वर्ष 1970 में रिलीज हुई ‘सफर’ फिल्म का यह गीत ‘जिंदगी का सफर ये कैसा सफर…’ एक ऐसा गीत जिसे राजेश खन्ना पर तब फिल्माया गया था जब वे एक सुपर स्टार थे. उन्हें तब पता नहीं था कि उन के जीवन का सफर भी बहुतकुछ इसी गाने की तरह ही होगा. करीब 10 सालों से अकेले रह रहे राजेश खन्ना अपने आखिरी पलों में तनाव के शिकार थे. वे न तो किसी से बात करते थे और न ही कहीं आतेजाते थे.

नशे में धुत राजेश खन्ना कभी अकेले या कभी कुछ दोस्तों के बीच अपने गुजरे पलों को याद करते हुए देखे जाते थे. जानकार बताते है कि कई बार ऐसा भी होता था कि वे अकेले अपने कमरे में बत्ती बुझा कर बैठे रहते थे. आखिर 60 और 70 के दशकों के पूर्वाध के सुपरस्टार ने अचानक अपनी चमक कैसे खो दी?

जिस सितारे ने 15 हिट फिल्में लगातार दीं, जिस की एक झलक पाने के लिए हजारों लोग लाइन लगा कर खड़े रहते थे, जिस की कार पर युवा लड़कियों के लिपस्टिक के निशान हुआ करते थे और जिसे लड़कियां खून से लिखी चिट्ठियां भेजा करती थीं वह इंसान अचानक कामयाबी के शिखर से कैसे लुढ़क गया?

राजेश ने जिस हीरोइन के साथ काम किया उस के साथ उन का नाम भी जुड़ा, पर आखिर के दिनों में कोई भी उन से मिलने नहीं आता था. फिल्मों के साथसाथ परिवार, बच्चे सभी उन का साथ छोड़ते चले गए. आखिर इस दशा का जिम्मेदार कौन है?

उन की एक करीबी दोस्त कहती हैं,“ “राजेश खन्ना दिल के बहत नरम और भावुक इंसान थे. नशे और अकेलेपन ने उन के जीवन का अंत कर दिया. उन के पास किसी के आने पर वे उस का पूरा ध्यान रखते, मेहमाननवाजी खूब करते थे. उन्हें अपनी दोनों बेटियां ट्विंकल खन्ना और रिंकी खन्ना और नाती आरव बहुत प्रिय थे. हर किसी से वे दिल लगा बैठते थे. वे अपनी स्टारडम को संभाल नहीं पाए.”

“जैसेजैसे इंसान की उम्र बढ़ती है उसे बदलते रहना चाहिए, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए कि आप में अब वह बात नहीं रही और उसी हिसाब से फिल्मों का चयन करना चाहिए. राजेश खन्ना के बदलते स्वभाव की वजह से डिंपल भी परेशान हो चुकी थीं.”

डिंपल राजेश से 15 साल छोटी थीं. डिंपल ने उन के साथ जीवन के रंगीन सपने देखे थे. लेकिन राजेश खन्ना ने कुछ ही सालों बाद उसे तोड़ दिया. स्टारडम की चकाचौंध में व्यस्त राजेश खन्ना इस बात को भांप नहीं पाए और एक दिन डिंपल अपनी दोनों बेटियों को ले कर अलग रहने चली गईं. राजेश खन्ना को इस बात का गहरा धक्का लगा.

ऐसे ही संपन्न सैकड़ों उद्योगपति, व्यापारी, लेखक प्रौफेसर आखिरी दिनों में अकेलेपन के शिकार हैं. उन से कोई मिलने नहीं आता. कोई नंबर नहीं है उन के पास जिन से वे बात कर सकें.

एक रिसर्च बताती है कि अकेलापन किसी भी उम्र के व्यक्ति को तनाव का शिकार बना सकता है. कई तो गंभीर बीमारियों के शिकार व्यक्ति हो सकते हैं, जिस का अंत कम उम्र में मौत तक हो सकती है.

इस बारे में मुंबई की एक काउंसलर कहती हैं, ““सफल लोगों का अकेलापन उन का खुद का बनाया हुआ होता है. ये लोग दूसरों में खुशियां खोजते हैं. दूसरों की वाहवाही में उन्हें सुख मिलता है. ऐसे में वे वास्तविक खुशी को नहीं ढूढ़ पाते, उस की कला उन्हें नहीं आती. वे अपने दोस्तों और परिवार को छोड़ उसी की ओर बढ़ते जाते हैं. असल में ये बाहरी लोग सिर्फ प्रशंसक हैं, परिवार या दोस्त नहीं. जब इस क्षणिक खुशी से वे बाहर निकलते हैं तो उन के आसपास न तो दोस्त होते हैं न ही परिवार.”

“ऐसे लोगों को चाहिए कि वे समय रहते अपनी खुशियों को समझ लें, उन्हें सहेज कर रखें. उन्हें सोचना चाहिए कि भविष्य में अकेलेपन से उन्हें अगर दोचार होना पड़े तो उस से नजात पाने के लिए उन्हें क्याक्या करना चाहिए ताकि जब वे युवा न भी रहें तो भी उन के कुछ दोस्त और परिवार उन के साथ रहें.

“इस की योजना शुरू से ही बना लेनी चाहिए और जब ग्लैमर वर्ल्ड से उन्हें फुरसत मिले तो अपनी दूसरी प्रायोरिटी को आगे रखना चाहिए. साथ ही, उन के पास एक ऐसा दोस्त और काउंसलर अवश्य होने चाहिए जो उन्हें ‘ग्राउंडेड’ रखने में मदद करें, उन्हें उन की सीमाएं बताएं.”

मुंबई की मनोरोग चिकित्सक कहती हैं, ““अकेलेपन का शिकार व्यक्ति अधिकतर चिड़चिड़ा, अकेले में बातें करना, नकारात्मक सोच रखना, अपनेआप से घृणा करना, उदास रहना आदि आदतों का शिकार बन जाता है. यही वजह है कि दोस्त और परिवार उन से छूटते चले जाते हैं. उन का दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है.”

“ऐसे में कुछ क्रिएटिव टाइम पास करने की सोच उन्हें रखनी चाहिए. उन को यह भी समझना होगा कि जो खुशी वे बाहर तलाश रहे हैं वे उन के अंदर है. दोस्त और परिवार का सहयोग उन्हें आवश्यक है जो उन में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें संतुलित जीवन जीने के लिए प्रेरित करेंगे.” अकेलेपन का शिकार, दरअसल, अधिकतर वही व्यक्ति होते हैं जिन में आत्मसंतुष्टि का अभाव होता है. जिसे वे खुद नहीं ढूढ़ सकते.

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