पुलिस का काम कानून का राज स्थापित कर जनता को भयमुक्त करना है. अपराध रोकने के नाम पर पुलिस जनता का उत्पीडन कर रही है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र गोरखपुर में पुलिस की हिरासत में व्यापारी मनीष की मौत और उसके बाद उस पर लीपापोती बताती है कि उत्तर प्रदेश पुलिस बदलने को तैयार नहीं है. 2019 में इसी तरह से लखनऊ में विवेक तिवारी की हत्या हुई थी. जांच के नाम पर नागरिको के साथ ऐसी घटनाएं पुलिस को वर्दी वाला गंुडा बनाती है.

गोरखपुर में चंदन सैनी सिकरीगंज के महादेवा बाजार में रहते है. वह बिजनेस मैन है. चंदन सैनी ने अपने कानुपर और गुरूग्राम में रहने वाले बिजनेस मैन दोस्तो को गोरखपुर घूमने के लिये बुलाया. वह यह दिखाना चाहता था कि योगी के राज में गोरखपुर कितना बदल गया है.   कानपुर के रहने वाले प्रौपर्टी डीलर 35 साल के मनीष गुप्ता अपने दो साथियों गुरूग्राम से प्रदीप चौहान उम्र 32 साल और हरदीप सिंह चौहान उम्र 35 साल के साथ गोरखपुर आ गया. यह तीनों दोस्त गोरखपुर के थाना रामगढ क्षेत्र में एलआईसी बिल्डिंग के पास कृष्णा पैलेस के कमरा नम्बर 512 में रूक गये. सोमवार 27 सितंबर की रात 12 बजकर 30 मिनट पर रामगढ पुलिस होटल चेकिग करने पहंुची. इसमें इंसपेक्टर जेएन ंिसह और अक्षय मिश्रा के अलावा थाने के कुछ सिपाही थे.

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पुलिस ने होटल चेकिंग के नाम पर कमरा खुलवाकर सोते लोगों को जगाकर उनसे आईडी यानि परिचय पत्र दिखाने को कहने लगी. मनीष के दो दोस्तों ने अपनी आईडी दिखा दी. जब मनीष को अपनी आईडी दिखाने को कहा तो वह बोला ‘रात में सोते हुये लोगो को जगाकर आईडी देखने का यह कौन सा समय है.’ मनीष का इतना कहना वर्दी के रौब धारी पुलिस को सहन नहीं हुआ. वह भडक उठी.

मनीष को कमरे के बाहर लेकर जाने लगी. इस दौरान मनीष ने कानपुर मे रहने वाले अपने भांजे को फोन कर मदद करने की गुहार लगाते कहा कि ‘पुलिस होटल के कमरे में चेकिग करने के नाम पर उसके साथ अपराधियांे सा व्यवहार कर रही है.’ मनीष का भांजा कानपुर में भारतीय जनता पार्टी का नेता भी है. मनीष को उम्मीद थी कि वह कुछ मदद कर सकता है. इसके पहले की भांजा कुछ प्रयास करता पुलिस मनीष को अपराधी की तरह ट्रीट करने लगी. घायल हालत में पुलिस मनीष को अस्पताल ले गई जहां उसकी मौत हो गई.

गोरखपुर के ने अपने अधिकारिक बयान मंे कहा कि ‘पुलिस ने होटल के कमरे की जांच की. तीन लोग थे. दो के पास आईडी थी. तीसरे के पास नहीं थी. पुलिस को देखकर तीसरा आदमी भागा. और हडबडाकर गिर गया. और उसकी मौत हो गई.’ कमरे के फोटो और मनीष की अपने भांजे से फोन पर कानपुर बात करने का सबूत सामने आने के बाद यह साफ है कि मनीष हडबडा कर भागा नहीं. उसे पुलिस कमरे से बाहर ले गई. बाद में उसके दोस्तो ने उसे खून से लथपथ देखा और पुलिस उसको अस्पताल ले गई.

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इस दौरान पुलिस ने मनीष के परिजनांे पर दबाव डाला कि वह मुकदमा कायम ना कराये. मामला तूल पकड गया. जिसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चारो तरफ आलोचना होने लगी. मनीष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद पुलिस की कहानी में छेद ही छेद नजर आने लगे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मनीष के सिर में चोट के गहने निषान एकदम बीच ओ बीच है. यह केवल गिरने से नहीं आ सकते. चोट काफी गहरी है. दहिने हाथ की कोहनी, कोहनी के उपर और कोहनी के नीचे चोट के निशान मिले है. बाई आंख की पुतली के उपर भी चोट के निशान है. इसके अलावा पेट के अंदरूनी हिस्से में भी चोट के निशान हैॅ. ऐसे चोट के निशान केवल गिरकर चोट खाने से नहीं आ सकते है.

गोरखपुर का मामला होने से विपक्ष भी हमलावर हो गया. बचाव की मुद्रा में आई योगी सरकार ने एक बार फिर से सरकारी सहायता देकर पीडित की पत्नी को राहत देने का काम किया. मनीष की पत्नी मीनाक्षी को कानपुर में सरकारी नौकरी और 10 लाख नकद मदद का भरोसा दिलाया. विपक्षी नेताओं के साथ ही साथ पीडित परिवार की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कराई गई. हो सकता है कि यह मामला ठंडा पड जाये. पर क्या इससे प्रदेश की पुलिस बदलेगी ? इस सवाल का उत्तर ‘ना’ है. इसका कारण यह है कि पिछले 4 सालों में ऐसे तमाम मामले देखे गये है.

2019 में ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश  की राजधानी लखनऊ मंे घटित हुआ. एपल कंपनी के एरिया सेल्स मैनेजर विवेक तिवारी रात में औफिस के काम को खत्म करके घर वापस जा रहे थे. गाडी में उनके साथ कंपनी की महिला अधिकारी भी थी. गोमतीनगर इलाके में पुलिस ने विवके तिवारी को रूकने के लिये हाथ दिया. विवेक न गाडी रोकने में कुछ पल की देरी कर दी. इतने में एक सिपाही ने अपनी बाइक गाडी के आगे खडी कर कार को रोक लिया और फिल्मी अंदाज में रिवाल्वर निकाल कर विवेक तिवारी के सीधे माथे पर गोली मार कर मार डाला. मनीष गुप्ता जैसा ही हंगामा मचा. योगी सरकार ने विवेक की पत्नी को नौकरी दे कर मामले को ठंडा कर दिया.

सरकारी सहायता देकर मामले भले ही ठंडे हो जाये पर इससे पुलिस का चेहरा नहीं बदलने वाला. कानपुर का विकास दुबे कांड भी इसका उदाहरण है. जहां पुलिस ने विकास दुबे सहित उसके कई साथियों का एनकाउंटर किया. तमाम निर्दोष लोगों को जेल भेज रखा है. विकास दुबे अपराधी था. उसने भी पुलिस पर हमला की कई पुलिस वालों को मार दिया था. पर पुलिस कमजोर लोगों पर भी अत्याचार करती है. वह पीडित के साथ कम पीडा देने वाले के साथ अधिक रहती है. उन्नाव के भाजपा के विधायक कुलदीप सेंगर को रेप के मामले से बचाने के लिये पुलिस ने पीडित लडकी के परिवार पर जुल्म किये.

शाहजहांपुर में भाजपा के पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद के द्वारा अपने ही कोलज के लडकी से मसाज कराने और यौन शोषण का मसला सामने आया तो पुलिस ने पीडित का साथ ने देकर उसके खिलाफ ब्लैकमेल करने का मुकदमा दर्ज कराया गया. ऐसे मामलो की लंबी लिस्ट है. जहां पुलिस के उत्पीडन के मामले देखने को मिलते है. सामान्य मामलों में भी ऐसे बहुत से प्रमाण है. बस्ती जिल में दरोगा दीपक सिंह ने एक लडकी को अष्लील मैसेल भेजना शुरू किया. जब लडकी ने इस बात की शिकायत अपने परिवार के लोगों से की तो दारोगा ने उसके घर वालो कुछ लोगो से मिलकर पर मुकदमे करा दिये. ऐसे मामले बहुत सारे है.

नहीं बदल रही पुलिस की छवि:  उपन्यासकार वेदप्रकाश  शर्मा का उपन्यास ‘वर्दी वाला गुंडा’1993 में प्रकशित हुआ था. इसकी तैयारी में उनको लंबा समय लगा था. वेद प्रकाश शर्मा 80 के दशक पुलिस अत्याचार को देखा था. इसी को आधार लेकर इस उपन्यास को लिखा. 8 करोड प्रतियां इसकी बिक चुकी है. इसको सफलतम उपन्यास माना जाता है. इसका मूल विषय वर्दी पहन कर अपराध करने वाली पुलिस की कार्यशैली  थी. जिस समय वेद प्रकाश शर्मा इस उपन्यास की भूमिका बना रहे थे पुलिस एंकाउटर करने में सबसे आगे थी. इस पर सबसे बडा कारण यह था कि अपराधियों के एंकाउटर करने वाले पुलिस कर्मियों को ‘आउट औफ टर्न प्रमोशन’ मिलता था. इसके लालच में तमाम फर्जी एंकाउटर होने लगे थे. धीरेधीरे सरकार ने एंकाउटर पर रोक लगाने के लिये इसकी मजिस्ट्रेट जांच षुरू की. इसके अलावा ‘आउट औफ टर्न प्रमोशन’ को भी रोका गया.

पिछले 20-25 सालों में पुलिस की कार्यशैली  में सुधार के तमाम प्रयास किये गये. पुलिस को मित्र पुलिस बनाने उसको प्रोफेशनल बनाने के तमाम काम किये गये. इसके बाद भी पुलिस अभी भी वर्दी वाला गुंडा ही बनी हुई है. इसके एक नहीं तमाम उदाहरण देखने का मिल सकते है. उत्तर प्रदेश में जब योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यभार संभाला तो उन्होने पुलिस से कहा कि ‘प्रदेष को अपराधमुक्त करना है. अपराधी या तो जेल में रहे या उत्तर प्रदेश के बाहर रहे.’ इसके लिये पुलिस को ‘ठोंक दो’ का हथियार भी दे दिया. मुख्यमंत्री की छूट का नतीजा यह हुआ कि पुलिस बेलगाम हो गई. अपराध तो वह रोक नहीं सकी लोगों के घर गिराने और एंकाउटर करने के साथ ही साथ पुलिसिया उत्पीडन करने लगी.

बडी संख्या में गुंडा एक्ट लोगांे पर लगाया जाने लगा. मुख्यमंत्री ने अपराधियों के खिलाफ सख्ती करने का आदेष दिया था पुलिस आम लोगों को परेशान करने लगी. इसकी सबसे ताजी मिसाल मुख्यमंत्री के ही गृह जनपद गोरखपुर में घट गई. पुलिस के काम करने की शैली मुख्यमंत्री की छवि खराब हर रही है. इसकी सबसे बडी वजह यह कि पुलिस गृह विभाग के अंदर आती है. जिसके प्रमुख मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद है. पुलिस को तमाम छूट और सुविधाएं देने के बाद पुलिस अपना फेस बदलने को तैयार नहीं है.

आंकडे बताते है कि योगी राज में 21 मार्च 2017 से 15 फरवरी 2021 के बीच प्रदेश में पुलिस और अपराधियों के बीच 7500 मुठभेड हो चुकी है. 132 अपराधी मारे जा चुके है. 2900 से अधिक घायल हो चुके है. विकास दुबे के द्वारा मारे गये पुलिस वालों की संख्या जोडने के बाद 14 पुलिस के लोग शहीद हुये और 1100 घायल हो गये. पुलिस का काम कानून के राज को स्थापित करना है. लोगांे को सजा देने का काम कानून का है. उत्तर प्रदेश में पुलिस ने सजा देने का काम भी अपने हाथों में ले लिया. जिसकी वजह से सरकार की छवि खराब हो रही है. जिसका प्रभाव उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों पर पड सकता है.

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