भाजपा ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से टिकट वितरण में अपनों की उपेक्षा की उससे आहत पार्टी के लोग दबी जुबान से तमाम तरह के आरोप लगा ही रहे थे कि इसी बीच पूर्व एमएलसी और लखनऊ पब्लिक स्कूल के संस्थापक एसपी सिंह ने कहा कि टिकट देने के बदले करोडों रूपये मांगे गये थे. एसपी सिंह ने अपनी एमएलसी पत्नी कांती सिंह के साथ इस बात पर भाजपा से नाराज होकर समाजवादी पार्टी का साथ पकड़ा. एसपी सिंह अभी तक एमएलसी का चुनाव जीतते रहे हैं. लोकसभा चुनाव के पहले से वह भाजपा के साथ थे. वह अब विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. बांगरमऊ विधानसभा जिला उन्नाव से वह टिकट मांग रहे थे. भाजपा के नेताओं के भरोसा देने पर वह 2 साल से इस क्षेत्र में प्रचार कर रहे थे.
एसपी सिंह कहते हैं ‘भाजपा नेता उनको लगातार इस बात का भरोसा दे रहे थे कि टिकट उनको ही मिलेगा. बाद में टिकट के बदले पैसे मांगने लगे. उन्नाव से सांसद साक्षी महाराज के प्रतिनिधि पर आरोप लगाते एसपी सिंह ने कहा कि वह टिकट के बदले करोडों की मांग करने लगे. अपने आरोप को विस्तार देते एसपी सिंह ने कहा कि भाजपा में हर एक स्तर पर टिकट के लिये पैसे मांगे जा रहे हैं. बसपा और भाजपा की तुलना करते एसपी सिंह ने कहा कि ‘बसपा में जहां सिंगल विंडों सिस्टम है, वहीं भाजपा में सौ से ज्यादा जगहों पर पैसा मांगा जाता है.’
एसपी सिंह ने कहा कि वह अब चुनाव लड़ने का इरादा त्याग चुके हैं. वह कहते हैं कि संभव है कि इन मसलों की जानकारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को न हो, पर प्रदेश के प्रभारी ओम माथुर को इस बात की जानकारी है. प्रदेश में दलबदल करने वाले नेताओं के टिकट देने के नाम पर पैसे लिये गये हैं. एसपी सिंह ने कहा कि वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ हैं. अब चुनाव लड़ने के लिये सपा में नहीं आये है.
एसपी सिंह ने जो बात खुलकर कही वही बात भाजपा के तमाम नेता दबी जुबान में कहते रहे हैं. भाजपा ने बड़े पैमाने पर दलबदल करने वालों को विधानसभा का टिकट दिया है. केन्द्र स्तर पर यह कहा गया कि विधानसभा चुनाव में जीत के लिये बाहरी नेताओं का सहारा लेना जरूरी है. कई बार टिकट वितरण को लेकर भाजपा नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष का घेराव किया. उनकी कार के आगे लेट गये. राष्ट्रीय अध्यक्ष को काले झंडे दिखाये. टिकट वितरण को लेकर पहली बार भाजपा सवालों के घेरे में आ गई है. जो बात भाजपा कार्यकर्ता दबी जुबान में कह रहे थे वही अब एसपी सिंह ने खुलकर कह दी है.
भाजपा जिस तरह से बसपा और सपा पर टिकट बेचने का आरोप लगाती थी अब वही आरोप खुद पर लगा है. इसे वह टिकट न मिलने की खीझ कह सकती है. जनता के बीच यह बात उसी तरह से सही मानी जा रही है जिस तरह से बसपा और सपा के संबंध में मानी जाती है. राजनीतिक शुचिता और ईमानदारी की बात करने वाली भाजपा का दामन भी दागदार है. अब इस पर किसी तरह की सफाई जनता को समझ नहीं आ रही. उसे लग रहा है कि अगर देश में मोदी की हवा चल रही है और भाजपा अपने बल पर विधानसभा चुनाव जीत सकती है तो अपनों की उपेक्षा कर दलबदल करने वालों को टिकट क्यों दिया गया? इसका जबाव भाजपा नेताओं के पास नहीं है.