01इतिहास खुद को दोहराता है. 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ऐतिहासिक बहुमत के साथ 414 सीटें मिली थीं. देश में इतना प्रबल बहुमत पहले किसी पार्टी को नहीं मिला था. ‘मिस्टर क्लीन’ की छवि वाले राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने. लोकसभा में विपक्ष के पास केवल 130 सीटें थीं. इन में से भाजपा के पास केवल 2 थीं. 3 वर्षों के बाद ही कांग्रेस से निकल कर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स घोटाला का मुद्दा उठा कर 1989 के लोकसभा चुनाव में अपनी सरकार बना ली. गैरकांग्रेसवाद के नाम पर विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ अलगअलग राजनीतिक विचारधारा और क्षेत्र के वामपंथी व दक्षिणपंथी पार्टियां यानी भाजपा एक मंच पर आ गई थीं.

2024 में इतिहास खुद को दोहराता दिख रहा है. इस बार मुद्दा गैरभाजपावाद का है. ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और स्टालिन भले ही अलगअलग पार्टी व विचारधारा के हों पर इन के आपस में मिलने पर परेशानी नहीं है.

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को ममता बनर्जी ने समर्थन दिया. लखनऊ के 19 विक्रमादित्य मार्ग स्थित सपा कार्यालय में ममता बनर्जी ने मंच से फुटबौल उछाल कर ‘खेला हौबे’ का नारा देते देश की राजनीति के भविष्य की नींव रखते कहा, ‘‘आप यूपी से भाजपा को हटाओ, हम 2024 में दिल्ली से हटा देंगे. अगर भाजपा रही तो देश खत्म हो जाएगा.’’ उत्तर प्रदेश की विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव के बहाने ममता ने 2024 की अपनी रणनीति का खुलासा करते कहा कि धर्मनिरपेक्ष सोच के दलों को एक मंच पर आना होगा.

मुद्दा बन रहा गैरभाजपावाद

देश की राजनीति एक नए मोड़ पर खड़ी है. गैरकांग्रेसवाद की लड़ाई अब गैरभाजपा में बदल गई है. 2014 के बाद वोटबैंक की राजनीति ने धर्म के नाम पर जिस तरह से आपस में दूरियां पैदा की हैं उस से देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान हुआ है. वहीं, विपक्ष को पूरी तरह से खत्म करने के लिए देश की सवैंधानिक संस्थाओं का प्रयोग किया जा रहा है जो इमरजैंसी युग की याद दिलाता है.

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जिन प्रदेशों में गैरभाजपाई सरकारें हैं उन के सामने मुश्किलें पैदा की जा रही हैं. पिछले 8 वर्षों में पूरे देश में सत्ता के खिलाफ बोलने वाले पर राजद्रोह तक के मुकदमे लाद दिए गए. विपक्ष के नेताओं की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए भाजपा की आईटी सैल द्वारा मिथ्या प्रचार किया गया, जिस से विपक्षी नेता जो भी बोलें उस को जनता गंभीरता से न ले.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ‘पप्पू,’ समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव को ‘टोटी चोर,’ ममता बनर्जी को मुसलिमपरस्त, उद्धव ठाकरे के खिलाफ नशे की मुहिम और स्टालिन के खिलाफ वंशवाद का आरोप लगा कर प्रचार किया गया. इस का मकसद यह है कि जनता इन नेताओं की कही बात को गंभीरता से न ले.

भाजपा इन पंच प्यारे यानी ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और स्टालिन को हर तरह से पीछे ढकेलने के लिए पूरा दमखम लगा रही है. उस का कारण यह है कि ये नेता आने वाले सालों में देश की राजनीति को बदलने का दमखम रखते हैं. उस की वजह यह है कि ये नेता अपनेअपने प्रदेशों में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं. इन के राजकाज करने का तरीका बेहतर है. ये अमीर लोगों की जगह देश के गरीब समाज को सामने रख कर योजनाएं बनाते हैं.

अखिलेश यादव ने साधा उत्तर प्रदेश

देश के सब से बड़े प्रदेश में भाजपा को अकेले अखिलेश यादव से लड़ने में छक्के छूट रहे हैं. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा बड़ी जीत की उम्मीद कर रही है. उस की योजना है कि वह न केवल अपनी सरकार बनाए बल्कि 350 से अधिक विधानसभा की सीटें जीत कर यह बता दे कि जनता उस के साथ है.

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने भाजपा के मंसूबों पर पानी फेरने की पूरी योजना बना ली है. अखिलेश यादव ने भाजपा के अंदर सेंधमारी कर के उन के सहयोगी ओमप्रकाश राजभर और कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को तोड़ लिया है. अखिलेश यादव के दबाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय लोकदल नेता चौधरी जयंत सिंह के साथ जिस तरह से विधानसभा चुनाव लड़ने का चक्रव्यूह तैयार किया उसे भेद पाने में भाजपा असफल हो रही है. राज्य के पश्चिम इलाके को उत्तर प्रदेश की राजनीति का प्रवेशद्वार कहा जाता है. पहले चरण का मतदान यहीं पर हुआ है. अखिलेश और जयंत यहां ‘दो लड़कों की जोड़ी’ के नाम से मशहूर हो गए हैं.

यही नहीं, अखिलेश यादव ने बाकी प्रदेश के लिए भी अलगअलग चुनावी रणनीति तैयार कर ली है. जनता का समर्थन जिस तरह से उन को मिल रहा है वह बेहद महत्त्वपूर्ण है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लखनऊ आईं और अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का समर्थन समाजवादी पार्टी को दिया. यहां से देश की राजनीति में बदलाव का रास्ता खुलता है. उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव केवल भाजपा के लिए ही नहीं, पूरे विपक्ष के लिए भी बेहद महत्त्वपूर्ण है.

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ममता की लड़ाकू छवि बनेगी सहारा

तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की छवि जमीन से जुड़ी लड़ाकू नेता की है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा की ‘चतुर्णी सेना’ का मुकाबला जिस तरह से ममता ने किया उस से विपक्षी दलों के तमाम नेताओं के अंदर एक हौसला बढ़ा.

ममता बनर्जी ने कुशल सेनापति के रूप में चुनाव का पूरा संचालन किया और फिर मुख्यमंत्री बनने में सफल रहीं. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जिस तरह से भाजपा में तोड़फोड़ की, वह उन की हिम्मत को ही दर्शाता है. ‘दो मई आई, दीदी गई’ का नारा देने वाली भाजपा को ममता ने पश्चिम बंगाल से खदेड़ने का काम किया. ममता विरोधी दलों की मुख्य धुरी बन गई हैं. राष्ट्रीय स्तर पर शरद पवार के बाद ममता बनर्जी अकेली ऐसी नेता हैं जो सभी दलों और नेताओं के बीच अच्छे संबंध रखती हैं.

2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के सामने वे सब से बड़ा चेहरा होंगी. ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल का चुनाव जीतने में सफल रही हैं. इस के अलावा वे केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुकी हैं. राज्य से ले कर देश के स्तर पर सरकार चलाने का अनुभव उन के पास है. अगर विपक्ष का साथ उन को मिला तो वे नरेंद्र मोदी के सामने सब से प्रमुख चेहरा बनेंगी. ममता बनर्जी हर दल के साथ तालमेल कर सकती हैं. देश की राजनीति में बदलाव करने वाले ‘पंच प्यारे’ नेताओं राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और स्टालिन में ममता बनर्जी सब से ज्यादा लोकप्रिय भी हैं. जरूरत इस बात की है कि गैरभाजपाई दल इस दिशा में सही योजना बना कर काम करें.

राहुल की मुखर और बुलंद आवाज

भाजपा के लाख प्रयासों के बाद भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी की मुखर और बुलंद आवाज लोगों को पसंद आ रही है. संसद से ले कर सड़क तक राहुल गांधी को लोग सुनते हैं. राहुल गांधी की बातें तथ्यों/आंकड़ों पर आधारित होती हैं. इसी कारण ये भाजपा को चुभती हैं. कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर सब से बड़ी पार्टी है. उस के नेता की आवाज को देश ही नहीं, विदेशों तक में सुना जाता है. राहुल गांधी के पास देश चलाने और सभी वर्गों को साथ ले कर चलने का दृष्टिकोण भी है. कांग्रेस की दिक्कत है कि आज उस के पास मजबूत संगठन नहीं है. उस का वोटबैंक छितर गया है. कांग्रेस पहले गठबंधन की राजनीति नहीं करना चाहती थी. सोनिया गांधी ने कांग्रेस की इस सोच को बदला और यूपीए बना कर गठबंधन की राजनीति को आगे बढ़ाया, जिस के सहारे 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव जीते भी.

10 वर्षों बाद 2024 में एक बार फिर से कई दल एकजुट हो कर भाजपा के सामने चुनौती पेश कर सकते हैं. इन में से कई दल चुनाव के बाद भी गठबंधन में शामिल हो सकते हैं. भाजपा के हिंदुत्व का मुद्दा केवल हिंदी बोली वाले प्रदेशों में ही चल रहा है. बाकी देश से भाजपा सिमटती जा रही है. महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के चुनावों में हार के बाद भाजपा का ग्राफ गिरने लगा है.

उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भाजपा को कड़ी चुनौती मिल रही है. अभी भाजपा 4 राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में सत्ता में है. इन 4 राज्यों में उस को अपनी वापसी होती नहीं दिख रही है. राम के प्रदेश में उस की हालत फंसी हुई है. राममंदिर बनने के बाद भी जनता में उत्साह नहीं है. यही वजह है कि भाजपा को काशी और मथुरा की बात करनी पड़ रही है.

नहीं ?ाके उद्धव ठाकरे

शिवसेना और भाजपा का बहुत पुराना गठबंधन रहा है. उद्धव ठाकरे ने इस गठबंधन को तोड़ कर खुद की अपनी अलग राह चुनी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. इस के बाद वे भाजपा के दुश्मन नंबर एक बन गए. भाजपा के समर्थक और आईटी सैल के लोग कभी राज ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे को राबड़ी देवी कहते हैं तो कभी उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे को बदनाम करने वाले बयान देते हैं.

महाराष्ट्र में शिवसेना को दबाने के लिए ईडी और नारकोटिक्स विभाग का प्रयोग किया गया. शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे कभी भी डरे और ?ाके नहीं. उद्धव ठाकरे यह मानते हैं कि केंद्र सरकार अपनी ताकतों का दुरुपयोग कर रही है. शिवसेना की पकड़ महाराष्ट्र में बहुत मजबूत है. भाजपा हमेशा उसे कम महत्त्व देती रही है. उद्धव ठाकरे ने भाजपा से अलग होने का फैसला कर के सही राजनीतिक कदम उठाया और महाराष्ट्र की कमान अपने हाथों में ली.

उद्धव ठाकरे भी 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात देने के लिए पूरा दमखम लगा देंगे. वे अकेले ऐसे नेता हैं जिन को भाजपा हिंदूवाद का विरोधी नहीं कह सकती. ऐसे में उन की ताकत बढ़ जाती है. भाजपा के हिंदुत्व की सब से बड़ी काट शिवसेना ही है. जो बिना डरे व ?ाके भाजपा का विरोध कर रही है.

महाराष्ट्र देश का सब से बड़ा औद्योगिक प्रदेश है. भाजपा वहां से तमाम उद्योगों को बाहर निकालना चाहती है. फिल्म उद्योग इस का एक बड़ा उदाहरण है. भाजपा के बहुत सारे प्रयासों के बाद भी उत्तर प्रदेश में फिल्मनगरी नहीं बन पाई है. उद्धव ठाकरे भी यह नहीं चाहते कि भाजपा की तानाशाही चलती रहे. इस कारण गैरभाजपा के नाम पर वे कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की ताकत को बढ़ावा दे सकते हैं.

दक्षिण में बड़ी चुनौती हैं एम के स्टालिन

2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को उत्तर भारत के राज्यों से बड़ी सफलता मिली थी. यहां अब भाजपा का ग्रोथ रुक चुका है. भाजपा का प्रयास यह है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में उस को दक्षिण भारत के राज्यों से उतनी सीटें मिल जाएं जितनी उत्तर भारत में कम हो रही हैं, तभी वह सरकार बनाने में सफल हो पाएगी.

महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में जिस तरह से उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने भाजपा को रोक रखा है उसी तरह से द्रविड मुनेत्र कषगम यानी द्रमुक के नेता मुथुवेल करुणानिधि स्टालिन यानी एम के स्टालिन तमिलनाडु में घुसने नहीं दे रहे हैं. दक्षिण भारत के इस नेता का नाम सब से ताकतवर नेताओं में शुमार किया जाता है. मेयर से ले कर मुख्यमंत्री तक का उन्हें प्रशासनिक अनुभव है.

तमिलनाडु में लोकसभा की 39, उत्तर प्रदेश 80, महाराष्ट्र 48 और पश्चिम बंगाल में 41 सीटें हैं. इन 4 राज्यों की 208 लोकसभा सीटों पर भाजपा के सामने सब से बड़ी चुनौती है. ऐसे में यह साफ है कि अगर इन प्रदेशों में भाजपा को रोक लिया गया तो उस के लिए 2024 की राह कांटोंभरी हो जाएगी जिसे पार करना नामुमकिन सा हो जाएगा.

इन दलों को जब कांग्रेस का साथ मिलेगा तो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को बड़ी चुनौती पेश की जा सकेगी. राहुल गांधी और ममता बनर्जी के रूप में 2 बड़े चेहरे भी सामने हैं जिन के नाम को आगे कर के विपक्ष गैरभाजपावाद के खेमे को मजबूत कर सकता है. आने वाले लोकसभा चुनाव की नजर से ये ‘पंच प्यारे’ यानी ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और स्टालिन खासे महत्त्वपूर्ण हैं.

ममता बनर्जी यह बात जानती हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर वे अकेली भाजपा से लड़ाई में सफल नहीं होंगी. ऐसे में वे अपने साथ दूसरे दलों को लेना चाहती हैं. सत्ता से किसी दल को हटाने के लिए अलगअलग विचाराधारा के लोग पहली बार एकजुट नहीं हो रहे हैं. 1977 में इमरजैंसी के बाद सभी दलों ने मिल कर जनता पार्टी सरकार बनाई और कांग्रेस को हराया. 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ भाजपा और वामपंथी एक सरकार में हिस्सा बने और कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया. 2004 में कांग्रेस ने यूपीए का गठबंधन बनाया और भाजपा की अटल सरकार को हराया जिस ने ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा दे कर वक्त से 6 माह पहले लोकसभा के चुनाव कराने का जोखिम उठा लिया था.

2014 में 10 साल पुरानी कांग्रेस सरकार को हटाने के लिए भाजपा ने भी एनडीए गठबंधन का सहारा लिया था. पंच प्यारे यानी ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और स्टालिन अगर एकजुट हो कर भाजपा की मोदी सरकार को हटाने के लिए एक मंच पर आते हैं तो वह चौंकाने वाली बात नहीं होगी.

इतिहास खुद को दोहराता है. अब राजनीतिक दलों को गठबंधन की राजनीति करनी आ गई है. अलगअलग विचारधारा व क्षेत्र के लोग भी एक मंच पर आ कर सफल राजनीति कर सकते हैं. उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में इस की मिसाल पेश कर के भाजपा को कुरसी से उतारने में सफल भी रहे हैं. ताकतवर मोदी को कुरसी से हटाने के लिए व गैरभाजपावाद के नाम पर ये ‘पंच प्यारे’ सफल हो सकते हैं.

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