देश में गरीबों की गिनती बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है जबकि उसी तेजी से कुछ सौ अमीरों की संपत्ति बढ़ रही है. अंतर्राष्ट्रीय संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भारतीय सरकारी आंकड़ों से ही निकाले गए निष्कर्ष के हिसाब से 100 अमीरों की संपत्ति 57.3 लाख करोड़ से ज्यादा है सिर्फ वर्ष 2020 में जबकि 4.6 करोड़ गरीब लोग बेहद गरीब हो गए हैं.

यह भेदभाव होना ही था क्योंकि जब से भारतीय जनता पार्टी आई है उस का मोटो पौराणिक आदेश है कि शूद्र और अछूत के पास संपत्ति न हो और बारबार पौराणिक कहानियों व स्मृतियों में कहा गया है कि शूद्र की संपत्ति राज्य छीन कर ब्राहमणों में बांट दें. इन्हीं ग्रंथों के प्रवचन सुन कर आए नेताओं ने शासन पाते ही इस दिशा में काम करना शुरू किया और नई टैक्नोलौजी ने उन का पूरा साथ दिया. नोटबंदी का असली मंतव्य यही था कि गरीब के पास नोट न बचें और अमीर अपना पैसा बैंकों व संपत्ति में रख सकें.

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भारतीय संस्था सीएमआईई के अनुसार, 84 फीसदी घरों को कोविड की महामारी के दौरान आर्थिक संकटों में घिरना पड़ा जबकि इस महामारी में अमीर और अमीर हुए जो शेयर बाजार में आई ऊंचाइयों से साफ है. आज भारत के 142 खरबपतियों के पास 719 अरब डौलर की संपत्ति है जो सब से निचले स्तर के 40 फीसदी यानी 76 करोड़ लोगों की 657 अरब डौलर संपत्ति से ज्यादा है. एक आंकड़े के अनुसार, अगर 10 सब से अमीर भारतीय हर रोज 7.5 करोड़ रुपए फालतू में खर्च करें और उस से कुछ संपत्ति न खरीदें तो भी उन्हें अपनी संपत्ति को समाप्त करने में 85 साल लगेंगे.

पंडेपुजारी और पादरी भारत और अमेरिका जैसे देशों में इस बढ़ते भेदभाव के लिए बहुत जिम्मेदार हैं. दोनों ही देशों में भगवानों के ये दुकानदार जबरदस्त प्रचार करते हैं कि ईश्वर सब देख रहा है, दयालु है, लोगों की रक्षा को तैयार खड़ा है और अगर लोगों के साथ कुछ बुरा हो रहा है तो वह उन के पापों के कारण ही हो रहा है जिस का एक मात्र उपाय उन्हीं धर्म के दुकानदारों की दुकान पर जा कर पूजापाठ करना और दान देना है. न भारत के मंदिर और न अमेरिका के चर्च अपनी आय व खर्च का ब्योरा आम जनता को बताते है. ये करों से मुक्त हैं और भव्य चर्च और मंदिर दोनों खूब बन रहे हैं. अमेरिकी अमीर तो जम कर भारतीय मंदिरों को प्रोत्साहित कर रहे हैं क्योंकि इसी की आड़ में वे नए ईसाई चर्च भी बनवा रहे हैं और उन में वह भव्यता ला रहे हैं जो यूरोप में 4-5 सदी पहले तक थी, अब वह कम हो गई है.

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भारत में आय के बढ़ते अंतर के लिए जिम्मेदार पौराणिक शासक ही हैं जो इस तरह की नीतियां बना रहे हैं जिन से शेयर बाजार चमके और सब्जी बाजार उजड़ें.

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