Writer- प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ कीट वैज्ञानिक

अम के बागों में बौर आना शुरू हो गया है, इसलिए बागबानों को आम का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन लेने  के लिए अभी से इस की देखभाल करनी होगी, क्योंकि जहां चूके तो रोग व कीट पूरी बगिया को बरबाद कर सकते हैं.

आम के बागों में जिस समय पेड़ों पर बौर लगा हो और खिल गया हो, उस समय किसी भी कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस का परागण हवा या मधुमक्खियों द्वारा होता है.

अगर पुष्पावस्था में कीटनाशक दवा का छिड़काव कर दिया तो मधुमक्खियां मर जाएंगी और बौर पर छिड़काव से नमी होने के कारण परागण ठीक से नहीं हो पाएगा, जिस से फल बहुत कम आएंगे.

आम के बागों को सब से अधिक भुनगा कीट नुकसान पहुंचाते हैं. इस के शिशु व वयस्क दोनों ही कीट कोमल पत्तियों और पुष्पक्रमों का रस चूस कर हानि पहुंचाते हैं. इस की मादा 100-200 तक अंडे नई पत्तियों व मुलायम प्ररोह में देती है और इन का जीवनचक्र 12-22 दिनों में पूरा हो जाता है. इस का प्रकोप जनवरीफरवरी माह से शुरू हो जाता है.

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इस कीट से बचने के लिए बिवेरिया बेसिआना फफूंद 5 ग्राम को एक लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें या नीम तेल 2 मिली. प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव कर के भी छुटकारा पाया जा सकता है.

सब से अधिक बीमारी से नुकसान सफेद चूर्णी (पाउडरी मिल्ड्यू) से आम को होता है. बौर आने की अवस्था में यदि मौसम बदली वाला हो या बरसात हो रही हो, तो यह बीमारी जल्दी लग जाती है.

इस बीमारी के प्रभाव से रोगग्रस्त भाग सफेद दिखाई पड़ने लगता है. इस की वजह से मंजरियां और फूल सूख कर गिर जाते हैं. इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर 2 ग्राम गंधक को प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

इस के अलावा आम में गुम्मा बीमारी भी लगती है. इसे गुच्छा बीमारी भी कहते हैं. इस बीमारी में पूरा बौर नपुंसक फूलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है.

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बीमारी पर नियंत्रण, प्रभावित बौर और शाखाओं को तोड़ कर या काट कर किया जा सकता है. इस रोग से प्रभावित टहनियों में कलियां आने की अवस्था में जनवरीफरवरी माह में पेड़ के बौर तोड़ देना भी लाभदायक रहता है, क्योंकि इस से न केवल आम की उपज बढ़ जाती है, बल्कि इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है. यदि बागबान अभी से ही आम के बागों का ध्यान रखते हैं, तो अच्छी पैदावार ले सकते हैं.

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