सेना को कमजोर करना सरकार की सब से बड़ी भूल होगी. अग्निपथ योजना किसी भी कोण से यह आश्वस्त नहीं करती कि इस से सेना युवा और तेज होगी. उलटे यह हर साल रिटायर हो रहे तीनचौथाई ट्रेंड सैनिक देश की गरीबी, बेरोजगारी और युवा सपनों पर पानी फेरेगी.

कुछ दिनों पहले बागपत के बड़ौत शहर में जूते के थोक व्यापारी ने फेसबुक लाइव पर कैमरे के सामने जहर खा कर सुसाइड करने की कोशिश की. व्यापारी को जहर खाता देख उन की पत्नी ने जहर की पुडि़या छीनने को कोशिश की, लेकिन तब तक व्यापारी ने लोगों से वीडियो को वायरल करने की अपील करते हुए पानी के साथ जहर निगल लिया. इस के बाद उन की पत्नी ने भी बचा हुआ जहर खा लिया. व्यापारी ने वीडियो में कहा कि सरकार छोटे दुकानदारों और किसानों की हितैषी नहीं है.

उत्तराखंड का 24 वर्षीय सोनू बिष्ट एक साल से बेरोजगार था. उस के पिता नहीं थे और मां गंभीर रूप से बीमार थी. कुछ समय उस ने सीटीआर निदेशक के कार्यालय में कंप्यूटर औपरेटर का कार्य किया, बाद में उसे हटा दिया गया. वह

4 बार सेना में भरती के लिए गया पर भरती न हो पाया. पिछले साल जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व के बिजरानी रेंज जंगल में उस का शव पेड़ से लटका मिला. दुनिया छोड़ने से पहले उस ने अपने सारे शैक्षिक प्रमाणपत्रों को भी जला दिया था.

सेना में भरती की आस लिए

24 वर्षीय सुरेश भींचर 29 मार्च की रात 9 बजे सीकर, राजस्थान के जिला स्टेडियम से हाथों में तिरंगा उठाए दौड़ता हुआ निकला. 50 घंटे की दौड़ और

350 किलोमीटर का रास्ता तय कर के वह 2 अप्रैल की शाम 6 बजे दिल्ली पहुंचा और यहां उस ने अपने गृह जनपद नागौर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बने हनुमान बेनीवाल से सेना में भरती खुलवाने का आग्रह ज्ञापन सौंपा.

राजस्थान के नागौर जिले के सुरेश भींचर के भीतर सेना में शामिल होने के जनून ने उसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया. सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का यह उस का शांतिपूर्ण प्रयास था, जो पिछले कई सालों से सेना में भरती हो कर भारत मां की सेवा करने का सपना देख रहा है.

सुरेश ने कहा, ‘‘2 वर्षों से सेना में भरती बंद है. नागौर, सीकर, ?ां?ानू के युवाओं की उम्र निकली जा रही है. वे भरती की आस लिए कठोर वर्जिश कर रहे हैं, दौड़ लगा रहे हैं. उन के परिवार के लोग अपना पेट काटकाट कर उन को अच्छी खुराक दे रहे हैं कि वे सेना भरती के इम्तिहान में सफल हों, लेकिन भरती नहीं खुल रही है. मैं उन सब युवाओं का संदेश देने के लिए दौड़ कर दिल्ली आया हूं, उन का जोश बढ़ाने आया हूं.’’

गौरतलब है कि सेना में युवा सिर्फ रोजगार पाने की लालसा से नहीं आते, बल्कि उन के खून में देशभक्ति उबाल मारती है. देश के लिए जान देने का जज्बा होता है, इसलिए आते हैं. जिन की पिछली कई पीढि़यां देश पर कुरबान हो गईं, सीमा पर शहीद हो गईं, वे अपने उन वीर सपूतों की जीवनगाथा और वीरता से प्रेरणा पा कर देश के लिए मरमिटने का सपना ले कर सेना में आते हैं.

8 मई को भिवानी की सड़कों पर तिरंगा हाथों में ले कर युवाओं ने सरकार से मांग की कि जल्द से जल्द सेना भरती खुलवाई जाए. इस से पहले फरवरी में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में एक रैली के दौरान युवाओं ने आग्रह किया था कि सेना भरती शुरू की जाए. राजनाथ सिंह से लोगों ने कहा कि युवाओं की उम्र निकली जा रही है. तब राजनाथ सिंह ने आश्वासन दिया था कि जल्दी ही भरतियां शुरू होंगी, मगर हुआ कुछ नहीं.

युवाओं में हताशा बढ़ने लगी. कुछ दिनों पहले ही राहुल गांधी ने ‘दो भारत’ की बात क्या कही कि बवाल मच गया. बवाल इसलिए क्योंकि मोदी सरकार के समक्ष गरीबी और बेरोजगारी कभी मुद्दा ही नहीं रहीं. वह 2014 से शाइनिंग इंडिया, विश्वगुरु, महाशक्ति जैसे दिवास्वप्न में खोई हुई है. उस चमचमाहट के आगे देश की भूखी, नंगी, बेरोजगार जनता उसे दिखती ही नहीं है. भूखीबेबस कराहें सरकार के कानों तक तब तक नहीं पहुंचतीं जब तक वे भयावह चीखें न बन जाएं.

बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान इन 4 राज्यों से सब से ज्यादा नौजवान सेना में आते हैं. 15-16 साल की उम्र से ही वे तैयारी में जुट जाते हैं. रोजाना कड़ी वर्जिश करते हैं, कईकई किलोमीटर की दौड़ लगाते हैं. इस के लिए वे काफी पैसा अपनी अच्छी खुराक और अपने ट्रेनर्स पर खर्च करते हैं. बीते 4 वर्षों से देश के अलगअलग हिस्सों में नौजवान सेना भरती शुरू करवाने की मांग ले कर कई बार सड़कों पर उतरे. दिल्ली के जंतरमंतर पर भी धरना दिया. मगर उन के शांतिपूर्ण प्रदर्शन से सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगी. मोदी सरकार इन नौजवानों के भविष्य पर ताला जड़ कर बैठी रही और अब जब ताला खुला तो उस में ऐसा ‘अग्निपथ’ नजर आया कि युवा आगबबूला हो गए और उस के बाद तो आक्रोशित युवाओं ने देशभर में आग लगा दी.

क्या है ‘अग्निपथ’

केंद्र सरकार ने 14 जून को सेना में छोटी अवधि की नियुक्तियों की घोषणा की. सरकार ने इसे ‘अग्निपथ योजना’ का नाम दिया. योजना के मुताबिक अब सेना में सिर्फ 4 वर्षों के लिए जवानों की भरती होगी, जिन्हें ‘अग्निवीर’ बुलाया जाएगा. योजना के तहत भरती किए गए युवाओं में से सिर्फ 25 प्रतिशत युवाओं को भारतीय सेना में 4 वर्षों के बाद आगे बढ़ने का मौका मिलेगा जबकि 75 प्रतिशत अग्निवीरों को नौकरी छोड़नी होगी.

4 वर्ष के बाद जो अग्निवीर सेना से रिटायर हो कर बाहर निकलेंगे उन के सामने क्या विकल्प होगा, इस का कोई जवाब सरकार के पास नहीं है.

भारत पहली बार सेना में इतनी कम अवधि के लिए युवाओं को भरती करने जा रहा है. जबकि अभी तक जो जवान सेना में आते थे, वे अगले 19 साल तक देश की सेवा करते थे. रिटायर होने पर उन्हें पैंशन मिलती थी और कैंटीन व स्वास्थ्य सेवाओं का फायदा मिलता था. मगर अग्निवीरों के लिए ऐसा कुछ नहीं है. कई सालों से सेना भरती खुलने के इंतजार में दिनरात मेहनत कर रहे युवा सरकार की 100 दिन की रोजगार गारंटी जैसे मनरेगा की तर्ज पर 4 साल के लिए सेना में भरती योजना ‘अग्निपथ’ को देख कर भावी अग्निवीर भयंकर रूप से उग्र हो गए.?

धूधू कर जल उठा देश

14 जून को ‘अग्निपथ योजना’ की घोषणा होते ही बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, ?ारखंड, हरियाणा, राजस्थान सभी जगह हालात बेकाबू हो गए. सेना में भरती की आस लगाए बैठे युवा हाथों में लाठीडंडा और मशालें उठाए सड़कों पर उतर आए. युवाओं का गुस्सा और प्रदर्शन का स्केल इतना व्यापक हो गया कि उन के आगे पुलिस बौनी हो गई.

पटना से सटे दानापुर रेलवे स्टेशन को तबाह कर दिया गया, जबकि वहां बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात था. पूरे प्लेटफौर्म पर प्रदर्शनकारियों ने बेखौफ तोड़फोड़ की और कई ट्रेनों को आग के हवाले कर दिया. फरक्का एक्सप्रैस और रेलगाड़ी के 2 इंजन पूरी तरह जल कर राख हो गए. स्टेशन के बाहर खड़ी बाइकें और अन्य वाहन भी प्रदर्शनकारियों ने फूंक दिए. रेलवे सुरक्षा पुलिस की चैकपोस्ट को भी नहीं छोड़ा.

समस्तीपुर में आंदोलनकारियों ने दरभंगा-नई दिल्ली संपर्क क्रांति एक्सप्रैस को फूंक दिया. पुलिस कुछ नहीं कर सकी. इस तरह बिहार और ?ारखंड के कई इलाके हिंसक और उग्र प्रदर्शनों की भेंट चढ़ गए.

नालंदा में हटिया-इसलामपुर ट्रेन की बोगियों को फूंक दिया गया. पालीगंज में बस जला दी गई. एक अनुमान के अनुसार अब तक रेलवे की 700 करोड़ रुपए की संपत्ति ‘अग्निपथ’ की आग में स्वाहा हो चुकी है.

मथुरा में नैशनल हाईवे नंबर दो से जाम हटाने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. वहां अनेक वाहनों को नुकसान पहुंचाया गया और कई यात्री चोटिल हुए. बलिया में रेलवे ट्रैक पर हिंसा और तोड़फोड़ हुई. वहां रेल कोच में आग लगा दी गई. शहर के भीतर पथराव हुआ.

हरियाणा का भी यही हाल रहा. रोहतक में धारा 144 लगी होने के बावजूद ट्रैक्टरों में सवार हो कर प्रदर्शनकारियों ने भाजपा दफ्तर को घेर लिया. बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर निकल आए.

भाजपा नेताओं पर फूटा गुस्सा बिहार में कई जगहों पर भाजपा के दफ्तरों और नेताओं के घरों पर हमले हुए.

मधेपुरा में भी भाजपा कार्यालय पर सैकड़ों युवाओं ने हमला बोला. 16 जून को नवादा स्थित भाजपा कार्यालय में आग लगा दी गई और विधायक की गाड़ी समेत पुलिस की गाड़ी भी जला दी गई. ऐसे ही उग्र प्रदर्शन देश के अन्य राज्यों में भी हुए, लगातार जारी हैं और इस की वजह है युवाओं को भरी जवानी में भूतपूर्व बनाने की मोदी सरकार की अभूतपूर्व योजना अग्निपथ. सेना में भरती हो कर देश सेवा की चाह रखने वाले युवाओं के लिए लाई गई अग्निपथ अब सरकार के लिए ही अग्निपथ बन गई है. जिन्हें सरकार अग्निवीर बनाने वाली थी उन्होंने मशालें ले कर पूरे देश में अग्नि लगा दी.

आखिर क्यों अग्निवीर हुए इतने आगबबूला

दरअसल सरकार ने कोविड के नाम पर सेना में रूटीन भरती 2 वर्षों से बंद कर रखी है, जिस के लिए युवा शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन और आंदोलन कर रहे थे. 2 वर्षों से रुकी हुई भरती को छोड़ दो तो इस से पहले तक हर साल तीनों सेनाओं में करीब 60 हजार जवानों की भरती होती थी. करीब इतने ही फौजी रिटायर हो जाते थे.

अब सामान्य भरती प्रक्रिया शुरू करने के बजाय सरकार 4 साल की अग्निपथ योजना ले आई. इस योजना में युवाओं को सिर्फ 4 साल के लिए ही सेना में भरती किया जाएगा और 4 साल बाद

उन में से 75 प्रतिशत युवाओं को निकाल दिया जाएगा. सिर्फ 25 प्रतिशत को ही अगले 15 वर्षों के लिए सेना में सेवा का मौका मिलेगा.

सरकार का तर्क

इस योजना को ले कर सरकार के अपने तर्क हैं. रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इस से 2030 तक सेना की औसत उम्र 32 से घट कर 24 से 26 साल हो जाएगी. सेना अगले

10 सालों में युवा और अनुभवी फौजियों के अनुपात को  1:1 तक लाना चाहती है. अग्निपथ योजना के तहत अगले 10 सालों में तीनों सेनाओं में आधे अग्निवीर होंगे. इस से सेना ज्यादा युवा, ज्यादा फिट और ट्रेनिंग देने लायक हो जाएगी.

अगर 2022-23 के रक्षा बजट को देखें तो यह 5.25 लाख करोड़ रुपए है. इस में से 1.19 लाख करोड़ रुपए केवल पैंशन में खर्च हो जाएंगे और तकरीबन इतने ही रुपए सैलरी पर खर्च होंगे. करीब पौने 3 लाख करोड़ रुपयों से सेना की बाकी जरूरतें पूरी होंगी. अग्निवीर योजना से पैंशन और सैलरी पर होने वाले खर्च का एक बड़ा हिस्सा बचेगा, जिसे सेना को अच्छे हथियार और टैक्नोलौजी देने में खर्च किया जा सकेगा.

सरकार ने अपना खर्च बचाने की तैयारी तो कर ली मगर उन लाखों नौजवानों के भविष्य के बारे में नहीं सोचा जो बचपन से सेना में आने का सपना पाले हुए थे. सेवानिवृत्त हुए तो रिटायर्ड फौजी कहलाएंगे, ताउम्र पैंशन पाएंगे, फौजियों को मिलने वाली अन्य सुविधाओं के हकदार होंगे और देश के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए तो शहीद का दर्जा पाएंगे.

सेना को कमजोर करने वाला कदम

रिटायर्ड मेजर जनरल अश्विनी सिवाच कहते हैं, ‘‘डिफैंस बजट में वेतन और पैंशन पर खर्च बढ़ता जा रहा है. सरकार पर दबाव था. वह किसी तरह पैंशन को कम करना चाहती थी. दूसरा प्रैशर औसत उम्र को ले कर है. सरकार सेना में औसत आयु 26 साल से घटा कर 20-21 साल करना चाहती है.

रक्षा विशेषज्ञ पी के सहगल यह सवाल उठाते हैं कि मात्र 6 महीने की ट्रेनिंग में भला एक बेहतर योद्धा कैसे तैयार होगा? गौरतलब है कि अग्निपथ योजना के तहत युवाओं को सिर्फ 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाएगी और उस के बाद उन की नियुक्ति हो जाएगी.

रक्षा विशेषज्ञ पी के सहगल का कहना है कि एक अच्छा सैनिक बनने में 6 से 7 साल लग जाते हैं. सेना से जुड़ाव, देश से जुड़ाव और जिम्मेदारी की भावना मजबूत होने में, सेना की गोपनीयता को आत्मसात करने में इतना वक्त लग जाता है. इस के अलावा आज सेना के पास बहुत ही सुपर सोफिस्टिकेटेड इक्विपमैंट आ गए हैं. ये इक्विपमैंट आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस से लैस हैं. 6 महीने की ट्रेनिंग में जवान उन इक्विपमैंट्स को हैंडल करना सीख लेंगे और कोई जंग जीत सकेंगे, यह सोचना एक बहुत बड़ी भूल है.

उल्लेखनीय है कि सेना अपने रंगरूट को तमाम मानकों पर खरा उतरने के बाद रेजीमैंटल ट्रेनिंग के लिए भेजती है. वहां उसे 19 माह तक जबरदस्त शारीरिक परिश्रम के दौर से गुजरना पड़ता है.

दिन 5 बजे से शुरू होता है और रात 10 बजे खत्म होता है. सप्ताह के सातों दिन यह ट्रेनिंग चलती है. कुल मिला कर करीब 5 हजार घंटे की कड़ी शारीरिक ट्रेनिंग के बाद सेना का जवान तैयार होता है.

यूपीएससी की कठिन परीक्षा को पार कर के सेना में जाने वाले अफसर को नैशनल डिफैंस एकेडमी (एनडीए) में 3 साल और उस के बाद इंडियन मिलिट्री एकेडमी या औफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी में एक साल ट्रेनिंग के बाद तैनाती मिलती है.

ऐसे ही वायुसेना में पहले 6 माह की बेसिक ट्रेनिंग, 6 महीने की विशेष श्रेणियों की ट्रेनिंग और बाकी 6 महीने की एंट्री ट्रेनिंग होती है.

नौसेना में सेलर की ट्रेनिंग 6 महीने के लिए आईएनएस चिल्का प्रशिक्षण स्कूल में होती है. इस के बाद 6 माह विभिन्न श्रेणियों की ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है जहां उसे समुद्री सेलिंग का प्रशिक्षण भी दिया जाता है.

एनडीए में 3 साल गुजारने के बाद नौसेना अफसर एक साल नौसैनिक एकेडमी में जाता है. इस के बाद 6 माह की सी-कैडेट ट्रेनिंग, 6 माह की मिड-सी ट्रेनिंग होती है.

इन के मुकाबले अग्निवीरों की मात्र 6 माह की ट्रेनिंग उन्हें सेना के लिए कितना उपयुक्त बनाएगी?

अश्विनी सिवाच ने भी 4 साल के लिए फौज में आए सैनिकों की वफादारी पर प्रश्नचिह्न लगाया है. वे कहते हैं, ‘‘फौज के अंदर नाम, नमक, निशान के काफी माने होते हैं. जिस जवान को पता है कि उस की 4 साल की ही नौकरी है उस में सामान्य जवानों की तरह वफादारी का जज्बा ही नहीं होगा.’’

गैरसामाजिक गतिविधियों में लिप्तता संभव

अश्विनी सिवाच एक और बड़े खतरे से आगाह करते हैं. उन का कहना है, ‘अग्निवीर’ बैटल ट्रेंड जवान होंगे. गरम खून होगा. ऐसे में 21 साल की उम्र में सेना से निकाले जाने के बाद अगर बाहर उन को ठीकठाक जौब नहीं मिली और ये किसी एंटीसोशल एक्टिविटी की तरफ चले गए तो क्या होगा? इस दिशा में अगर सरकार ने नहीं सोचा तो वह बड़ी गलती कर रही है. रिटायरमैंट के बाद इन की जौब सुनिश्चित करनी होगी, वरना देश के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा हो सकता है.’’

सेना में प्रयोग न करे सरकार

अश्विनी सिवाच का कहना है कि ‘‘सैनिकों की भरती पर प्रयोग करने का कदम सही नहीं है. सरकार को एक्सपैरिमैंट करना ही था तो पैरामिलिट्री पर करना चाहिए था, उस के लिए सेना सही नहीं है.’’

पाकिस्तान और चीन बौर्डर का नहीं रखा ध्यान

रक्षा विशेषज्ञ दिनेश नैन एक टीवी चैनल से बातचीत में कहते हैं, ‘‘सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि भारत के साथ पाकिस्तान और चीन के 2 बड़े बौर्डर हैं. इसे आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस की मशीनों से कवर करना नामुमकिन है. इसे सिर्फ ट्रेंड जवानों से ही कवर किया जा सकता है. ‘अग्निवीरों’ की नियुक्ति के बाद ट्रेंड सैनिकों की संख्या 25 फीसदी ही रह जाएगी क्योंकि 4 साल की सर्विस के बाद 75 फीसदी तो बाहर हो जाएंगे. जो रह जाएंगे उन की भी ट्रेनिंग उस दर्जे की नहीं होगी जैसी सामान्य जवान की होती है. इसलिए यह सेना को कमजोर करने वाला कदम है.’

इस के अलावा दिनेश नैन ने सेवानिवृत्ति के बाद सैनिकों को मिलने वाली नौकरियों पर भी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा, ‘‘हर साल करीब 60 हजार सैनिकों का रिटायरमैंट होता है. इतनी ही भरतियां होती हैं. कितने जवानों को रिटायरमैंट के बाद नौकरियां मिलती हैं? कुछ गार्ड एजेंसी में लग जाते हैं, कुछ प्राइवेट चौकीदार बन जाते हैं और अधिकांश अपने गांव लौट कर खेतीबाड़ी करते हैं और अपनी पैंशन के सहारे गुजरबसर करते हैं. ‘अग्निपथ योजना’ में 4 साल सेना को देने के बाद जिन तीनचौथाई सैनिकों को सेना से बाहर किया जाएगा उन के पास तो पैंशन भी नहीं होगी. जो पैसा उस वक्त उन्हें मिलेगा वह कितने दिन चलेगा?’’

दिनेश नैन की चिंता वाजिब है. पढ़ाईलिखाई की उम्र में सेना में भरती होने वाले नौजवान 22-25 साल में फिर बेरोजगार हो जाएंगे. 17 साल की आयु में सेना में भरती होने वाले जवान

10वीं-12वीं कक्षा तक ही शिक्षित होंगे. अगर वे सेना में ही रहते तो उच्च शैक्षणिक योग्यता की दरकार नहीं थी, क्योंकि वहां तो हथियार चलाना है और आदेश मानना है. मगर जब 4 साल बाद वे सेना से बाहर कर दिए जाएंगे और नौकरी खोजने जाएंगे तो 10वीं-12वीं पास को कौन सी अच्छी नौकरी मिलेगी? यानी सरकार ने उन की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के 4 साल भी ले लिए और उन को पूरी नौकरी भी नहीं दी, सिर्फ लौलीपौप थमा दिया.’’

पूंजीपतियों की प्राइवेट आर्मी बनेंगे अग्निवीर

मोदी राज में जिस तेजी से रेलवे, हवाईअड्डे, बंदरगाह अडानी-अंबानी ग्रुप्स को बेचे जा रहे हैं तो उन की देखभाल और सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में जवानों की भी जरूरत पड़ेगी. खनिज की बड़ीबड़ी खदानें इन पूंजीपतियों के हाथों में चली गई हैं, उन की सुरक्षा के लिए जवान चाहिए.

अगले 5 सालों में देश के अधिकांश पीएसयू बिक चुके होंगे और सैकड़ों एकड़ में फैले हुए इन के परिसर की देखभाल का जिम्मा, जो अभी सरकारी एजेंसियो के जिम्मे है, वह भी बड़े प्राइवेट औपरेटर्स के पास चला जाएगा. ऐसे में अपने चहेते पूंजीपतियों के लिए प्राइवेट आर्मी बनाने की पूरी तैयारी सरकार ने कर दी है. यंग और ट्रेंड जवानों की अब कमी नहीं होगी. शुरुआती 4-5 सालों में जितने भी अग्निवीर 4 साल की नौकरी के बाद सेना से बाहर किए जाएंगे वे वहीं खप जाएंगे.

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय तो खुलेआम कह चुके हैं, ‘मु?ो यदि अपनी भाजपा औफिस में सुरक्षा रखनी है तो मैं अग्निवीर को प्राथिमकता दूंगा.’ एक रिटायर्ड फौजी को अपने दफ्तर का गार्ड बनाने में विजयवर्गीय की छाती चौड़ी होती होगी.

4 साल की सेना में रह कर देशसेवा करने के बाद एक अग्निवीर जब निकलेगा तो उस समय तक उस की आयु 25 साल होगी. वह ऊर्जा से भरपूर होगा. हाथ में उस के

11 लाख रुपए होंगे. छाती पर अग्निवीर का तमगा लगा कर वह भाजपा और संघ के दफ्तरों के अलावा मोदी के चहेते पूंजीपतियों की सुरक्षा में व उन की गाडि़यों के दरवाजे खोलने बंद करने के लिए तैनात किया जाएंगे.

यह ट्रेनिंग दे कर प्राइवेट सैक्टर के हाथ में सैनिकों का दस्ता सौंपे जाने की तैयारी है, जिन का रेट बहुत

कम होगा, मात्र 8 हजार से 12 हजार रुपए महीना. तमाम कौरपोरेट सैक्टर्स में जो गार्ड काम कर रहे हैं वे लगभग इतनी ही सैलरी पर हैं.

फिर इन से यह सवाल भी होगा कि आप उन 25 प्रतिशत जवानों में क्यों नहीं आए जिन्हें आगे 15 सालों के लिए सेना में रखा गया है? जरूर आप में कमी होगी. इस तरह प्राइवेट सैलरी के बाजार में पूर्व अग्निवीर सैनिकों का भाव और गिर जाएगा.

जिन जवानों की शौर्यगाथा कहने में समूचे शब्दकोष में शब्द कम पड़ जाते हैं, उन की ऐसी दुर्दशा… आह…! फिर इस बात की क्या गारंटी है कि 4 साल में रिटायर कर देने का यह फार्मूला अर्ध सैनिक बलों और पुलिस के लिए नहीं आएगा? जो फार्मूला सेना में चल जाएगा वह आगे इन में क्यों नहीं चलाया जाएगा?

अग्निपथ योजना वापस नहीं ली जाएगी

अग्निपथ योजना को ले कर देशभर में हो रहे प्रदर्शन के बीच सभी सेनाओं के सर्वोच्च अधिकारियों, सेना के अतिरिक्त सचिव, लैफ्टिनैंट जनरल अनिल पुरी, थलसेना के लैफ्टिनैंट जनरल बंसी पोनप्पा, नौसेना के वाइस एडमिरल दिनेश त्रिपाठी और एयरफोर्स के एयर मार्शल सूरज ?ा द्वारा एक संयुक्त प्रैस कौन्फ्रैंस में यह साफ कह दिया गया है कि अग्निपथ योजना वापस नहीं होगी. सेना में आगे की सभी भरतियां अब इसी योजना के तहत होंगी.

लैफ्टिनैंट जनरल अनिल पुरी ने कहा है कि जो युवा प्रदर्शन और तोड़फोड़ में शामिल रहे हैं उन के लिए सेना में कोई जगह नहीं है. आवेदन करने वाले प्रत्येक युवा का पुलिस वैरिफिकेशन होगा. इस के साथ ही उन्होंने आवेदन और आगे की प्रक्रियाओं की डिटेल भी जारी कर दी है.

द्य    24 जून को वायुसेना, 25 जून को नौसेना और 1 जुलाई को थलसेना ने नोटिफिकेशन जारी करने की बात कही है.

25 हजार अग्निवीरों का पहला बैच दिसंबर में जौइन करेगा.

अग्निवीरों का दूसरा बैच फरवरी 2023 में जौइन करेगा.

नौसेना में महिला अग्निवीरों की नियुक्ति होगी जो युद्धपोतों पर तैनात होंगी.

अग्निवीर के शहीद होने पर एक करोड़ रुपया उन के आश्रितों को मिलेगा.

तीनों सेनाओं में अगले 5 साल में सवा लाख अग्निवीर तैयार होंगे.

अग्निपथ से टूटेगा सैनिकों का मनोबल

भूतपूर्व सैनिक संघ उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मेजर आशीष चतुर्वेदी लखनऊ के रहने वाले हैं. उन की 3 पीढि़यों ने सेना में रह कर देश की सेवा की है. मेजर आशीष चतुर्वेदी ने साल 2006 में सेना से रिटायर होने के बाद से भूतपूर्व सैनिकों के अधिकारों को ले कर लड़ाई लड़ने के लिए भूतपूर्व सैनिक संघ उत्तर प्रदेश की स्थापना की. इस संघ में 4 लाख 66 हजार के करीब सदस्य हैं. मोदी सरकार ने सेना में भरती के लिए अग्निपथ योजना की घोषणा की. इस को ले कर मेजर आशीष चतुर्वेदी से खास बातचीत हुई.

सेना के हित में नहीं : मोदी सरकार की अग्निपथ योजना के बारे में पूछने पर मेजर आशीष चतुर्वेदी कहते हैं, ‘‘सेना की चयन प्रक्रिया व ट्रेनिंग पूरी तरह से फ्री होती है. एक सैनिक की ट्रेनिंग में उस का खानपान, रहना, चिकित्सा और ट्रैवल फ्री होता है. सेना अभी तक जिस को ट्रेनिंग देती थी वह लंबे समय तक अपनी सेवाएं सेना को देता था. अग्निपथ के तहत चुने गए 75 फीसदी सैनिक अग्निवीर 4 साल में ही सेना से रिटायर हो कर वापस चले जाएंगे, इस से सेना के समय और धन दोनों का नुकसान होगा.

‘‘देश को सेना की जरूरत केवल युद्ध के समय ही नहीं पड़ती. सेना आंतरिक सुरक्षा और बाहरी सुरक्षा दोनों की जिम्मेदारी लेती है. आतंकवाद से निबटने, बाढ़ से जीवन बचाने और दूसरे अवसरों पर सेना देश के नागरिकों की सेवा और सुरक्षा की जिम्मेदारी लेती है. सिर्फ 4 साल के लिए सैनिकों के चुनाव का असर पूरी सेना के मनोबल पर पड़ेगा. सेना के रैगुलर सैनिकों के हिस्से से ही अग्निवीर सैनिकों को सुविधाएं दी जाएंगी. जैसे. ट्रेनिंग सैंटर सरकार नहीं बढ़ा रही पर इन पर अतिरिक्त बो?ा पड़ेगा, जिस से सैनिकों का मनोबल कमजोर होगा.’’

सेना पर है काम का दबाव :  मेजर आशीष चतुर्वेदी कहते हैं, ‘‘भारतीय सेना पर काम का दबाव बहुत अधिक है. भारत की सेना पाकिस्तान, कश्मीर, चीन और नौर्थईस्ट बौर्डर पर हमेशा सतर्क रहती है. इस के अलावा यूएन के साथ भी सेना काम करती है. ऐसे में भारतीय सेना दबाव में रहते हुए काम करती है. सेना को जरूरत है कि उस पर अधिक ध्यान दिया जाए. केवल किताबी बातों से सैनिक का काम नहीं चलता है.

‘‘सेना से रिटायर होने के बाद सैनिकों को सम्मानजनक जौब मिलनी चाहिए. अभी तक ऐसा संभव नहीं हो पाया है. 90 फीसदी सैनिक रिटायर होने के बाद केवल बैंक में या दूसरे किसी औफिस में गार्ड के रूप में काम करते हैं. सरकार अपने विभागों में नौकरियां नहीं दे पाती है. तमाम सैनिक कल्याण की बातें केवल पेपर तक में ही दर्ज होती हैं.’’

अपराधियों के टूल्स न बन जाएं अग्निवीर : मेजर आशीष चतुर्वेदी आगे कहते हैं, अग्निवीर सैनिक उस समय रिटायर हो जाएंगे जब दूसरे युवा नौकरियों में भरती हो रहे होंगे. अगर सरकार की बात मान लें कि 25 फीसदी सैनिक सेना में आगे जौब पर रहेंगे तो 75 फीसदी को बाहर जौब के लिए आना होगा. देश में बेरोजगारी की हालत सब को पता है. ऐसे में सेना से ट्रेनिंग ले कर आए 75 फीसदी युवा सैनिक बेरोजगारी के दौर में अपराधियों के बहकावे में आ गए तो ये गलत दिशा में जा सकते हैं.

‘‘अपराधियों को सेना द्वारा ट्रेनिंग दिए युवा मिल जाएंगे जिन को हर तरह के हथियार चलाने, बम बनाने जैसे दूसरे काम करने आते होंगे. ऐसे अपराध करने वालों से निबटना पुलिस और दूसरे लोगों को भारी पड़ेगा. यह समाज के लिए घातक होगा.’’

बेरोजगारी से निबटने के दूसरे रास्ते तलाशे सरकार : मेजर आशीष कहते हैं, ‘‘सरकार को अगर बेरोजगारी से निबटना है तो उसे दूसरे सरकारी विभागों में इस तरह की योजनाओं को लागू करना चाहिए जिस से कम से कम देश की सुरक्षा के साथ कोई खिलवाड़ तो नहीं हो सकेगा.’’

मोदी सरकार के विरोध का जवाब देने के लिए जिस तरह से सेना के अफसरों ने बयान और अग्निपथ योजना में नईनई बातें जोड़ी जा रही हैं, ये ठीक वैसी ही हैं जैसे नोटबंदी, तालाबंदी, जीएसटी और कृषि कानूनों के समय अलगअलग दावे किए जा रहे थे. मोदी सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि कृषि कानूनों को एक साल के बाद वापस लेना पड़ा. इस तरह की जिद करना सेना के लिए बहुत भारी पड़ेगा.

पहले प्रहार फिर विचार ठीक नहीं : वरुण गांधी

अग्निपथ योजना को ले कर देशभर में हुए बवाल और हिंसा के बाद सरकार द्वारा अब इस योजना में लगातार बदलाव को ले कर भाजपा के ही नेता वरुण गांधी सरकार पर भड़क उठे हैं. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘‘अग्निपथ योजना’ को लाने के बाद महज कुछ घंटे में संशोधन दर्शाते हैं कि संभवतया योजना बनाते समय सभी बिंदुओं को ध्यान में नहीं रखा गया. जब देश की सेना, सुरक्षा और युवाओं के भविष्य का सवाल हो तो पहले प्रहार, फिर विचार करना एक संवेदनशील सरकार के लिए उचित नहीं. ‘सुरक्षित भविष्य’ हर युवा का अधिकार है.’’

यह पहली बार नहीं है जब वरुण गांधी अपनी ही सरकार के खिलाफ मुखर हुए हैं. इस से पहले किसान आंदोलन के समय भी वरुण ने केंद्र सरकार के खिलाफ लगातार आवाज उठाई थी. मगर उन की बात को दरकिनार कर दिया जाता है.

नसीम अंसारी कोचर

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