सहायक कृषि अधिकारी, सरमथुरा, धौलपुर
दलहन की एक प्रमुख फसल मूंग है. इस का वानस्पतिक नाम विगना रेडिएटा है. यह लेग्यूमिनेसी कुल का पौधा है. इस का जन्मस्थान भारत है. मूंग के दानों में 25 फीसदी प्रोटीन, 60 फीसदी कार्बोहाइड्रेट, 13 फीसदी वसा और अल्प मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है.
रोगियों के लिए मूंग बहुत पौष्टिक बताई जाती है. मूंग की दाल से पापड़, बडि़यां और लड्डू भी बनाए जाते हैं. मूंग की दाल खाने में शीतल व पचने में हलकी होती है.
यदि हम इस की फसल उगाते हैं, तो ये नाइट्रोजीकरण का काम करती है और भूमि में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है, जिस की बदौलत अन्य फसलें भी अधिक उत्पादन देती हैं.
ऐसी हो जलवायु
मूंग की खेती जायद यानी गरमी के मौसम में की जा सकती है. इस की फसल के लिए अधिक वर्षा हानिकारक होती है.
ऐसे क्षेत्रों में जहां 60-75 सैंटीमीटर तक वार्षिक वर्षा होती हो, मूंग की खेती के लिए उपयुक्त है, पर मूंग की फसल के लिए गरम जलवायु की आवश्यकता पड़ती है.
भूमि का चुनाव
मूंग की खेती सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जाती है. मध्यम दोमट, मटियार भूमि समुचित जल निकास वाली, जिस का पीएच मान 7-8 हो, इस के लिए उत्तम है.
खेत की तैयारी
खेत की पहली जुताई हैरो या मिट्टी पलटने वाले रिजर हल से करनी चाहिए. उस के बाद 2-3 जुताई कल्टीवेटर से कर के खेत को अच्छी तरह भुरभुरा बना लेना चाहिए. आखिरी जुताई में लेवलर लगाना जरूरी है. इस से खेत में नमी लंबे समय तक बनी रहती है.
दीमक से ग्रसित भूमि को फसल की सुरक्षा के लिए क्विनालफास 1.5 फीसदी चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से अंतिम जुताई से पहले खेत में बिखेर दें और उस के बाद जुताई कर उसे मिट्टी में मिला दें.
प्रमुख किस्में
पूसा वैसाखी : फसल की अवधि
60-70 दिन, पौधे अर्ध फैले वाले, फलियां लंबी, उपज 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.
मोहिनी : फसल की अवधि 70-75 दिन, उपज 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पीला मोजैक वायरस व सर्कोस्पोरा लीफ स्पोट रोग के प्रति सहनशील.
पंत मूंग 1 : फसल अवधि 75 दिन
(खरीफ) व 65 दिन (जायद). उपज क्षमता 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.
एमएल 1 : फसल की अवधि 90 दिन, बीज छोटा व हरे रंग का, उपज क्षमता 8-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.
वर्षा : यह अगेती किस्म है. उपज क्षमता 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.
सुनैना : फसल की अवधि 60 दिन, उपज क्षमता 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर. ग्रीष्म मौसम के लिए उपयुक्त.
जवाहर 45 : इस किस्म को हाईब्रिड
45 भी कहा जाता है. फसल की अवधि 75-85 दिन, उपज क्षमता 10-13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त.
कृष्णा 11 : अगेती किस्म, फसल की अवधि 65-70 दिन, उपज क्षमता 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.
पंत मूंग 3 : फसल की अवधि 60-70 दिन, ग्रीष्म ऋतु में खेती के लिए उपयुक्त, पीला मोजैक वायरस और पाउडरी मिल्ड्यू रोधक.
अमृत : फसल की अवधि 90 दिन. यह खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त है. पीला मोजैक वायरस रोग के प्रति सहनशील, उपज क्षमता 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.
बीज की मात्रा व बीजोपचार
खरीफ मौसम में मूंग का बीज 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लगता है, जबकि जायद में बीज की मात्रा 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ लें. 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करने से बीज व भूमिजन्य बीमारियों से फसल सुरक्षित रहती है.
600 ग्राम राइजोबियम कल्चर को एक लिटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गरम कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए और बो देना चाहिए. ऐसा करने से नाइट्रोजन स्थरीकरण अच्छा होता है.
बोने का उचित समय
बोआई खरीफ और जायद दोनों फसलों में अलगअलग समय पर की जाती है.
खरीफ में जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के अंतिम सप्ताह तक बोआई करनी चाहिए, जबकि जायद में मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक बोआई कर दें. कतारों के बीच की दूरी 45 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 10 सैंटीमीटर उचित है.
खाद और उर्वरक
खाद और उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिट्टी की जांच कर लेनी चाहिए. फिर भी कम से कम 5 से 10 टन गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद देनी चाहिए.
मूंग के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश, 25 किलोग्राम गंधक व 5 किलोग्राम जिंक प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है.
ऐसे करें सिंचाई
खरीफ की फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. परंतु फूल आने की अवस्था पर सूखे की स्थिति में सिंचाई करने से उपज में काफी बढ़ोतरी होती है.
खरीफ की फसल में वर्षा कम होने पर फलियां बनते समय एक सिंचाई करने की जरूरत पड़ती है और जायद की फसल में पहली सिंचाई बोआई के 30 से 35 दिन बाद और बाद में हर 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें, जिस से अच्छी पैदावार मिल सकती है.
खरपतवार नियंत्रण
पहली निराई बोआई के 20-25 दिन के भीतर व दूसरी 40-45 दिन में करनी चाहिए फसल की बोआई के 1 या 2 दिन बाद पेंडीमेथलिन (स्टंप) की बाजार में उपलब्ध 3.30 लिटर मात्रा को 500 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
फसल जब 25 -30 दिन की हो जाए, तो एक गुड़ाई कस्सी से कर देनी चाहिए या इमेंजीथाइपर (परसूट) की 750 मिलीलिटर मात्रा प्रति हेक्टेयर का दर से पानी में घोल बना कर छिड़काव कर देना चाहिए.
रोग और कीट नियंत्रण
दीमक : बोआई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में क्विनालफास 1.5 फीसदी या क्लोरोपायरीफास पाउडर की 20-25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देनी चाहिए.
कातरा : इस कीट की लट पौधों को आरंभिक अवस्था में काट कर बहुत नुकसान पहुंचाती है. कतरे की लटों पर क्विनालफास 1.5 फीसदी पाउडर की 20-25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव कर देना चाहिए.
मोयला, सफेद मक्खी एवं हरा तेला : इन कीटों
की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यूएसी या मिथाइल डिमेटान 25 ईसी 1.25 लिटर को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
फली छेदक : इस कीट को नियंत्रित करने के लिए मोनोक्रोटोफास आधा लिटर या मैलाथियान या क्विनालफास 1.5 फीसदी पाउडर की 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की
दर से छिड़काव या भुरकाव करनी चाहिए.
रसचूसक कीट : इन कीड़ों की रोकथाम के लिए एमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल का 500 मिलीलिटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. आवश्यकता होने पर दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें.
चीती जीवाणु रोग : इस रोग की रोकथाम के लिए एग्रीमाइसीन 200 ग्राम या स्ट्रेप्टोसाईक्लीन 50 ग्राम को 500 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
पीत शिरा मोजैक : यह रोग एक मक्खी के कारण फैलता है. इस के नियंत्रण के लिए मिथाइल डेमेटान 0.25 फीसदी व मैलाथियान 0.1 फीसदी मात्रा को मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर घोल बना कर छिड़काव करना काफी प्रभावी होता है.
तना झुलसा रोग : इस रोग की रोकथाम के लिए 2 ग्राम मैंकोजेब प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित कर के बोआई करनी चाहिए. बोआई के 30-35 दिन बाद
2 किलोग्राम मैंकोजेब प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.
पीलिया रोग : इस रोग के कारण फसल की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है. इस रोग के नियंत्रण के लिए गंधक का तेजाब या 0.5 फीसदी फैरस सल्फेट का छिड़काव करना चाहिए.
जीवाणु पत्ती धब्बा, फफूंदी पत्ती धब्बा और विषाणु रोग : इन रोगों की रोकथाम के लिए कार्बंडाजिम 2 ग्राम, स्ट्रेप्टोसाईक्लीन की 0.1 ग्राम एवं मिथाइल डेमेटान 25 ईसी की एक मिलीलिटर मात्रा को प्रति लिटर पानी में एकसाथ मिला कर पर्णीय छिड़काव करना चाहिए.
फसल की कटाई और गहाई का उचित समय : मूंग की फलियां जब काली पड़ने लगें और सूख जाएं, तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए. अधिक सूखने पर फलियां चिटकने का डर रहता है. फलियों से बीज को थ्रेशर द्वारा या डंडे से पीट कर अलग कर लिया जाता है.
उपज : वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर मूंग की 7-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर वर्षा आधारित फसल से उपज प्राप्त हो जाती है, वहीं सिंचित फसल की औसत उपज 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है.
भंडारण : बीज के भंडारण से पहले अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए. बीज में 8-10 फीसदी से अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए.
मूंग के भंडारण में स्टोरेज बिन का प्रयोग करना चाहिए.