एक सफल व्यक्ति अपने मित्रों से जाना जाता है जबकि एक असफल व्यक्ति के चारों ओर मूर्खों का जमावड़ा रहता है. भारत की विदेश नीति से यह साफ हो गया है कि बहुत बोलने वाले खुद को चाहे महान मानते हों, उन का अहं व दंभ इतना ज्यादा हो कि उन की तर्क व विवेक शक्ति कुंद हो चुकी हो पर वे अपना बखान करते रहने से नहीं चूकते.
भारत ने जब से अमेरिका का साथ छोड़ कर रूस का दामन थामा, क्योंकि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी नरेंद्र मोदी की तरह अंधविश्वासी व पुरातनपंथी हैं और दोनों को लोकतांत्रिक भावनाओं व आम जनता के सुखों से चिढ़ है, भारत की विदेश नीति दिल्ली के गाजीपुर इलाके में बने 400 फुट ऊंचे पहाड़ की तरह हो गई है जो मीलों से दिखता है.
भारत ने यूक्रेन का साथ न दे कर साबित कर दिया है कि भारत के नेता भी अपनी जनता को व्लादिमीर पुतिन की तरह गोबर और नाली में धकेल कर अपनी पीठ थपथपा सकते हैं. पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण वही सोच कर किया था जो सोच कर नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का फैसला लिया, पकौड़ों का व्यवसाय करने की सलाह दी, बिना वैज्ञानिक राय के अचानक, बिना चेतावनी, लौकडाउन थोप दिया और अब यहां तक कह रहे हैं कि वे गाय के गोबर के व्यवसाय का अजूबा तरीका 10 मार्च को बताने वाले हैं जो छुट्टे सांडों (इन में भगवाधारी शामिल नहीं हैं) की सारी समस्या हल कर देगा.
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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को नहीं पता था कि पूर्व कौमेडियन व्लोदोमीर जेलेंस्की, जो यूक्रेन का राष्ट्रपति हंसीखेल में बन गया था, इतना मजबूत निकलेगा. ऐसी ही गलती नरेंद्र मोदी लगातार कर रहे हैं जब वे कांग्रेस के राहुल गांधी को देश का नंबर एक कौमेडियन साबित करने की कोशिश करते हैं. राहुल गांधी कब जेलेंस्की जैसे साबित हो जाएं, कहा नहीं जा सकता.
आज पूरी दुनिया व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ एकजुट हो गई है, ब्राजील और बेलारूस को छोड़ कर जिन के अकेले हमदर्द नरेंद्र मोदी हैं. यूक्रेन में पढ़ रहे भारतीय छात्रों के साथ अगर उन के घर लौटने के प्रयास में यूक्रेन, पोलैंड, रोमानिया में सही व प्यारभरा बरताव नहीं हो रहा तो इस के लिए नरेंद्र मोदी जिम्मेदार हैं जिन की विदेश नीति ने सब को रुष्ट कर दिया है और उस का असर इन छात्रों पर पड़ रहा है.
नरेंद्र मोदी ने पहले अपने जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का पालतू बन कर किया था. जब कोरोना का काला साया सिर पर मंडरा रहा था तब उन्हें भारत बुला कर फिर ‘एक बार ट्रंप सरकार’ का नारा अहमदाबाद के नएनवेले स्टेडियम में लगवाया था. नतीजा यह है कि भारत को आज अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, जो भारतीय मूल की भी हैं, से भाव नहीं मिल रहा.
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यूके्रन में जो रहा है, वह अद्भुत है. बड़ी शक्तियां छोटे देशों से कई बार हारी हैं. रूस पहले अफगानिस्तान में हार चुका है, फिर वहां अमेरिका हारा. अमेरिका वियतनाम में भी हारा. भारत श्रीलंका में तमिल टाइगर्स के हाथों पिट कर आया था, पर 4 करोड़ की आबादी वाला कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहा यूक्रेन जिस तरह एक राष्ट्रपति की हिम्मत के कारण रूस को एक सप्ताह तक रोक सका, वह दंभी व अकड़ में डूबी तानाशाही को सबक सिखा गया है.