13 साल के लगभग का वक्त गुजरने के बाद अब इस राज से पर्दा उठ रहा है कि आखिरकार क्यों 21 अगस्त 2004 को साध्वी, भागवद विशेषज्ञ और राम भक्त उमा भारती को मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री पद से इस्तीफा देकर हटना पड़ा था. कहने को तो हुआ इतना भर था कि उमा ने कर्नाटक के एक शहर हुबली के ईदगाह मैदान में साल 1994 में राष्ट्रीय झण्डा फहराया था, यह ईदगाह मैदान देश के उन लाखों विवादित स्थलों जैसा है जिस पर हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों के लोग अपना हक जताते हैं. चूंकि धार्मिक हक जताने के लिए हिंसा एक अनिवार्य तत्व है इसलिए हुबली में भी इतनी हिंसा हुई थी कि प्रशासन को वहां कर्फ्यू लगाना पड़ा था और उमा पर भड़काऊ भाषण देने और धार्मिक उन्माद फैलाने के अलावा तिरंगे के अपमान सहित 13 आपराधिक मामले दर्ज हुये थे जिनमें से एक हत्या की कोशिश का भी था.

अदालत ने उमा भारती को दोषी करार देते हुये उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था जिससे उनके पास इस्तीफा देने के सिवाय कोई रास्ता बचा भी नहीं था. उमा विदा हुईं तो उनके बाद बाबूलाल गौर और फिर उनके बाद शिवराज सिंह को सूबे की कमान सौंप दी गई. अब चर्चा यह है कि उमा के जाने की वजह हुबली वारंट तो मां नर्मदा का प्रकोप था क्योंकि उन्होंने नर्मदा को हवाई यात्रा के जरिये पार कर लिया था.

दरअसल में नर्मदा नदी के उदभव अमरकंटक में एक नया हेलीपैड बन रहा है क्योंकि चर्चित और पूरी तरह धार्मिक हो चुकी नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा का समापन करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आने राजी हो गए हैं. अभी तक जो भी राजनैतिक हस्तियां अमर कंटक आई हैं उनका उड़न खटोला यहां के लालपुर हेलीपेड पर लैंड करता था पर मोदी के आने की खबर के साथ ही यह चर्चा भी हुई कि अभी तक जिन नेताओं ने हवाई यात्रा के जरिये नर्मदा को लांधा है उन्हें उमा की तरह कुर्सी छोडना पड़ी है इनमें प्रमुख नाम इन्दिरा गांधी, मोरारजी देसाई, वी सी शुक्ला, अर्जुन सिंह, भैरों सिंह शेखावत और मोतीलाल वोरा के हैं.

इन्हें नहीं मालूम था कि अपने ऊपर से हवाई यात्रा करने से नर्मदा कुर्सी छीनने की हद तक कुपित हो जाती है पर यह बात शिवराज सिंह को मालूम थी इसलिए अपने मुख्य मंत्रित्व काल मे उन्होंने कभी नर्मदा नदी हवाई यात्रा के जरिये पार नहीं कि इसीलिए उनकी कुर्सी सलामत है.  इसमें उनकी संगठन और सत्ता में पकड़ का कोई योगदान नहीं. शिवराज सिंह नहीं चाहते कि मोदी को भी कुर्सी छोड़ने का यह श्राप लगे इसलिए वे अलग हेलीपैड बनवा रहे हैं.

यह एक अंधविश्वास की हद है जो पंडावाद को बढ़ावा दे रही है. कहीं नहीं लिखा कि नर्मदा नदी इतनी क्रूर और पूर्वाग्रही है जिसका कहर अपने ऊपर से जाने वाले नेताओं के उड़न खटोलों पर ही टूटता है नियमित उड़ानों को वह जाने क्यों वख्श देती है जिनमें नेता भी सवार रहते हैं.  हकीकत तो यह है कि नर्मदा यात्रा की लंबी और महंगी नौटंकी से आम लोग नाराज हो चले हैं जिसमें दर्जनो हस्तियों को बुलाया गया. इस नाराजी को दूर करने शिवराज सिंह अंधविश्वास का सहारा ले रहे हैं जो भारतीयों की सनातनी कमजोरी है इससे लोग मुद्दे की बात भूलते चमत्कारों और अंधविश्वासों के रहस्य रोमांच में डूब जाते हैं और धर्म प्रचार भी हो जाता है.

शिवराज सिंह विकट के अंधविश्वासी हैं इसलिए वे अशोक नगर जाने से भी कतराते हैं जिसके बारे में यह अफवाह फैली हुई है कि यहां जो भी सी एम जाता है उसे कुर्सी गंवानी पड़ती है  यानि कुर्सी पर काबिज रहने काम धाम और काबिलियत की नहीं बल्कि किवदंतियों को ढोने की जरूरत होती है. पिछले एक साल से असुरक्षा की गिरफ्त में आ गए शिवराज सिंह धरम करम में ही डूबे हैं. कुम्भ मेले के बाद से वे प्रशासनिक काम काज कर नहीं रहे बल्कि ढो रहे हैं यह लापरवाही जरूर उन्हें डुबो सकती है क्योंकि जनता सब देखती है और बहुत बारीकी से देख कर ही वोट करती है.

कोई देवी देवता नदी पहाड़ उन्हें क्या किसी भी नेता को वोटर के गुस्से से नहीं बचा सकता उत्तराखंड के पूर्व मुख्य मंत्री हरीश रावत इसकी ताजी मिसाल हैं जिनका पूजा पाठ तंत्र मंत्र सब धरा रह गया. रही बात नर्मदा यात्रा की तो मीडिया उससे जुड़ी इस तरह की मूर्खताओं को नजरंदाज करने व्यावसायिक तौर पर विवश है क्योंकि इस ढकोसले की महिमा गाने करोड़ों के विज्ञापन जारी किए जा रहे हैं जो जनता के पैसे का दुरुपयोग ही है.

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