प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री जनधन योजना शुरू की  थी, जिस के तहत देश के सभी प्राइवेट और सरकारी बैंकों को जीरो बैलेंस पर गरीब कमजोर लोगों के खाते खोलने का आदेश दिया गया. इस आदेश का पालन हुआ और जो बैंक 25 या 10 हजार रुपए से कम में खाता नहीं खोलते थे,उन्होंने भी जीरो बैलेंस पर खाते खोले, शहरों में भी, ग्रामीण क्षेत्रों में भी.

परिणामस्वरूप 1 जून, 2016 तक देश भर में 22 करोड़ जनधन खाते खुल गए. 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी से पहले तक इन में से अधिकांश खाते खाली पड़े थे लेकिन नोटबंदी होते ही इन खातों में पैसों की बहार आ गई.

आलम यह रहा कि गरीबों के इन खातों में 25 नवंबर, 2016 तक 64,250 करोड़ रुपए की रकम जमा हो गई थी. 

इन खातों के कई खातेदार तो करोड़पति बन गए हैं, लेकिन सिर्फ खाते में. क्योंकि यह रकम उन की अपनी नहीं है. उन्हें मिलेगा भी कुछ नहीं, क्योंकि उन के खातों में या तो बैंक की गलती से रकम आई या फिर दूसरों की हेराफेरी से.

बहरहाल, सरकार भले ही अपनी इस महत्त्वाकांक्षी योजना को ले कर अपनी पीठ थपथपाए, सब से ज्यादा काला धन इन्हीं खातों की बदौलत सफेद हुआ है, वह भी उस स्थिति में जबकि इन खातों की एक साल के ट्रांजैक्शन की लिमिट डेढ़ लाख रखी गई थी. अब ये ही खाते भाजपा सरकार के गले की फांस बन गए हैं.

दरअसल, काले धन के कुबेरों और कालाधन रखने वाले रसूखदार लोगों को यही खाते और इन के खातेदार सौफ्ट टारगेट लगे, इसलिए उन्होंने जनधन खाते वाले गरीब खाताधारकों को कमीशन की घुट्टी पिला कर उन के खातों के माध्यम से अपना काला धन सफेद करा लिया. शुरुआती दौर में जब पुराने नोटों के बदले नए नोट दिए जा रहे थे, तब भी गरीब कमजोरों का ही सहारा लिया गया.

जैसे तैसे नोटबंदी का कारवां आगे बढ़ा. कुल मिला कर स्थिति यह रही कि 1000 और 500 रुपए के पुराने नोटों के रूप में इन खातों में करीब 75 हजार करोड़ रुपए जमा हो गए. यह देख कर सरकार के भी होश उड़ गए कि गरीब और कमजोर लोगों के इन खातों में अचानक इतनी बड़ी रकम कहां से आ गई. यह करिश्मा नोटबंदी के बाद केवल 14 दिनों में ही शुरू हो गया था.

इन खातों में गड़बड़ी की आशंका के तहत सरकार ने मोटी रकम वाले खातों की रकम की जांच का फैसला कर लिया. साथ ही लोगों को अगाह भी कर दिया कि दूसरों की रकम अपने खातों में न जमा कराएं. वरना इनकम टैक्स की जांच में फंस जाएंगे.

हालांकि प्रधानमंत्री ने अपने एक भाषण में कहा कि जिन्होंने अपने जनधन खातों में दूसरों की रकम जमा कराई है, उन्हें वापस न लौटाए.

लेकिन प्रधानमंत्री की यह घोषणा इसलिए मायने नहीं रखती क्योंकि जनधन खाताधारकों ने थोडे़ से लालच में जिन लोगों की रकम जमा कराई है, वे दबंग और रसूख वाले हैं. वे अपना पैसा वापस लेने का माद्दा रखते हैं. अलबत्ता, इस मामले में कुछ खाता धारक जरूर कानूनी पचड़ों में फंस जाएंगे.    

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