अमरीका सहित कई पश्चिमी देशों में तलाक की घटनाएं आम बात हैं. वहां के लोगों की जिंदगी में इस कदर सूनापन है कि पति से तलाक होने पर औरत को वहां कोई मदद या भावनात्मक सहयोग नहीं मिलता है. ऐसे में अपनी बिखरी जिंदगी को पुनः पटरी पर लाने व तलाक की वजह से पैदा हुए दुःख से उबरने के लिए मनोचिकित्सक की मदद लेकर उन्हे सायकोलाजिकल थेरेपी करनी पड़ती है. इसी तरह की थेरेपी अभिनेत्री पूजा बत्रा को भी लगभग पांच वर्ष तक लेनी पड़ी.

मूलतः फैजाबाद निवासी और पुणे के फर्गुसन कालेज से एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद 1993 में पूजा बत्रा ‘फेमिना मिस इंडिया इंटरनेशनल’ चुनी गयी. उसके बाद 1997 में प्रदर्शित फिल्म ‘विरासत’ से पूजा बत्रा ने अभिनय के क्षेत्र में करियर की शुरुआत की. इस फिल्म में उनके साथ अनिल कपूर और तब्बू भी थीं.उ सके बाद वह ‘हसीना मान जाएगी’, ‘भाई’, ‘चंद्रलेखा’, ‘कहीं पर न हो जाए’ जैसी कई सफलतम फिल्मों में नजर आयीं. वह ‘एबीसीडी2’ में भी थी. 2002 में डाक्टर सोनू एस अहलूवालिया के संग शादी कर अमरीकन पति के साथ अमरीका के लास एंजेल्स शहर में रहने चली गयी थीं.

परिणामतः उन्हे कई अच्छी बालीवुड फिल्मों से हाथ धोना पड़ा. पर  2011 में दोनों के बीच तलाक हो गया. उस वक्त वह अमरीका के लांस एंजेल्स शहर में रह रही थी. जिससे वह घोर निराशा में डूब गयी थी. उन्हे लग रहा था कि जिंदगी खत्म हो गयी. पर तभी उन्हे उनके एक अमरीकी दोस्त ने मनोचिकित्सक से मिलने की सलाह दी. उस मनोचिकित्सक से सप्ताह में तीन घंटे थेरेपी लेती रहीं. यह सिलसिला पांच साल तक चला. धीरे धीरे उनकी जिंदगी ने नई राह पकड़ी. अब एक तरफ वह एक सफल बिजनेस वूमन बन चुकी हैं, तो दूसरी तरफ वह पुनः अभिनय के क्षेत्र में भी व्यस्त हैं.

2015 में वह सफलतम बौलीवुड फिल्म ‘‘एबीसीडी 2’’ में नजर आयी थीं. तो वहीं फरवरी माह में अमरीका व दुबई में प्रदर्शित हौलीवुड फिल्म ‘‘वन अंडर द सन’’ में वह मेनलीड में नजर आयी. यह हौलीवुड बहुत जल्द भारत में भी प्रदर्शित होगी. फिलहाल वह शीघ्र प्रदर्शित होने वाली थी बौलीवुड फिल्म ‘‘मिरर गेमःअब खेल शुरू’’ को लेकर उत्साहित हैं, जिसमें वह मनोचिकित्सक डाक्टर राय के किरदार में हैं.

अमरीका के लांस एजेंल्स शहर में रह रही पूजा बत्रा अपनी नई बौलीवुड फिल्म ‘‘मिरर गेमःअब खेल शुरू’’ के प्रमोशन के सिलसिले में मुंबई में थी. उसी वक्त पूजा बत्रा ने अपनेपन के माहौल में  ‘‘सरिता’’ पत्रिका से एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए तलाक, तलाक के बाद की स्थिति से उबरने के उपाय, मनोचिकित्सक की जरुरत, करियर आदि को लेकर लंबी बातचीत की.

बौलीवुड में जब आपका करियर चरम पर था, तभी आपने अमरीका जाने का निर्णय लिया था. उस वक्त आपकी सोच क्या थी?

– मैंने 2002 में डा. सोनू अहलूवालिया से विवाह किया था, जो कि अमरीका के लांस एंजेल्स शहर में रहते हैं. तो उनके साथ मुझे अमरीका जाना पड़ा. उस वक्त मैने सोचा था कि मैं लास एंजेल्स में रहते हुए भी बालीवुड फिल्में करती रह सकती हूं. लेकिन वैसा हो नहीं पाया. मुझे नए सिरे से अपने करियर की शुरुआत करनी पड़ी. हालीवुड में मुझे कोई जानता नहीं था. उस वक्त बालीवुड से वहां के लोग ज्यादा परिचित नहीं थे. मैं तो नई पीढ़ी के लिए राह बना रही थी. मगर मेरा वैवाहिक जीवन भी असफल रहा. फिर कई उतार चढ़ाव से जिंदगी गुजरी. अब पुनः मैं अभिनय में सक्रिय हो चुकी हूं.इन दिनों विजित शर्मा निर्देशित फिल्म ‘‘मिरर गेमःअब खेल शुरू’’ को लेकर काफी उम्मीद हैं.

फिल्म ‘मिरर गेमःअब खेल शुरू’ के किरदार पर विस्तार से रोशनी डालेंगी?

– यह डॉ राय का किरदार है, जो कि क्रिमिनल मनोचिकित्सक है. वह अपराधियों से बात कर उनके मनोविज्ञान को समझने का प्रयास करती है. यह एक रहस्य रोमांच प्रधान फिल्म है, इसलिए बहुत कम ही बता सकती हूं.

मनोचिकित्सक का किरदार निभाना आपके लिए किस तरह आसान हुआ?

– मैंने खुद मनोचिकित्सक के पास जाकर लंबे समय के लिए थैरेपी की भी है. मैंने काफी लंबे समय तक थैरेपी की है. हर सप्ताह कम से कम तीन घंटे सायकोलाजी की थैरेपी किया करती थी. क्योंकि मैं जीवन के एक ऐसे दौर से गुजर रही थी, जहां मुझे लगा कि बिना सायकोलाजिकल थैरेपी के मैं जिदंगी नही जीं पाउंगी. इस वजह से मुझे पता था कि एक थैरेपी देने वाला मनोचिकित्सक व लेने वाला दोनों किस तरह से काम करते हैं, जिसके चलते मेरे लिए डाक्टर राय का किरदार निभाना आसान रहा.

क्या आप ‘‘सरिता’’ के पाठकों से अपनी जिंदगी के उस दौर पर विस्तार से बात करना चाहेंगी?

– देखिए, जिंदगी कोई आसान नहीं होती है. इंसानी जिंदगी में तमाम मोड़ आते हैं, कई ऐसे हादसे होते हैं, जिनसे निपटने के लिए इंसान को मनोचिकित्सक के पास जाकर  थैरेपी की मदद लेनी पड़ती है अन्यथा इंसान डिप्रेशन में चला जाता है. जब मेरा अपने पति से तलाक हुआ, तो उस वक्त जो हालात बने, उनसे उबरने के लिए मुझे मनोचिकित्सक के पास जाकर थैरेपी लेनी पड़ी. लास एजिंल्स में जरूरत के मुताबिक मैंने लंबे समय के लिए थैरेपी की. अमरीका में तमाम डाक्टर्स, मरीजों को तनाव व डिप्रेशन से बचाने के लिए किस तरह की सायकोलाजिकल थैरेपी लेने की सलाह देते हैं, यह सर्वविदित है. इस तरह की थैरेपी लेने से इंसान को अपने आप उन हालातों से उभरने की ताकत मिलती है.

क्या आप बताना पसंद करेंगी कि तलाक होने पर एक औरत को किस तरह की दिमागी व सामाजिक समस्याओं से जूझना पड़ता है?

– हर औरत के तलाक की वजहें अलग होती हैं. जबकि तलाक हर औरत के लिए अभिशाप ही है. हर किसी का तलाक भी अलग अलग तरीके से होता है. कुछ लोग आपसी समझ के आधार पर एक दूसरे को तलाक दे देते हैं. कुछ औरतों को तलाक के बाद पूर्व पति से बड़ी धनराशि मिल जाती है. कुछ लंबे समय तक अदालत में तलाक का मुकदमा लड़ते रह जाते हैं. कुछ औरतों को मुआवजे की रकम पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है. इसके अलावा तलाक के ही सिलसिले में पति पत्नी के बीच हो रहे झगडे़ का असर उनके बच्चों पर पड़ता है. पर तलाक का यह मसला बहुत ही दर्दनाक और दुःखद है. मैं कभी अपने किसी दुश्मन को भी तलाक का श्राप नहीं दूंगी. तलाक हर इंसान को बहुत ज्यादा डिप्रेशन में ले जाने वाला होता है. तलाक सिर्फ दो इंसानों यानी कि पति व पत्नी के बीच होता है, मगर उससे तमाम लोग प्रभावित होते हैं. पति व पत्नी का पूरा परिवार, सभी रिश्तेदार, दोस्त व बच्चे तथा पति पत्नी के दूसरे रियतेदारों को भी दर्द के अहसास से गुजरना पड़ता है.

यानी तलाक किसी को नहीं लेना चाहिए?

– जहां तक संभव हो सके तलाक लेने से बचने का पूरा प्रयास किया जाना चाहिए. मगर हालात जब ऐसे बन जाएं कि तलाक के अलावा दूसरा कोई चारा ना हो, तो औरत को बहुत मजबूत बनना चाहिए. ऐसे वक्त में पारिवारिक सदस्यों से सपोर्ट  मिलता है, तो कभी उन्हें सायकोलाजिकल थैरेपी लेकर उस हादसे से उबरने की ताकत मिलती है. कभी दोस्तों के साथ समय बिताने पर भी राहत मिलती है. मेरी राय में तलाक के बाद सपोर्ट सिस्टम बहुत जरूरी होता है. पर जब आप अमरीका में रह रहे होते हैं, तो आपके पास सपोर्ट सिस्टम नहीं होता है. वहां आप पूरी तरह से अकेले होते हैं. अमरीका में आप जब चाहें, तब लोगों से बात भी नहीं कर सकते हैं. क्योंकि पता चला कि जिनसे आप बात करना चाहते हैं तो वह काम व्यस्त होते हैं. उनका अपना परिवार व बच्चे भी हैं. इसी के चलते अमरीका में सायकोलाजिकल थैरेपी लेने का प्रचलन बहुत ज्यादा है.

पर तमाम लोग यह कहते पाए जाते हैं कि यदि हम साथ साथ रहते हुए खुश नहीं हैं, तो अलग हो जाना ही बेहतर है. आप क्या सोचती हैं?

– यहां पर मैं यही कहना चाहूंगी कि हर इंसान और हर पति पत्नी के रिश्ते अलग होते हैं. हर किसी के हालात, सोच अलग होती है. इसलिए किसी के इस तरह के बयान पर मेरी प्रतिक्रिया देना उचित नहीं है. मुझे लगता है कि हर तलाक के पीछे अलग परिस्थितियां और अलग सोच होती है. हर किसी की जिंदगी की अपनी अलग कहानी होती है. पर तलाक लेते हुए पति पत्नी दोनों को समझ लेना चाहिए कि उनके दुखद परिणाम उन्हें झेलने पडे़ंगे. यदि उनके बच्चे हैं, तो उन पर भी इसका बुरा असर पडे़गा. ऐसे में वह इन सबके साथ कैसे सामंजस्य बैठाएंगे, यह वह पहले सोच लें. कई बार लोग अपने आपको बदलना नहीं चाहते. इसलिए वह एक रिश्ता खत्म कर दूसरे रिश्ते की तरफ भागते हैं. कुछ लोग अकेले रहना पसंद करते हैं. अब मान लीजिए आप तलाक नहीं लेते हैं, साथ में रहते हुए हर दिन कई कई घंटे झगड़ते रहते हैं, तो इसका पति पत्नी दोनों की मानसिक स्थिति व इनके स्वास्थ्य पर गलत असर पड़ता है. हर दिन के झगड़े का बच्चों पर भी गलत असर पड़ता है. ऐसे में भी तलाक लेकर अलग होना जाना श्रेष्ठ लगता है.

आपके बच्चे हैं या नहीं?

– नहीं हैं. मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि तलाक के बाद मेरे पूर्व पति के साथ कोई कटुता वाले संबंध नहीं हैं. वह मेरे दोस्त हैं. पर यह मान लेना कि हमारा बच्चा नहीं है, इसलिए तलाक से समस्या नहीं होगी, गलत है.

आपके अनुसार कब किस हद तक एक औरत को तलाक तक नही पहुंचना चाहिए?

– सही मायनों में इसका जवाब देना मेरे लिए उचित नहीं है. क्योंकि यह मसला पूरी तरह से हर औरत का अपना निजी मसला है. किसी के भी निजी मसले में दखलंदाजी करना उचित नहीं होता. 

अब आपकी जिंदगी किस तरह से गुजर रही है?

– मनोचिकित्सक की मदद से मेरी जिंदगी से सारा गम व अवसाद खत्म हो चुका है. मैंने अपनी जिंदगी को नए सिरे जीना शुरू कर दिया है. एक तरफ मैंने अपनी कंपनी ‘‘ग्लोबल आई एन सी’’ खोलकर मनोरंजन जगत के क्षेत्र में ही काम करना शुरू किया है. तो दूसरी तरफ अभिनय में सक्रियता बढ़ा दी है. अब हौलीवुड और बौलीवुड दोनों जगह की फिल्मों में अभिनय कर रही हूं. इसके अलावा घर पर भी नए दोस्त ले आयी हूं.

अभिनय जगत में किस तरह की सक्रियता है?

– मैंने 2015 में प्रदर्शित बौलीवुड फिल्म ‘‘एबीसीडी 2’’ में अभिनय किया था. अभी बौलीवुड फिल्म ‘मिरर गेमःअब खेल शुरू’ की है. इसके अलावा मैंने एक डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘‘सेव हर’’ की है. जिसमें मैंने अपनी आवाज दी है. यह हैदराबाद की एक लड़की को यौन शोषण से बचाने पर आधारित है, जिसे उसके परिवार के लोग ही वेश्यावृत्ति के लिए बेच देते हैं. जबकि कुछ समय पहले मेरी हौलीवुड की साइंस फिक्शन फिल्म ‘‘वन अंडर द सन’’ अमरीका व दुबई में प्रदर्शित हुई है. भारत में अभी तक इस फिल्म को प्रमोट नहीं किया गया. इसमें मैंने कल्पना चावला जैसी एक अंतरिक्ष यात्री कैथरीन का किरदार निभाया है, जो कि मंगल ग्रह पर जाती है. जब वह वापस आती है, तो उसे मंगल ग्रह भेजने वाली कपंनी ही उसकी दुश्मन बन जाती है और अब वह उसे मारना चाहती है. लेकिन मेरे किरदार में कुछ सुपर पावर आ गए हैं.

अपनी कंपनी “ग्लोबल आई एन सी’’ के माध्यम से किस तरह का काम कर रही हैं?

– मेरी यह एक छोटी सी कंपनी है, जिसकी मैं सीईओ हूं. जिसके चलते सारे निर्णय मुझे ही लेने होते हैं. इस कंपनी के तहत मैं कई तरह के इवेंट करती हूं. फिल्मों के लिए कलाकारों की कास्टिंग करती हूं. साजिद नाडियादवाला की फिल्म ‘कमबख्त इश्क’ के लिए मैंने सिल्वेस्टर स्टेलोन व दूसरे कलाकारों की कास्टिंग की थी. अभी मैंने लेस्बन की एक कंपनी के लिए निकोल किडमैन को ब्रांड अम्बेसेडर बनवाया है. फिल्म ‘जल’ की कैम्पेनिंग मेरी कंपनी ने की थी. मैंने अमरीका में रेडियो स्टेशन खोल रखा है. यानी कि हमारी कंपनी मनोरंजन जगत से जुड़े काम कर रही है. अब मैं ब्रांडिंग में जा रही हूं. मसलन, कोई कंपनी असफल हो चुकी है, तो हम उसे रीलांच करेंगे.

आप लक पर कितना यकीन करती हैं?

– बहुत ज्यादा. आप बहुत बेहतरीन कलाकार हो सकते हैं, पर आपका समय सही नही है, तो सब बेकार.

आपने अभी कहा कि आपके घर पर आपके कुछ नए दोस्त हैं. इनके बारे में बताएंगी?

– मेरे घर पर कुत्ता बिल्ली और एक ड्रैगन है. देखिए,जब मैं भारत में थी, उस वक्त मुझे छिपकली से बहुत डर लगता था. अब कम डरती हूं. पहले मेरी सोच थी कि छिपकली को जिंदा रहने का कोई हक नहीं है. लेकिन अमरीका में रहते हुए मेरी सोच बदल गयी. अमरीका में जानवरों, पक्षियों को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है. वहां पर जानवर व पक्षी को पालने पर जोर दिया जाता है. इसलिए मैंने ड्रैगान को भी पालने का निर्णय लिया. इसका नाम है-रेड. यह आस्ट्रेलियन होते हैं और यह अपना तुंह फूला लेते हैं. दांत नहीं होते हैं. यह हमेशा शांत रहते हैं. बुद्धा की तरह. इन पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता. इन्हे बाहर घुमाने के लिए ले जाने की जरुरत नहीं पड़ती.

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