कोरोना से बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और अनेक राज्यों के शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं रद्द करने के फैसले के बाद मीडिया में यह खबर जोर शोर से चल रही है कि यह सरकार द्वारा उठाया गया एक सराहनीय कदम है और इससे छात्र राहत महसूस कर रहे हैं, वहीँ अभिभावक इस बात से सुकून में हैं कि उनका बच्चा कोरोना संक्रमण से बचा रहेगा.
बता दें कि सीबीएसई के अलावा 7 राज्यों ने अपनी 12वीं बोर्ड परीक्षाएं रद्द कर दी हैं. इसमें गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, गोवा और उत्तराखंड शामिल हैं. इन बच्चों को कैसे प्रमोट किया जाएगा इसको लेकर सीबीएसई के सेक्रेटरी अनुराग त्रिपाठी का कहना है कि मार्किंग क्राइटेरिया तय करने के लिए अभी समय लगेगा.
सीबीएसई के सेक्रेटरी अनुराग त्रिपाठी
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वहीँ उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा यूपी बोर्ड द्वारा 12वीं की परीक्षा रद्द किए जाने के बाद रिजल्ट तैयार करने का फॉर्मूला ले भी आये हैं. उनका कहना है कि इंटरमीडियट की परीक्षाएं रद्द होने से यूपी बोर्ड के 26 लाख 10 हजार 316 छात्रों की परीक्षा नहीं होगी. माध्यमिक स्तर की सभी कक्षाओं के छात्रों को भी बिना परीक्षा के अगली क्लास में प्रमोट किया जाएगा. हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के सभी रेगुलर छात्रों को प्रमोट किया जाएगा, साथ ही इन्हें अंक सुधार के लिए एक विषय या अपने सभी विषयों की लिखित परीक्षा देने का भी मौका मिलेगा.
12वीं का रिजल्ट 10वीं की बोर्ड परीक्षाओं में प्राप्त अंकों और 11वीं की वार्षिक परीक्षाओं में प्राप्त अंकों के औसत के आधार पर तैयार किया जाएगा. यदि 11वीं कक्षा की वार्षिक परीक्षा के अंक नहीं होंगे तो कक्षा 12वीं की प्री बोर्ड परीक्षाओं के अंक जोड़े जाएंगे. इसके अलावा जिन रेगुलर और प्राइवेट छात्रों के 11वीं के अंक और 12वीं के प्री बोर्ड के अंक नहीं होंगे उन्हें सामान्य रूप से कक्षोन्नति का प्रमाण पत्र देकर पास कर दिया जाएगा.
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हाई स्कूल के रिजल्ट का फॉर्मूला
10वीं कक्षा का रिजल्ट नौंवी की वार्षिक परीक्षा में प्राप्त अंकों और 10वीं की प्री बोर्ड परीक्षाओं के अंकों के औसत के आधार पर तैयार किया जाएगा. हाईस्कूल के जिन संस्थागत एवं व्यक्तिगत परीक्षार्थियों के उपर्युक्त प्राप्तांक उपलब्ध नहीं होंगे, उन्हे सामान्य रूप से कक्षा 11 में प्रमोट कर दिया जाएगा. उन्हें केवल कक्षोन्नति का प्रमाण पत्र दिया जाएगा.
दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया
वहीँ दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि रिजल्ट तैयार करने में ज़्यादा परेशानी नहीं होगी. 12वीं के बच्चे 12 साल से हमारे पास हैं. हम जानते हैं कि वो पढ़ने में कैसे हैं. हम उनके बहुत सारे एग्जाम ले चुके हैं, बहुत सारे छोटे-बड़े टेस्ट ले चुके हैं, प्रैक्टिकल करा चुके हैं, उनका ओवरऑल नॉलेज बेस हमारे पास है. तो उनके पास्ट परफॉर्मेंस को आधार बना कर, हिस्टोरिकल रेफरेंस लेकर, 10वीं, 11वीं और 12वीं की परीक्षाओं, इंटरनल असेसमेंट, प्री बोर्ड एग्जाम, प्रैक्टिकल, असाइनमेंट्स को वेटेज देते हुए फॉर्म्युला निकाला जा सकता है. उनको लगता है कि यह कहीं ज्यादा बेहतर होगा मूल्यांकन के लिए, बनिस्बत 3 घंटे की एक परीक्षा की तुलना में.
परन्तु सवाल ये कि उन बच्चों की क्षमता का सही मूल्यांकन कैसे करेंगे जो किसी दूसरे विद्यालय से 9वीं या 11वीं कक्षा में आये हैं? क्या हर ऐसे बच्चे के लिए टीचर उसके पुराने विद्यालय के टीचर्स से संपर्क करेंगे? सवाल और भी हैं. यदि स्कूल टीचर्स ही बच्चों का असेसमेंट करेंगे तो क्या वे उन बच्चों को फेवर नहीं करेंगे जिन्हे वे ट्यूशन पढ़ाते हैं? क्या देश के सभी स्कूलों के सभी टीचर हर बच्चे का शैक्षिक आंकलन ठीक तरीके से करने के काबिल हैं? एक एक बच्चे के पुराने क्लासेज के सारे एग्जाम, टेस्ट, प्रेक्टिकल आदि का लेखा जोखा जमा करके फाइनल का रिजल्ट तैयार करने की काबिलियत और धैर्य हर टीचर में है? मूल्यांकन की जो विधि मनीष सिसोदिया बता रहे हैं क्या वह सचमुच इतनी आसान है? यह बातें सुनने में तो अच्छी लगती हैं लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा हो पाएगा ऐसा नहीं लगता है.
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वहीँ मीडिया के माध्यम से जो प्रचार हो रहा है कि एग्जाम रद्द होने से बच्चों और उनके अभिभावकों में ख़ुशी है, यह बात भी पूरी तरह सच नहीं है. बिना परीक्षा अगली कक्षा में प्रमोट होने की खबर से वे छात्र ही ज़्यादा प्रसन्न हैं जो क्लास में हमेशा बैक सीट्स पर रहते थे और लॉक डाउन पीरियड में जिन्होंने ऑनलइन क्लासेज भी ठीक से अटेंड नहीं की हैं.
जबकि परीक्षाएं रद्द होने से वे छात्र बहुत अनमने और नाखुश हैं जो मेहनती हैं और अपने करियर को लेकर काफी गंभीर भी हैं. बहुतेरे छात्र जो 12वीं के बाद किसी विदेशी यूनिवर्सिटी में प्रवेश की इच्छा रखते हैं, उनके लिए परीक्षा के माध्यम से ही ज्ञान का मूल्यांकन मायने रखता है.
सेंट थॉमस स्कूल में 10वीं की स्टूडेंट ऋतु शर्मा कहती है – ’10वीं का बोर्ड एग्जाम ना होने से मुझे और उन स्टूडेंट्स को नुकसान हुआ है, जो अब तक 90 परसेंट से ज़्यादा मार्क्स लाते रहे हैं. हम मेहनत से पढ़ते हैं लेकिन जब सबको एक साथ पास कर देंगे तो फिर पढ़ाई का मतलब क्या है?’ हालांकि कोविड संक्रमण को लेकर ऋतु थोड़ी चिंतित भी है. वो कहती है – ‘मेरी माँ बहुत खुश है कि मुझे एग्जाम देने घर से बाहर नहीं जाना होगा क्योंकि बाहर कोरोना है, मगर सरकार को कोई और रास्ता निकालना चाहिए था और एग्जाम ज़रूर होना चाहिए था.’
सीबीएसई और राज्यों के अपने बोर्ड के तहत होने वाली परीक्षाएं रद्द होने से टीचर्स, अभिभावकों और छात्रों की मिली जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. कुछ टीचर्स इस फैसले से खुश हैं क्योंकि विभिन्न विषयों के प्रश्न पत्र तैयार करने, एग्जाम ड्यूटी, प्रेक्टिकल एग्जाम कराने, पेपर्स जांचने, रिजल्ट तैयार करने से उन्हें मुक्ति मिल गयी, मगर बहुतेरे टीचर्स इस बात की चिंता जाहिर कर रहे हैं कि इन परीक्षाओं के बिना बच्चों की आगे की शिक्षा काफी परेशानी भरी होगी, खासकर साइंस के छात्रों के लिए, जिन्होंने स्कूल बंद होने के चलते ना तो प्रेक्टिकल क्लासेज अटेंड की हैं और ना ही वे अब प्रेक्टिकल एग्जाम से गुजरेंगे तो विषय में उनका ज्ञान अधूरा ही रहेगा जो आगे बीएससी की पढ़ाई को समझने में काफी मुश्किलें पैदा करेगा.
क्रीम और कचरा सब बराबर
टीचर आरिफ अली
सेंट टेरेसा डे कॉलेज में बायोलॉजी के टीचर आरिफ अली कहते हैं – ‘कोरोना काल में बच्चों की पढ़ाई का बहुत नुकसान हुआ है. ऑनलाइन पढ़ाई उन ही बच्चों ने कुछ ठीक से की है, जिन पर उनके पेरेंट्स का दबाव था और जिनके पास अच्छा स्मार्ट फ़ोन और इंटरनेट की सुविधा थी. अधिकाँश बच्चों ने तो टालमटोल वाला रवैया ही दिखाया. जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर हैं अथवा जो पढ़ाई के प्रति लापरवाह हैं, क्लास में होने पर टीचर उन बच्चों को डांट-फटकार कर, सजा देकर अथवा स्कूल के बाद कुछ घंटे रोक कर उनको कमजोर सब्जेक्ट्स में ठीक कर लेते थे, मगर ऑनलाइन पढाई में तो यह संभव ही नहीं हुआ. सच पूछें तो परीक्षाएं रद्द होने से कमजोर बच्चों में ख़ुशी ज़्यादा देखी जा रही है, क्योंकि बिना मेहनत के इन्हें प्रमोट कर दिया जाएगा.
दूसरा सच यह है कि अधिकांश बच्चों ने जो ऑनलाइन परीक्षाएं दी हैं वह नकल करके दी हैं. हम खुद अपने बच्चों को चीटिंग करना, चोरी करना सिखा रहे हैं. ये अजीब शिक्षा व्यवस्था शुरू हुई है जहां हमने बच्चों को गलत रास्ते पर चला दिया है, और अब परीक्षा ना करवा कर हम उन्हें और नकारा बनाने वाले हैं. जो बच्चे परीक्षा के डर से थोड़ा बहुत पढ़ लेते थे वे अब इत्मीनान में हैं कि पास तो होना ही है.
टीचर प्रीती आहूजा
दिल्ली के सरकारी स्कूल की टीचर प्रीती आहूजा भी आरिफ की बातों का समर्थन करती हैं. प्रीती कहती हैं – बच्चों का रिजल्ट उनके पिछले परफॉर्मेंस और पिछली क्लासेज में हुए एग्जाम के नंबर्स के आधार पर तैयार होने की खबर से बहुत बच्चे नाखुश और चिंतित हैं. कई बच्चों का कहना है कि उन्होंने पढ़ाई तो अच्छी की थी, लेकिन इंटरनल एग्जाम में उनको नंबर कम मिले हैं. अगर उसके आधार पर फाइनल रिजल्ट घोषित हुए तो उनके मार्क्स कम आएंगे जबकि परीक्षा होने पर वे ज्यादा अंक ले सकते थे. वहीँ कुछ बच्चे 9 वीं और 11वीं में पढ़ाई पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते हैं जबकि 10वीं और 12वीं में बोर्ड एग्जाम के डर से अच्छी तरह पढाई करते हैं, और फर्स्ट डिवीज़न ले आते हैं. ऐसे बच्चों को अगर उनके पिछले साल के रिजल्ट के आधार पर नंबर मिलेंगे तो वो बहुत कम होंगे.
आरिफ कहते हैं – ‘अगर बच्चे की परफॉर्मेंस, इंटरनल एग्जाम के रिजल्ट आदि के आधार पर फाइनल रिजल्ट तैयार होना है तो बता दूँ कि इंटरनल एग्जाम में अधिकांश टीचर बच्चों को जानबूझकर कम नंबर देते हैं ताकि बच्चे फाइनल के लिए और ज्यादा मेहनत करें. ऐसे में बिना परीक्षा लिए बच्चे की क्षमता का सही मूल्यांकन कैसे हो सकता है? दूसरी बात ये है कि कॉलेज में एडमिशन किस आधार पर होंगे? क्योंकि जिस तरीके से परिणाम घोषित किए जाएंगे, उससे यह साफ नहीं हो सकता कि कौन सा बच्चा सीट लेने का हकदार पहले है और कौन सा नहीं है. साफ़ है इस बार क्रीम और कचरा सब बराबर से प्रमोट होंगे.
दिल्ली विश्वविद्यालय की टीचर मिस कपूर अपने घर में दसवीं और बारहवीं के बच्चों को साइंस और मैथ्स की ट्यूशन देती हैं. इसी के साथ वह कॉलेज में होने वाली प्रवेश परीक्षाओं के तैयारियां भी करवाती हैं. वह बच्चों के साथ बहुत मेहनत करती हैं. उनके पास जो बच्चे आते हैं वो काफी अमीर परिवारों से हैं और उनके पेरेंट्स अच्छी फीस पे करते हैं. इन बच्चों का एक ही लक्ष्य होता है कि परीक्षा में 98-99 परसेंट से अधिक मार्क्स लाएं ताकि देश के अच्छे कॉलेज में आसानी से एडमिशन हो सके. गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय की कट ऑफ 99 फीसदी रहता है. अन्य बड़ी यूनिवर्सिटीज ने भी अपना यही स्तर बना रखा है. वहीँ कुछ बच्चे जो 12वीं के बाद विदेश में पढ़ने की इच्छा रखते हैं वे भी 99 परसेंट का लक्ष्य सामने रख कर पढ़ाई करते हैं. मिस कपूर का भी कहना है कि जब बिना परीक्षा सबको पास कर दिया जाएगा तो कमजोर छात्र और मेहनती छात्र सब लगभग बराबरी के पायदान पर आ जाएंगे. उनकी काबिलियत का मूल्यांकन कितनी काबिलियत से किया जाएगा इसको लेकर भारी संशय है.
प्रैक्टिकल के बिना साइंस का ज्ञान अधूरा
साइंस विषयों में प्रैक्टिकल का बहुत महत्व है. एग्जाम में तीस से चालीस परसेंट मार्क्स प्रैक्टिकल के जुड़ते हैं. लेकिन कोरोना काल में प्रैक्टिकल तो हुए ही नहीं हैं. ऐसे में बच्चे सब्जेक्ट को पूरी तरह समझ भी नहीं पाए हैं. साइंस विषयों जैसे – जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भौतिकी और रसायन विज्ञान आदि में प्रैक्टिकल क्लासेज नहीं होने से जब ये बच्चे बीएससी या अन्य धाराओं में प्रवेश लेंगे तो आधे अधूरे ज्ञान के चलते उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ेगा. कॉलेज की पढ़ाई उनकी समझ में ही नहीं आएगी जो उसके करियर को तबाह करेगी. परीक्षाएं रद्द होने से उन कंपीटिटिव एग्जाम पर भी इसका असर पड़ेगा जिन्हें बच्चे 12वीं के बाद देते हैं. बच्चे उन परीक्षाओं में भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे.
मेहनती बच्चों को झटका लगा है
सालभर मेहनत से पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स को परीक्षाएं रद्द होने से काफी झटका लगा है. गौरतलब है कि 12वीं के नतीजे का असर आगे के करियर पर पड़ता है. दिल्ली की एक अन्य ट्यूशन टीचर पारुल ‘सरिता’ से बात करते हुए कहती हैं – जिन बच्चों की पढ़ाई में रूचि है और जो अपने करियर के प्रति गंभीर हैं वे ऑनलाइन क्लासेज के साथ ट्यूशन क्लासेज में अभी तक काफी मेहनत से पढ़ रहे थे. मेरी जो ट्यूशन क्लासेज फरवरी में ख़त्म हो जाती थीं इस बार मैंने मई तक चलाईं क्योंकि लॉक डाउन के कारण मेरे पास भी काफी टाइम था. बच्चों ने भी क्लासेज मिस नहीं कीं, मगर अब पता चल रहा है कि एग्जाम ही नहीं होने हैं तो बच्चों में उदासी है. वहीँ उनके पेरेंट्स जिन्होंने ट्यूशन पर भारी भरकम पैसा खर्च किया है, वे बौखलाए हुए हैं.
पारुल कहती हैं – ‘अब पेरेंट्स सोच रहे हैं कि जब परीक्षा ही नहीं होनी थी तो बेकार इतना पैसा ट्यूशन पर बर्बाद किया. परीक्षा होने की सूरत में बच्चा अपनी मेहनत के नंबर पाता मगर अब उसके मार्क्स उन टीचर्स के मूल्यांकन के भरोसे हैं जो पता नहीं ठीक से इस काम को कर भी पाएंगे या नहीं. अगर किसी बच्चे को उसकी सोच से कम मार्क्स मिलते हैं और वह उससे असंतुष्ट हो कर एग्जाम देने का विकल्प चुनता है तो उसका पेपर तैयार करने, जांचने और रिजल्ट की घोषणा करने में और देर लगेगी, तब तक तो यूनिवर्सिटी में सीट्स ही भर जाएंगी.’
क्या प्रवेश परीक्षाएं होंगी?
पारुल कहती हैं कि दिल्ली यूनिवर्सिटी और अन्य यूनिवर्सिटी प्रवेश परीक्षा कराएंगी या नहीं, इसको लेकर भी स्थिति साफ़ नहीं है. हो सकता है कोरोना की थर्ड वेव के चलते प्रवेश परीक्षाएं ही ना हो पाएं. मगर बहुत से स्टूडेंट्स प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हैं और अभी से उसकी कोचिंग ले रहे हैं. वे 8 से 10 घंटे की पढ़ाई कर रहे हैं. बड़े कोचिंग संस्थान उन्हें ऑनलाइन कोचिंग दे रहे हैं और एवज़ में 40 से 50 हज़ार रूपए महीना वसूल रहे हैं. ऐसे में अगर प्रवेश परीक्षा ना हुई तो पेरेंट्स का यह पैसा और बच्चों की मेहनत दोनों मिट्टी में मिल जायेगी.
स्पोर्ट्स से जुड़े बच्चों में खलबली
टीचर नियाज़ अहमद
लखनऊ के स्पोर्ट्स टीचर नियाज़ अहमद कहते हैं – कुछ बच्चे जो स्पोर्ट्स या अन्य क्रिएटिव एक्टिविटीज से जुड़े होते हैं, मैंने देखा है कि ग्यारहवीं कक्षा में उनका ध्यान पढ़ाई से ज़्यादा खेल पर होता है. उनकी सोच यह होती है कि बोर्ड एग्जाम से पहले जम कर पढ़ लेंगे. ऐसे बच्चे पढ़ाई में कमजोर नहीं होते मगर अन्य गतिविधियों से जुड़े रहने के कारण 11वीं में उनके कम नंबर आते हैं. बीते साल भी बहुतेरे खिलाड़ी बच्चों के मार्क्स 11वीं में कम आये हैं. अब अगर इस बार 11वीं के रिजल्ट को आधार बना कर सीबीएसई 12वीं में बच्चों को प्रमोट करेगी तो इन बच्चों को बहुत कम मार्क्स मिलेंगे और अच्छी यूनिवर्सिटी में प्रवेश के उनके सपने धरे के धरे रह जाएंगे.
ऑनलाइन क्लास ने बच्चों की कई क्षमताएं लील लीं
टीचर ज्योति मेहता
बीते 15 महीने से बच्चे घर में हैं और उनमें से कुछ ही बच्चे ऑनलाइन क्लासेज कर रहे हैं. देश में करीब दो तिहाई बच्चे ऐसे हैं जिनकी पढ़ाई ना के बराबर रह गयी है. इस दौरान बच्चों ने बहुत सारी क्षमताएं खो दी हैं और अब जबकि परीक्षाएं भी रद्द हो चुकी हैं तो उन क्षमताओं के लौटने का सवाल भी नहीं उठता है.
लखनऊ की सिटी मोंटेसरी स्कूल की टीचर ज्योति मेहता कहती हैं – कक्षा में बच्चे नोट्स लेते समय तेज़ गति से कलम चलाते थे. परीक्षाओं में भी उनकी कलम की गति उनको बेहतर नंबर दिलाने में सहायक थी. लेकिन कोरोना काल में बच्चों ने अपनी लिखने की क्षमता और गति दोनों ही खो दी है.
ज्योति कहती हैं – क्लास रूम में एग्जाम और टेस्ट होने से बच्चों में प्रतिस्पर्धा की भावना तीव्र होती थी. क्लास में सवाल जवाब होते हैं तो जवाब ना देने की सूरत में पूरी क्लास के सामने जो लज्जा महसूस होती है उससे प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ती है, मगर जब बच्चे डेढ़ साल से घर में बैठे हैं और कभी कभी ऑनलाइन आकर कुछ घंटों की क्लास करते हैं तो टीचर सवाल जवाब भी नहीं करते हैं. ऐसे में बच्चों के भीतर प्रतिस्पर्धी भावना ख़त्म हो गयी है जो आगे की पढ़ाई के लिए और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने की राह में बड़ी बाधा बन जाएगी.
इसके अलावा कोरोना काल में बच्चों ने लंबे क्लास रूम लेक्चर में अपनी रुचि खो दी है, उनकी सीखने की क्षमता बहुत कम हो गयी है, टीम भावना और किसी विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता होने से उनका ज्ञान सूचकांक बहुत कम हो गया है.
हालांकि ज्योति मानती हैं कि इस वक्त बच्चों की सुरक्षा भी बहुत ज्यादा जरूरी है और ऐसे माहौल में परीक्षाएं आयोजित करवाना भी बहुत मुश्किल भरा काम है, लेकिन परीक्षाएं ना होने से वर्ष 2020 और 2021 के दसवीं और बारहवीं के जो बैच निकलेंगे उनको हायर स्टडी और करियर में काफी नुकसान उठाने पड़ेंगे.