दुखांत फिल्में बनाने वाले फिल्मकार के रूप में पहचान रखने वाले विशाल भारद्वाज इस बार भी अपनी फिल्म ‘‘रंगून’’ में वही सब लेकर आना चाहते थे, लेकिन इस बार विशाल भारद्वाज बुरी तरह से मात खा गए हैं. ये फिल्म तो जैसे खत्म होते होते मनोरंजन देने की बजाय थका देती है.
फिल्म की कहानी 1943 की पृष्ठभूमि पर आधारित है. भारत में मौजूद ब्रिटिश सैनिक हिटलर से लड़ाई लड़ रहे हैं और उधर सुभाषचंद्र बोस सिंगापुर में ‘आजाद हिंद फौज’ गठित कर ब्रिटिश सेना से युद्ध कर अंग्रेजों को भारत से भगाकर देश को आजाद कराना चाहते हैं. ब्रिटिश सेना में ही कार्यरत सैनिक जमादार नबाब मलिक (शाहिद कपूर) कुछ सैनिकों को मारकर और जापान की जेल से भागकर भारत पहुंचता है और अपने ब्रिटिश सेना के मुखिया जनरल डेविड हार्डिंग्स (ब्रिटिश अभिनेता रिचर्ड मैकबे) से कहता है कि उसने आजाद हिंद फौज के 27 सैनिकों को मार गिराया है.
उधर फिल्मकार रूसी बिलमोरिया (सैफ अली खान) जूलिया (कंगना रानौट) को लेकर एक्शन फिल्म बना रहे हैं. रूसी ने अनाथ जूलिया को हजार रूपए में खरीदा और फिल्म बनाते-बनाते रूसी को जूलिया से प्यार हो जाता है. उधर जूलिया के साथ रूसी की हर फिल्म सुपर हिट हो रही है. फिल्म की एक पार्टी में ब्रिटिश सेना के डेविड के अलावा भारत के एक राजा अपनी तीन पत्नियों के साथ पहुंचते हैं. जहां वह राजा एक तलवार दिखाते हुए डेविड से पूछता है कि यह तलवार उन्हें उपहार में दी जाए या वह इसे छीनकर लेना चाहेंगे. राजा कहता है कि यह तलवार आजाद हिंद फौज को जीतने के लिए बारूद व हथियार दिला सकती है. डेविड छीनने की बात कहकर राजा को तलवार वापस दे देता है. अब डेविड, रूसी के सामने प्रस्ताव रखता है कि वह जूलिया के साथ बर्मा में उनके सैनिकों के मनोरंजन के लिए कार्यक्रम करे. रूसी तैयार हो जाते हैं. राजा व जमादार नबाब मलिक मिलकर योजना बनाते हैं. जूलिया के मेकअप मैन व स्पॉट ब्वॉय जूफी से मिलकर जूलिया के बक्से में तलवार रखवा देते हैं, जिससे वह तलवार आजाद हिंद फौज तक पहुंच जाए.
जब सभी लोग बर्मा जाने के लिए मुंबई से ट्रेन में सवार होते हैं, पर ऐन वक्त पर रुसी को रूकना पड़ता है. उधर रेलवे ट्रैक दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से बर्मा के पास ट्रेन रूक जाती है. सभी नदी से बर्मा पहुंचने का प्रयास करते हैं, तभी आजाद हिंद फौज के सैनिक हमला कर देते हैं. इसमें जूफी गायब हो जाता है. जूलिया व नबाब मलिक एक साथ होते हैं, बाकी लोग निकल जाते हैं.
अपने रास्ते पर आगे बढ़ते हुए जंगल के रास्तें कीचड़ में गुत्था गुथ्थी करते करते जूलिया व नबाब मलिक में प्यार हो जाता है. पर अंत में डेविड अपने सैनिकों के साथ जूलिया व नबाब को ढूंढ़ लेते हैं. अब रूसी भी पहुंच जाते हैं. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः रुसी, नबाब मलिक के खून के प्यासे हो जाते हैं. डेविड को शक हो जाता है कि उनकी सेना में आजाद हिंद फौज के कुछ जासूस हैं. वह जांच शुरू कर देता है. पर अंत में नबाब मलिक व जूलिया मारे जाते हैं. रूसी ही आजाद हिंद फौज तक उस तलवार को पहुंचाते हैं.
फिल्म ‘रंगून’ शुरू होने के चंद मिनटों के बाद ही इतिहास से हटकर त्रिकोणीय प्रेम कहानी में बदल जाती है. इंटरवल के बाद अचानक देशभक्ति का तड़का जोड़ दिया जाता है, पर फिल्म देखते समय ये अहसास होता है कि मखमल के पर्दे पर जगह जगह पैबंद लगे हुए हैं. विशाल भारद्वाज का मकसद द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में एक प्रेम कहानी के साथ देशभक्ति की भावना को पर्दे पर उकेरना था, पर वह अपने इस मकसद में बुरी तरह से मात खा गए. शायद विशाल भारद्वाज स्वयं ये भूल गए कि वह फिल्म को कहां से कहां ले जाना चाहते हैं. पूरी फिल्म मैलोड्रैमैटिक लगती है. फिल्म में संजीदगी का घोर अभाव है. फिल्म में ब्रिटिश सेना के अफसर को जोकर बनाकर पेश किया गया है, जो कि किसी अजूबे जैसा लगता है.
सैफ अली, कंगना रानौट व शाहिद कपूर की मौजूदगी और अरुणाचल प्रदेश जैसी खूबसूरत व अच्छी लोकेशन के बावजूद भी विशाल भारद्वाज, अपनी फिल्म में इतिहास को ठीक से उकेर पाने में असफल रहे. इतिहास को सही ढंग से उकेरने के लिए जिन चीजों और आस पास के माहौल की जरुरत होती है, उसे भी गढ़ने में विशाल विफल रहे. कीचड़ व मिट्टी में सने प्यार करते, कंगना रानौट व शाहिद कपूर दोनों की पोशाक पर मेहनत की गयी है, पर इसके बाद भी दोनों किरदार अच्छे से नहीं उभर पाते.
स्टंट क्वीन नाडिया की नकल पर रचे गए जूलिया के किरदार में कंगना रानौट कुछ जगहों पर ध्यान खिंचती हैं. चलती ट्रेन की छत पर भागने के अलावा उनसे कुछ स्टंट सीन अच्छे बन पड़े हैं. कंगना रानौट ने अपनी तरफ से काफी मेहनत की है, मगर कमजोर पटकथा के चलते वह दर्शकों के दिल में अपनी जगह नही बना पांई. इसी तरह सैफ अली खान इस फिल्म में एक्शन प्रधान फिल्म निर्माता, रूसी के रूप में बेहतर जमे हैं. कई जगह उनके किरदार में भी दुविधा नजर आती है, पर यह भी एक कमजोर पटकथा की ही निशानी है. शाहिद कपूर भी अपेक्षाओं पर कुछ खास खरे नही उतरे हैं.
जहां फिल्म के गीत-संगीत का सवाल है, तो वे सारे अच्छे है. फिल्म के कुछ संवाद बेहतरीन बने हैं, मगर कहीं-कहीं कहानी में सही पटकथा का अभाव खलता है. फिल्म के कैमरामैन पंकज कुमार ने बेहतरीन काम किया है, बस इस बार फिल्म में नाटकीयता पिरोने में विशाल भारद्वाज बुरी तरह से असफल रहे हैं. यदि आप ‘मकबूल’, ‘ओमकारा’, ‘हैदर’ वाले विशाल भारद्वाज को ‘रंगून’ में तलाशेंगे, तो आपको घोर निराशा मिलेगी.
विशाल भारद्वाज, आशीष पॉल व वॉयकाम 18 निर्मित फिल्म ‘‘रंगून’’ की पूरी टीम मे फिल्म के निर्देशक व संगीतकार विशाल भारद्वाज, लेखक विशाल भारद्वाज, मैथ्यू रॉबिन्स व सब्रीना धवन, कैमरामेन पंकज कुमार तथा कलाकारों हैं कंगना रानौट,सैफ अली, शाहिद कपूर, रिचर्ड मैकबे व अन्य.