रबी सीजन के लिए दिसंबर का महीना सब से महत्त्वपूर्ण माना जाता है. इस महीने में सब्जी, अनाज, फल वगैरह की अगेती फसलों की देखभाल से ले कर पछेती किस्मों की बोआई का काम किया जाता है. चूंकि इस महीने से सर्दी बढ़ने लगती है, इसलिए फसल को पाले से बचाने को ले कर बेहद सजगता बरतनी पड़ती है, वहीं पशुपालकों, मछलीपालकों और मुरगीपालन से जुड़े लोगों को भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है. जिन किसानों ने गेहूं की अभी तक बोआई नहीं की है, वह इस महीने के पहले पखवारे तक अवश्य पूरा कर लें.

इस के लिए गेहूं की उन्नतशील पछेती किस्मों का चयन करें. वहीं गेहूं की पछेती किस्मों की बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 125 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. पछेती बोआई के लिए उन्नत किस्मों में सोनालिका, डब्ल्यूएस 291, एचडी 2285, सोनक, यूपी 2338, राज 3767, पीबीडब्ल्यू 373, पीबीडब्ल्यू 138 व टीएल 1210 शामिल हैं. गेहूं को बोने के पहले कार्बोक्सिन 37.5 फीसदी व थीरम 37.5 फीसदी का मिश्रण 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा के अनुसार बीजोपचार करें. देरी से गेहूं की बोआई करने वाले किसान बीज की बोआई जीरो टिलेज विधि से जीरो टिलेज मशीन से करें.

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इस से गेहूं की खेती में लागत में कमी आने के साथ ही उपज में वृद्धि होती है और उर्वरक का उचित प्रयोग संभव हो पाता है. साथ ही, पहली सिंचाई में पानी न लगने के कारण फसल बढ़वार में रुकावट की समस्या नहीं रहती है. इस के अलावा गेहूं में खरपतवार में कमी आती है. जिन किसानों ने गेहूं की अगेती किस्में बोई हैं और उन के खेत में खरपतवार गेहुंसा और जंगली जई उग आई है, ऐसी संकरी व चौड़ी पत्ती दोनों खरपतवारों के नियंत्रण के लिए सल्फोसल्फ्यूरान 75 फीसदी व मेट सल्फ्यूरान मिथाइल 5 फीसदी डब्ल्यूजी की 40 ग्राम मात्रा को 600-800 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. जिन किसानों ने गेहूं की समय से बोआई की है, वह गेहूं में नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा दें और 15-20 दिन के अंतराल से सिंचाई करते रहें. समय से बोई गई गेहूं की फसल में शिखर जड़ विकास का समय होता है, इसलिए इस माह में बोआई के 21 दिन पूरे हो जाने पर फसल की सिंचाई से बिलकुल नहीं चूकना चाहिए, नहीं तो पैदावार में भारी गिरावट हो जाती है.

अगर गेहूं की बोआई के 30 दिन बाद नीचे की तीसरी या चौथी पत्तियों पर हलके पीले धब्बे, जो बाद में बड़े आकार के हो जाते हैं, दिखाई पड़ रहे हैं, तो यह जस्ते की कमी के लक्षण हैं. इस स्थिति में तुरंत 0.7 फीसदी जिंक सल्फेट व 2.7 फीसदी यूरिया का घोल बना कर 10 से 15 दिन के अंतर पर छिड़कें, वरना पैदावार कम होने के साथसाथ फसल पकने में 10-15 दिन की देरी हो जाती है. जो किसान जौ की बोआई अभी तक नहीं कर पाए हैं, वह दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक पछेती किस्मों को बो दें. इस के लिए एक हेक्टेयर में 100 से 110 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. जो किसान रबी सीजन में सूरजमुखी की फसल बोना चाहते हैं, वह दिसंबर के आखिरी हफ्ते तक हर हाल में बोआई कर लें.

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सूरजमुखी की उन्नत किस्में मौडर्न, बीएसएच 1, एमएसएच, सूर्या व ईसी 68415 हैं. शरदकालीन गन्ने में नवंबर के दूसरे पखवारे में सिंचाई न की गई हो, तो दिसंबर में सिंचाई कर के निराईगुड़ाई करें. गन्ने के साथ राई व तोरिया की सहफसली खेती में जरूरत के मुताबिक सिंचाई कर के निराईगुड़ाई करना लाभप्रद होता है. गेहूं के साथ सहफसली खेती में बोआई के 20-25 दिन बाद पहली सिंचाई करें. दिसंबर महीने में गन्ने की कटाई जोरों पर होती है. इस समय यह ध्यान दें कि कटाई जमीन की सतह के साथ करें और गन्ना मिलों की मांग के अनुसार करें. जिन किसानों ने तोरिया की फसल ली है,

वह दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक पकी हुई फसल की कटाई कर लें. इस के अलावा सरसों में दाने भरने की अवस्था में दिसंबर के पहले पखवारे में सिंचाई कर दें. पीली सरसों में भी फूल आने पर सिंचाई करें. जिन किसानों ने मटर की खेती की है, वे फसल में फूल आने से पहले एक हलकी सिंचाई कर दें. वहीं फसल में भभूतिया यानी पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण दिखने पर घुलनशील गंधक 80 फीसदी डब्ल्यूपी 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लिटर की दर से छिड़काव करें. इस की एक हेक्टेयर में 1.5 किलोग्राम मात्रा की जरूरत पड़ती है या फफूंदीनाशक फ्लुसिलाजोल 40 फीसदी ईसी की 120 मिलीलिटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें. जिन किसानों ने मसूर अभी तक नहीं बोई है, वह दिसंबर महीने में इस फसल की पछेती बोआई कर सकते हैं.

इस के लिए 50-60 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है. अलसी की बोई गई फसल में लीफ ब्लाइट और रतुआ रोग के नियंत्रण के लिए 2 ग्राम इंडोफिल एम-45 या 3 ग्राम ब्लाईटाक्स को 50 प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. आलू की फसल लेने वाले किसान अगर तापमान के अत्यधिक कम होने और पाला पड़ने की संभावना हो, तो फसल में सिंचाई जरूर करें. इस फसल में अगर पछेती ?ालसा का प्रकोप दिखे, जो फफूंद से लगने वाली एक बीमारी है. इस बीमारी का प्रकोप आलू की पत्ती, तने व कंदों के साथसाथ सभी भागों पर होता है. फफूंदीनाशक दवा साईमोक्जिल 8 फीसदी व मैंकोजेब 64 फीसदी डब्ल्यूपी के मिश्रण की प्रति हेक्टेयर 1.5 किलोग्राम मात्रा के घोल का छिड़काव 8-10 दिन के अंतराल पर करें. इस के अलावा आलू की फसल में अगेती ?ालसा की दशा में मैंकोजेब 63 फीसदी डब्ल्यूपी व कार्बंडाजिम 12 फीसदी डब्ल्यूपी की मात्रा को 600 से 800 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. अगर आलू की फसल में पत्ती मुड़ने वाला रोग यानी पोटैटो लीफ रोल का प्रकोप दिखाई पड़ रहा है

, तो एसिटामिप्रिड 20 फीसदी एसपी की 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा को 600 से 800 लिटर पानी में मिला कर 1-2 छिड़काव दिसंबर महीने में करें. दिसंबर महीने में मशरूम की तैयार फसल को तोड़ने के बाद, आकार के अनुसार उन की छंटनी कर लें और 3 फीसदी कैल्शियम क्लोराइड घोल से धोने के बाद साफ पानी से धोएं. इस के बाद धुले मशरूम को कपड़े पर फैला दें, ताकि अतिरिक्त पानी सूख जाए. फिर 250 ग्राम, 500 ग्राम के पैकेट बना कर सील कर दें और थैलियों में रख कर इसे रैफ्रिजरेटर में 7-8 दिन तक रख सकते हैं. ताजा मशरूम भी बाजार में आसानी से बिक जाती है.

जिन किसानों ने प्याज की रोपाई नहीं है, वह दिसंबर महीने के अंतिम हफ्ते तक प्याज की रोपाई जरूर कर दें. लाइन में 6 इंच व पौधों में 4 इंच की दूरी रखें. इस में 10 टन कंपोस्ट, पौना बोरा यूरिया, 2.5 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट व 1 बोरा म्यूरेट औफ पोटाश डालें और रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें. मूली, शलजम, गाजर में मिट्टी चढ़ाएं, ताकि पैदावार अधिक हो. बाकी सब्जियों को 15-20 दिन में हलकी सिंचाई करते रहें और पौलीथिन सीट से ढक कर पाले से भी बचाएं. टमाटर व मिर्च में ?ालसा रोग से बचाव के लिए मैंकोजेब 63 फीसदी डब्ल्यूपी व कार्बंडाजिम 12 फीसदी डब्ल्यूपी की मात्रा को 600 से 800 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. दिसंबर का महीना गुलाब के पौधों में काटछांट और गुड़ाई के लिए सही समय है. गुड़ाई के बाद गुलाब के तनों व जड़ों को धूप लगाने और कंपोस्ट देने से वसंत ऋतु में अच्छे फूल आते हैं.

इस माह गुलाब के पौधों के तनों की कलम भी आसानी से लग जाती है. बाकी फूलों में जरूरत के अनुसार व देशी खाद, पानी व गुड़ाई देते रहें. पाले से पौधों का बचाएं. ग्लैडियोलस की फसल में जरूरत के अनुसार सिंचाई व निराईगुड़ाई करें. मुर?ाई टहनियों को निकालते रहें और बीज न बनने दें. दिसंबर का महीना बगीचों में खाद देने का होता है. इसलिए आम, नीबू व अनार के पौधों में गोबर की खाद 17 से 20 किलोग्राम प्रति पौधा प्रति वर्ष के हिसाब से दें. 5 साल या ऊपर के पौधों में 77 से 100 किलोग्राम प्रति पौधा दें. खाद देने के साथ गुड़ाई भी करें. नीबू में केंकर रोग की रोकथाम के लिए 20 मिलीग्राम स्ट्रैप्टोसाइक्लीन को 25 ग्राम कौपर सल्फेट के साथ 200 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. बेर में सफेद चूर्णी रोग दिखाई देने पर घुलनशील गंधक 400 ग्राम को 200 लिटर पानी में घोल कर पेड़ों पर छिड़कें.

दिसंबर महीने में आड़ू के मिट्टीरहित पौधे लगाए जा सकते हैं. इस के लिए शरबती, सफेटा, मैचप्लेस, पलोरडासन किस्में उपयुक्त हैं. पौधों को रोपने के लिए 1 वर्गमीटर के गड्ढे खोदें और ऊपर की आधा मीटर मिट्टी में सड़ीगली देशी खाद बराबर मात्रा में मिला कर 20 मिलीलिटर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी डाल कर भर दें. पौधे लगाने से पहले गड्ढे पानी से भरें और फिर मिट्टी डाल कर बराबर करने के बाद पेड़ लगाएं और पानी दें. पौधों में यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट व म्यूरेट औफ पोटाश प्रति पौधा प्रति वर्ष की आयु के हिसाब से भी डालें. अमरूद में फलमक्खी रोग के नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन 2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर की दर से पानी में घोल बना कर फल परिपक्वता के पूर्व 10 दिनों के अंतर पर 2-3 बार छिड़काव करें. प्रभावित फलों को तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

बगीचे में फलमक्खी के वयस्क नर को फंसाने के लिए फैरोमौन ट्रेप लगाने चाहिए. आंवला की तुड़ाई के उपरांत फलों को बावस्टीन (0.1 प्रतिशत) से उपचारित कर के भंडारित करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है. आम की पौधो में कीट नियंत्रण के लिए किसान बागों की गहरी जुताई, गुड़ाई करें और कीटों को पौधों पर चढ़ने से रोकने के लिए मुख्य तने पर भूमि से 50-60 सैंटीमीटर चौड़ी पट्टी को तने के चारों ओर लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांध दें, जिस से कीट ऊपर न चढ़ सके. इस से बचाव के लिए दिसंबर माह में एक पखवारे के अंतराल पर 2 बार क्लोरोपायरीफास (1.5) चूर्ण भी प्रति पेड़ के हिसाब से पौधों पर बुरकाव करें. इस के बाद भी अगर कीट पौधे पर चढ़ जाएं तो क्विनलफास अथवा डायमेथोएट का पानी में घोल बना कर पौधों पर बुरकाव करें. दिसंबर माह में फलों की तुड़ाई होती है.

संक्रमित गिरे हुए फल को उठा कर एक बालटी में डुबो कर रखें. तुड़ाई के बाद हलकी छंटाई शाखाओं की कटी हुई सतहों पर कौपर औक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी 100 ग्राम प्रति 250 मिलीलिटर को पानी में मिला कर प्रूनिंग के बाद डालें. दिसंबर महीने में हुई ताजा बर्फबारी सेब के लिए लाभदायक होती है. इस से सेब बगीचों को नमी मिलती है. वैज्ञानिक सलाह के अनुसार उपयुक्त समय पर बगीचों का प्रबंधन करें और सही वक्त पर खाद डालें. दिसंबर में रातें लंबी और दिन छोटे होते हैं. ऐसे में दिसंबर की बर्फबारी सेब पौधों के लिए खुराक का काम करती है. पौधों को 12 सौ से 16 सौ घंटे तक कड़क ठंड की जरूरत रहती है. चिलिंग आवर्स पूरे होते हैं, तो अगले सेब सीजन में पैदावार अच्छी होने की उम्मीद जगती है. दिसंबर महीने में किन्नू की कुछ प्रजातियों की तुड़ाई करना जरूरी है. किन्नू के फल जब उचित आकार और आकर्षक रंग में आ जाएं, तो किन्नू तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

ध्यान रखें कि किन्नू की सही समय पर तुड़ाई करना जरूरी है, क्योंकि समय से पहले या देरी से तुड़ाई करने से फलों की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता है. किन्नू के फलों की तुड़ाई के बाद फलों को साफ पानी से धोएं और फिर क्लोरिनेटड पानी को प्रति लिटर पानी में मिला कर बनाए घोल में फलों को भिगो दें. इस के बाद फलों को छांव में सुखाएं और फिर डब्बों में पैक करें. पशु से जुड़े पशुपालक पशुओं का आहार संतुलित व नियंत्रित हो, इस के लिए दिन में 2 बार 8-10 घंटे के अंतराल पर चारापानी देना चाहिए. इस से पाचन क्रिया ठीक रहती है और बीच में जुगाली करने का समय भी मिल जाता है. पशु का आहार सस्ता, साफ, स्वादिष्ठ और पाचक हो. चारे में एकतिहाई भाग हरा चारा और दोतिहाई भाग सूखा चारा होना चाहिए. पशु को जो आहार दिया जाए, उस में विभिन्न प्रकार के चारेदाने मिले हों.

चारे में सूखा व सख्त डंठल नहीं हो, बल्कि ये भलीभांति काटा हुआ और मुलायम होना चाहिए. इसी प्रकार जौ,चना, मटर, मक्का इत्यादि दली हुई हो और इसे पका कर या भिगो कर व फुला कर देना चाहिए. दाने को अचानक नहीं बदलना चाहिए, बल्कि इसे धीरेधीरे और थोड़ाथोड़ा कर के बदलना चाहिए. पशुओं को उस की जरूरत के मुताबिक ही आहार देना चाहिए, कम या ज्यादा नहीं. नांद एकदम साफ होनी चाहिए, नया चारा डालने से पूर्व पहले का जूठन साफ कर लेना चाहिए. गायों को 2-2.5 किलोग्राम शुष्क पदार्थ व भैंसों को 3.0 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम वजन भार के हिसाब से देना चाहिए. इस महीने पशुओं का ठंड से बचाव करें. वयस्क व बच्चों को पेट के कीड़ों की दवा पिलाएं. साथ ही, खुरपकामुंहपका रोग का टीका लगवाएं. हरे चारे के लिए बोई गई जई और बरसीम की कटाई करें.

इस के बाद 25-30 दिन के अंतराल से कटाई करते रहें. भूमि सतह से 5-7 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर कटाई करें. कटाई के फौरन बाद ही सिंचाई कर देनी चाहिए. मछलीपालक दिसंबर महीने में मछलियों की वृद्धि और तालाब में उपलब्ध भोजन की जांच करते रहें. अगर मछलियों में रोग के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं, तो तालाब में सब से पहले 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से चूने का प्रयोग करें. उस के 15 दिन बाद 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पोटैशियम परमेगनेट (लाल दवा) का प्रयोग करें. जो लोग मधुमक्खीपालन से जुड़े हैं, उन्हें सर्दी से बचाने के लिए विशेष सजगता बरतनी पड़ती है.

ऐसे में मधुमक्खीपालकों को टाट की बोरी की 2 तह बना कर आंतरिक ढक्कन के नीचे बिछा देनी चाहिए. इस से मौनगृह का तापमान एकसमान गरम बना रहता है. इस के अलावा मधुमक्खियों के प्रवेश द्वार को छोड़ कर पूरे बक्से को पौलीथिन से ढक देना चाहिए. साथ ही, मधुमक्खियों के डब्बों को फूल वाली फसल के नजदीक रखना चाहिए, जिस से कम समय में अधिक से अधिक मकरंद और पराग एकत्र किया जा सके. अंडा देने वाली मुरगियों को लेयर फीड दें और सीप का चूरा भी दें. बरसीम का हरा चारा भी थोड़ी मात्रा में दे सकते हैं. चूजों को ठंड से बचाने के लिए पर्याप्त गरमी की व्यवस्था करें.

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