भारतीय खेल मंत्रालय देश के गांवों, शहरों और कसबों के अलावा अब संसद भवन में भी खिलाड़ी ढूंढ़ने में जुट गया है. खेल मंत्री विजय गोयल ने सांसदों को पत्र लिख कर पूछा है कि आप किस खेल को पसंद करते हैं. इस के जवाब सांसदों ने देने शुरू भी कर दिए हैं. इस के बाद उन खेलों की अलगअलग टीमें बना कर आपस में मैच कराए जाएंगे.

इस से पहले मंत्री महोदय संसद भवन में सांसदों को फुटबौल भी बांट चुके हैं. मंत्री महोदय का मानना है कि अंडर-17 फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी भारत कर रहा है और ऐसे में फीफा वर्ल्ड कप में जोश बना रहे.

गांव, स्कूल से ले कर बड़ी प्रतियोगिताओं तक में खिलाड़ी उपेक्षा और भेदभाव के शिकार हैं. सुविधाओं का अभाव है क्योंकि खेलों के लिए आवंटित पैसे का बड़ा हिस्सा संगठनों के मुंह में चला जाता है और खिलाड़ी मुंह ताकते रह जाते हैं.

सांसद खेलें, यह हर्ज की बात नहीं है पर पहले ध्यान इस बात पर दिया जाना चाहिए कि संसद में वे नियमित आएं और खेलों व खिलाडि़यों से जुड़ी समस्याओं को उठाएं. अभी तक राजनीतिक दल खिलाडि़यों की लोकप्रियता का फायदा ही उठाने का प्रयास करते आए हैं.

माननीयों को खेलते देखना शायद ही लोग पसंद करें पर उन्हें क्षेत्र के लिए काम करते देख जनता खुश जरूर होगी जिस के लिए वह उन्हें चुनती है.

ब्रिटिश हुकूमत में क्रिकेट खूब खेला जाता था पर अब लोकतंत्र है और देश गुलाम नहीं है, इसलिए कोई नया प्रयोग करने से पहले जनता का मन जरूर खेल मंत्री को टटोल लेना चाहिए.

सांसद कोई सैलिब्रिटी नहीं होते जो उन्हें खेलते देख लोगों की दिलचस्पी खेलों में पैदा होगी. आदर्श ग्राम योजना औंधेमुंह लटकी पड़ी है. सांसदों के जरिए खेलों को प्रोत्साहन देने से पहले उन से यह हिसाब लिया जाना चाहिए कि उन्होंने कितने गांव गोद लिए और उन के लिए क्याक्या विकास कार्य किए.

संसद को फुटबौल का मैदान बना देने वाले माननीयों आप शायद ही वार्मअप शब्द से परिचित होंगे जिस में खिलाड़ी को मैदान में खूब दौड़ाया जाता है. आरामतलब हो चले सांसद चुनाव के वक्त ही सक्रिय दिखते हैं. उन्हें खिलाने की मंशा का मतलब सिर्फ मनोरंजन और पैसा बरबाद करने वाली बात साबित होगी.

मजा तो तब आता जब और लोग दिलचस्पी भी लेते, गांवदेहातों से लोगों को खेलने के लिए आमंत्रित किया जाता और सभी सांसदों को दर्शक बन खेल देखने को मजबूर किया जाता.

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