राइटर- नंद किशोर गोयल

राजस्थान के हनुमानगढ़ का रहने वाला सुरेंद्र माडि़या एक तो कामचोर था, दूसरा नशेड़ी भी. दारू के नशे में वह सब कुछ भूल जाता था. उसे न अपनेपराए का जरा भी खयाल रहता था और न ही सामाजिक संस्कार और रिश्ते के प्रति मानमर्यादा. एक रात उस के लिए अनैतिकता का दलदल बन गई थी. जिस में गिरते ही वह धंसता चला गया.

बात 15 सितंबर, 2021 की है. उस दिन सुरेंद्र को मजदूरी में और दिन की तुलना में कुछ अधिक पैसे मिल गए थे, जिस से वह बेहद खुश हो गया था. इस खुशी में वह सीधे शराब के ठेके पर जा पहुंचा.

2 दिन से उसे तलब लगी हुई थी. उस ने सूखे कंठ को जी भर कर गीला करने की लालसा पूरी कर ली थी. फिर लड़खड़ाते कदमों से किसी तरह अपने मिट्टी और फूस पराली के बने कच्चे घर टपरे पर जा पहुंचा था. उस में वह अकेला ही रहता था.

उस के आगेपीछे कोई कहनेसुनने वाला नहीं था. कुछ साल पहले जब से उस के बड़े भाई ने आत्महत्या कर ली थी, तब से वह और भी बेफिक्र और अपनी मरजी का मालिक बन गया था.

हनुमानगढ़ जिलांतर्गत पीलीबंगा तहसील से करीब 20 किलोमीटर दूर गांव दुलमाना में मेघवाल समुदाय के सुरेंद्र को सभी मांडिया कह कर बुलाते थे. वहीं वह मवेशी पालने और उस की चरवाही करने वाली 60 वर्षीया एक विधवा भी अकेली रहती थी.

मांडिया के टपरे से आधे किलोमीटर पर वह भी उस जैसी ही कच्चे टपरे में रहती थी. वह उसे अच्छी तरह जानतीपहचानती थी. सुरेंद्र का आनाजाना उस के घर से हो कर ही होता था. खाली समय में उस के साथ बैठ कर गप्पें मारता रहता था. सुरेंद्र उन्हें सम्मान से चाची कह कर बुलाता था.

उस रोज सुरेंद्र ने इतनी अधिक दारू पी ली थी कि उसे घर लौटते हुए पता ही नहीं चला कि रात की शुरुआत हो चुकी है. एक राहगीर से पूछा, ‘‘भाई तेरे पास घड़ी है क्या? बता दो जरा कितना समय हुआ है? लगता है रात बहुत हो गई है मुझे घर जाना है.’’

‘‘अरे तू क्या करेगा समय जान कर नशेड़ी, कौन तुझे कोई गाड़ी पकड़नी है इस वक्त, अभी ज्यादा रात नहीं हुई है, 9 बजे हैं, 9…’’ सुरेंद्र की हालत देख कर राहगीर ने कमेंट किया. वह उसे पहचानता था.

‘‘मेरा घर आ गया क्या?’’ सुरेंद्र ने फिर पूछा.

‘‘जब तुझे अपना घर पहचानने का भी होश नहीं रहता, तब इतनी दारू क्यों पी लेते हो?’’ राहगीर उसे नसीहत देता हुआ आगे बढ़ गया.

सुरेंद्र अपने लड़खड़ाते कदमों से बुदबुदाने लगा, ‘‘लगता है मेरा घर आ गया, लेकिन यहां ढोरमवेशी किस ने बांध दिए? जरूर किसी की कारस्तानी होगी?’’

दरअसल, सुरेंद्र अभी वृद्धा के घर के पास ही पहुंचा था, जिसे अपना घर समझ बैठा था. उसी के मवेशी बाहर बंधे थे. बगैर आगापीछे ध्यान दिए वह सीधे बिना दरवाजे वाले उस टपरे में घुस गया.

अंदर चारपाई पर वृद्धा नींद में लेटी थी. दीए की धीमी रोशनी में उस की नजर औरत के अस्तव्यस्त कपड़ों पर गई. उस के भीतर वासना का हैवान जाग उठा. उस महिला को वह चाची कह कर बुलाता था, उस की चारपाई पर जा बैठा. कामुक नजरों से निहारने लगा. वह कच्ची नींद में थी. इसी बीच हलचल से वह जाग गई. जागते ही पूछ बैठी, ‘‘कौन है भाई?’’

‘‘अरे, धीरे बोल मैं हूं माडि़या’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘बेटा, इतनी रात गए क्यों

आया है, कोई बात है का?’’ वृद्धा ने सवाल किया.

‘‘भाभी, रात को अकेली औरत के पास कोई मर्द क्यों आता है…समझ जा.’’

सुरेंद्र का इतना कहना था कि विधवा गुस्से से बोल पड़ी. उस ने चारपाई पर नजदीक बैठे सुरेंद्र को धकेल दिया, ‘‘क्या बोला, भाभी? मैं तेरी भाभी लगती हूं? जरा भी लाजशर्म है या नहीं, तूने दारू पी रखी है. नशे में कुछ भी बक देगा. कुछ भी करेगा, अभी तुझे बताती हूं.’’ इसी के साथ विधवा गुस्से में तेजी से चारपाई से उठी. तुरंत चारपाई के नीचे से डंडा निकाल कर तान दिया.

सामने सिर पर डंडे और विधवा के तमतमाए चेहरे को देख कर सुरेंद्र का आधा नशा उतर चुका था. उस का गुस्सा कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा था. बिफरती हुई बोली, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई रात को मेरे घर में घुसने की? ठहर, अभी मैं अपने देवर को फोन कर बुलाती हूं. वही तुम्हारी अच्छी तरह से मरम्मत करेगा.’’

गुस्से में दहाड़ती विधवा का विरोध देख कर सुरेंद्र की सिट्टीपिट्टटी गुम हो गई. जैसेतैसे कर वह विधवा के चंगुल से छूटा और वहां से भागने को हुआ. इस डर से कहीं विधवा अपने देवर को फोन न कर दे, चारपाई पर सिरहाने रखा उस का मोबाइल ही ले कर भाग गया.

मोबाइल ले कर भागता देख विधवा भी उस के पीछे दौड़ी, लेकिन जब तक सुरेंद्र ने अपने घर की ओर दौड़ लगा दी और अंधेरे में गुम हो गया था.

भागता हुआ सुरेंद्र अपने घर आ गया था. रात को खटका सुन कर उस की मां जाग गई. पिता बंसीलाल नींद में खर्राटे भर रहे थे. मां ने देर रात आने पर डांटा, तो उस ने बताया कि वह एक दोस्त के घर गया हुआ था. और फिर वह चारपाई पर जा कर पसर गया, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी.

एक तरफ विधवा का गुस्सा बारबार ध्यान में आ रहा था, दूसरी तरफ लेटी अवस्था में उस के अस्तव्यस्त कपड़े में झांकती देह का दृश्य झिलमिलाता हुआ एकदूसरे में गड्डमड्ड हो रहे थे. उस ने जैसे ही आंखें बंद कीं तो दिमाग में फिर वासना का कीड़ा कुलबुलाने लगा.

सोचने लगा, ‘‘…अगर थोड़ी सख्ती दिखाता तो शायद वह उस के कब्जे में आ जाती, आत्मसमर्पण कर देती.’’

इसी विचार से वह बिस्तर से उठा और फिर से विधवा के घर की ओर चल पड़ा. दूसरी तरफ विधवा अपना मोबाइल लेने के लिए बदहवास हालत में नजदीक रह रहे अपने देवर बनवारी मेघवाल के घर जा पहुंची.

भाभी की हालत देख कर बनवारी चौंका, ‘‘भाभी, इतनी रात गए क्यों आई हो?’’ विधवा ने सिलसिलेवार ढंग से सारा वाकया सुनाया. इसी के साथ उस ने बताया कि माडि़या उस का फोन ले कर भाग गया है.

बनवारी बोला, ‘‘भाभी, आप यहीं अपनी देवरानी के साथ सो जाओ. सुबह माडि़या की खबर लूंगा. मोबाइल भी उस से लूंगा.’’

‘‘ नहीं भैया, मेरे घर पशु बंधे हैं, इसलिए अपने घर पर ही जा कर सोऊंगी.’’ विधवा बोली.

थोड़ी देर में विधवा अपने घर आ गई. सुरेंद्र पहले से ही उस के घर में आ कर छिपा हुआ था. वह जैसे ही बिछावन पर लेटने को हुई, सुरेंद्र ने उसे दबोच लिया. महिला ने सुरेंद्र की पकड़ से बचने की कोशिश की, लेकिन उस की हवस का शिकार होने से नहीं बच पाई.

किसी तरह सुरेंद्र के कब्जे से मुक्त हुई. तब उस ने लात मार कर उसे जमीन पर गिरा दिया. सुरेंद्र ने पास पड़ी प्लास्टिक की रस्सी महिला के गले में डाल दी. विधवा अपना बचाव नहीं कर पाई, जबकि सुरेंद्र ने पूरी ताकत से रस्सी को खींच दिया. कुछ पल में ही महिला की मौत हो गई.

उस की मौत हो जाने के बाद सुरेंद्र ने उस के साथ जी भर कर दोबारा मनमानी भी की. किंतु जैसे ही उस पर से वासना का भूत शांत हुआ, वह डर गया.

कभी खुद को देखने लगा, तो कभी विधवा की लाश को इतना तो समझ ही गया था कि उस के द्वारा एक नहीं, बल्कि 2-2 गुनाह हो गए थे. डरा हुआ सुरेंद्र अपने बचाव के तरीके खोजने लगा.

वह सीधा अपने चाचा राजाराम के घर गया. उन्हें जगा कर उन के पांव पकड़ लिए. गिड़गिड़ाते हुए बचाने की गुहार करने लगा. उस के अपराध के बारे में सुन कर राजाराम भी सन्न रह गए. उन्होंने उसे संभालाते हुए भरोसा दिया, ‘‘बेटा, जो हुआ उसे खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन रात बहुत हो गई है, जा कर

तू सो जा. कल सुबह सारा मामला सुलटा दूंगा.’’

माडि़या वहां से अपने घर चला आया. राजाराम अपने 2 साथियों श्योपत और सहदेव को ले कर बनवारी के घर गए. उसे सारी बात बताई. सुबह होने पर बनवारी लाल मेघवाल गांव के कुछ लोगों के साथ पीलीबंगा पुलिस स्टेशन गया. उस ने सुरेंद्र के खिलाफ लिखित प्राथमिकी दर्ज करवा दी.

थानाप्रभारी इंद्रकुमार ने सुरेंद्र के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 376, 450 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस मामले को एसपी प्रीति जैन ने गंभीरता से लेते हुए इंद्रकुमार को ही जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया.

इंद्रकुमार ने कुछ घंटे बाद ही आरोपी सुरेंद्र को गांव दुलमाना से गिरफ्तार कर लिया. घटनास्थल से सबूत के तौर पर कदमों के निशान, रस्सी, वीर्य लगे वृद्धा के कपड़े, बालों के गुच्छे आदि इकट्ठा कर लिए. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

विभिन्न साक्ष्यों का डीएनए टेस्ट करवा कर आरोपी के साथ मेल भी करवा लिया गया. इस लंबी प्रक्रिया को पूरी करने में पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए 7 दिनों में केस की चार्जशीट तैयार कर अदालत में दाखिल कर दी.

हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय स्थित सत्र न्यायालय में 29 नवंबर, 2021 को काफी गहमागहमी थी. सब की निगाहें उस फैसले पर टिकी थीं, जिस के लिए साक्ष्यों और गवाहों से संबंधित दस्तावेज काफी कम समय में जुटा लिए गए थे.

लोगों को आश्चर्य इस बात को ले कर था कि रेप और हत्या के इस मामले का फैसला काफी कम समय में आने वाला है, जिसे मात्र 74 दिन पहले ही अदालत में दाखिल किया गया था.

सब कुछ समय से हो रहा था. पुलिस गाड़ी अभियुक्त सुरेंद्र उर्फ माडि़या को जिला जेल से ले कर अदालत पहुंच गई थी. वहां उसे अस्थाई अभियुक्त बैरक में बंद कर दिया था. पुलिस बरामदे में सुस्ताने लगी थी.

कुछ समय में ही जिला न्यायाधीश संजीव मागो अदालत पहुंच गए थे. वह अपने चैंबर से निकल कर न्याय की कुरसी पर जा बैठे थे. अदालत की काररवाई शुरू हो चुकी थी. पेशकार के कहने पर हरकारे ने सुरेंद्र बनाम स्टेट की आवाज लगा दी थी.

सब कुछ नियम से हो रहा था. अदालत के कठघरे में मुलजिम सुरेंद्र हाजिर हो चुका था. वह हाथ बांधे सिर झुकाए खड़ा था. न्यायाधीश ने अपने सामने रखे केस से संबंधित दस्तावेज उठाते हुए कहा, ‘‘काररवाई शुरू की जाए.’’

अभियुक्त पक्ष के वकील अलंकार सिंह से पहले लोक अभियोजक उग्रसेन नैन ने मामले पर रोशनी डालते हुए कहा—

योर औनर इस केस में पीडि़ता एक विधवा और गरीब औरत थी. उस की उम्र 60 साल के करीब थी. वह आजीविका के लिए मवेशी पालती थी. वह अपने घर में अकेली रहती थी.

घटना की रात को अभियुक्त सुरेंद्र जबरन उस के घर में घुस गया था. उस ने उस के साथ जोरजबरदस्ती की और उस के साथ रेप का प्रयास किया. जब उस ने विरोध किया, तब उस ने उसे रस्सी से गला घोंट कर मार डाला. उस के बाद उस ने विधवा वृद्धा के साथ मनमानी की.

उग्रसेन ने आगे कहा, अभियुक्त सुरेंद्र ने हत्या के साथसाथ अमानवीय कृत्य भी किया है. ऐसा व्यक्ति समाज के लिए भी गंभीर खतरा है. ऐसा व्यक्ति समाज में रहने के लायक नहीं है.

अत: हुजूर से दरख्वास्त है कि वर्तमान दंड व्यवस्था के अनुरूप आजीवन कारावास की सजा एक सामान्य नियम है. किंतु इस जघन्य मामले में अभियुक्त ने निर्मम तरीके से अपराध को अंजाम दिया है, वह एक दुर्लभ मामला बन गया है. इसलिए इस मामले को असाधारण की श्रेणी में रखते हुए मृत्युदंड दिया जाए.

इसी के साथ उन्होंने पुलिस द्वारा जुटाए गए सारे दस्तावेज न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत कर दिए.

लोक अभियोजक का इतना कहना था कि अदालत में सन्नाटा पसर गया. सब की निगाहें अब अभियुक्त के वकील की दलील और उस के अनुरूप न्यायाधीश के फैसले पर टिक गईं.

न्यायाधीश महोदय ने भी मामले को गंभीरता से लेते हुए बचाव पक्ष के वकील अलंकार सिंह को अपना तर्क रखने का मौका दिया, लेकिन वह अपना कोई पक्ष नहीं रख पाए.

हालांकि उन्होंने 14 अदालती उदाहरण दे कर सुरेंद्र को अपराध से मुक्त करने की अपील की.

उन्होंने अपने तर्क में सिर्फ इतना कहा कि उसे सुधरने का एक मौका दिया जाए. जबकि जिला अभियोजन पक्ष ने 47 पन्ने का दस्तावेजी साक्ष्य पेश किया था.

हालांकि घटना का कोई चश्मदीद नहीं था, पर बनवारी लाल और राजाराम ने सुरेंद्र को बचाने की कोशिश की. फिर भी सारे साक्ष्य सुरेंद्र के खिलाफ थे. यहां तक कि विधवा का मोबाइल फोन भी पुलिस ने सुरेंद्र के घर से बरामद कर लिया था.

इन सारे तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न्यायाधीश ने अहम फैसला सुनाने से पहले इस तरह के मामले से संबंधित सजा के बारे में कुछ बातें भी बताईं. सुरेंद्र पर लगे सभी धाराओं का अलगअलग विश्लेषण करते हुए अंत में उन्होंने धारा 302 की भी पुष्टि कर दी.

इसी के साथ उसे रेप, हत्या, अप्राकृतिक कृत्य, मारपीट आदि के दंड के साथ सजाएमौत की साज सुना दी.

उल्लेखनीय है कि भारत में सजाएमौत के लिए फांसी दी जाती है. उसे तत्काल जिला जेल भेजे जाने से पहले उसे उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रपति से गुहार लगाने का अधिकार भी दे दिया.

इस फैसले पर प्रदेश के डीजीपी अजीत सिंह ने इस केस की तेज गति से जांच कर ठोस सबूत पेश करने वाले पुलिस जांच टीम की सराहना की.

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