लेखक- शाहनवाज
कोरोना के कारण देश के लगभग हर शहर के बिगड़ते हालातों से भला इस समय कौन परिचित नहीं है. पिछले साल लगभग इसी महीने के आस पास देश में सम्पूर्ण लौकडाउन के चलते उस के कारण पड़ने वाले प्रभाव का बुरा असर देश की गरीब जनता, जिस में मुख्य रूप से शहरों में रहने वाले प्रवासी मजदूर थे, उन पर पड़ा. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश में लगाए गए 21 दिनों के पहले फेज वाले सम्पूर्ण लौकडाउन के तीसरे ही दिन लौकडाउन के कारण पड़ने वाले सब से विकराल समस्या की तस्वीरें सामने आ गई थी.
शहरों में रहने वाले ध्याड़ी मजदुर, रिक्शा चालक, फैक्ट्री में बेहद कम तन्खवा पर काम करने वाले लोग और बेरोजगार युवा अपनेअपने घरों की ओर लौटने के लिए पैदल ही रवाना हो चले थे. देश के सभी बड़े शहरों के बस अड्डों में, इन प्रवासी लोगों के गांव-घर लौटने की मजबूरी के कारण लोगों का जमावड़ा लग गया था. हालांकि देश में आज कल कोरोना की दूसरी लहर चल पड़ी है जो पिछले साल की तुलना में और भी अधिक घातक और भयानक साबित हो रही है.
पिछले साल की तुलना इस साल से करें तो इस बार कोरोना के वैक्सीन बनने के बावजूद पिछले साल के मुकाबले दुगनी संख्या में लोग संक्रमित हो रहे हैं. कोरोना के कारण मरने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. देश के कुछ राज्यों के हालात तो इतने दयनीय हो गए हैं की कोरोना से संक्रमित गंभीर मरीजों को अस्पताल में बेड नहीं मिल रहा. अस्पतालों में औक्सीजन की किल्लत बढ़ती ही जा रही है. हाल तो यह है कि वैक्सीन लगाने के लिए लोगों को अस्पतालों में 7-8 घंटे लाइन में खड़े रहने को मजबूर होना पड़ रहा है. यहां तक कि देश में कई राज्यों में वैक्सीन खत्म हो रही है. देश में लगभग सभी राज्यों की स्वास्थ व्यवस्था पूरी तरह से चरमराती हुई नजर आ रही है.
क्या हैं दिल्ली के हालात?
दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों को ध्यान में रखते हुए गुरुवार 15 अप्रैल को दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू लगाने का ऐलान किया. दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथौरिटी (डीडीएमए) ने दिल्ली वीकेंड लौकडाउन के ‘डूस’ और ‘डोंट्स’ की एक विस्तृत सूची जारी की, जिस में बताया गया कि वीकेंड लौकडाउन के दौरान क्या कार्य करने की अनुमति होगी और क्या नहीं. जबकि दिल्ली सरकार ने सभी शौपिंग मौल, जिम, स्पा, औडिटोरियम, असेंबली हौल, एंटरटेनमेंट पार्क और इसी तरह के स्थानों को 30 अप्रैल तक बंद करने का आदेश दिया है. जिस दौरान शहर में आने वाले या प्रस्थान करने वाले लोगों को बिना किसी प्रतिबंध के आने-जाने की अनुमति होगी. बता दें कि दिल्ली में रात का कर्फ्यू पहले से ही लगा हुआ है और किसी भी व्यक्ति को छुट के लिए दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर ई-पास के लिए आवेदन करना होगा.
सरकार के फैसले पर लोगों में डर
ऐसे में यह जानने के लिए कि दिल्ली सरकार के इन फैसलों से दिल्ली में रहने वाले प्रवासी मजदूरों पर क्या फर्क पड़ने वाला है, सरिता टीम दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे पर माहौल का जायजा लेने पहुंची. आनंद विहार मेट्रो स्टेशन गेट नंबर 1 से निकलते ही कोरोना की जांच का एक सेंटर वहीं मौजूद था, जहां पर लाइन में खड़े बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी इस बात का प्रमाण थी कि लोग बस अड्डे अपनेअपने गांव जाने के लिए ही पहुंचे हैं. कोरोना की जांच की लाइन में खड़े लोगों के बीच 1-1 हाथ का गैप था. जिस टेंट के नीचे लोगों की जांच हो रही थी उस के इर्द-गिर्द सिविल डिफेन्स के करीब 15-20 वालंटियर और 2-3 पुलिस वाले वहां लोगों की बढ़ती गहमा-गहमी को कंट्रोल करने का काम कर रहे थे.
सूरज चढ़ने के साथसाथ गर्मी बढ़ रही थी, लोग धूप में, पसीने से लथपथ, मुह पर मास्क लगाए, अपने दोनों हाथों में सामान लिए, पीठ पर बस्ता टांगे उस लाइन में खड़े हो कर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे. हर किसी का हाल लगभग एक जैसा ही था. कोई भी अपनी मर्जी से, शौक से वहां नहीं खड़ा था, बल्कि मजबूरी में था. फिर चाहे वह गांव लौटते मजदूर हो, कोरोना की जांच करते पीपीई किट पहने लोग हों, या फिर सिविल डिफेन्स और पुलिस वाले.
भीड़ से छटते हुए किसी तरह से हम आनंद विहार बस अड्डे के अंदर पहुंचे. अंदर जाते ही दूर से यह दिखा की लोग अपनीअपनी बस का इंतजार कर रहे थे. भीड़ काफी थी. कोई सामाजिक दूरी नहीं, जिस का होना संभव भी नहीं था. ऐसे ही भीड़ में अपनी बस का इंतज़ार कर रहे उत्तर प्रदेश के बहराइच के रहने वाले रामू यादव से हमारी बात हुई. रामू यादव दिल्ली एनसीआर में गुडगांव में एक बस्ती में किराए के कमरे में रहते हैं और लकड़ी का काम करते हैं. रामू ने बताया कि उन के गांव वापिस जाने का मुख्य कारण एक तो काम का पर्याप्त रूप से न मिल पाना है और दूसरा यह की कब किस वक्त लौकडाउन लगा दिया जाएगा कुछ पता नहीं.
रामू कहते हैं, “गुडगांव में हमारा अपना काम है. लेकिन पिछले साल लौकडाउन में हमारा सारा काम डूब गया. हमें पिछली बार भी लौकडाउन के समय बाकि लोगों की तरह पैदल गांव जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. आदमी एक बार गलती से कूएं में गिर सकता है बार बार नहीं. इस बार जिस तरह से वायरस दोबारा से फैल रहा है उस से लग रहा है की सरकार फिर से लौकडाउन लगा देगी. इसीलिए हम अभी से ही गांव जा रहे हैं.”
रामू यादव अकेले नहीं बल्कि अपने 7 और दोस्तों के साथ वापिस अपने गाँव जा रहे थे. सभी के हाथों में 2-2 बड़े बैग, पीठ पर बस्ता, कुछ के हाथों में पानी की बोतल इत्यादि सामान मौजूद था. रामू के दोस्त, प्रदीप मिश्रा ने कहा, “हम जानते हैं की बिमारी की वजह से इस तरह से बार बार कभी लौकडाउन तो कभी कर्फ्यू लगाया जा रहा है और हम इस से बहुत परेशान हैं. कोरोना का भी अजीब सिस्टम है, जहां चुनाव हो रहे हैं वहां नहीं फैलता. हम मजदूरों की स्थिति थोड़ी ठीक होने लगी थी अब फिर से सरकार इस तरह से लौकडाउन लगाएगी तो हम जैसे गरीबों को भूखे मरने की नौबत आ सकती है.”
उत्तराखंड में रामनगर के रहने वाले सतीश रावत अपने छोटे भाई विक्की के साथ उत्तराखंड जाने वाली अपनी बस का इंतजार कर रहे थे. काफी देर बाद एक बस आई जो की पहले से भरी हुई थी, और उस में चढ़ने के लिए और भी ढेरों सवारी पहले से उस के आने का इंतजार कर रहे थे. जैसे ही बस अपनी जगह पर आई तो उस का इंतजार कर रहे सभी लोग उस पर टूट पड़े. देखते ही देखते बस के अन्दर सारी सीटें भर गई. यहां तक की सीट छोड़ लोग चिपकचिपक कर खड़े हो गये. जिस कारण बस में चढ़ने को जगह बची ही नहीं. बाकि लोगों की तरह सतीश रावत उस में नहीं चढ़ पाए और हताश हो कर अगली बस का इंतजार करने लगे. उन के चहरे पर थकान और उदासी दोनों ही साफ साफ देखी जा सकती थी.
32 वर्षीय सतीश ने बताया की वह दिल्ली के उत्तम नगर में किराए के कमरे में रहते हैं और बैंक्वेट हौल में वेटर का काम करते हैं. उन्होंने बताया की वह कई लोगों के संपर्क में रहते हैं जो उन्हें काम पड़ने पर बुला लेते हैं. वे एक ध्याड़ी मजदूर हैं. वह कहते हैं, “जब से कोरोना की शुरुआत हुई है हिन्दुस्तान में करोड़ो लोगों की तरह हमारा काम भी बुरी तरह से चौपट हुआ है. लेकिन हाल फिलहाल में थोडा बहुत काम मिलना शुरू हुआ था पर अब कोरोना फिर से बढ़ने लगा है, और मैं नहीं चाहता की पिछली बार की तरह इस बार भी मैं दिल्ली में फसा रह जाऊ.”
“पिछले साल कई लोगों की मदद भी मिली. सरकार ने राशन भी दिया. लेकिन सरकार के मंत्रियों ने, नेताओं ने हम जरुरतमंदों को जलील करने का काम किया. वो एक रोटी देते हैं और 4 लोग मिल कर फोटो खींचते हैं जिस से हमें बहुत शर्मिंदगी होती है. और ये शर्मिंदगी मैं फिर से नहीं सहन करना चाहता. बेशक गांव में जा कर घर के आंगन में कुछ भी उगा लेंगे. लेकिन अपना आत्मसम्मान बरकरार रखेंगे.”
यूपी, बिहार, उत्तराखंड में जाने वालों की संख्या बढ़ी
बस अड्डे में अपने गांव लौटते लोगों से बात करने के बाद हम ने वहां मौजूद दुकानों में सामान बेचने वाले लोगों से बात की. खाने पीने का सामान और मोबाइल एक्सेसरीज बेचने वाले दुष्यंत शर्मा बताते हैं की यहां पर पिछले 10 दिनों से गांव लौट रहे लोगों की संख्या में लगातार इजाफा ही हुआ है. वह कहते हैं, “पिछले 10 दिनों से यहां पर लोगों की भीड़ बढ़ी ही है लेकिन हमारी दुकानों से सामान बहुत ही कम बिका है. लोगों के पास इतना पैसा भी नहीं है की वह हमारी दुकानों से पीने के लिए पानी तक खरीद सके. नवम्बर दिसम्बर से लोगों के चेहरों पर रौनक आनी शुरू ही हुई थी, उन के हालात सुधरे ही थे लेकिन अब दोबारा से पिछले साल की तरह लौकडाउन लगा देंगे तो इस बार लोग कोरोना से ज्यादा भुखमरी से मारे जाएंगे. ये कोरोना के डर से नहीं बल्कि भूख के डर से लोग अपनेअपने घरों की ओर भाग रहे हैं साहब.”
वह आगे कहते हैं, “सरकार 36 तरह की पाबंदियां लगा देती है और उसे कर्फ्यू का नाम दे देती है. ये तो वही बात हो गई, की सांप की खाल पहन कर मगरमच्छ आ जाए तो उसे सांप थोड़ी न कहा जा सकता है भला. वो तो है मगरमच्छ ही न. ठीक उसी तरह से इन्होने लौकडाउन का नाम बदल कर कर्फ्यू कर दिया है. लोग इतने भी बेवकूफ नहीं रह गए हैं. हमें किसी भी सरकार पर रत्ती भर भरोसा नहीं रह गया अब तो. आज कर्फ्यू है, कल लौकडाउन होगा. नेता तो चुनावों में मौज मार लेंगे लेकिन हम जैसे लोगों का बंटाधार हो जाएगा.”