं को पालने वाले किसान देवेंद्र परमार ने खेत में बायोगैस संयंत्र यानी प्लांट लगाया है. इस प्लांट में बनी सीएनजी से वह न केवल अपने वाहन दौड़ा रहे हैं, बल्कि बिजली भी पैदा कर रहे हैं. इस प्लांट से रोज 70 किलो गैस का उत्पादन हो रहा है. इस गैस का उपयोग वह सीएनजी के रूप में अपने वाहनों में कर रहे हैं, साथ ही साथ तकरीबन 100 यूनिट बिजली भी पैदा कर रहे हैं.

इस के अलावा बायोगैस प्लांट पर बनी केंचुआ खाद बेच कर उन्हें रोजाना 3,000 रुपए और दूध बेच कर 4,000 रुपए हर महीने आमदनी होती है. इस तरह से महीनेभर में तकरीबन 2 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं यानी सालाना तकरीबन 25 लाख रुपए की आमदनी किसान को हो रही है.

4 साल से कैमिकल खाद का उपयोग नहीं

खेती में नवाचार करने वाले देवेंद्र परमार बताते हैं कि उन के पास 7 बीघा जमीन है. बीते 4 साल से उन्होंने अपने खेतों में कैमिकल खाद का उपयोग नहीं किया है. उन के पास तकरीबन 100 दुधारू पशु हैं, जिन से रोजाना 25 क्विंटल गोबर जमा होता है. आटोमैटिक मशीन के जरीए गोबर 100 घनमीटर के बायोगैस प्लांट में डाला जाता है. इस से 100 यूनिट यानी 12 किलोवाट बिजली पैदा हो रही है.

वह आगे बताते हैं कि गोबर के कचरे से केंचुआ खाद बनाई जाती है. तकरीबन 300 किलोग्राम जैविक खाद 10 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से वह बेचते हैं. खाद को बेचने के लिए किसी बाजार के बजाय आसपास के गांवों के किसानों को ही बेचा जाता है. बायोगैस प्लांट से निकले कचरे से केंचुआ खाद बनाई जाती है.

किसान देवेंद्र परमार बताते हैं कि रोजाना 3,000 रुपए की जैविक खाद बेचता हूं यानी महीने में 90,000 रुपए की खाद बेच देता हूं. 500 लिटर दूध स्वयं के दुधारू मवेशियों से मिलता है और 1,500 लिटर दूध आसपास के गांवोंकसबों से कलेक्शन कर सांची दुग्ध संघ भोपाल को बेचा जाता है. लागत वगैरह का खर्च काट कर तकरीबन 4,000 रुपए की कमाई दूध डेरी से हो जाती है. जरूरत पर अतिरिक्त बिजली प्राप्त कर के 5 किलोवाट का सोलर पैनल भी लगा रखा है.

ऐसे आया आइडिया

देवेंद्र परमार बताते हैं कि मेरा डेरी का व्यवसाय है. आसपास के गांव से दूध खरीद कर लोडिंग वाहन, कार और ट्रैक्टर के जरीए लाते हैं. रोज 3,000 रुपए का डीजल और पैट्रोल डलवाना पड़ता था. इस खर्च से परेशान हो कर खुद के गोबर गैस प्लांट को बायोगैस प्लांट के रूप में कनैक्ट कराया.

बिहार से आए इंजीनियर ने प्लांट लगाने में मदद की. इस में 25 लाख रुपए की लागत आई. अब प्लांट से खेत में ही बैलून में रोज तकरीबन 70 किलो गैस का उत्पादन हो रहा है. इस से सीएनजी के रूप में उपयोग कर बोलेरो पिकअप वाहन, आल्टो कार और ट्रैक्टर और बाइक बिना खर्च के चला रहा हूं.

देवेंद्र परमार ने यह भी बताया कि 2,500 किलो गोबर से चलने वाले बायोगैस संयंत्र में बनने वाली गैस में 60 फीसदी मीथेन और 40 फीसदी कार्बनडाईऔक्साइड गैस होती है. कार्बनडाईऔक्साइड को पानी व औयल से प्यूरीफायर करते हुए अलग किया जाता है, जिस में पानी के साथ कार्बनडाईऔक्साइड एक पाइप से बाहर निकल जाती है और दूसरे पाइप से मीथेन गैस बैलून में आ जाती है. इसी गैस को कंप्रेशर की मदद से वाहनों में सीएनजी के रूप में उपयोग कर डालते हैं. इस तरह तैयार की गई सीएनजी डीजल से ज्यादा 15 किलोमीटर प्रति किलोमीटर का ऐवरेज देती है और प्रदूषण रोकने का काम भी करती है.

देवेंद्र परमार आसपास के इलाके के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं. उन के बनाए बायोगैस प्लांट और सीएनजी से चलने वाले वाहनों को देखने के लिए रोजाना ही लोग उन के फार्महाउस पर पहुंचते हैं.

मवेशियों के लिए व्यवस्थित बनाए गए शेड में इस तरह नालियां और कंप्रेशर फिट किए गए हैं, जिस से गौमूत्र और गोबर आटोमैटिक मशीन के जरीए कुछ ही मिनटों में प्लांट में चला जाता है.

मवेशियों को दिया जाने वाला चारा काटने से ले कर उन्हें दूध बढ़ाने के लिए दिया जाने वाला दाना बनाने की मशीन भी खेत पर लगा रखी है. यहां सिर्फ 5 मजदूर काम करते हैं. अपनी डेरी में पशुओं की देखभाल और दूध दुहने के लिए 4 लोगों का स्टाफ रखा है. पशुओं के बीमार होने पर तत्काल पशु चिकित्सक को बुलाया जाता है और उन का पूरा उपचार कराया जाता है.

तकरीबन 3-4 सालों से सफल डेरी का संचालन कर रहे देवेंद्र परमार का कहना है कि जो व्यक्ति काम करने से नहीं थकता है, उसी को डेरी खोलनी चाहिए. डेरी फार्मिंग में मेहनत तो बहुत है, लेकिन इसे करने से आत्मसंतुष्टि भी मिलती है.

देवेंद्र परमार ने 3 बीघा जमीन में जानवरों के लिए हरे चारे का इंतजाम किया है. इस से उन्हें सालभर चारा मिलता है. डेरी फार्म पर ही पशुओं का दाना बनाने की मशीन भी है, जिस से उन्हें दाना बाजार से नहीं खरीदना पड़ता. बाजार में शुद्ध डेरी उत्पादों की काफी मांग है और इसे पूरा करने के लिए वह जल्द ही अपनी डेरी पर छाछ, दही, पनीर, लस्सी और देशी घी बनाने की योजना पर भी काम कर रहे हैं.

ऊर्जा मंत्रालय ने बोर्ड लगाया, अनुदान नहीं दिया

सरकारी नीतियों के भरोसे कुछ हासिल नहीं होता है, खुद की मेहनत और पूंजी ही किसी धंधे में सफल होने की लिए जरूरी है. देवेंद्र परमार ने स्वयं के खर्चे पर 100 घनमीटर का बायोगैस प्लांट बनाया है, जिस में 25 लाख रुपए की लागत आई है.

प्लांट लगाते समय ऊर्जा मंत्रालय ने देवेंद्र परमार को 4 लाख, 20 हजार अनुदान राशि देने का वादा किया था, पर वह उन्हें नहीं मिल सका है. ऊर्जा मंत्रालय ने अपना बोर्ड जरूर लगा रखा है, मगर कई बार आवेदन देने के बाद भी आज की तारीख तक उन्हें अनुदान राशि नहीं मिली है. मगर देवेंद्र परमार ने हार नहीं मानी और अपनी मेहनत के बूते इस मुकाम पर पहुंचे हैं कि आसपास के इलाके के लोग उन के इस काम की मिसाल देते हैं.

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