पटना,  बिहार के मीठापुर इलाके की रहने वाली राधिका को उस के बेटे उमेश ने इलाज के लिए बिहार के सब से बड़े सरकारी अस्पताल पटना मैडिकल कालेज अस्पताल में भरती कराया था. उस औरत को पेट में दर्द और सूजन की शिकायत थी. डाक्टर ने उसे कुछ दवा दे कर 10 दिन बाद आने के लिए कहा. उमेश ने बताया कि दवा खाने के बाद भी उस की मां की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ और दर्द काफी ज्यादा बढ़ गया. वह दोबारा अपनी मां को अस्पताल ले गया. मैडिकल इमर्जैंसी में कहा गया कि यह सर्जिकल इमर्जैंसी का मामला है, वहां ले कर जाओ. सर्जिकल इमर्जैंसी ने इसे मैडिकल इमर्जैंसी का मामला बता कर भरती करने से मना कर दिया.

उमेश ने अपनी मां को ले कर 19-20 दफा मैडिकल और सर्जिकल इमर्जैंसी के चक्कर लगाए. आखिरकार सर्जिकल इमर्जैंसी में जांच कर एचआईवी समेत कुछ टैस्ट कराने को कहा गया. टैस्ट में जब एचआईवी पौजिटव पाया गया, तो डाक्टरों का रवैया पहले से ज्यादा खराब हो गया. उन्होंने परचे को फाड़ डाला और किसी प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने की सलाह दे डाली. उमेश के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह प्राइवेट अस्पताल का खर्च उठा पाता, इसलिए वह अपनी बीमार मां को ले कर घर चला गया. कुछ दिनों के बाद जब राधिका की तबीयत काफी बिगड़ने लगी, तो उमेश फिर से उसे पटना मैडिकल कालेज अस्पताल ले गया. डाक्टरों ने उसे डांटफटकार लगाते हुए अस्पताल से जाने की धमकी दे डाली. बाद में अस्पताल के सुपरिंटैंटैंड के दखल के बाद राधिका को भरती कराया गया. उस के बाद भी राधिका का इलाज शुरू नहीं हो पाया और कुछ ही घंटे बाद उस ने दम तोड़ दिया.

एड्स और एचआईवी को ले कर जागरूकता पैदा करने की मुहिम पर सरकार करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाती है, पर सरकार के मातहत काम करने वाले कई डाक्टरों में ही जागरूकता नहीं है. एड्स छुआछूत की बीमारी नहीं है. जिस्मानी रिश्ता बनाने और एड्स मरीज का खून किसी मरीज को चढ़ाने से ही एड्स होने का खतरा होता है. पटना मैडिकल कालेज अस्पताल में एड्स की मरीज राधिका के इलाज करने को ले कर डाक्टरों के रवैए ने यह साबित कर दिया है कि सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों और मुलाजिमों के बीच भी एड्स को ले कर जागरूकता फैलाने की ज्यादा दरकार है. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीवन के अधिकार में साफतौर पर कहा गया है कि एड्स मरीजों को तालीम, सेहत और जायदाद से जुड़े समान अधिकार दिए गए हैं. अगर कोई डाक्टर एड्स मरीज के साथ भेदभाव करता है, तो वह जीवन के अधिकार के उल्लघंन का अपराधी करार दिया जाएगा.

बिहार के सीतामढ़ी की रहने वाली 25 साल की सपना अपने पति के एड्स की बीमारी को छिपाने का नतीजा भुगत रही है. वह बताती है कि उस का पति नागपुर में ट्रक ड्राइवर था. अचानक वह बीमार पड़ा. पहले डाक्टर ने बताया कि उसे कैंसर हो गया है, पर बाद में पता चला कि एड्स है. सपना ने परिवार में किसी को नहीं बताया कि उस के पति को एड्स है. उस ने गुपचुप तरीके से पटना के बाद दिल्ली में इलाज कराया, पर अपने पति को बचा नहीं सकी. नैशनल एड्स कंट्रोल और्गनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में एचआईवी के 86 फीसदी मामलों में असुरक्षित सैक्स संबंध से ही यह बीमारी फैलती है. एचआईवी संक्रमित खून चढ़ाने पर 2.57 फीसदी लोग एड्स की चपेट में आते हैं.

वैसे तो खून देने वालों का एचआईवी टैस्ट कराने के बाद ही किसी मरीज को खून चढ़ाया जाता है, पर गांवों और दूरदराज के इलाकों में कई डाक्टर इस बात की अनदेखी करते हैं. एचआईवी संक्रमित सूई से एड्स के चंगुल में फंसने वालों का आंकड़ा 1.97 फीसदी है. एचआईवी की चपेट में आने पर मरीज पहले टीबी का शिकार होता है, क्योंकि टीबी होने पर शरीर में बीमारी से लड़ने की ताकत कम हो जाती है. कुछ को निमोनिया या मैनिनजाइटिस भी होता है. इस मसले पर एड्स स्पैशलिस्ट डाक्टर दिवाकर तेजस्वी कहते हैं कि असुरक्षित यौन संबंध एड्स के फैलने की सब से बड़ी वजह है. तकरीबन 70 फीसदी आदमी को एचआईवी संक्रमित होने का पता ही नहीं चलता है, क्योंकि इस बीमारी के लक्षण 10 से 12 साल के बाद सामने आते हैं.

लगातार बुखार आना, एक महीने से ज्यादा समय तक दस्त होना, 10 फीसदी से ज्यादा वजन कम हो जाना, मुंह में छाले आना, बदन पर खुजली होना, 3-4 हफ्ते से ज्यादा समय तक खांसी और उलटी होना इस के खास लक्षण हैं. ऐसा होने पर तुरंत डाक्टर को दिखा कर एचआईवी पर जीत हासिल की जा सकती है.

एड्स को ले कर आज भी समाज में कई तरह के भरम फैले हुए हैं. किसी को गले लगाने और चुंबन लेने या साथ सोने से एड्स नहीं फैलता है. बगैर कंडोम के सैक्स करने, किसी एचआईवी मरीज का खून किसी सेहदमंद इनसान को चढ़ा देने और बच्चों को स्तन से दूध पिलाने पर ही एड्स फैलता है. थूक वगैरह से यह बीमारी होने का कोई खतरा नहीं होता है. लोग यह समझते हैं कि मच्छरों के काटने से भी एड्स फैलता है, जबकि मच्छर के काटने पर भी एड्स का कोई खतरा नहीं होता है. कोई भी कीड़ा जब किसी इनसान को काटता है, तो वह उस के खून या जिस्म में फैले वायरस को दूसरे इनसान के शरीर में नहीं डाल सकता है. एचआईवी मरीज के शौचालय का इस्तेमाल करने पर भी एड्स नहीं होता है.

साथी से वफादारी और सैक्स बनाने पर कंडोम का इस्तेमाल कर एड्स से बचा जा सकता है. अगर सैक्स करने वाले दोनों लोग एड्स के शिकार हों, तो उस के बाद भी सैक्स करते समय कंडोम का इस्तेमाल जरूरी है, वरना इन्फैक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है. इस से इलाज में दिक्कत हो सकती है और जान भी जा सकती है.अगर पति और पत्नी दोनों को एड्स हो, तो भी वे एड्स के वायरस से मुक्त बच्चे को जन्म दे सकते हैं. डाक्टर की सलाह और इलाज से ऐसा मुमकिन है. मैडिकल साइंस के मुताबिक, अभी भी देश के 60 फीसदी लोगों को एड्स के बारे में कुछ नहीं पता है. एचआईवी पोजिटिव होने पर आरटीआर दवाओं को नियमित रूप से लिया जाए, तो मरीज कई सालों तक सामान्य जिंदगी जी सकता है.                           

एड्स के खिलाफ डटा एक डाक्टर

पटना के मशहूर डाक्टर दिवाकर तेजस्वी गरीब मरीजों के इलाज, जांच और दवा का पूरा इंतजाम खुद करते हैं. ‘बिल क्लिंटन एड्स फाउंडेशन’ से जुड़े डाक्टर दिवाकर तेजस्वी पिछले 15 सालों से एड्स और टीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं और आम लोगों को जागरूक करने का काम कर रहे हैं. 23 सितंबर, 2005 को उन्होंने पहली बार पटना के भीड़ भरे एक्जीबिशन रोड पर बीच सड़क पर मजमा लगाया और एड्स से पीडि़त महिला रामपति के हाथों से बिसकुट खा कर उन्होंने यह बताने की कोशिश की थी कि एड्स छूत की बीमारी नहीं है. एड्स के मरीज को इलाज के साथ हमदर्दी की भी जरूरत होती है. बिहार के सारण जिले के चैनवा प्रखंड के चड़वा गांव की रहने वाली रामपति के पति मुख्तार की मौत एड्स की वजह से हो चुकी थी. डाक्टर दिवाकर तेजस्वी ‘पब्लिक अवेयरनैस फौर हैल्थफुल एप्रोच फौर लीविंग’ के नाम से अपना संगठन भी चला रहे हैं. इस के साथ ही गांवों और दूरदराज के इलाकों में हैल्थ कैंप लगा कर आम आदमी को एड्स और हैल्थ के प्रति जागरूक करने की मुहिम चला रहे हैं. वे अब तक एक हजार से ज्यादा जागरूकता और फ्री हैल्थ चैकअप कैंप लगा चुके हैं.

18 अगस्त, 1968 को पटना में जनमे डाक्टर दिवाकर तेजस्वी एचआईवी एड्स के स्पैशलिस्ट और एड्स पर अपनी रिसर्च को कई इंटरनैशनल मंचों पर पेश कर चुके हैं. वे कहते हैं कि एड्स अब लाइलाज बीमारी नहीं रही है. अगर सही समय पर इस का सही तरीके से इलाज शुरू कर दिया जाए, तो इस का मरीज लंबी जिंदगी जी सकता है. जिस तरह से डायबिटीज, ब्लड प्रैशर वगैरह के मरीज नियमित रूप से दवा खा कर आम जिंदगी जी रहे हैं, उसी तरह एड्स के मरीज भी जी सकते हैं. इतना ही नहीं, अगर पति और पत्नी दोनों एचआईवी पोजिटिव हैं, तो वे डाक्टरी देखरेख में सेहतमंद बच्चे पैदा कर सकते हैं. साल 1992 में नालंदा मैडिकल कालेज अस्पताल से एमबीबीएस की डिगरी हासिल करने वाले डाक्टर दिवाकर तेजस्वी बताते हैं कि संक्रमित औरत के पेट में पल रहे बच्चे को अगर आपरेशन कर के निकाल लिया जाए और वह अपने बच्चे को अपना दूध न पिलाए, तो बच्चे को मां से संक्रमण का खतरा एक फीसदी भी नहीं रहता है.

इसी तरह मर्द के वीर्य को धो कर महिला के गर्भ में आर्टिफिशियल इन्ट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन तकनीक से डाला जाए और दवा से औरत का वायरल लोड 1000 कौपी से कम रखा जाए, तो सेहतमंद बच्चे पैदा हो सकते हैं. फिलहाल यह तकनीक काफी खर्चीली है, पर आने वाले दिनों में इस खर्च में कमी आएगी. डाक्टर दिवाकर तेजस्वी कहते हैं कि एचआईवी एड्स ज्यादातर मजदूरों और ट्रक ड्राइवरों के जरीए फैलता है. असुरक्षित यौन संबंध एड्स के फैलने की सब से बड़ी वजह है. तकरीबन 70 फीसदी मरीजों को एचआईवी संक्रमित होने का पता ही नहीं चलता है, क्योंकि इस बीमारी के लक्षण 10 से 12 साल के बाद सामने आते हैं. लगातार बुखार आना, एक महीने से ज्यादा समय तक दस्त होना,

10 फीसदी से ज्यादा वजन कम हो जाना, मुंह में छाले आना, बदन पर खुजली, 3-4 हफ्ते से ज्यादा समय तक खांसी और उलटी होना इस के मुख्य लक्षण हैं. ऐसा होने पर तुरंत डाक्टर को दिखा कर अपना इलाज कराएं.

ज्ञानरंजन : एड्स मरीजों के इलाज में अपनी बीमारी भूल गए

‘बिहार नैटवर्क औफ पीपुल लीविंग विद एचआईवी एड्स’ के अध्यक्ष ज्ञानरंजन बताते हैं कि एड्स को ले कर समाज में कई तरह की गलत बातें फैलाई गई हैं. इस बीमारी का पता लगने के बाद भी उसे छिपाने की कोशिश ही जानलेवा साबित होती है. अगर पता लगने के तुरंत बाद किसी अच्छे डाक्टर की सलाह पर दवाएं लें, तो जिंदगी को बेहतर और लंबा बनाया जा सकता है. पटना के रहने वाले 35 साल के ज्ञानरंजन खुद एचआईवी पोजिटिव हैं और साल 2001 में खून चढ़ाने के दौरान वे एचआईवी की चपेट में आ गए थे. साल 2004 में ब्लड डोनेशन के दौरान उन्हें एचआईवी पोजिटिव होने के बारे में पता चला. तब से अब तक वे दवा खा कर आम जिंदगी गुजार रहे हैं. उन की बीवी भी एचआईवी की शिकार हैं, लेकिन उन के बच्चे इस से मुक्त हैं.

ज्ञानरंजन बताते हैं कि बच्चे के जन्म से पहले उन्होंने पूरी सावधानी बरती और डाक्टर की देखरेख में रहे. एड्स के मरीजों की देखभाल करने और उन के इलाज में हर तरह की मदद करने को ही उन्होंने अपना मिशन बना लिया है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...