बच्चों में कोविड होने के 2 से 6 हफ्तों के भीतर बुखार, खांसी, हार्ट में सूजन, चक्कर, सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई हो तो संभव है कि ये पोस्ट कोविड एमआईएस-सी के लक्ष्ण हों. आखिर क्या है यह एमआईएस-सी और क्यों है यह बच्चों के लिए घातक? 5 साल के तरुष को एक रात तेज बुखार आया, साथ में पेटदर्द भी था. उस की मां सरोज शेलार खुद एक डाक्टर है, इसलिए कुछ दवाइयां दीं. लेकिन कुछ फायदा बच्चे को नहीं हो रहा था. वह सम झ नहीं पा रही थी क्या करे. वह बेटे को पास के एक अस्पताल ले गई और तुरंत भरती करवाया.

वहां बच्चों के डाक्टर ने उस की जांच की तो बताया कि उसे टाइफाइड हुआ है और उसी हिसाब से उन्होंने दवाई देनी शुरू की. लेकिन तरुष का बुखार उतर नहीं रहा था. अगले दिन तेज बुखार के साथ उस का पेट फूलने लगा, आंखें लाल हो गईं, मुंह में छाले और बदन पर लाललाल रैशेज दिखाई पड़ने लगे. उस की मां डा. सरोज ने पीडियाट्रिशन को बुला कर उस से कहा कि उसे इलाज का प्रोसैस सही नहीं दिख रहा है क्योंकि बेटे ने अब खानापीना भी छोड़ दिया है. इसलिए आप इस बच्चे को सही इलाज दें या फिर वह कहीं दूसरे अस्पताल में ले जाएगी. इस बात से घबरा कर डाक्टर ने बच्चे की आरटीपीसीआर की तो कोविड नैगेटिव निकला, लेकिन ‘कोविड एंटीबौडी टैस्ट’ पौजिटिव आया. इतनी देर में बच्चे की हालत और अधिक खराब हो गई. उसे आईसीयू में रखा गया. डा. सरोज अगले दिन दूसरे अस्पताल में बेटे को ले गई. वहां डाक्टर ने बताया कि यह पोस्ट कोविड में होने वाली बीमारी है जबकि तरुष को कोविड नहीं हुआ था.

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2 दिनों बाद बच्चे को डिस्चार्ज मिल गया. करीब एक महीने की दवा के बाद तरुष ठीक हो सका. यहां यह सम झना जरूरी है कि तरुष की मां डाक्टर होने की वजह से बीमारी का इलाज सही न होने को सम झ पाई लेकिन आम इंसान के लिए इस बीमारी को सम झना नामुमकिन था. क्या है मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम असल में पोस्ट कोविड की यह बीमारी खासकर बच्चों में अधिक देखी जा रही है. इस की वजह बच्चों का एसिम्पटोमेटिक कोविड होने से है क्योंकि अधिकतर पेरैंट्स खुद को कोविड होने पर किसी रिश्तेदार के पास अपने बच्चे को भेज देते हैं. इस से बच्चे में कोविड हुआ है या नहीं, सम झना मुश्किल हो जाता है क्योंकि बच्चे को इस बारे में पता नहीं है.

पेरैंट्स ने भी किसी प्रकार के लक्षण बच्चे में नहीं देखे हैं. इस बारे में पुणे की मदरहुड हौस्पिटल के कंसलटैंट नियोनाटोलौजिस्ट एंड पीडियाट्रिशन डा. तुषार पारिख कहते हैं, ‘‘कोरोना की यह बीमारी मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम बच्चों में कोरोना होने के बाद 2 सप्ताह से ले कर 5 या 6 सप्ताह के भीतर होती है. कई बार कोरोना संक्रमण एसिम्पटोमेटिक होता है. ऐसे में बच्चे को कोरोना संक्रमण होने पर बुखार, खांसी होती है और कुछ दिनों में ठीक भी हो जाती है. 2 सप्ताह बाद फिर से बुखार आने लगता है. तब पेरैंट्स घबरा जाते हैं.’’ मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम की बीमारी के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं : द्य बच्चे को तेज बुखार आना, द्य पेट में दर्द होना, द्य शरीर में रैशेज का आना, द्य मुंह के अंदर अल्सर हो जाना, द्य जीभ का लाल होना, द्य आंखों का लाल हो जाना आदि. ‘‘इस के अलावा शरीर के सभी अंगों में इन्फ्लेमेशन यानी सूजन आ जाती है जिस से बच्चा सुस्त हो जाता है.

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कभीकभी हार्ट में सूजन की वजह से ब्लड सर्कुलेशन बाधित हो जाता है, जिस से बच्चे को चक्कर आना और दूसरे और्गन भी प्रभावित होते जाते हैं. ऐसे में बच्चे को हौस्पिटल में भरती करवाना पड़ता है. कई बार हार्ट की कोशिकाओं में सूजन आ जाने से सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई हो सकती है. कई बार फेफड़े पर भी इस का असर देखा गया है. यह आजकल कोविड की वजह से बहुत कौमन हो चुका है. अधिकतर बच्चे पेटदर्द और तेज बुखार के साथ आते हैं और डाक्टर इसे गैस्ट्रोएन्टराइटिस, कोलाइटिस, एपैंडेसाइटिस आदि सम झ कर इलाज करते हैं जिस से बच्चे की हालत गंभीर हो जाती है और कई बार बच्चे की जान बचाना भी मुश्किल हो जाता है. अपने एक अनुभव के बारे में डा. तुषार का कहना है, ‘‘7 साल की एक लड़की को एपैंडिक्स की बीमारी कह कर मेरे पास औपरेशन के लिए भेजा गया था,

सोनोग्राफी की तो कुछ नहीं था, लेकिन एमआईएस का टैस्ट पौजिटिव आया. इसलिए जब भी बच्चा पेटदर्द के साथ बुखार ले कर आए तो उस की एमआईएस जांच करना जरूरी है ताकि पोस्ट कोविड की जटिलताओं को समय रहते पहचान लिया जाए. 24 घंटे से अधिक किसी बच्चे में पेटदर्द और बुखार है तो तुरंत डाक्टर के पास जाएं.’’ मुश्किल है सम झना डा. तुषार बताते हैं, ‘‘यह बीमारी पहले नहीं देखी जा रही थी, इसलिए डाक्टर्स को भी सम झने में देर हुई. लेकिन कोविड पीरियड में बहुत सारे बच्चों में यह बीमारी देखी गई. यह रोग कावासाकी नामक एक बीमारी से थोड़ा मेल खाता है. इस में भी मुंह, जीभ लाल होना, रैशेज होना, बुखार आना आदि रहता है. लेकिन कावासाकी बीमारी की वजह किसी को आज तक पता नहीं चल पाई है. कोरोना में ही इसे देखा गया. कोरोनाकाल में इसे ‘कावासाकी लाइक इलनैस’ का नाम भी दिया गया है. मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम की यह बीमारी भी कई तरह की होती है, मसलन कावासाकी लाइक प्रेजैंटेशन, यह माइल्ड, मौडरेट और सिवीयर किसी भी प्रकार की हो सकती है.

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’’ रिस्क फैक्टर वैसे मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम की यह बीमारी एक प्रतिशत से भी कम बच्चों में होती है लेकिन कोरोना की वजह से यह अधिक दिखाई पड़ रहा है. इस में 12 साल से ऊपर के बच्चे अधिक कौमन, 6 से 12 साल के बच्चे में लैस कौमन और 6 साल से नीचे बच्चों में बहुत कम है. सही जांच है जरूरी डा. तुषार कहते हैं, ‘‘शुरुआत में डाक्टर्स को भी इस बीमारी की जानकारी नहीं थी लेकिन अब रोगी देख कर सम झ जाते हैं. क्लीनिकल जांच से इसे पता लगाया जाता है. अगर बच्चे को बुखार है और एमआईएस-सी का कोई लक्षण नहीं है, एक से 2 दिनों तक बुखार की दवा देने के बाद भी बुखार न उतरने पर रोगी को तुरंत बच्चों के डाक्टर के पास ले जाएं. क्लीनिकल जांच के अलावा आरटीपीसीआर और कोविड एंटीबौडी टैस्ट किया जाता है. बच्चे को अगर कोविड हुआ है तो बच्चे के पोस्ट कोविड के लक्षण हैं या नहीं, इस का ध्यान रखने की जरूरत है. डाक्टर्स को भी इस बारे में जानकारी होनी चाहिए क्योंकि ऐसे केसेज में कोविड एंटीबौडी ब्लड टैस्ट करने से तुरंत पता लग जाता है.

’’ सावधानियां डाक्टरों का मानना है कि मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम का इलाज हो जाने पर केवल एक महीना सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि शरीर के अंदर आई सूजन को ठीक करने के लिए करीब एक महीने तक दवा लेनी पड़ती है. इस में स्टेरौयड और तकलीफ ज्यादा होने पर आईवी इंजैक्शन द्वारा इम्यूनोग्लोबुलिन की दवा देनी पड़ती है. डी डायमर का लैवल अधिक होने पर भी एडवांस दवा का इंजैक्शन देना पड़ता है. अभी तक मैं ने 38 बच्चों की चिकित्सा अप्रैल और मई में की है. इन महीनों में सब से अधिक बच्चे इस से प्रभावित थे. सभी बच्चे सीरियस नहीं होते. मौडरेट और सिवीयर होने पर ही उन्हें स्टेरौयड दिया जाता है. 10 बच्चों में से तकरीबन 3 बच्चों में मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम पाया गया. समय से आने पर इस बीमारी का इलाज हो सकता है.

इस बीमारी से ठीक होने के कुछ सालों बाद हार्ट की कोरोनरी ब्लड वैसेल्स में अगर सूजन आ गई है, तो उन बच्चों को थोड़े अधिक दिनों तक औब्जरवेशन में रखना पड़ता है. उन के ब्लड में क्लोटिंग होने का खतरा रहता है, इसलिए लंबे समय तक दवा लेनी पड़ती है. कोरोनरी ब्लड वैसेल्स में सूजन से बाद में भी खून के थक्के उस में जमा होने की वजह से हार्टअटैक आ सकता है. इसलिए पहले 3 से 4 महीने के अंतर पर और बड़े होने पर साल में एक बार डाक्टर की सलाह अवश्य लें. कावासाकी में भी कई बार बच्चों में हार्टअटैक आ जाता है लेकिन उस की संख्या बहुत कम है.

रहें सतर्क डा. तुषार का कहना है, ‘‘पहली लहर में बुजुर्ग, जिन्हें अब वैक्सीन लग चुकी है, दूसरी लहर में यूथ को कोविड अधिक हुआ, जबकि उन्हें भी अब वैक्सीन की एक डोज दी जा चुकी है, इसलिए तीसरी लहर में बच्चे अधिक प्रभावित होंगे, ऐसा माना जा रहा है. लेकिन इस के लिए कोई ठोस वैज्ञानिक सुबूत नहीं है. सावधान रहना आवश्यक है, ताकि बच्चे कोविड से अधिक प्रभावित न हों. पेरैंट्स के लिए मेरा यही मैसेज है कि कोरोना अभी गया नहीं है.

बड़े बच्चों को कोविड की सारी गाइडलाइन्स को फौलो कराएं और साथ में वजह भी क्लीयर करें. ‘‘इस के अलावा 18 साल से कम उम्र के बच्चों को फ्लू का इंजैक्शन दिलवाने की राय ‘कोविड टास्क फौर्स’ ने दी है, क्योंकि इस से फ्लू संबंधित बीमारियां कम होंगी और हैल्थकेयर पर बो झ भी कम होगा. हर बारिश के बाद वैसे भी फ्लू के केसेज बढ़ते हैं और पुणे में फ्लू के इंजैक्शन बच्चों को दिए जा रहे हैं. इस के अलावा परिवार के सभी वैक्सीनेटेड सदस्यों के बीच में बच्चा रहने पर बच्चा सुरक्षित रहता है. इसे ‘कोकून स्ट्रेटेजी’ कहा जाता है, इसे अपनाने की कोशिश करें.’’

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