बापू के चश्मे के साथ सरकारी एजेंसियां स्वच्छ भारत अभियान को बढ़ावा देने में लगी हैं. वे लोगों को घर, महल्ले, नगर, पिकनिक स्पौट्स आदि की स्वच्छता का ध्यान रखने को प्रेरित कर रही हैं. लेकिन जिन विज्ञापनों पर लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, वे खासे नीरस हैं. वे लोगों का ध्यान बरबस आकृष्ट करने में समर्थ नहीं. ऐसे में पूर्वोत्तर रेलवे की एक पहल लीक से हट कर है जो ध्यान आकर्षित करती है. यह पहल हिंदी फिल्मों, जैसे ‘शोले’, ‘दिलवाले दुलहनियां ले जाएंगे’ के लोकप्रिय संवादों पर आधारित है. हावड़ा स्टेशन पर लगे एक पोस्टर पर नजर ‘‘अरे ओ सांभा, कितना जुर्माना रखे है सरकार गंदगी फैलाने पर?’’
आशा की जानी चाहिए कि इन लोकप्रिय संवादों की भांति यह अभियान लोगों के दिलों में जगह बना लेगा और भारत आचरण एवं परिवेश की स्वच्छता के मामले में सिंगापुर से टक्कर ले सकेगा.
सत्यस्वरूप दत्त
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गरमी का समय था. हमारे पड़ोसी जांगीड साहब के यहां उन के साले का परिवार आने वाला था. बिजली बारबार आजा रही थी. उस दिन उमस कुछ ज्यादा ही थी. उन के साले जब भी आते थे तो कुछ न कुछ घर में आवश्यकता की चीज जरूर दिला कर जाते थे. यह बात हम सभी पड़ोसियों को मालूम थी. जांगीड साहब मना रहे थे कि बिजली नहीं जानी चाहिए. घर में इन्वर्टर नहीं है, मेहमानों को बड़ी दिक्कत हो जाएगी. यह परेशानी वे हम से भी कई बार शेयर कर चुके थे. मेरे पति बहुत ही हाजिरजवाब हैं. जांगीड साहब के परेशानी बयां करते ही बोले कि आज तो अवश्य ही लाइट जानी चाहिए, तभी तो साले साहब इन्वर्टर दिला कर जाएंगे. फिर कोई भी बिना हंसे नहीं रह सका.
आशा शर्मा
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मुंबई में रहने वाला मेरा मित्र एक दिन जल्दबाजी में बिना टिकट लिए लोकल ट्रेन में चढ़ गया. उस ने सोचा कि कौन सी रोज चैकिंग होती है. तभी टिकटचैकर टिकट चैक करता हुआ वहां आया और मित्र से टिकट मांगा. मित्र ने इधरउधर हाथ मारते हुए अपना बैग खोला और पिछले दिनों की ढेर सारी टिकटें निकाल कर उन में से उस दिन की टिकट तलाशने का अभिनय करने लगा. टिकटचैकर ने इतनी सारी टिकटें देख कर ‘ठीक है’, ‘ठीक है’ कहा और आगे निकल गया.
मुकेश जैन ‘पारस’