Valentine’s Special : मालविका की गजल की डायरी के पन्ने फड़फड़ाने लगे. वह डायरी छोड़ दौड़ी गई. पति के औफिस जाने के बाद वह अपनी गजलों की डायरी ले कर बैठी ही थी कि ड्राइंगरूम के चार्ज पौइंट में लगा उस का सैलफोन बज उठा.

फोन उठाया तो उधर से कहा गया, ‘‘मैं ईशान बोल रहा हूं भाभी, हम लोग मुंबई से शाम तक आप के पास पहुंचेंगे.’’

42 साल की मालविका सुबह 5 बजे उठ कर 10वीं में पढ़ रहे अपने 14 वर्षीय बेटे मानस को स्कूल बस के लिए  रवाना कर के 49 वर्षीय पति पराशर की औफिस जाने की तैयारी में मदद करती है. नाश्तेटिफिन के साथ जब पराशर औफिस के लिए निकल जाता और वह खाली घर में पंख फड़फड़ाने के लिए अकेली छूट जाती तब वह भरपूर जी लेने का उपक्रम करती. सुबह 9 बजे तक उस की बाई भी आ जाती जिस की मदद से वह घर का बाकी काम निबटा कर 11 बजे तक पूरी तरह निश्चिंत हो जाती.

इस वक्त शेरोशायरी, गीतगजलों की लंबी कतारें उस के मनमस्तिष्क में आ खड़ी होती हैं. अपने लिखे कलामों को धुन में बांधने की धुन पर सवार हो जाती है वह. नृत्य में भी पारंगत है मालविका और नृत्य कलाओं की प्रस्तुति से ले कर गीत गजलों के कार्यक्रमों में अकसर हिस्सा लेती है. वह अपने शहर में एक नामचीन हस्ती है और अपनी दुनिया में उस के फैंस की लिस्ट बड़ी लंबी है.

गजलों के फड़फड़ाते पन्नों को बंद कर उस ने डायरी को टेबल की दराज के हवाले किया और जल्द ही अपने चचेरे देवर ईशान व उस की नवेली पत्नी रिनी के स्वागत की तैयारी में लग गई.

लगभग सालभर पहले चचेरे देवर 34 साल के ईशान की शादी हुई थी. तब पराशर इन की शादी में चंडीगढ़ गए थे. लेकिन मालविका नहीं जा पाई थी, बेटे का 9वीं कक्षा का फाइनल एग्जाम था. अब ईशान पत्नी रिनी के साथ उस के मायके होते हुए लक्षदीप से मुंबई और फिर नागपुर आ रहे थे.

मालविका ने पराशर को फोन पर सूचना दी और आइसक्रीम व बुके लाने को कहा. वैसे यह पराशर के मूड पर निर्भर करता है कि वह मालविका के सु झाव पर गौर करेगा या नहीं.

देवर ईशान और उस की पत्नी 28 साल की रिनी के आने से घर रंग और रौनक से भर गया था. मालविका का बेटा मानस अपनी कोचिंग और पढ़ाई के बीच थोड़ाबहुत हायहैलो करने का ही समय निकाल पाता, लेकिन भैया पराशर का रिनी को ले कर अतिव्यस्त हो जाना कभीकभी ईशान को हैरत में डाल रहा था. ईशान रहरह कर मालविका की ओर तिरछी निगाहों से देखने लगा था और मालविका?

16 सालों से अपने पति को लगातार सम झती हुई भी मालविका जैसे अनबू झ मकड़जाल में उल झी हुई थी. कौन कोशिश करे इन उल झे जालों को हटाने की? मालविका को तो इस की इजाजत ही नहीं थी. हां, बिना इजाजत मालविका को कोई भी निर्णय लेने का यहां अधिकार नहीं था.

हां, उल झनों के मकड़जाल हट सकते थे अगर मालविका पराशर की बात मान ले. लेकिन यह संभव नहीं. अवहेलना, ईर्ष्या, व्यंग्य, हिंसा  झेल कर भी मालविका ने अपने मौनस्वर को किस तरह जिंदा रखा है, यह वही जानती है. खैर, रिनी मदमस्त हिरनी सी खूब खेल रही है पराशर के साथ.

चंडीगढ़ में नारी मुक्ति आंदोलन और बेटी बचाओ एनजीओ की प्रैसिडैंट है वह. आजादी का उपयोग करने में इतनी बिंदास है कि मालविका को खुद पर तरस हो आता. क्या वह दूसरों के मुकाबले ज्यादा घुटी हुई सी नहीं रहती. कुछ ज्यादा संत्रस्त?

पराशर यों तो अच्छीभली नौकरी में है, देखनेभालने में भी स्मार्ट है लेकिन उस की एक ही परेशानी है मालविका.

ईशान जब से आया है, हर प्रकार की मौजमस्ती, खानपान, घूमनेफिरने के बीच एक और चीज जो सब से ज्यादा महसूस कर रहा था वह यह कि पराशर मालविका को ले कर काफी अशांत था. वह जानने को आतुर था कि मालविका जैसी सुंदर, सुघड़, मितभाषी स्त्री के प्रति भी किसी पुरुष में आक्रोश हो सकता है. फिजी से आते वक्त एक मधुर मजाकिया माहौल की कल्पना उस के जेहन में बसी थी, लेकिन यहां माहौल इतना तनावभरा होगा, उस के खयालों में भी नहीं रहा था.

साउथ पैसिफिक ओशन के देश फिजी से वह आया था जहां उस के पिता डाक्टर और मां एक मौल की मालकिन है. वह खुद भी वहां सरकारी अस्पताल में डाक्टर है. चंडीगढ़ में उस की शादी एक वैबसाइट के माध्यम से हुई थी और रिनी के साथ तालमेल बैठाने की उस की कोशिश जारी थी.

शादी के एक साल बाद भारत के रिश्तेदारों से मिल कर अगले 10 दिनों में उन के वापस जाने का प्रोग्राम था. इस लिहाज से 4 दिन ही बचे थे और इन दिनों मालविका ईशान को अपने किसी तनाव के घेरे में नहीं लेना चाहती थी लेकिन पराशर का असामान्य व्यवहार बारबार मालविका के प्यारे मेहमान को असमंजस में डाल देता था.

34 साल का ईशान 42 साल की भाभी से अब धीरेधीरे बहुत खुल चुका था. ईशान को इस के पहले मालविका ने 2 बार ही देखा था. पहली दफा उस से जब मुलाकात हुई थी. तब मालविका की शादी हुए 3 साल ही हुए थे और वह 27 की तथा ईशान 19 साल का था. उस वक्त सालभर का मानस मालविका को कितना तंग करता था और वह किस तरह  झल्लाती थी, यह बोलबोल कर ईशान मालविका को आज खूब चिढ़ा रहा था.

पराशर ने इस मौके को गंवाना नहीं चाहा. ईशान का भाभी के प्रति नम्र रुख पराशर को भी सम झ आ ही रहा था, कहा, ‘‘अब भी क्या कम है? न बच्चे में रुचि है न पति में. सारा दिन नाच, गाना और चाहने वाले.’’

ईशान से रहा नहीं गया. उस ने कहा, ‘‘क्यों भैया, सारा दिन तो सबकुछ मैनेज करने में ही बिता रही हैं भाभी, एकएक को खुश करने पर तुली हैं. अब कोई किसी भी कीमत पर खुश न हो तो भाभी भी क्या करें. अगर इस के बाद समय निकाल कर कुछ क्रिएटिव कर रही हैं तो यह तो गौरव की बात हुई न? रिनी भी तो चंडीगढ़ में महिलाशक्ति की नेत्री है. आप इस बारे में क्या कहेंगे?’’

पराशर के लिए रिनी एक मनोरंजन मात्र थी. अकसर ऐसा ही होता भी है और स्त्री सोचती है वह कितनी महत्त्वपूर्ण है जो एक पुरुष अपनी पत्नी को बेबस छोड़ उसे तवज्जुह दे रहा है. खैर, पराशर ने बात घुमा दी, ‘‘चलो, तुम लोगों को यहां का प्रसिद्ध बाजार घुमा दूं.’’

रिनी मचल उठी, ईशान को सुने बिना ही कह पड़ी, ‘‘चलो, चलें.’’

‘‘अरे, भाभी से तो पूछो,’’ ईशान रिनी से यह कहते हुए जरा तल्ख हो चुका था.

मालविका जानती थी कि पराशर उसे कतई साथ ले जाना नहीं चाहेगा. उस ने खुद ही कहा, ‘‘मु झे घर पर काम है, तुम सब जाओ.’’

कार पराशर ने ड्राइव की और तीनों साथ गए. लेकिन आधी दूरी पर जा कर ईशान ने कहा, ‘‘भैया, आप मु झे यहां उतार दें, मु झे बैंक में कुछ जरूरी काम है, आप लोकेशन बता जाइए. मेरा काम होते ही मैं वहां आ कर आप को कौल कर लूंगा.’’

पराशर फिलहाल रिनी को ले कर वक्त बिताने में ज्यादा उत्सुक था और साथ ही उस के लिए यह राहत की बात थी कि ईशान और मालविका अकेले साथ नहीं हैं.

मालविका बेमिसाल हुस्न की मलिका थी. गुलाब सी खूबसूरत गालों से भोर की लाली सा नूर  झरता था. सुगठित देहयष्टि में तरुणी सी लचक, नृत्य की मुद्रा में जैसे सर्वश्रेष्ठ शिल्पी की किसी नायाब कलाकृति सी नजर आती थी वह.

कौन किसे देखे, कौन किसे देख कर ज्यादा मुग्ध हो जाए? ईशान भी क्या कम स्मार्ट, जहीन और खूबसूरत नौजवान था. 6 फुट की बलिष्ठ कदकाठी में वह एक बोलती आंखों वाला स्मार्ट प्रोफैशनल था, जिस के साथ देखनेभालने में बेहद मौडर्न, सुंदर रिनी का अच्छा मैच था.

मालविका आज हफ्तेभर बाद अपनी डायरी के पन्ने पलट रही थी कि ईशान को वापस आया देख वह अवाक रह गई.

‘‘क्या हुआ, तुम अकेले? गए नहीं उन के साथ?’’

‘‘बरदाश्त करो थोड़ी देर, पराशर भैया और रिनी का अकेले घूमना.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘क्या नहीं हुआ भाभी.’’

ईशान मालविका के पास आ कर सोफे पर बैठ गया. उस के हाथ पर अपना हाथ यों रखा जैसे वह उस का संबल हो, फिर शांति से पूछा, ‘‘मालविका, हां, नाम ही सही रहेगा. इस मामले में मैं तुम्हारी राय नहीं मांगूंगा क्योंकि मै जानता हूं तुम संस्कारों की दुहाई दोगी और हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाएंगे.’’

मालविका बेहद उल झन वाली स्थिति में आ गई थी,  उस ने झिझकते हुए पूछा, ‘‘आखिर क्या कहना चाह रहे हो तुम ईशान?’’

‘‘तुम्हें क्या हुआ मालविका, मु झे बताओ. भैया क्यों तुम से खफाखफा रहते हैं? तुम इतनी खूबसूरत हो, मितभाषी, सब का दिल जीत लेने वाली, गीत नृत्य में माहिर हो, फिर क्यों भैया अकसर व्यंग्य कसते रहते हैं, जैसे उन के अंदर बहुत क्रोध जमा है तुम्हारे लिए?’’

‘‘ईशान यह दुविधा मेरे लिए आग का दरिया है और इस में डूबे रहना मेरा समय.’’

‘‘आप इतनी टैलेंटेड और खूबसूरत हो, क्यों सहती हो इतना?’’

‘‘मानस के लिए, उसे मैं टूटे घरौंदे का पंख टूटा पंछी नहीं बनाना चाहती.’’

‘‘तुम ने जो सोचा है, वह एक मां का दृष्टिकोण है.’’

‘‘मैं अभी सब से पहले मां ही हूं ईशान.’’

‘‘और तुम खुद?’’

‘‘तुम जैसा प्यारा दोस्त अगर साथ रहे, तो खुद को भी धीरेधीरे सम झने लगूंगी.’’

‘‘मालविका, मैं कब से तुम से यही कहने वाला था. हम अब से पक्के दोस्त. तुम मु झे अपनी सारी परेशानी बताओगी और घुटन से खुद को मुक्त रखोगी. मैं जानता हूं तुम कितनी अकेली हो. अपने मायके में तुम इकलौती बेटी थी और अब तुम्हारे मातापिता रहे नहीं. मैं यह भी सम झता हूं कि तुम्हारी पहचान की वजह से तुम बाहर अपना दुख किसी से सा झा भी नहीं कर पाती होगी, कितनी घुटती होगी तुम. मालविका, आज तुम्हें जानने के लिए मैं ने भैया के साथ रिनी को भी अकेला छोड़ देना पसंद कर लिया.’’

मालविका की आंखों से टपटप आंसू उस की गोद में गिरने लगे, जैसे सालों से धरी रखी ग्लानि अब तोड़ चुकी थी अपनी सीमाएं.

‘‘ये बड़ी उल झन भरी बातें हैं,  तुम कैसे सम झोगे ईशान. तुम तो अभी बच्चे हो.’’

‘‘अब कान खींच लूंगा तुम्हारा, सम झी. हमारी दोस्ती के बीच अब कभी भी उम्र को मत लाना.’’

आंसुओं के बीच मालविका की आंखों में वैसी ही चमक उठी जैसी बारिश के बाद कई बार दिखती है. निगाहें मिलीं दोनों की और छोटीछोटी सम झ की बड़ी सी जगह बन गई.

‘‘तो बताओ.’’

हक से यह कहा ईशान ने तो मालविका ने मुंह खोला, ‘‘पराशर खुद बहुत हैंडसम और अच्छी नौकरी में हैं, मगर वे स्वीकार नहीं पाते कि उन के रहते कोई मेरी प्रशंसा करे. रिश्तेदार, जानपहचान वाले या मेरे परिचितअपरिचित फैंस. मैं अपना काम और नाम छोड़ कर सिर्फ उन के हाथों की कठपुतली बन जाऊं, तो शायद उन का दिल पसीजे. दरअसल, पराशर में प्रतिद्वंद्विता और तुलना करने की भावना हद से ज्यादा है जो उन्हें कभी चैन की सांस लेने नहीं देती. जब तक वे मेरा आत्मविश्वास नहीं तोड़ते उन का आत्मविश्वास नहीं गढ़ता. रातें मेरी कभी खुद की नहीं रहतीं, वे अपनी मरजी थोप कर मु झे कमतर का एहसास कराने की कोशिश करते हैं.’’

मालविका बोलते हुए अचानक रुक गई, शायद ज्यादा खुल जाने की झिझक ने उस के शब्दों को रोक लिया.

‘‘यानी, तुम्हारी इच्छा या अनिच्छा का कोई मोल नहीं, जो वे चाहें. पतिपत्नी में रिश्ता तो बराबरी का होता है.’’

‘‘परेशानी और भी है, सोच यह भी है कि अगर स्त्री कुछ अपनी खुशी के लिए कर रही है, जिस से समाज में उस की पहचान बनती है तो वह स्वार्थी और क्रूर है, क्योंकि वह अपने लिए समय निकालती है. जिस पति की ऐसी सोच रहे वह पत्नी को प्यार और सम्मान किस तरह दे सकेगा? तुम्ही बताओ ईशान.’’

‘‘लड़कियों को देख उन से ऐसा व्यवहार करते, जिस से मैं परेशान होऊं. जतलाने की यही मंशा रहती है कि चाहें तो वे अभी भी बहुतकुछ कर सकते हैं, लड़कियां अब भी उन के पीछे दीवानी हो सकती हैं, अर्थात मु झे भ्रम न हो कि लोग मेरे ही दीवाने हैं. क्या कहूं ऐसे बचकानेपन को. मैं ने उन्हें माफ करना सीख लिया है.’’

‘‘मालविका, तुम अपनी प्यारी सी दोस्ती मु झे दोगी? मैं एहसान मानूंगा तुम्हारा. तुम इतनी गुणी होते हुए भी कितनी सिंपल हो, तुम से बहुतकुछ सीखना है मु झे. जिंदगी को तुम्हारे नजरिए से जानना है मु झे. एक सुकूनभरा एहसास मैं भी दे पाऊंगा तुम्हें, ऐसा भरोसा दिलाता हूं. हमेशा रिश्ता लेने और देने का ही नहीं होता, कभी यह बिन कुछ लिएदिए आपस में खोए रहने का भी होता है. तुम कितनी अकेली हो, दोस्ती वाला यह हाथ थाम लो मालविका. मैं तुम्हारे दिल को थाम लूंगा.’’ ईशान ने अपना हाथ मालविका की ओर बढ़ा दिया था.

‘‘एक अच्छा दोस्त जो आप के दर्द का सा झीदार भी हो, बहुत मुश्किल से मिलता है. लेकिन तुम्हें संभाल कर कैसे रखूं ईशान? तुम जो मु झ से कितने छोटे हो. पराशर भी कभी नहीं चाहेंगे कि मैं तुम से संपर्क रखूं और फिर रिनी? उसे क्यों पसंद होगी हमारी दोस्ती?’’

‘‘तो मालविका तुम अभी भी उल झी हुई हो. सामाजिक संपर्क में मैं तुम्हारा देवर हूं. लेकिन जहां दोस्ती का संबंध सब से ऊंचा होता है वहां रिश्तों की थोपी हुई पाबंदियां माने नहीं रखतीं. रही बात पराशर भैया और रिनी की, तो एक बात का उत्तर दो, तुम्हें उत्तर खुद ही मिल जाएगा. पराशर भैया क्या तुम्हारे दिल के राजदार हैं? क्या उन्होंने तुम्हें यह अधिकार दिया है? क्या वे तुम्हारे दिल के हमदम हैं? उन का वास्ता तुम्हारे शरीर से है, तुम से नहीं. घुटघुट कर बच्चे को बड़ा कर तो लिया, अब बाकी जिंदगी में एक अच्छी सी दोस्ती को भी अपनाना नहीं चाहोगी? जहां तक रिनी की बात है, तो वह आज की मौडर्न प्रोफैशनल लड़की है और उस के खुद के पक्के व अच्छे पुरुष दोस्त हैं.

‘‘मालविका, जैसे तुम अपने रचना संसार को पराशर भैया के न चाहते हुए भी जिंदा रखे हुए हो, क्योंकि तुम जानती हो कि तुम सही कर रही हो, उसी तरह हमारी दोस्ती को खुद के दिलदिमाग के सुकून के लिए जीने का हक दो. बात है हम दोनों अपनेअपने पार्टनर के साथ सच्चे और अच्छे रहें और इस के लिए शादी से अलग रिश्तों में भी सम झ कर चलें. सब की अपनी जिंदगी के माने हैं और शादी से वे माने खत्म नहीं होते.’’

कम बोलने वाला ईशान इतना बोल कर एकदम चुप हो गया. थक कर बेबस सा मालविका की ओर देखने लगा.

मालविका बोली, ‘‘यानी, अब मेरे मन के रेगिस्तान में एक नखलिस्तान पैदा हो गया है और मै आसानी से उस में दो घड़ी बिता सकती हूं,’’ मालविका ने ईशान के हाथ पर अपना हाथ रख दिया था. ईशान अब संतुष्ट था. 2 दिनों बाद जब ईशान और रिनी ने फिजी के लिए फ्लाइट पकड़ी तब ढेर सारी अच्छीबुरी बातों के बीच एक बात बहुत अच्छी थी कि मालविका के पास मुसकराने की एक बेहतरीन वजह हो गई थी. इन भीगी सी पलकों में एक गुलाबी सा ख्वाब पैदा हो गया था जो बड़ी आसानी से अब उसे सहलाता, बहलाता और वह बेवजह ही मुसकराने लगती.

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