‘‘मेरी बेटी को किसी की नजर न लग जाए,’’ ललिता सुप्रिया को देखते ही खिल उठीं.
‘‘काला टीका लगा दो मां. दीदी हैं ही इतनी सुंदर कि जो देखे, देखता ही रह जाए,’’ नीरजा हंसी.
‘‘तुम लोगों को भी मुझे बनाने का अच्छा अवसर मिला है,’’ सुप्रिया हंस दी थी. अपूर्व और प्रताप मेज सजाने में ललिता की सहायता कर रहे थे.
‘‘हमारे समय में विवाह संबंध इसी तरह पक्के किए जाते थे. कई दिनों तक घर में उत्सव का सा वातावरण रहता था.’’
अपूर्व प्रताप को समझा रहे थे कि तभी सब को हैलोहाय कहते हुए शर्वरी का आगमन हुआ. उन के साथ ही एक युवक और उस के मातापिता भी थे. अपूर्व, प्रताप और ललिता ने आगे बढ़ कर उन का स्वागत किया. पहले औपचारिक और फिर अनौपचारिक बातचीत होने लगी. दोनों ही पक्ष बढ़चढ़ कर अपनी संतानों का गुणगान करने लगे. शीघ्र ही ठंडे पेय प्रस्तुत किए गए. उधर, शर्वरी ललिता का हाथ बंटाने उस के साथ चली गई.
‘‘अब बता, क्यों इतनी चिंता कर रही थी तू?’’ शर्वरी ने प्रश्न किया.
‘‘दीदी, सुप्रिया ने तो सुनते ही कह दिया कि वह तो प्रेम विवाह ही करेगी, मातापिता द्वारा तय किए विवाह में उस की कोई रुचि नहीं है.’’
‘‘उस ने कहा और तू ने मान लिया. ये बच्चे हमें बताएंगे कि वे किस प्रकार का विवाह करेंगे. हम ने क्या बिना प्रेम के ही विवाह कर लिया था. सच कहूं तो मुझे तेरे जीजाजी से पहली नजर में ही प्यार हो गया था. हमारा विवाह तो 6 माह बाद हुआ था.’’
‘‘ठीक कह रही हो, दीदी. मैं और अपूर्व तो मांपापा से छिपछिप कर मिलते थे. आप को तो सब पता है. मां को पता लगा तो कितना नाराज हुई थीं. उस मिलन में भी कितना रोमांच था. आधे घंटे की भेंट के लिए मैं दिनभर तैयार होती थी.’’
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