आज एक व्यवसाय जो भलीभांति फलफूल रहा है वह है वकीलों का. देश भर में बेमतलब के केसों का अंबार लगा है. इन केसों के अंबार में असल मुद्दों वाले मामले भी दब जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट के जज संजय किशन कौल ने हाल में एक निर्णय में अब कहा है कि जो लोग बेमतलब के मामले दर्ज करें उन पर फाइन लगाना जरूरी हो गया है क्योंकि वकील और क्लाइंट मिल कर अदालतों की सहायता से दूसरों से बदला लेने, पब्लिसिटी पाने, राजनीतिक रोटियां सेंकने और दूसरे के अच्छे भले चलते काम में फालतू में अड़ंगा लगाने का काम बेमतलब के मामले अदालतों में ला कर रहे हैं.
आज लगभग 3.5 करोड़ मामले देश भर की अदालतों में पैंङ्क्षडग पड़े हैं जिन का लाभ सिर्फ वकील उठा रहे है. 33 जजों वाली सुप्रीम कोर्ट के पास ही 60,000 मामले हैं जिन पर कोर्ट ने विचार करने की अनुमति दे दी है, 40 लाख केस उच्च न्यायालयों में है और ढाई करोड़ से ज्यादा निचली अदालतों में.
अदालतों की मौजूदगी के बावजूद आज उन से आम जनता को अदालत में लाने पर न्याय मिल जाता है, यह कहना मुश्किल ही है. यह तब है जब करोड़ों मामलों में तो गरीब या डरपोक लोग अपना हक मारा जाता देख कर भी चुप रह जाते हैं.
जर, जमीन, जोरू यानि पैसे, संपत्ति और औरत से संबंधित विवाद तो हैं ही अब धर्मजनित मामले भी बढऩे लगे हैं. देश की जेलों में सरकार के धाॢमक कानूनों के अपराधों में हजारों बंद पड़े हैं जो जमानत की गुहार कर रहे हैं और लाखों ऐसे हैं जो जमानत पर छूटे हुए हैं पर उन के मामले पैंङ्क्षडग पड़े हैं. इन धाॢमक कानूनों में नागरिक कानून, 3 तलाक कानून, धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाना तो है हीं, मंदिरों में पुजारियों के बीच आपसी सिर फुट्टवल और मंदिरमसजिद बनाने के जिद के मामले भी भरे पड़े हैं.
सरकार तरहतरह के कानूनों से नागरिकों को परेशान भी करती रही है. लाखों केस तो सरकारी होते हैं जिन में नागरिक बेमतलब में फंसते हैं. हर सरकारी अफसर के पास किसी न किसी तरह के मामले को चलाने क हक होता है और वह उस का उपयोग कानून व्यवस्था के लिए भी करता है और अपने पूरे विभाग की ऊपरी कमाई के लिए भी.
सरकार के हर कदम पर चलाए गए मुकदमे की पैरवी तो सरकारी वकील करता है पर नागरिक को अपने बचाव में पैसा अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है. आमतौर पर अंतिम निर्णय नागरिकों के पक्ष में ही मामले जाते हैं पर उस मुकदमें की कारवाई के दौरान अदालत की भीड़ बड़ा जाते हैं. जब एक साल में 2 करोड़ से ज्यादा केस दाखिल किए जाएं तो ऐसा होगा ही. इस 2 करोड़ में से 80′ फौजदारी यानि क्रिमीनल केस ही होते हैं जिन में एक तरफ सरकार ही होती है. सरकारी विभागों को आमतौर पर मामला शुरू करने में मजा आता है ताकि समझौते के लिए नागरिक भागाभागा आए और सिर जूतों पर पटक कर रोए. रिश्वतखोरी की जड़ में यही है और इस से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, त्रिपुरा जैसे राज्यों में 80′ से ज्यादा मामले क्रिमीनल ही दर्ज हो रहे हैं. इन क्रिमीनल मामलों में ढेरों धर्म जानित भी हैं. ङ्क्षहदूमुसलिम विवादों ने बेतहाशा इन की संख्या बढ़ाई है.
जज संजय किशन कौल ने आम नागरिक को तो फटकारा पर सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को फटकारने या फाइन करने से हिचकचाती है. अगर नागरिक सरकार के वकीलों की जिरह के बावजूद जीत जाए और आ के जाए तो उस का तो भारी नुकसान हो गया होगा पर सरकारी मशीनरी का कुछ नहीं जाता.
देश के राममंदिर नहीं न्याय सुधार चाहिए. ङ्क्षहदू खतरे में नहीं है, नागरिक अपनी ही सरकारों के बनाए गए कानूनों के खतरे में हैं. हौवा पाकिस्तान या चीन नहीं आप के ही शहर या गांव के सरकारी दफ्तर, पुलिस थाने और अदालतें हैं. अगर आम नागरिक जेल में बंद हो, अदालत में खड़ा हो, जेब खाली हो तो कैसा धर्म, कैसा राष्ट्र प्रेम.