Online Story Telling : अवनि जहां तेजतरार और स्मार्ट थी, वहीं निम्मो शांत व सहनशील. अवनि उस की सहनशीलता का पूरा फायदा उठाती थी, मगर एक दिन कालेज में पासा पलट गया और फिर… कालेजसे आते ही निम्मो ने अपना बैग जोर से पटका तो सरला सम झ गई कि जरूर आज फिर कालेज में कुछ ऐसावैसा घटित हुआ है. ‘‘क्या हुआ?’’ सरला ने पूछा. ‘‘अवनि… अवनि… अवनि… पता नहीं यह जिन्न मु झे कब छोड़ेगा,’’ निम्मो गुस्से में बड़बड़ाई. ‘‘लेकिन हुआ क्या है?’’ सरला ने फिर पूछा. ‘‘वही, जो आज तक होता आया है. हमारी तुलना और क्या? मु झे मैम ने ऐनुअल फंक्शन में होने वाले रैंप शो का शो स्टौपर बनने से आउट कर दिया,’’ निम्मो ने बताया.
‘‘अरे, कल तक तो तुम्हीं शो स्टौपर थी, पिछले 10 दिनों से तुम लगातार प्रैक्टिस कर रही हो, तुम्हारी तो कौस्ट्यूम भी फाइनल हो चुकी थी फिर अचानक ऐसा क्या हुआ?’’ सरला ने आश्चर्य से पूछा. ‘‘आज जब फाइनल रिहर्सल हो रहा था तो अचानक अवनि ने रैंप पर आ कर कहा कि मैं बताती हूं तुम्हें कैसे वौक करना चाहिए. ‘‘फिर उस ने रैंप पर वौक कर के दिखाया तो प्रिंसिपल मैम को बहुत पसंद आया. उन्होंने कहा कि इस फैशन शो में शो स्टौपर के लिए अवनि को ही फाइनल कर दो और मु झे आउट कर दिया गया,’’ निम्मो ने मुंह सिकोड़ते हुए कालेज का सारा घटनाक्रम कह सुनाया.
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‘‘यह तो दुनिया की बहुत पुरानी रीत है. लोग 2 बहनों में तुलना करते ही हैं,’’ कहते हुए सरला ने उसे सहज करने की कोशिश की. ‘‘लेकिन क्यों? मैं मैं हूं और अवनि अवनि. हम दोनों अलग हैं. फिर लोग क्यों हमें एकदूसरे से जोड़ कर देखते हैं? मैं खुद के जैसी ही रहना चाहती हूं किसी और के जैसी नहीं बनना चाहती,’’ निम्मो आवेश में आ गई. निम्मो के अपने तर्क थे और वे अपनीजगह सही भी थे, मगर सरला जानती थी कि अपनेआप को ही बदला जा सकता है, दुनिया को नहीं. वह रसोई में जा कर निम्मो के लिए खाना गरम करने लगी. खाना खा कर निम्मो सो गई. सरला भी वहीं लेटी धीरेधीरे उस के बालों में हाथ फेरती रही. इस के साथ ही कई पुरानी बातें भी जेहन में घूमने लगीं… अवनि सरला के भाई रवि की बेटी है और निम्मो से केवल 4 दिन ही बड़ी है. दोनों बहनों ने एकसाथ एक ही स्कूल में पहला कदम रखा था. दोनों को एक ही स्कूल में एडमिशन दिलाया गया था ताकि दोनों को एकदूसरे का साथ मिल सके और उन्हें वहां अकेलापन न खले,
साथ ही होमवर्क आदि में भी मदद मिल सके. मगर 2 जनों में तुलना करना लोगों का स्वभाव होता है. तब तो और भी ज्यादा जब उन का आपस में कोई नजदीकी संबंध हो. सब से पहले उन की स्कूल टीचर्स ने दोनों बहनों की आपस में तुलना करनी शुरू की. कभी उन के मार्क्स को ले कर तो कभी उन की क्लास में परफौर्मैंस को ले कर… कभी स्पोर्ट्स में उन के प्रदर्शन की तुलना होती तो कभी हैल्थ और हाइट को आपस में कंपेयर किया जाता. निम्मो अकसर हर बात में अवनि से उन्नीस ही रहती. सब उसे अवनि का उदाहरण देते और कमतरी का एहसास कराते. सुन कर निम्मो बु झ जाती. सरला को पहली बार बेटी के दर्द का एहसास उस दिन हुआ था जब वह केजी क्लास में पढ़ती थी. निम्मो ने एक दिन स्कूल से आते ही कहा था, ‘‘मु झे नहीं पढ़ना इस स्कूल में. यह स्कूल अच्छा नहीं है.
यहां सब अवनि को ही प्यार करते हैं. मु झे कोई प्यार नहीं करता.’’ सरला के पूछने पर निम्मो ने बताया, ‘‘आज क्लास में टीचर ने ड्राइंग बनवाई थी. मेरी शीट देख कर मैडम ने कहा कि अवनि की शीट देखो, कितनी सफाई से ड्रा की है. इसे कहते हैं ड्राइंग. कुछ सीखो अपनी बहन से,’’ और निम्मो फिर रोने लगी. सरला के लिए यह बड़ी मुश्किल घड़ी थी. एक तरफ बेटी थी और दूसरी तरफ भतीजी. धर्मसंकट में फंसी सरला को कोई उपाय नहीं सू झ रहा था. रोती हुई निम्मो को सीने से लगाने के अलावा उस के पास कोई और उपाय था भी नहीं. अवनि जहां स्वभाव में तेजतर्रार और स्मार्ट थी वहीं निम्मो शांत और सहनशील. अवनि उस की सहनशीलता का पूरा फायदा उठाती थी. वह अकसर निम्मो पर हावी हो जाती. कई बार तो अपना होमवर्क भी निम्मो से करवा लेती थी. धीरेधीरे अवनि के खुद से बेहतर होने का भाव निम्मो के भीतर जड़ें जमाने लगा. वह स्कूल में तो अवनि का विरोध नहीं कर पाती थी, मगर घर आ कर रोने लगती थी. अवनि के सामने निम्मो का व्यक्तित्व दबने लगा.
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अवनि निम्मो के लिए उस बरगद के पेड़ जैसी हो गई थी जिस के नीचे निम्मो पनप नहीं पा रही थी. सरला उसे बहुत सम झाया करती थी कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति परफैक्ट नहीं होता. हर किसी में कोई न कोई कमी होती ही है. लेकिन वे लोग बहुत बहादुर होते हैं जो उसे स्वीकार कर लेते हैं और वे तो विरले ही होते हैं, जो उस पर विजय पा लेते हैं. वे भी कुछ कम नहीं होते जो अपनी कमियों के साथ जीना सीख लेते हैं. मगर निम्मो का बालमन शायद अभी इन बातों को सम झने के लिए परिपक्व नहीं था. एक दिन निम्मो स्कूल से आई और आते ही घर में बने मंदिर में हाथ जोड़ने लगी. सरला को बड़ा आश्चर्य हुआ, उस ने पूछा, ‘‘आज हमारी निम्मो क्या मांग रही है कुदरत से?’’ निम्मो ने मासूमियत से कहा, ‘‘मां, मैं कुदरत से प्रे कर रही हूं कि वह अगले जन्म में मु झे अवनि जैसी सुंदर और स्मार्ट बना दे.’’ उस के मुंह से ऐसी बात सुन कर सरला हैरान रह गई. उस ने निम्मो से कहा,
‘‘बिट्टो, अगलापिछला कोई जन्म नहीं होता. जो कुछ है सब यही है. कुदरत ने हर इंसान को अपनेआप में बहुत ही खास बनाया है और एकदूसरे से अलग भी. इसीलिए तुम दोनों बहनें भी एकदूसरे से अलग हैं. तुम दोनों की अपनीअपनी खासीयत है. हां, इस जन्म में अगर तुम अच्छे काम करोगी तो बहुत अच्छी इंसान जरूर बन जाओगी.’’ मगर निम्मो को मां की बातें ज्यादा सम झ में नहीं आईं उस के दिमाग में तो हर वक्त अपने आप को अवनि से बेहतर साबित करने की तरकीबें ही चलती रहतीं. सैकंडरी स्कूल के रिजल्ट वाले दिन प्रिंसिपल मैम ने असैंबली में उन सब बच्चों के लिए तालियां बजवाई, जिन्हें 80% से ज्यादा नंबर मिले थे. निम्मो और अवनि को भी स्टेज पर बुलाया गया. मार्क शीट देख कर टीचर ने कहा, ‘‘यहां भी हमेशा की तरह अवनि ने ही बाजी मारी. उसे निम्मो से 4 नंबर अधिक मिले हैं.’’ बस फिर क्या था, निम्मो ने घर आ कर रोरो कर बुरा हाल कर लिया. खुद को कमरे में बंद कर लिया और स्कूल छोड़ने की जिद पर अड़ गई. यह देख कर सरला ने सैकंडरी स्कूल के बाद निम्मो का स्कूल चेंज करवा दिया.
भाई ने कारण पूछा तो सरला ने सब्जैक्ट चेंज करने का बहाना बना कर उसे टाल दिया. चूंकि अवनि पहले ही आर्ट्स सब्जैक्ट चुन चुकी थी, इसलिए निम्मो ने इंटरैस्ट न होते हुए भी कौमर्स सब्जैक्ट चुना और इस बहाने से अपना स्कूल बदल लिया. अवनि से दूर होते ही निम्मो का मानसिक तनाव छूमंतर हो गया और सालभर में ही उस का व्यक्तित्व निखर आया. बेटी का बढ़ता हुआ आत्मविश्वास देख कर सरला उस के स्कूल बदलने के अपने निर्णय पर खुश थी. 2 साल में ही निम्मो ने अपना कद निकाल लिया. हालांकि निम्मो की शारीरिक बनावट अवनि जैसी सांचे में ढली हुई नहीं थी, मगर उस की सादगी में भी एक कशिश थी. जहां अवनि को देख कर कामुकता का एहसास होता था वहीं निम्मो की सुंदरता में शालीनता और गरिमा थी. मेरी आंखों के कोर भीग गए थे.
ऐसा लगा मेरा अहं किसी कोने से जरा सा संतुष्ट हो गया है. सोचती थी, पति की जिंदगी में मेरी जरूरत ही नहीं रही.मगर मांबेटी का यह सुख सिर्फ 2 साल से ज्यादा कायम नहीं रह सका. स्कूल खत्म होते ही अवनि ने भी निम्मो के ही कालेज में एडमिशन ले लिया. फिर से वही पुरानी कहानी दोहराई जाने लगी. फिर से वही दोनों बहनों में तुलना. मगर अब सरला के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था, क्योंकि कसबे में एक ही कालेज था और इसी कालेज में पढ़ना दोनों की मजबूरी थी. ‘‘अब तुम बच्ची नहीं हो निम्मो. अपनी लड़ाई अपने हथियारों से लड़ना सीखो. तुम्हारा आत्मविश्वास ही तुम्हारा सब से पैना हथियार है.’’ सरला बेटी को आने वाले कल के लिए तैयार करने में जुटी थी. यह उन के कालेज का पहला ही साल था यानी दोनों में ही अभी स्कूल का लड़कपन बाकी था. जब ऐनुअल फंक्शन के रैंप शो में निम्मो की जगह अवनि को शो स्टौपर बना दिया गया तो निम्मो का स्वाभिमानी मन बहुत आहत हुआ और उस ने शो में मौडलिंग करने से ही मना कर दिया. ‘‘तुम चाहो तो अपना यह आउटफिट ले कर जा सकती हो. यू नौ अवनि किसी की इस्तेमाल की हुई चीजें नहीं लेती.
मैं ने अपने लिए दूसरा आउटफिट मंगवा लिया है,’’ प्रैक्टिस रूम छोड़ कर बाहर आती निम्मो ने अवनि का ताना सुना, लेकिन कुछ बोली नहीं. चुपचाप रूम से बाहर निकल आई. अवनि जब अदा से अपने जलवे बिखेरती रैंप पर आई तो औडिटोरियम में बैठी सभी लड़कियां तालियां बजाने लगीं और लड़के सीटियां. निम्मो फंक्शन बीच में ही छोड़ कर औडिटोरियम से बाहर आ गई. औडिटोरियम से बाहर निकलती निम्मो के कदमों की दृढ़ता और चाल का आत्मविश्वास बता रहा था कि उस के मन के भीतर चल रहे संघर्ष को विराम लग गया है. विचारों की उफनती नदी में डगमगाती नाव निर्णय के तट पर आ लगी है. या तो निम्मो ने इस बात को स्वीकार कर लिया था कि तुलना करना मानव स्वभाव मात्र है,
इसे दिल पर लेना सम झदारी नहीं है या फिर यह हवाओं में तेज बरसात से पहले वाली चुप्पी है. अवनि ने अपनी अलग ही दुनिया बसा रखी थी. उसे अपनी मौडल सी कदकाठी पर बहुत घमंड था. उसी के अनुरूप वह कपड़े भी पहना करती थी, जो उस पर बहुत फबते भी थे और अधिक आधुनिक बनने के चक्कर में उस ने सिगरेट भी पीना सीख लिया था. कभीकभी दोस्तों के साथ एकाध पैग भी लगाने लगी थी. जहां पूरा कालेज अवनि का दीवाना था वहीं अवनि का दिल विकास में आ कर अटक गया. इन दिनों सरला निम्मो में अलग तरह का चुलबुलापन देख रही थी. हर समय बिना मेकअप के रहने वाली निम्मो आजकल न्यूड मेकअप करने लगी थी. सुबह जल्दी उठ कर कुछ देर योग व्यायाम भी करने लगी थी जिस का असर उस के चेहरे की बढ़ती चमक पर साफसाफ दिखाई देने लगा था.
सरला बेटी में आए इस सकारात्मक परिवर्तन को देख कर खुश थी. ‘‘इस बहाने फालतू की बातों से दूर रहेगी,’’ सोच कर सरला मुसकरा देती. उधव अवनि का विकास के प्रति झुकाव बढ़ने लगा था. पूरा कालेज उन दोनों के बीच होने वाली नोक झोंक के प्यार में बदलने की प्रतीक्षा कर रहा था. शीघ्र ही उन का यह इंतजार खत्म हुआ. इन दिनों अवनि और विकास साथसाथ देखे जाने लगे थे. साल बीतने को आया. एक बार फिर से ऐजुअल फंक्शन की तैयारियां जोर पकड़ने लगीं. यह वर्ष कालेज की स्थापना का स्वर्ण जयंती वर्ष था इसलिए नवाचार के तहत कालेज प्रशासन ने कालेज में 50 साल पहले मंचित नाटक ‘शकुंतलादुष्यंत’ के पुनर्मंचन का निर्णय लिया. औडिशन के बाद विकास को जब दुष्यंत का पात्र अभिनीत करने का प्रस्ताव मिला तो सब ने स्वाभाविक रूप से अवनि के शकुंतला बनने का कयास लगाया, लेकिन तब सब को आश्चर्य हुआ जब कमेटी द्वारा अवनि को दरकिनार कर इस रोल के लिए निम्मो का चयन किया. कमर तक लंबे घने बाल, बड़ीबड़ी बोलती आंखें और मासूम सौंदर्य, शायद यही पैमाना रहा होगा इस रोल के लिए निम्मो के चयन का.
कालेज के बाद देर तक नाटक का रिहर्सल करना और उस के बाद देर होने पर विकास का निम्मो को घर तक छोड़ना… रोज का नियम था. वैसे भी अवनि इस सदियों पुराने नाटक में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए कालेज में रुक कर विकास का इंतजार करना उसे बोरियत भरा महसूस होता था. हवा का झोंका भी कभी एक जगह ठहरा है भला जो अवनि ठहरती. कई साथियों ने निम्मो और विकास को ले कर उसे छेड़ा भी, मगर आत्मविश्वास से भरी अवनि को अपने रूपसौंदर्य पर पूरा भरोसा था. क्या मजाल जो एक बार इस भूलभुलैया में भटका मुसाफिर बिना उस की इजाजत बाहर निकल सके. रिहर्सल लगभग फाइनल हो चुका था. विकास की अगुआई में कालेज कैंटीन में बैठा छात्रों का दल चाय की चुसकियों के साथ गरमगरम समोसों का आनंद ले रहा था. निम्मो और अवनि भी अन्य लड़कियों के साथ इस गैंग में शामिल थीं. ‘‘यार विकास, इतने दिनों से तू दुष्यंत बना घूम रहा है, अब तो शकुंतला को अंगूठी पहना ही दे,’’ एक दोस्त ने उसे कुहनी मारी. विकास की नजर लड़कियों के दल की तरफ घूम गई. सब ने अवनि की इतराहट देखी. निम्मो बड़े आराम से समोसा खा रही थी. ‘
‘हांहां, यह तो होना ही चाहिए. कैसा रहेगा यदि फंक्शन वाले दिन नाटक मंचन के बाद वही अंगूठी असल वाली शकुंतला की उंगली में भी पहनाई जाए?’’ दूसरे दोस्त ने प्रस्ताव रखा तो शेष गैंग ने भेजें थपथपा कर उस का अनुमोदन किया. शरमाई अवनि अपनी उंगली सहलाने लगी. बेशक वह एक बोल्ड लड़की थी, लेकिन इस तरह के प्रकरण आने पर लड़कियों का संकुचित होना स्वाभाविक सी बात है. ‘‘तुम सब कहते हो तो चलो? मु झे भी यह चुनौती मंजूर है. तो तय रहा. फंक्शन वाले दिन… नाटक के बाद… डन,’’ विकास ने दोस्तों की चुनौती पर अपनी सहमति की मुहर लगाई और इस के साथ ही मीटिंग खत्म हो गई. ऐनुअल फंक्शन की शाम… निम्मो का निर्दोष सौंदर्य देखते ही बनता था. श्वेत परिधान संग धवल पुष्पराशि के शृंगार में निम्मो असल शकुंतला का पर्याय लग रही थी.
विकास और निम्मो के प्रणयदृश्य तो इतने स्वाभाविक लग रहे थे मानो स्वयं दुष्यंतशकुंतला इन अंतरंग पलों को साक्षात भोग रहे हों. औडिटोरियम में बारबार बजती सीटियां और मंचन के समापन पर देर तक गूंजता तालियों का शोर नाटक की सफलता का उद्घोष कर रहा था. परदा गिरने के बाद विकास जब निम्मो का हाथ थामे मंच पर सब का अभिवादन करने आया तो बहुत से उत्साही मित्र उत्साह के अतिरेक में नाचने लगे. देर रात फंक्शन के बाद मित्रमंडली एक बार फिर से जुटी थी. सब लोग विकास और निम्मो को घेरे खड़े थे. दोनों विनीत भाव से सब की बधाइयां बटोर रहे थे. ‘‘अरे शकुंतला, वह अंगूठी कहां है जो दुष्यंत ने तुम्हें निशानी के रूप में दी थी,’’ अवनि के कहते ही मित्रों को विकास को दी गई चुनौती याद आई. ‘‘अरे हां, वह अंगूठी तो तुम आज अपनी असली शकुंतला को पहनाने वाले थे न. चलो भाई, जल्दी करो. देर हो रही है,’’ मित्र ने कहा. अवनि अपनी योजना की सफलता पर मुसकराई. इसी प्रसंग को जीवित करने के लिए तो उस ने अंगूठी प्रकरण छेड़ा था. विकास भी मुसकराने लगा. उस ने अपनी जेब की तरफ हाथ बढ़ाया. जेब से हाथ बाहर निकला तो उस में एक सोने की अंगूठी चमचमा रही थी.
4‘‘तुम ने उंगली की नाप तो ले ली थी न? कहीं छोटीबड़ी हुई तो?’’ मित्र ने चुहल की. अवनि की निगाहें अंगूठी पर ठिठक गईं. विकास अंगूठी ले कर लड़कियों की तरफ बढ़ा. सब की निगाहें विकास के चेहरे पर जमी थीं. अवनि शर्म के मारे जमीन में गढ़ी जा रही थी. विकास ने निम्मो का बांयां हाथ पकड़ा और उस की अनामिका में सोने की अंगूठी पहना दी. यह दृश्य देख कर वहां मौजूद हर व्यक्ति हैरान खड़ा रह गया, क्योंकि किसी ने इस की कल्पना तक नहीं की थी. अपमान से अवनि की आंखें छलक आईं. निम्मो कभी अपनी उंगली तो कभी विकास के चेहरे की तरफ देख रही थी. पूरे माहौल को सांप सूंघ गया था. निम्मो धीरेधीरे चलती हुई आई और अवनि के सामने खड़ी हो गई. अवनि निरंतर जमीन को देख रही थी. सब ने देखा कि अपमान की कुछ बूंदें उस की आंखों से गिर कर घास पर जमी ओस का हिस्सा बन गई थीं. निम्मो ने अपनी उंगली से अंगूठी उतारी और अवनि की हथेली पर रख दी. बोली, ‘‘तुम चाहो तो यह अंगूठी रख सकती हो. यू नो, निम्मो को भी किसी की इस्तेमाल की हुई चीजें पसंद नहीं,’’ कहती हुई आत्मविश्वास से भरी निम्मो सब को हैरानपरेशान छोड़ कर कालेज के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ गई.