दुष्कर्म या बलात्कार के ज्यादातर मामले लोकलाज के भय से या तो दबा दिए जाते हैं या उन की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती, लेकिन दुष्कर्म के बाद जो मानसिक पीड़ा या त्रासदी महिला को झेलनी पड़ती है वह अकल्पनीय है. सब से बड़ा सवाल यह है कि एक बलात्कारी किन मानसिक परिस्थितियों में इस तरह के कुकृत्य को अंजाम देता है? क्या वह उस के बाद होने वाले परिणामों को भूल जाता है या फिर उन के बारे में सोचता ही नहीं.

देश के सुदूर ग्रामीण आदिवासी इलाकों में उच्चजाति के लोगों द्वारा दलित आदिवासी महिलाओं की अस्मत लूटने और उन्हें जिंदा जलाए जाने की खबरें सुर्खियां बनती रहती हैं पर पीड़ाजनक स्थिति तब होती है जब ऐसे लोग अपने कुकृत्यों का सरेआम ढिंढोरा पीटते हैं.

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ज्यादातर रेप पीड़ितों की तरह मुझ पर भी जिसने यौन हमला किया था, उससे मेरे पहले ही अंतरंग रिश्ते थे. उस आदमी के साथ मैं एक रात रुकी थी. महीनों बाद वह कोकीन के नशे में मेरे घर पर शाम में पांच बजे आया. उसने कुंडी से दरवाजा खटखटाया. अंदर घुसते ही उसने मुझे बिस्तर पर खींच लिया. उसने धमकी दी कि मैं चिल्लाई तो वह मुझे मार देगा.

रेप पीड़ितों से अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि तुमने प्रतिकार क्यों नहीं किया. इस सवाल के अंतहीन जवाब हो सकते हैं. मेरे लिए पहला सामान्य जवाब यह था: प्रतिकार करना जोखिम से भरा था. मैंने अपने गुल्लक से उसके सिर पर मारने के बारे में सोचा था, लेकिन वह डील-डौल में मुझसे दोगुना था. अगर वह काम नहीं करता हो क्या होता? आप उससे भिड़ते या हार मान लेते. क्या उसके बाद और बुरा नहीं होता?

मैं दो घंटों तक फंसी रही. आखिर में मैंने नाटक किया, मैंने उसे खुद के पहनने के लिए अंडरवियर लाने को कहा. उसका ध्यान बंटा तो मैं बच निकली. मैं डर के कारण इसकी रिपोर्ट दर्ज कराने को लेकर अनिच्छुक थी, लेकिन मैं अन्य महिलाओं की रक्षा के लिए आगे आई. दुर्भाग्य से मुझे उस भय का अहसास हुआ. इस मामले की जांच हमले की तरह प्रताड़नापूर्ण थी.

मैं ट्रांसजेंडर हूं और उस वक्त बदलाव के शुरुआती दौर में थी. मेरे स्तन छोटे थे. मैंने अपने पैरों से बाल हटाना शुरू ही किया था. इसलिए मेरी त्वचा रुखी थी. किसी ने बताया था कि मुझे स्किन की परत हटानी चाहिए. अगली सुबह मैंने महसूस किया कि वे मुझे लेकर धारणा बना रहे हैं. मुझे लग रहा था कि मैं सचमुच हठी हूं. मैं इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थी कि पूरी रात बाहर नहीं रह सकती. यहां तक कि मैं घर से बाहर भी नहीं जा सकती. मेरा हठ इसलिए भी था क्योंकि मैं दोषी नहीं थी.

जब तक मुझसे पूछताछ हुई थी तब लगा कि मैं पूरी तरह से खुल नहीं सकती. मैं नहीं चाहती थी कि यह बात किसी को बताऊं कि हमलावर के साथ एक रात रुक चुकी थी. ये 2010 की बात थी. मैं इस केस में जितना कर सकती थी उतना किया, लेकिन पुलिस उसे खोज नहीं पाई.

मैंने इस बारे में अपने फ्लैटमेट्स और दोस्तों के सिवा किसी को नहीं बताया. डीएनए के लिए मेरे घर की तलाशी ली गई थी. मैं ढोंग करना चाहती थी कि ऐसा हुआ ही नहीं है. मैं खुद को समझा रही थी कि उस स्थिति के लिए मैं ज़िम्मेदार हूं. मैं इस शर्मिंदगी के साथ लंबे समय तक रही.

सारी गड़बड़ी इसी से हुई. एक वक्त मुझे लगा कि मेरे उस अनुभव के कारण सबकुछ प्रभावित हो रहा है. मैं खुद को कैसे देखूं, लोगों पर भरोसा कैसे करूं, मैं अपने पार्टनर के साथ यौन संबंधों में किस कदर सक्षम होऊंगी और सेक्स में मेरे लिए इंजॉय क्या होगा? मुझे पता था कि अपने जख्मों के साथ जीने के मुकाबले उसका सामना करने की जरूरत है.

मैंने अपने दोस्तों पर भरोसा करना शुरू किया. ये ऐसे लोग थे जिन्हें समान अनुभवों को झेलना पड़ा था. यहां मुझे काफी सांत्वना मिली. हमने इससे मुकाबला करने के लिए रणनीतियों को साझा किया.

यहां से मुझे हिम्मत मिली. उन्होंने कहा कि जो हुआ उसका सामने करने के बजाय मैं भाग रही हूं और इससे मुश्किल कम नहीं होगी. लेकिन मैं तब भी लोगों को बताने में शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. मैं नहीं चाहती थी कि कोई मुझे पीड़ित, अश्लील और लापरवाह के रूप में देखे.

हाल ही में मैंने अपने अनुभवों को साझा करना शुरू किया. जब मैंने लोगों से कहना शुरू किया तो और लोगों ने अपने इसी तरह के अनुभवों को साझा किया. मुझे लगा कि यह केवल मेरी समस्या नहीं है. लेकिन ऐसा करने के बाद मुझे थोड़ी राहत भी मिली क्योंकि मैं अकेली नहीं थी.

मुझे लगा कि यौन हिंसा की शिकार महिलाओं के प्रति समाज का व्यवहार बिल्कुल ठीक नहीं है. हमलोग सामाजिक कलंक के कारण खामोश रहते हैं. हमें इस मामले में खुलकर सामने आना चाहिए और एक-दूसरे को मदद करनी चाहिए.

एक समाज के रूप में इन सब चीज़ों पर खुलकर बात करनी चाहिए ताकि सभी को समझ में आए कि आप कामुक हो सकते हैं और आप बिना शर्म और डर के सेक्स कर सकती हैं, लेकिन रेप सेक्स नहीं है. यह ताकत का गलत इस्तेमाल है. कोई चाहे बुर्का, मिनीस्कर्ट, सूट या पायाजमा पहने, ये रेप की वजह नहीं हो सकते.

मैं अब भी इसके समाधान पर काम कर रही हूं. अब भी वह समय है जब मैं लोगों को अपने कदम के बारे में बताऊं. एक वह वक़्त था जब मैं ख़ुद को ही दोषी ठहरा रही थी. मैं अब खुद को दोषी नहीं ठहराती.

 

तो ये थी एक रेप पीड़िता की आपबीती.

हमें चाहिए कि इन दुराचारियों को किसी भी स्तर पर बिलकुल न सराहें और न सहें. इन्हें बढ़ावा तभी मिलता है जब हम मौन साध लेते हैं. हमारी दहाड़ इन के हौसले पस्त करेगी. सामाजिक और पारिवारिक बहिष्कार से ये अलगथलग पडे़ंगे और इन का वहशीपन कमजोर पड़ेगा. ऐसे प्रयास सिर्फ अपराधियों की तरफ से ही नहीं करने होंगे बल्कि हमें महिलाओं का पक्ष भी मजबूत करना होगा. दुष्कर्म की शिकार पीडि़ताओं के लिए स्वाभिमान कार्यक्रम चलाने होंगे. उन के भीतर के ग्लानि और कुंठा के भाव को स्नेह व प्रेम से निकाल ना होगा. उन्हें समाज व परिवार में दोबारा उचित स्थान दिलाने के लिए उन का मनोबल बढ़ाना होगा. तभी हम इन बलात्कारियों को मजबूत इरादों वाली महिलाओं से टक्कर दे सकेंगे. बलात्कारियों का बहिष्कार और पीडि़ताओं की सम्मानजनक वापसी उन के होश ठिकाने लगाने का सब से बड़ा मूलमंत्र है.

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