जिस देश के लोगों की रगों में बस क्रिकेट दौड़ता हो उस देश में किसी और खेल की बात करने में हिम्मत तो लगती ही है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि हमारे यहां क्रिकेट के मुकाबले दूसरे खेलों को कम तवज्जो दी जाती है. अन्य खेलों के खिलाड़ी कई तरह की परेशानियों से गुजरते हैं. गौरतलब है कि अगर कोई खिलाड़ी पदक जीत के लाता है तो देश के हुक्मरान और बड़ी हस्तियां उन्हें धन से सराबोर कर देते हैं. पर फतह से पहले की तैयारी के लिए कई खिलाड़ियों को जद्दो-जहद करनी पड़ती है.

अपने देश में न जाने कितने माता-पिता तो ऐसे हैं कि सफलता की आस में बच्चों को जबरदस्ती ऐसे खेलों की तरफ ढकेलते हैं, जिनमें उन्हें रूचि ही नहीं होती. मैरी कॉम के पिता भी उन्हें एथलेटिक्स पर ध्यान देने को कहते थे जबकि मैरी बॉक्सिंग करना चाहती थी. आलम यह है कि अब क्रिकेटर ही दूसरे खेलों को लोकप्रिय बनाने का काम कर रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि खेल, खेल होता है, कोई स्टॉक मार्केट का शेयर नहीं, जिसमें किसी शेयर से ज्यादा रिटर्न मिले और किसी से कम.

कई बार ऐसा भी देखा गया है कि विश्व स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी खिलाड़ियों को वह शौहरत नहीं मिलती जिसके वे हकदार हैं. अब कई वेबसाइट ऐसे खिलाड़ियों के बारे में लिखने लगे हैं, पर बात वही है, जो दिखता है वो बिकता है.

आज हम दूसरे खेलों की पैरवी करने नहीं आए हैं, पर पाठकों के ज्ञान चक्षुओं को खोलना तो फर्ज है न?  

शतरंज… बहुत से लोग इसे चौसर से मिलाकर देखते हैं. पर चौसर तो जुआ है, पर शतरंज सिर्फ बुद्धि का खेल है. शतरंज में शारीरिक बल किसी काम नहीं आता, इसमें बुद्धि ही काम आती है.

विश्व में कुछ लोगों को शतरंज का नशा है. इस खेल में खिलाड़ियों में अपने प्रितद्वंदी को जल्द से जल्द ‘चेकमेट’ करने की होड़ लगी रहती है. कुछ लोगों ने इस खेल में महारत हासिल की है, पर यह उतना लोकप्रिय नहीं है.  

आज हम आपको शतरंज के बारे में ही कुछ ऐसे तथ्य बताएंगे जिनसे आप वाकिफ नहीं होंगे.

1. शतरंज है अपनी विरासत का हिस्सा

आज ‘ब्लीड ब्लू’ के नारों से गूंजने वाले देश में ही शतरंज की उत्पत्ति हुई थी. इसके उत्पत्ति काल को लेकर इतिहासकारों में मतांतर है पर यह पूरी दुनिया मानती है कि शतरंज भारत की ही देन है. 6वीं शताब्दी के आस-पास भारत में शतरंज खेला जाता था. पश्चिमी देशों तक पहुंचते-पहुंचते इसे हजारों साल लग गए. 15वीं शताब्दी में शतरंज ने स्पेन का रूख किया.

2. पहला अंतर्राष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंट

विश्व का पहला अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट भारत में नहीं ब्रिटेन में 1851 में आयोजित किया गया था.

3. फोल्डिंग चेसबोर्ड

फोल्डिंग चेसबोर्ड का आविष्कार चर्च के पादरी ने 1125 में किया था. उस वक्त चर्च से जुड़े लोगों के चेस खेलने पर पाबंदी थी. इसलिए पादरी ने एक ऐसे चेसबोर्ड का आविष्कार किया. यह चेसबोर्ड बाहर से किताबों की तरह दिखता था, पर असल में यह एक चेसबोर्ड था.

4. शतरंज के महारथी का ताज

डॉ इमानुएल लस्कर 26 साल, 337 दिनों के लिए विश्व चैंपियन थे. इतने दिनों तक वे किसी भी खिलाड़ी से विश्वस्तर पर नहीं हारे. गौर करने वाली बात है कि लस्कर और अल्बर्ट आइंसटाइन अच्छे दोस्त थे.

5. सबसे ज्यादा चालें

शतरंज के खेल में सबसे ज्यादा चालें चलने का रिकॉर्ड निकोलिक और अर्सोविक के नाम दर्ज है. इन दोनों ने मिलकर एक गेम में 269 चालें चली. ध्यान देने वाली बात यह कि शतरंज की बिसात में 5,949 चालें चली जा सकती हैं.

6. दिमाग तेज करने के लिए सबसे बेहतर

सुडोकु, पज्जल, पहेलियां आदि के अलावा शतरंज भी दिमाग तेज करने में मददगार है. एल्जाइमर से पीड़ित रोगियों को शतरंज खेलने के लिए प्रेरित किया जाता है. स्कूल में भी छोटे बच्चों को शतरंज खेलने को कहा जाता है. कुछ शोधों से पता चला है कि शतरंज खेलने वाले बच्चे परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करते हैं.

7. चैंपियन बनने की नहीं होती कोई उम्र

चेस चैंपियन बनने की कोई उम्र नहीं होती. आप किसी भी उम्र में शतरंज सिखना और खेलना शुरु कर सकते हैं. ऑस्कर शैपिरो 74 साल की उम्र में चेस मास्टर बनें वहीम जॉर्डी मॉन्ट रेनॉड मात्र 10 साल की उम्र में ही चेस चैंपियन बन गए थे.

8. सिर्फ राजा और सामंतों का था अधिकार

जैसा कि और भी कई चीजों पर था, शतरंज पर भी सिर्फ राजा और सामंतों का ही अधिकार था. इसे राज घराने के लोग या अमीर लोग ही खेलते थे. किसी जमाने में शतरंज को ‘गेम ऑफ किंग्स’ भी कहा जाता है.

अगर आप भी अपनी बुद्धि तेज करना चाहते हैं, तो शतरंज जरूर खेलें. बाद बाकि आईपीएल कुछ दिनों में शुरु होने ही वाला है, और आप फिर अपने पसंदीदा टीमों को देखने के लिए टीवी से चिपक ही जाएंगे.

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