नशे की हालत में शादी करने पहुंचे दूल्हे का नशा उस वक्त उड़ गया जब दुलहन ने शराबी के साथ विवाह करने से इनकार कर दिया. लोगों ने दुलहन को बहुत सम?ाया लेकिन उस ने साफ कह दिया कि वह किसी शराबी से शादी नहीं कर सकती. दुलहन के इनकार के बाद दूल्हे को बरात वापस लौटानी पड़ी. यह घटना न कोई अजीब है और न अब इस पर आंखें उठती हैं. शादी तो 2 वयस्कों का फैसला है, चाहो तो करो.
इस तरह की घटना से एक बात तो साबित हो गई कि अब वे दिन लद गए जब मांबाप लड़कियों को बछिया समझ कर उन के पगहे किसी और के हाथ में सौंप दिया करते थे. खास बात तो यह है कि पहले की तरह अब पुलिस, अदालतें और समाज भी इन बहादुर बेटियों के पक्ष में खड़े रहते हैं.
लड़कियां दहेज लोभी दूल्हों से शादी करने से इनकार कर देती हैं. बदलाव की बयार जोर से बह रही है. लड़कियां अब समझने लगी हैं कि जो कुछ उन की नानी, दादी और मां ने सहा है वह वे नहीं सहेंगी और इज्जत की आड़ में किसी भी तरह के परिवर्तन से समझौता नहीं करेंगी. ज्यादातर लड़कियों को भरोसा रहता है कि वे अपने पैरों पर खड़ी रह सकती हैं.
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो महिलाओं ने अपने न करने के अधिकार को पहचान लिया है और इसीलिए अब पुरातनपंथी सोच की दीवार को तोड़ कर वे अपने सलीके व इच्छा से अपनी जिंदगी जीने का हौसला जुटा चुकी हैं. अपनी इस नई सोच और हौसले के चलते ही महिलाओं ने अब परिस्थितियों से सम?ाता करने के बजाय उन्हें सुल?ाना शुरू कर दिया है.
यह सच है कि एक शादी टूट जाना एक लड़की (या लड़के के लिए भी) के लिए सदमे से कम नहीं होता, क्योंकि समाज में आज भी कुछ लोग हैं जो शादी टूटने का दोष लड़की के ही सिर पर मढ़ देते हैं. लेकिन लड़की अब अपनी सैल्फरिस्पैक्ट के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ बरदाश्त नहीं कर सकती. राजधानी दिल्ली में एक महिला ने अपने पति को सिर्फ इसलिए तलाक दे दिया क्योंकि पति ने उस से उस की लास्ट सैलरी स्लिप मांग ली थी. पति उस के बैंक अकाउंट को पूरा कंट्रोल करना चाहता था.
ऐसा भी नहीं है कि महिलाएं अपनी शादी बचाने की कोशिश नहीं करतीं, पर जब पानी सिर से ऊपर उठ जाता है तो बात तलाक तक पहुंच ही जाती है. बहुत सी मांएं शादी तोड़ कर बच्चों के साथ बहुत खुश हैं. अब तो दोनों के मांपिता इस फैसले की रिस्पैक्ट करते हैं और बच्चे व उन के दादादादी या नानानानी सोचते हैं कि रोज की खिचखिच से अलग रहना ज्यादा अच्छा है.
ऐसे वक्त में मातापिता का साथ लड़की के लिए बहुत बड़ा मोरल सपोर्ट होता है और इस के साथ ही लड़की कौन्फिडैंट हो कर अपनी लाइफ को आगे बढ़ा पाती है. अगर कोई सही दोस्त या सहेली साथ में हो तो जीवन को फिर पटरी पर चलाने में सुविधा रहती है.
कई बार शादी के बाद लड़कियों पर घर की सारी जिम्मेदारी सौंप दी जाती है. यह सोचा जाता है कि घर की देखभाल के साथ पति के मांबाप की देखभाल भी अकेले वही करेगी. ऐसे में लड़की अगर वर्किंग है तो औफिस और घर दोनों को संभालने की जद्दोजेहद में उसे या तो औफिस छोड़ना पड़ता है या फिर घर के कामकाज. बस, यहीं से शुरू हो जाती है अड़चनें. लड़कियां घर छोड़ सकती हैं, काम नहीं क्योंकि उन में आत्मसंतोष भी है और आत्मविश्वास भी.
ससुराल पक्ष के लोगों का दोहरा व्यवहार भी लड़की के लिए असहनीय होता है. जैसे, अगर घर में ननद के साथ अलग और बहू के साथ अलग व्यवहार हो तो यह बात भी परेशानी का सबब बन जाती है. आज भी मातापिता यह भेदभाव पाले रखते हैं.
शादी के बाद ससुराल वालों की लड़की से कुछ ज्यादा ही अपेक्षाएं हो जाती हैं. वे चाहते हैं कि लड़की हर चीज में निपुण हो. लेकिन यह संभव नहीं है.
अकसर देखने में आता है कि ससुराल पहुंचते ही लड़कियों के पल्लू में ढेर सारी रस्मों के ?ान?ाने बांध दिए जाते हैं. ऐसे में लड़कियां तनाव में आ जाती हैं और खुद को बंधन से छुड़ाने की कोशिश करने लगती हैं.
पूजापाठ भी नई लड़कियों पर बहुत बोझ है जबकि वे कुछ कह नहीं पातीं. तरहतरह के व्रत, तीर्थ मामले, मंदिरों में जाना बहुत समय लेता है. जो खाली हैं, उन के लिए ठीक है पर अब अंधाधुंध प्रचार के कारण हर औरत को उस में धकेला जा रहा है, जो थकाऊ भी है और खर्चीला भी.
लड़की पर बच्चा पैदा करने का प्रैशर डालना भी एक बड़ी समस्या है. अपनी इच्छा से जब पतिपत्नी की मरजी हो, वे संतान को जन्म दे सकते हैं. इस बात के लिए लड़कियों को ताने नहीं मारने चाहिए. पिछड़ी व निचली जातियों की कमाऊ, पढ़ीलिखी लड़कियों पर अनपढ़ सासें बहुत दबाव डालती हैं.
शादी के बाद लड़कियों को घर की चारदीवारी में बंद रखने का रिवाज भी गलत है. बहू पर ज्यादा रोकटोक भी शादी टूटने का सबब बन सकती है. यह उन घरों में हो रहा है जिन के तार अभी भी गांवों और कसबों से जुड़े हैं. ये लड़कियां शादी को आजादी का लाइसैंस मानती हैं पर अकसर वह आजादी नहीं मिलती.
अब तो जो पिछड़ी व निचली जातियों की लड़कियों का काम पास के मंदिर से चल जाता था, उन्हें बड़े मंदिरों में मीलों दूर धकेला जा रहा है. मंदिर की राजनीति पतिपत्नी पर बोझ बन रही है, पर उस बारे में कोई लड़की शिकायत करने की हिम्मत नहीं पा रही और दोष पति, सास, ननद पर मढ़ दिया जा रहा है.