जब देश के किसान खुले में 2021 में सारे साल दिल्ली के चारों ओर की सडक़ों पर पड़े रहे थे कि उनको मारने वाले और बुरी तरह लूटने वाले कृषि कानून वापिस लिए जाएं और जब देश भर में कोविड़ की दूसरी लहर के लिए लोग पैसेपैसे को तरस रहे थे कि पैसे का जुगाड़ हो तो औक्सीजन सिलेंडर खरीदा जा सके.

कोविड की मंहगी दवाएं खरीदी जा सकें. जब सडक़ें सुनसान थीं और सारे पटरी दुकानदार बेकार थे. जब मकान नहीं बन रहे थे और मजदूर जेबर बेच कर गुजारा कर रहे थे, न सिर्फ राजपथ पर सैंट्रल विस्टा पर अरबों का काम जारी था, राम मंदिर बनाने की प्लानिंग चालू थी, काशी कौरीडोर की तोडफ़ोड़ चालू थी. बीसियों के पास इतना पैसा था कि 4 करोड़ से ज्यादा की लैंबोरगिनी खाड़ी खरीद लें.

2021 में इस जर्मन कंपनी ने रिकार्ड सेल की और 52 गाडिय़ां बेचीं जो कंपनी के लिए खुद अचंम की बात है. यह कैसा भारत बन रहा है जहां कुछ लोग ऊंचे संगमरमर के महलों जैसे प्रधानमंत्री निवास या राम मंदिर में पुजारी की तरह रहेंगे, कुल 8000 करोड़ का विमान खरीदेंगे. आम बिजनैसमैन माने जाने वाले लैंबोरगिनी खरीद सकेंगे और उसी समय 2 बार का खाना मिलने की आस में हजारों औरतें कोविड का खतरा उठा कर सरकारी बसों में चल निकलें.

अमीरी अपने आप में बुरी बात नहीं है. यह भाग्य का खेल नहीं है, यह मेहनत का नतीजा है पर वह समाज जो हर समय त्याग की बात करता है. फल की ङ्क्षचता न करों के उपदेश सुनाता है, किसान के 2 रुपए किलो गेंहू के ज्यादा नहीं देना चाहता, वहां 52 लोग मंहगी गाडिय़ां खरीद सकें जो 5-7 साल भी न चलेंगी.

यह चोंचले उन देशों के लिए ठीक है जहां न बेकारी है, न भुखमरी है, जहां कर बिमार के लिए अस्पताल है, जहां मजदूरों की इतनी कमी है कि बाहर से बुलाने पड़ते हैं, जहां कर रोज नई चीजें बनती हैं, नई ईजादें होती है, जो देश आज भी गोबर में पैर रखे हुए है, जहां आज बड़े शहरों में भी शौचालय तक नहीं हैं. पेशाब घर नहीं है, मकानों की पुताई के लिए पैसे नहीं है, वहां ऐसी गाड़ी जिस का टायर ही 5-7 साल का हो, कैसे खरीदा जा सकता है.

अमीरों से चिडऩा नहीं चाहिए पर यह तो जरूरी है कि अमीर इतने अमीर न हो कि वे पैसा बर्बाद कर सकें. अमीर के पास बड़े कारखानों हों जिन में लाखों मजदूर काम करते हैं, यह खुशी की बात है, अमीर कालोनियां बनवाए जिन में सैंकड़ों लोग घर पाएं अच्छी बात है, अमीर बस सेवा चालू करें जिन में आमलोग भी साथ रहे, खुशी की बात है पर आमिरों के लिए 4-4, 5-6 करोड़ की गाडिय़ां बने और भारत में बिकें, एकदो नहीं एक साल में गई एक बिमारी की निशानी है.

एक तरह से यह राजा रजवाड़ों के दिनों की वापिसी है. किसी भी पुरुष की खोल लो उस में ऐसे राजा की कहानी दिख जाएगी जिस के बड़े महल होंगे. बीसियों रानियां होंगी. सैंकड़ों दासियां होंगी जो सिर्फ राजा का सुख देंगी और ऋ षिमुनि उस राजा को बारबार बरदान देंगे. तभी तो राजा हर थोड़े दिन में यज्ञ हवन कराते थे ताकि ऋ षिमुनि आम जनता को बहकाते रहें. यही आज हो रहा है. ङ्क्षहदू खतरे में है, राम मंदिर बना रहे हैं, चारधाम ठीक हो रहा है के नाम पर बोट लेकर अदानी अंबानी को अरबों रुपए मिल जाते हैं और कोई कुछ नहीं बोच पाता.

लैबोरमिनी की इतनी बिक्री उसी तरह की बरबादी की निशानी है जो धर्म के नाम पर आज गरीबों के टोलों में भी होने लगी है. जहां सही खाना न हो, सही कपड़ा न हो वहां रात भर सैंकड़ों लाइटें लगा कर कीर्तन होते है, नाचगाने होते हैं और हवलापूरी बांटा जाता है. अपने घर को आग लगा कर हाथ सेंकना इसी को कहते हैं और हजारों नेता चाहे सरकार में हो या बाहर, चुप रहते हैं.

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