पश्चिमी देशों ने अमेरिका के नेतृत्व में एक बार फिर जता दिया है कि वे चाहें तो अपने आर्थिक बल पर ही किसी भी शक्ति नहीं, महाशक्ति को भी बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. रूस ने सोचा था कि यूक्रेन में उस की सैर कुछ टैंकों से पूरी हो जाएगी और वहां सत्ता परिवर्तन कर के वह अपना कम्युनिस्ट दिनों का रोबदाब फिर साबित कर सकेगा पर यह सैर उस पर भारी पड़ रही है. चीन का अपरोक्ष साथ होने के बावजूद यूक्रेन की जनता का विद्रोह और पश्मिची उन्नत देशों का एकजुटता से रूस का बहिष्कार कर देना राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का एक ऐसा कांटोंभरा ‘उपहार’ रूसी जनता को मिला है जिस का असर दशकों तक रहेगा.

अमेरिका व कई पश्चिमी देश रूस के फैलते पंजों से परेशान थे पर वे अकेले कुछ नहीं कर पाते थे. यूक्रेन के मामले में पुतिन की धौंसबाजी और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर जेलेंस्की की हिम्मत ने एक बहुत बड़े देश के छक्के छुड़ा दिए. रूसी सेना को भारी नुकसान हो रहा है, उस की पोल हर रोज खुल रही है और अब सिवा अणुबम के उस के पास कुछ नहीं बचा है.

ये भी पढ़ें- जमीनों की मिल्कीयत का डिजिटल नक्शा

रूस की आबादी 14 करोड़ है और यूक्रेन की 4 करोड़. रूस के पास 1.70 करोड़ वर्ग किलोमीटर की भूमि है और यूक्रेन के पास सिर्फ 6 लाख वर्ग किलोमीटर. रूस की अर्थव्यवस्था 1.5 ट्रिलियन डौलर की है और यूक्रेन की 350 बिलियन डौलर की. यूक्रेन की सेना 2 लाख सैनिकों की है और रूस की 9 लाख की. फिर भी हर रूसी राष्ट्रपति पुतिन के पीछे खड़ा हो, जरूरी नहीं. पर, हर यूक्रेनी अपने राष्ट्रपति जेलेंस्की के पीछे खड़ा है. यूक्रेन से युद्ध के कारण भागे 25 लाख लोगों में ज्यादातर बच्चे, औरतें और बूढ़े हैं. जवान पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी रूसी हमले का जवाब देने के लिए खड़ी हैं. रूस की भारी बमबारी ने 30 दिनों में यूक्रेन की राजधानी को हिला नहीं पाई और इसीलिए दुनिया की सारी राजधानियां अब यूक्रेन के साथ खड़ी हैं.

चीन जैसा कट्टर तानाशाही देश सिर्फ दबे शब्दों में रूस का समर्थन कर पा रहा है क्योंकि 15 ट्रिलियन डौलर की उस की भी अर्थव्यवस्था उस 75 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था के सामने बौनी है जो आज रूस के खिलाफ खड़ी हो गई है.

75 ट्रिलियन वाले देश कितनी आसानी से एक दंभी, तानाशाह, डेढ़ पसली की डेढ़ ट्रिलियन डौलर वाले देश को हाथिए पर खड़ा कर सकते हैं, यह दिखने लगा है. अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो पुतिन भक्त थे, अब अपना स्वर बदल रहे हैं और वहां की रिपब्लिकन पार्टी को भी राष्ट्रपति जो बाइडन का साथ देना पड़ रहा है. कुछ यूरोपीय देश अभी भी कुछ सामान रूस से खरीद रहे हैं पर धीरेधीरे सब दूरदर्शी सोच में रूस को कंगाल बनाने में जुट गए हैं. रूसी अमीरों का जो पैसा पश्चिमी देशों ने जब्त किया है वह शायद यूक्रेन के पुनर्निर्माण में लग जाए क्योंकि यह अब लगने लगा है कि रूस को तहसनहस हुए यूक्रेन से अभी या कुछ समय बाद लौटना ही होगा.

ये भी पढ़ें- वोटरों की बदलती सोच

यूक्रेन ने साबित कर दिया है कि पश्चिमी देशों की व्यैक्तिक स्वतंत्रताएं, लोकतंत्र, लगातार वैज्ञानिक उन्नति आदि रूसी और्थोडोक्स चर्च पर कहीं अधिक भारी है जिस के इशारे पर भक्त राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विधर्मी यहूदी वोलोदोमीर जेलेंस्की को हटाने की कोशिश की थी. यह बात, हालांकि, चर्चा में कम ही आई है लेकिन हकीकत यही है और इस युद्ध के बीज भी धर्म ने ही बोए हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...